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Shaheed Sukhdev Biography in Hindi – सुखदेव की जीवनी

Shaheed Sukhdev Biography in Hindi - सुखदेव की जीवनी

क्रांतिकारी सुखदेव के जीवन के अनछुए पहलू

सुखदेव, शहीदे-आजम सरदार भगतसिंह और राजगुरु हिंदुस्तान के ऐसे सपूत थे जिन्होंने मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए हंसते हंसते फांसी पर झूलना स्वीकार किया था।

प्रारम्भिक जीवन एवं शिक्षा – Early Life and Education of Sukhdev

सुखदेव का जन्म पंजाब के लायलपुर में 15 मई 1907 को हुआ था। उनका पूरा नाम सुखदेव थापर Sukhdev Thapar था। जन्म के तीन महीने पहले ही सुखदेव के पिता रामलाल थापर का देहांत हो गया था। इसलिए उनकी परवरिश उनके चाचा अचिन्तराम ने की थी।

पांच वर्ष की उम्र में सुखदेव को पढ़ाई के लिए लायलपुर के ही धनपतमल आर्य हाई स्कूल में भर्ती कराया गया। यहां सातवीं कक्षा तक पढ़ने के बाद सुखदेव ने लायलपुर सनातनधर्म हाई स्कूल में प्रवेश लिया और 1922 में द्वितीय श्रेणी से एंट्रेंस की परीक्षा पास की।

sukhdev पढ़ाई में होशियार और शान्त स्वभाव के थे। वह तार्किक आधार पर बातें किया करते थे। अपने साथियों और शिक्षकों से भी उनका व्यवहार काफी मृदु था। उनके स्वभाव पर उनकी माता रल्ली देवी के धार्मिक संस्कारों का असर था। वह धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे।

चूंकि उनका जन्म एक आर्य परिवार में हुआ था इसलिए उनके विचारों पर आर्य-समाज का प्रभाव था। सुखदेव अपने सिद्धांतों के प्रति भी काफी दृढ़ और तटस्थ थे।

स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ाव – Sukhdev and Freedom Fight

भारत के स्वतंत्रता संग्राम से सुखदेव का सीधा वास्ता 1919 में पड़ा जब जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था और पंजाब के कई शहरों में ‘मार्शल लॉ’ लागू था। उस वक्त वह मात्र 12 वर्ष के थे और सातवीं कक्षा में पढ़ते थे।

मार्शल लॉ के दौरान sukhdev के चाचा अचिन्तराम को गिरफ्तार कर लिया गया जिसका उनके मन पर गहरा असर पड़ा। सुखदेव के चाचा गिरफ्तारी के बाद जब जेल में थे तब सारे शहर की स्कूलों के बच्चों को एकत्र कर ‘यूनियन जैक’ के सामने अभिवादन कराया गया था मगर सुखदेव इसमें शामिल नहीं हुए।

अपने चाचा के लौटने पर उन्होंने उन्हें गर्व से बताया कि वे यूनियन जैक के सामने नहीं झुके। 1921 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के दौरान पूरे देश में जागृति की लहर थी। sukhdev के जीवन में भी परिवर्तन प्रारम्भ हुआ। वह अच्छे और महंगे कपड़ों, टाई-कॉलर, हैट और कोट के शौकीन थे।

असहयोग आंदोलन के बाद उन्होंने विलायती कपड़ों का त्याग कर दिया और खद्दर के कपड़े पहनने लगे। उन्होंने हिंदी भाषा सीखी और इसका प्रचार भी किया। वह मानते थे कि देश के उत्थान के लिए एक राष्ट्रभाषा की जरूरत है और इस जरूरत का केवल हिंदी ही पूरा कर सकती है।

भगतसिंह से मुलाकात – Sukhdev and Bhagat Singh

1922 में एंट्रेंस की परीक्षा पास करने के बाद जेल में बंद उनके चाचा ने कहा कि उच्च शिक्षा के लिए वह डीएवी कॉलेज में नाम लिखवा ले। सुखदेव ने ऐसा नहीं किया और उनके चाचा की इच्छा के खिलाफ नेशनल कॉलेज में दाखिला लिया।

यहीं उनकी मुलाकात सरदार भगतसिंह से हुई। यहां सुखदेव के पांच दोस्तों की मण्डली हुआ करती थी जिसे कॉलेज के शिक्षक पंच-पाण्डव भी कहा करते थे। साइमन कमीशन के आने पर इसी पंच-पाण्डव मण्डली ने निश्चय किया कि एक प्रदर्शन किया जाए। विरोध के लिए जब काली झण्डियां तैयार की जा रही थी तो सुखदेव को गिरफ्तार ​कर लिया गया।

पंजाब में जब विप्लवी पार्टी खड़ी करने की बात की जा रही थी तब सुखदेव और भगतसिंह ने ही सुझाव दिया था कि पंजाब के नवयुवकों को राजनीतिक शिक्षा दी जानी चाहिए। शुरुआत में भगत सिंह ने प्रचार का काम किया फिर यह काम सुखदेव ने किया। सुखदेव का एक ही सिद्धांत था कि ‘मेरा काम केवल काम करना है, प्रशंसा पाना नहीं।’

sukhdev सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के सक्रिय सदस्य तो थे ही, उन्होंने भगत सिंह के साथ नौजवान भारत सभा के गठन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

सुखदेव को फांसी – Execution of Sukhdev

लाला लाजपतराय की मौत का बदला लेने के लिए सुखदेव ही भगतसिंह और राजगुरु के साथ थे। गांधी—इरविन समझौते के बाद सुखदेव ने महात्मा गांधी को अंग्रेजी में एक खत लिखा और कई गम्भीर सवाल किए।

इस पत्र में उन्होंने गांधीजी से क्रांतिकारी आंदोलन की गतिविधियों को नकारे जाने का खुल कर विरोध किया। सुखदेव को 15 अप्रैल 1921 को किशोरीलाल और प्रेमनाथ के साथ गिरफ्तार कर लिया गया और 7 अक्टूबर 1930 को उन्हें लाहौर षडयंत्र मामले में फांसी की सजा सुना दी गई।

24 वर्ष की उम्र में सुखदेव को भगतसिंह और राजगुरु के साथ 23 मार्च 1931 को फांसी पर लटका दिया गया। यह फांसी जेल के नियमों को दरकिनार करते हुए नियत तिथि और समय से पूर्व शाम 7 बजे दी गई।

यह अजब संयोग था कि जब सुखदेव की माता उनसे कहती थी कि मैं तुम्हारी शादी करूंगी और तुम घोड़ी पर चढ़ोगे, तो sukhdev कहते थे कि घोड़ी पर चढ़ने के बदले मैं फांसी पर चढ़ूंगा।

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