वीर सावरकर का जीवन परिचय
वीर विनायक राव सावरकर या वीर सावरकर का जन्म महाराष्ट्र के नासिक जिले के मंगूर गांव में 28 मई 1883 को हुआ था. विनायक राव सावरकर के पिता दामोदर पंत विद्वान, धार्मिक प्रवृत्ति के एवं कवि हृदय थे. चार भाई- बहनों में विनायक राव दूसरे नम्बर पर थे.
सबसे बड़े भाई गणेश पंत सावरकर थे, जिन्हें बाबा सावरकर के नाम से जानते हैं. इन्होंने भी मातृ भूमि की सेवा में अपना जीवन लगा दिया, जिस कारण अंग्रेजों ने इन्हें आजीवन कारावास की सजा दी थी. विनायक राव से छोटी बहन मैना बाई थीं और सबसे छोटे भाई डॉ. नारायण राव सावरकर थे. नारायण राव भी क्रांतिकारी थे.
Childhood of Veer Savarkar वीर सावरकर का बचपन
बालक विनायक राव का घर का नाम तात्या था. बचपन से ही सावरकर कविता पढ़ने और लिखने में गहरी रुचि रखते थे. उनकी पहली कविता दस वर्ष की आयु में एक मराठी समाचार पत्र में प्रकाशित हुई थी. विनायक राव बहुत छोटे ही थे, जब उनकी मां चल बसीं. ऐसे में पिता दामोदर पंत ने ही सभी संतानों का पालन-पोषण किया.
विनायक राव में अपने देश को शत्रुओं से मुक्त कराने की अभिलाषा बचपन से ही कूट-कूट कर भरी थी. उन्होंने किशोर आयु के समय ही अपने गांव मंगूर में अपने मित्रों को देशभक्ति का पाठ पढ़ाने के लिए एक सैनिक शाला की स्थापना की थी. यहां होने वाले मुकाबलों में विजयी होने वाली टीम पूरे गांव में देशभक्ति के गीत गाते हुए घूमती थी.
बालक विनायक राव में अपने देश की सामाजिक- राजनीतिक परिस्थिति के प्रति जो चेतना थी, वह उस आयु के अन्य बच्चों में नहीं पाई जाती थी. वे मराठी समाचार पत्रों को पूरी गम्भीरता से पढ़ते और गणेशोत्सव, शिवाजी उत्सव सहित स्वतंत्रता आंदोलन के समाचार अपने मित्रों को बताया करते थे और देश को अंग्रेजों से मुक्त कराने के उपायों पर चर्चा करते थे.
Student Life of Savarkar सावरकर का छात्र जीवन
पराधीन भारत में वर्ष 1897 में राजनीतिक आंदोलन शिखर पर पहुंचने के कारण कई ऐसी घटनाएं घटी, जिनसे विनायक राव को अपने जीवन की दिशा तय करने में मदद मिली. लोकमान्य तिलक को जेल में डाल दिया गया था. रैंड नामक अंग्रेज अफसर को मारने वाले चाफेकर बंधु दामोदर चाफेकर और बालकृष्ण चाफेकर पकड़े जा चुके थे. इन दोनों भाइयों का पता अंग्रेजी हुकूमत को बताने वाले द्रविड़ बंधुओं को वासुदेव रानाडे ने गोली मार दी. रानाडे को इस जुर्म में अदालत ने फांसी की सजा दे दी. इन राजनीतिक घटनाओं से विनायक राव के मन में देशभक्ति की लहरें हिलोरें लेने लगीं .
वर्ष 1899 तक आते-आते उन्होंने अपना जीवन देश सेवा में लगाने का निश्चय अपने मन में कर लिया और अपने गांव में कुलदेवी के मंदिर में जाकर अपना समस्त जीवन, सामर्थ्य और सम्पत्ति देश की सेवा हित में लगाने का संकल्प लिया. उनके इसी संकल्प का प्रगटीकरण आगे चलकर अभिनव भारत नामक संस्था के रूप में हुआ, जिसने स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इसी वर्ष प्लेग की महामारी plague epidemic फैली, जिसमें उनके पिता दामोदर पंत का निधन हो गया.
सावरकर ने 1900 में क्रांति के लिए युवकों को संगठित करने के उद्देश्य से मित्र मेला नाम से संगठन की स्थापना की. मित्र मेला संगठन शिवाजी उत्सव और गणेशोत्सव के आयोजन के माध्यम से युवाओं के संगठन में जुट गया. संगठन के सदस्य क्रांति के रास्ते पर चलकर भारत माता को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने के उपायों पर चर्चा करते थे. यही मित्र मेला संगठन आगे जाकर अभिनव भारत संस्था के रूप में प्रसिद्ध हुआ.
