Ganesh Shankar Vidyarthi in hindi – गणेश शंकर विद्यार्थी की संक्षिप्त जीवनी
गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म 26 अक्टूबर, 1890 को अपने ननिहाल में प्रयाग, इलाहबाद में हुआ था. इनके पिता का नाम जयनारायण था जो कि एक अध्यापक थे. गणेश शंकर विद्यार्थी की शिक्षा-दीक्षा मुंगावली, ग्वालियर में हुई थी. इन्होंने पढ़ाई के दौरान हिन्दी के साथ उर्दू-फारसी का भी अध्ययन किया.
गणेश शंकर विद्यार्थी के पिता की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी. इस कारण वे दसवीं तक ही पढ़ सके. किन्तु उनका स्वतंत्र अध्ययन चलता ही रहा. अपनी मेहनत और लगन के बल पर उन्होंने पत्रकारिता के गुणों को भली प्रकार समझ कर सहेज लिया था. शुरू में गणेश शंकर विद्यार्थी को एक नौकरी भी मिली थी, लेकिन उनकी अंग्रेज अधिकारियों के साथ पटरी नहीं बैठी और उन्होंने नौकरी छोड़कर कानपुर में करेंसी आॅफिस में नौकरी की. यहां भी अंग्रेज अधिकारियों के साथ नहीं पटी. अंततः वह नौकरी छोड़कर अध्यापक हो गए.
गणेश शंकर विद्यार्थी जी की रूचि राजनीति में थी. वह एक वर्ष बाद अभ्युदान नामक अखबार में चले गए और कुछ दिनों तक इन्होंने प्रभा नामक अखबार का भी सम्पादन किया. सन् 1913, अक्टूबर में प्रताप साप्ताहिक के सम्पादक भी हुए. इन्होंने अपने अखबार में किसानों की आवाज उठाई. आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं पर विद्यार्थी जी के विचार बड़े ही निर्भीक होते थे. विद्यार्थी जी के ने देशी रियासतों की प्रजा पर किए गए अत्याचारों का भी तीव्र विरोध किया. गणेश शंकर विद्यार्थी कानपुर के लोकप्रिय नेता तथा पत्रकार शैलीकार तथ निबन्ध लेखक भी थे.
विद्यार्थी जी ने पहले उर्दू में लिखना प्रारम्भ किया था. उसके बाद हिन्दी में पत्रकारिता के माध्यम से आए और आजीवन पत्रकार रहे. उनके अधिकांश निबन्ध त्याग और बलिदान सम्बन्धी विषयों पर आधारित है. विद्यार्थी जी एक अच्छे वक्ता भी थे. पत्रकारिता के साथ-साथ इनकी साहित्यिक विषयों में गहन रूचि थी. अपनी रचानाएं सरस्वती, कर्मयोगी, हितवार्ता में छपती रही. उन्होंने हिंदी के प्रकांड विद्वान आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के सहायक के रूप में भी काम किया. हिन्दी में ‘शेखचिल्ली‘ की कहानियां गणेश शंकर विद्यार्थी की ही देन है.
गणेश शंकर ‘विद्यार्थी‘ ने कानपुर लौटकर ‘प्रताप‘ अखबार की शुरूआत की. प्रताप भारत की आजादी की लड़ाई का मुखपत्र साबित हुआ. यह अखबार क्रांतिकारी विचारों व भारत की स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति का माध्यम बन गया. लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के विचारों से प्रेरित विद्यार्थी जी ने भारत की आजादी में अपनी कलम से क्रांति लाने का प्रयास किया. सरदार भगतसिंह को ‘प्रताप‘ से विद्यार्थी जी ने ही जोड़ा था. भगतसिंह ने भी उनके अखबार के लिए कॉलम लिखे.
गणेश शंकर विद्यार्थी ने 9 अक्टूबर, 1913 को प्रताप का पहला अंक प्रकाशित किया था और इसमें उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि वे राष्ट्रीय आंदोलन, सामाजिक, आर्थिक उन्नति, जातीय गौरव, साहित्यिक-सांस्कृतिक विरासत के लिए, अपने हक व अधिकार के लिए संघर्ष करेंगे. विद्यार्थी जी ने अपने इस संकल्प को प्रताप के माध्यम से व्यक्त किया तो अंग्रेज सरकार तिलमिला उठी. उनके इस उद्घोष से अंग्रेज सरकार का कोप उनपर टूट पड़ा. अंगे्रजों ने उन्हें जेल भेजा, जुर्माना किया और राजद्रोह का आरोप लगाकर प्रताप का प्रकाशन बन्द करवा दिया.
गणेश शंकर विद्यार्थी ने 8 जुलाई, 1918 को फिर से ‘प्रताप‘ का प्रकाशन किया. प्रताप के इस अंक में विद्यार्थी जी ने सरकार की दमनपूर्ण नीति की ऐसी जोरदार खिलाफत कर दी थी कि आम जनता प्रताप को आर्थिक सहयोग देने के लिए मुक्त हस्त से दान करने लगी. जनता के सहयोग से यह साप्ताहिक ‘प्रताप‘ नियमित रूप से छपने लगा और विद्यार्थी जी की आर्थिक स्थिति ठीक रहने लगी.
अंगे्रजों का कोपभाजन बने विद्यार्थी जी को 23 जुलाई, 1921 से 16 अक्टूबर, 1921 तक जेल की सजा दी गई. जेल यात्रा करने के बाद भी उन्होंने सरकार के विरूद्ध कलम की धार को कम नहीं किया.
Ganesh Shankar Vidyarthi Death- गणेश शंकर विद्यार्थी की मृत्यु
इसी बीच एक घटना के कारण कानपुर में दंगे भड़क उठे. गणेश शंकर विद्यार्थी जी जानते थे कि अंग्रेज सरकार देश में साम्प्रदायिकता को फैलाकर आजादी की लड़ाई को कमजोर करना चाहती है. उन्होंने स्वयं ही दंगों को रोकने का निश्चय किया. दंगों को रोकने और भीड़ को समझाने के लिए वे अकेले ही कानपुर की सड़कों पर निकल पड़े. दंगाइयो की एक पागल भीड़ ने उनकी बात सुनने से इंकार कर दिया और उन पर हमला कर दिया.
इस हमले में लोगों की रक्षा करते हुए 25 मार्च सन् 1931 को उनकी मृत्यु हो गई. विद्यार्थी जी साम्प्रदायिकता की भेंट चढ़ गए. नम आंखों से देश ने विद्यार्थी जी का विदाई दी. वे एक ऐसे साहित्यकार ओर पत्रकार रहे जिन्होंने देश के क्रांतिकारियों जैसे भगतसिंह, चन्द्रशेखर आजाद की खूब मदद की. वे ऐसे साहित्यकार थे जिन्होंने देश में अपनी कलम से सुधार की क्रांति उत्पन्न की.
गणेश शंकर विद्यार्थी को भारतीय पत्रकारिता के महान सिद्धान्तों को अपने जीवन में उतारने का श्रेय दिया जाता है. उन्होंने दुनिया को बताया कि पत्रकारिता जुल्म के खिलाफ किस तरह काम कर सकती है. अपनी निर्भीक पत्रकारिता से उन्होंने अंग्रेज सरकार की नींदे उड़ा दी और तमाम अत्याचारों के बावजूद अपनी कलम की धार कम नहीं होने दी. भारत सरकार ने उनके सम्मान में कानपुर के हवाई अड्डे का नाम ganesh shankar vidyarthi airport कर दिया है.