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वन बेल्ट वन रोड क्या है?
चीन का प्राचीन सिल्क रोड – Ancient Silk Road of China
वन बेल्ट वन रोड परियोजना के माध्यम से चीन दुनिया का सबसे बड़ा आर्थिक मंच बनाने का प्रयास कर रहा है. चीन का मानना है कि 2000 से ज्यादा साल पहले चीन के शाही राजदूत झांग कियान Zhang Qian ने सिल्क रोड के रूप में व्यापार मार्गों का एक नेटवर्क स्थापित करने में मदद की, जो चीन को मध्य एशिया और अरब दुनिया से जोड़ता था. इस नेटवर्क को यह नाम चीन के सबसे महत्वपूर्ण निर्यात-रेशम से मिला था.
हालांकि, कुछ विद्वानों का मानना है कि दो हजार वर्ष पहले चीन वर्तमान स्वरूप के विपरीत एक छोटा सा देश था और यूरेशिया क्षेत्र में उसका दखल न के बराबर था. कुछ विद्वानों के अनुसार Silk Road सिल्क रोड शब्द पहली बार 1877 में जर्मन भूगोलविद फर्डिनेंड वॉन रेक्थोफन Ferdinend Von Rekthofan द्वारा गढ़ा गया था और बाद में 1915 में एक अन्य जर्मन भूगोलज्ञ अगस्त हर्मन August Hermann ने इस शब्द का प्रयोग किया.
वन बेल्ट वन रोड परियोजना का उद्देश्य – One Belt One Road Project Strategy
वर्ष 2013 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग Xi Jinping ने ऐतिहासिक सिल्क रोड के तर्ज पर एक आधुनिक नेटवर्क स्थापित करने की पहल की, जिसमें रेलवे, सड़कों, पाइपलाइनों और उपयोगिता ग्रिड का नेटवर्क बनाने का प्रस्ताव है. यह नेटवर्क चीन और मध्य एशिया, पश्चिम एशिया और दक्षिण एशिया के कुछ हिस्सों को जोड़ देगा.
One Belt One Road Initiative वन बेल्ट एंड वन रोड की इस पहल का उद्देश्य भौतिक कनेक्शन से आगे बढ़कर चीन के लिए नीति समन्वय, व्यापार और वित्तीय सहयोग तथा सामाजिक और सांस्कृतिक सहयोग सहित आर्थिक सहयोग के लिए दुनिया का सबसे बड़ा मंच बनाना है.
परियोजना में चीन की मुख्य भूमि को एशिया और यूरोप के बाजारों से जोड़ने के लिए कई देशों के माध्यम से सड़क, रेल जलमार्ग, बंदरगाह परियोजनाओं, पाइपलाइन और इनफोरमेशन हाइवेज का निर्माण करने की परिकल्पना की गई है.
चीन ने ओबीओर के वित्तपोषण के लिए वर्ष 2014 में 40 अरब डॉलर के सिल्क रोड फंड की स्थापना की. इस फंड से न्यू यूरेशियन लैंड ब्रिज, चीन-मंगोलिया-रूस, चीन-मध्य एशिया-पश्चिमी एशिया, भारत-चीन प्रायद्वीप, चीन-पाकिस्तान और बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार सहित छह प्रमुख आर्थिक गलियारों का विकास करने का लक्ष्य रखा गया है.
वन बेल्ट वन रोड में CPEC भी शामिल – One Belt One Road Route
वर्ष 2015 में बने ओबोर ऐक्शन प्लान के दो मुख्य भाग हैं, सिल्क रोड आर्थिक बेल्ट Silk Road Economic Belt और 21 वीं सदी समुद्री सिल्क रोड 21st Century Maritime Silk Road.
सिल्क रोड आर्थिक बेल्ट में चीन ने मध्य एशिया होते हुए यूरोप से जुड़ने, पश्चिम एशिया होते हुए फारस की खाड़ी, भूमध्यसागर को जोड़ने और दक्षिण एशिया होते हुए हिंद महासागर से जुड़ने की योजना बनाई है. क्षेत्रीय जलमार्गों के बीच कनेक्शन बनाने के लिए 21 वीं सदी समुद्री सिल्क रोड की योजना बनाई गई है.
60 से अधिक देशों ने ओबोर एक्शन प्लान में भाग लेने में रुचि दिखाई है. ओबोर में चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (CPEC), बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार (BCIM), न्यू यूरेशियन लैंड ब्रिज, चीन-मंगोलिया-रूस आर्थिक कॉरिडोर, चीन-इंडोचायना प्रायद्वीप सहित कई परियोजनाएं शामिल हैं.
इन देशों को जोड़ने की योजना – One Belt One Road Countries List
चीन एक बेल्ट एक रोड परियोजना में अफगानिस्तान, अल्बानिया, आर्मेनिया, अजरबेजान, बहरीन, बांग्लादेश, बेलारूस, भूटान, बोस्निया एंड हर्जगोविना, ब्रुनेई, बल्गारिया, कम्बोडिया, क्रोशिया, चेक रिपब्लिक, इजिप्ट, एस्टोनिया, इथियोपिया, जॉर्जिया, हंगरी, भारत, इंडोनेशिया, ईरान, इराक, इजरायल, दक्षिण कोरिया, जॉर्डन, कजाखस्तान, कुवैत, किर्गिजिस्तान, लाओस, लातविया, लेबनान, लिथुआनिया, मैसेडोनिया, मालदीव, मलेशिया, मोल्दोवा, मोंटेनेग्रो, मंगोलिया, म्यांमार, नेपाल, न्यूजीलैण्ड, ओमान, पाकिस्तान, फिलीस्तीन, फिलीपीन्स, पोलैण्ड, कतर, रोमानिया, रूस, सऊदी अरब, सर्बिया, सिंगापुर, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका, सीरिया, ताजिकिस्तान, थाईलैण्ड, तिमोर, तुर्की, तुर्कमेनिस्तान, यूक्रेन, संयुक्त अरब अमीरात, उज्बेकिस्तान, वियतनाम,यमन को शामिल करने का प्रयास कर रहा है.
चीन ने अब तक हंगरी, मंगोलिया, रूस, ताजिकिस्तान और तुर्की के साथ इस परियोजना से संबंधित द्विपक्षीय सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं.
कई परियोजनाएं पर काम भी चल रहा है, इनमें पूर्वी चीन और ईरान के बीच ट्रेन सम्पर्क शामिल है, जिसे यूरोप तक बढ़ाया जा सकता है. लाओस और थाईलैंड में रेल लिंक और इंडोनेशिया में हाई स्पीड ट्रेन शुरू की जाएंगी. 200 से अधिक उद्यमों ने ओबोर मार्गों पर परियोजनाओं के लिए सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं.
OBOR पर भारत का रुख – OBOR Threat to India
चीन वन बेल्ट, वन रोड (ओबोर) पहल में शामिल होने के लिए भारत को मनाने के प्रयास कर रहा है. हालांकि, भारत अभी इस परियोजना का एक हिस्सा बनने के लिए सहमत नहीं हुआ है. नेपाल और बांग्लादेश सहित भारत के अधिकांश पड़ोसी देश पहले से ही इस परियोजना में भाग लेने के लिए सहमत हो गए हैं.
माना जाता है कि ओबोर में शामिल होने के लिए भारत की अनिच्छा मुख्य रूप से सीपीईसी की वजह से है, जो भारत की सार्वभौमिकता का उल्लंघन करती है क्योंकि परियोजना में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) के क्षेत्र शामिल हैं.
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