वर्ष 1901 में नासिक से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उनका विवाह हो गया. उनकी पत्नी का नाम था यमुना बाई. विवाह के बाद भी उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त करने का निर्णय किया और पुणे के फर्गुसन कॉलेज से बीए की उपाधि प्राप्त की. फर्गुसन कॉलेज में भी उन्होंने अपनी संगठन क्षमता का भरपूर इस्तेमाल किया और छात्रों को संगठित कर देशहित की कई गतिविधियां संचालित कीं. पुणे में छात्रों के साथ वाद-विवाद, संवाद उनकी दिनचर्या का हिस्सा था.
Bonfire of foreign clothes सावरकर ने जलाई विदेशी कपड़ों की होली
जब बंगाल का विभाजन हुआ, उस वक्त स्वदेशी आंदोलन चरम पर था. एक चर्चा के दौरान विचार आया कि अभी जो विदेशी वस्त्र हमारे पास हैं, उनका क्या किया जाए, इस पर सावरकर ने तत्परता से कहा कि ऐसे विदेशी वस्त्रों की होली जला कर अब तक किए गए पापों का प्रायश्चित किया जाए. इसके बाद अभियान चलाकर पुणे में विदेश वस्त्रों की होली जलाई गई. भारत में विदेशी वस्त्रों की यही पहली होली थी, जो देश के तमाम समाचार पत्र-पत्रिकाओं में छाई रही. इस घटना के कारण उन्हें कॉलेज की रेजीडेंसी से निकाल दिया गया. हालांकि, बाद में उन्हें परीक्षा में सम्मिलित होने की अनुमति मिल गई और उन्होंने अच्छे अंकों से बीए की परीक्षा उत्तीर्ण की.
सावरकर का लंदन प्रवास Savarkar in London
वीर सावरकर बीए की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद 1906 में एलएलबी की पढ़ाई करने बंबई आ गए. इसी दौरान उन्हें शिवाजी स्कॉलरशिप मिली, जिससे उन्हें बैरिस्टर की पढ़ाई करने के लिए लंदन जाने का अवसर मिला. सावरकर ने वहां भी भारतीय छात्रों को भारत में ब्रिटिश शासन का विरोध करने के उद्देश्य से संगठित करने का काम किया. उन्होंने वहां फ्री इण्डिया सोसायटी की स्थापना की. इस संगठन में लाला हरदयाल, भाई परमानन्द, मदनलाल धींगरा जैसे कई बड़े क्रांतिकारी सदस्य थे. इंग्लैण्ड में रहते हुए ही उनके लिखे लेख अलग-अलग समाचार पत्रों में प्रकाशित होने लगे. सावरकर ने भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम पर आधारित अपनी पहली पुस्तक तैयार की, जिसका नाम था इंडियन वार ऑफ इंडिपेंडेंस 1857. ब्रिटिश हुकूमत ने इस पुस्तक को भारत और ब्रिटेन में प्रकाशित करने पर रोक लगा दी. मैडम भीकाजी कामा के सहयोग से यह पुस्तक हॉलैंड से प्रकाशित की गई और फ्रांस होते हुए इसकी प्रतियां किसी प्रकार भारत भिजवाई गईं थीं. Veer Savarkar in Paris वीर सावरकर पेरिस में
वर्ष 1909 में एक क्रांतिकारी युवक अनन्त कान्हरे ने नासिक के कलेक्टर एम टी जैक्सन की गोली मार कर हत्या कर दी. इसी बीच उनके बड़े भाई गणेश सावरकर को आजीवन काले पानी की सजा सुनाई गई. उनके छोटे भाई नारायण को लॉर्ड मिंटो पर बम फेंकने के कारण जेल में डाल दिया गया. इन घटनाओं के बाद वीर सावरकर का इंग्लैण्ड में रहना दूभर हो गया. आंदोलन को आगे जारी रखने के लिए अपने साथियों के आग्रह पर सावरकर इसके बाद लंदन से पेरिस चले गए, जहां वे मैडम कामा के घर पर रहने लगे.
लंदन में सावरकर की गिरफ्तारी Savarkar’s arrest in London
इस बीच भारत में क्रांतिकारियों पर ब्रिटिश हुकूमत की ज्यादतियां बढ़ती जा रही थीं और लंदन में रहने वाले भारतीय युवाओं के ऊपर भी शिकंजा कसने लगा था. ऐसे में वर्ष 1910 में वीर सावरकर ने वापस लंदन आने का निश्चय किया ताकि आंदोलन की रफ्तार धीमी नहीं पड़े. पेरिस से जहाज में वे इंग्लैण्ड पहुंचे. जहाज से उतरकर वे ट्रेन से लंदन के लिए रवाना हुए. इंग्लैण्ड की पुलिस को उनके आने की भनक पहले ही लग चुकी थी. लंदन स्टेशन पर जैसे ही गाड़ी रुकी, पुलिस ने उसे चारों तरफ से घेर लिया. सावरकर जी को गिरफ्तार कर उन्हें अदालत में पेश किया गया. जज ने उन्हें भारत भेजने का आदेश दिया.
जहाज से समुद्र में कूद पड़े सावरकर Savarkar’s escape from british custody
वीर सावरकर को लेकर मोरिया जहाज इंग्लैण्ड से भारत के लिए रवाना हुआ. 8 जुलाई, 1910 को जहाज मार्सेल बंदरगाह पहुंचने वाला था. सावरकर शौच के बहाने शौचालय गए और समुद्र में कूद पड़े. समुद्र की ऊंची लहरों के बीच वे तैरकर किनारे की ओर चल पड़े. समुद्र में तैरकर सावरकर फ्रांस के तट पर आ पहुंचे. सावरकर ने तट पर खड़े फ्रांसीसी सिपाही से उन्हें गिरफ्तार करने को कहा. इस बीच अंग्रेज सिपाही भी तट तक पहुंच गए. उन्होंने चोर-चोर की आवाज लगाकर फ्रांसीसी सिपाही को भ्रमित कर दिया और सावरकर को पुनः अपने कब्जे में ले लिया. इसके साथ ही सावरकर की निगरानी बढ़ा दी गई और उन्हें बेड़ियों व हथकड़ियों में जकड़ दिया गया.
काला पानी की सजा Veer Savarkar in Kala Pani
मुम्बई पहुंचने पर सावरकर पर तीन मुकदमे शुरू किए गए. इन मुकदमों में सावरकर को दोहरे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. उन्हें महाराष्ट्र में डोंगरी, भायखला और ठाणे जेलों में रखा गया. ठाणे की जेल से सावरकर को आजीवन सजा पाए दूसरे बंदियों के साथ अंडमान भेज दिया गया.
4 जुलाई, 1911 को विनायक राव सावरकर को कालापानी की आजीवन कैद भोगने के लिए सेल्युलर जेल की तीसरी मंजिल की सबसे अंतिम कोठरी में डाल दिया गया. (सेलुलर जेल के बारे में विशेष लेख) कोठरी में लोहे की छड़ों के दो दरवाजे थे और गेट पर लगे तालों की चाबी जेलर के पास रहती थी. कोठरी के बाहर दो बंदूकधारी सिपाही 24 घंटे तैयार रहते थे. शौच आदि करने के लिए भी बाहर निकलने का प्रावधान नहीं था, कोठरी में ही जाना पड़ता था. इन कोठरियों में सफाई भी कभी होती थी, कभी नहीं होती थी. जेल में सावरकर सहित अन्य राजनीतिक कैदियों को कड़ी मेहनत वाले काम दिए जाते थे.
उन्हें कोल्हू में 30 पौंड तेल पेरना पड़ता था. कम तेल पेरने पर उन्हें बेरहमी से पीटा जाता था. 1911 से 1921 तक सावरकर सेलुलर जेल में बन्दी रहे. जेल में बन्द रहने के दौरान उन्होंने लिखने के लिए पेन और कागज उपलब्ध नहीं होने पर कोठरी में कोयले से दीवार पर कविताएं लिखीं.
इन कविताओं को उन्होंने कंठस्थ भी कर लिया और जेल से निकलने के बाद पुनः लिखा. उसके बाद भी उन्हें तीन साल रत्नागिरी और यरवदा जेलों में रहना पड़ा.
Life after release from jail जेल से रिहाई के बाद जीवन
सावरकर को 1924 में रत्नागिरी जेल से रिहा किया गया लेकिन इस शर्त के साथ कि न तो वे पांच साल तक राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा ले सकेंगे और न ही रत्नागिरी से बाहर जाएंगे. इसलिए इसके बाद उन्होंने अपने जीवन का एक दशक से भी अधिक समय समाज सुधार में लगाया. 1931 में उन्होंने हिन्दुओं में छुआछूत के कुरीति को मिटाने के लिए पतित पावन मंदिर की मुम्बई में स्थापना की. सावरकर ने लोकमान्य तिलक की स्वराज पार्टी की सदस्यता ग्रहण की और उसके बाद उन्होंने अखिल भारतीय हिन्दू महासभा का गठन किया.
Ideology of Veer Savarkar वीर सावरकर के विचार
सावरकर हिंदुत्व के प्रखर पैरोकार थे, उनका लक्ष्य भारत को एक हिन्दू राष्ट्र बनाना था. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के धुर विरोधी थे. स्वतंत्रता प्राप्ति के समय उन्होंने देश के विभाजन का प्रबल विरोध किया.
इसी बीच, नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या कर दी. जिसके बाद विनायक राव सावरकर को जेल में डाल दिया गया. हालांकि, बाद में उन्हें निर्दोष पाया गया और छोड़ दिया गया. पुणे विश्वविद्यालय ने 1951 में उन्हें डी.लिट. की उपाधि प्रदान की.
Savarkar’s Death Anniversary सावरकर की पुण्य तिथि
सावरकर ने एक फरवरी, 1966 को देह त्याग तक उपवास रखने का निर्णय किया. स्वातंत्र्य वीर सावरकर की पुण्य तिथि 26 फरवरी को होती है, इसी दिन 1966 में उन्होंने मुम्बई में अपनी देह त्याग दी थी.