कामदा एकादशी हिन्दू धर्म में एक प्रमुख व्रत है जो चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और भक्तों को सुख, शांति और अधिक वैभव प्रदान करता है। इस एकादशी का नाम “कामदा” है, जो इच्छाओं को पूरा करने और मोक्ष का फल प्रदान करने वाला है।
कामदा एकादशी के दिन भक्त उठकर सुबह जल्दी जागते हैं और नियमित ध्यान और पूजा के साथ इस व्रत का पालन करते हैं। भक्त भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और उन्हें समर्पित आरती और भजनों का आनंद लेते हैं। यह एक पवित्र दिन होता है जब भक्त विशेष नियमितता और पवित्रता से रहते हैं, और उनका मन शुद्ध होता है।
भगवान विष्णु को अपने व्रती भक्तों की प्रार्थनाएं सुनने की कथा के अनुसार, व्रती व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है। इस व्रत का महत्व उनकी मनोकामनाओं को पूरा करने में समर्थ होने में भी है।
कामदा एकादशी व्रत कथा
कामदा एकादशी व्रत कथा अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह व्रत वैष्णव संप्रदाय में मनाया जाता है। इस व्रत का महत्व इस बात से जुड़ा हुआ है कि इस व्रत के द्वारा मनुष्य को अपनी इच्छाएं पूरी होती हैं।
इस व्रत की कथा के अनुसार, एक बार एक राजा था जिसकी रानी बहुत उदास रहती थी क्योंकि उसे कोई संतान नहीं थी। उसे यह सुनकर दुख हुआ कि उसे बच्चा नहीं होगा। फिर उसने एक तपस्या की जिसके द्वारा उसे एक बेटी प्राप्त हुई जो कि कामदा नाम से जानी जाती है।
इसकी कथा वाराह पुराण में इस प्रकार कही गई है- नागलोक मे एक पुण्डरीक नाम का राजा था। उसके दरबार मे बहुत से किन्नर और गंधर्व गाना गाया करते थे। एक दिन उसके सामने ललित नाम का गंधर्व गान कर रहा था। गाते-गाते उसे अपनी पत्नी का स्मरण हो आया। इसलिए उसके ताल-स्वर विकृत होने लगे।
इस भेद को उसके शत्रु कर्कट ने देखकर राजा से कह दिया। इस पर पुण्डरीक ने अप्रसन्न होकर उसे राक्षस होने का श्राप दे दिया। राजा के श्राप से ललित राक्षस होकर विचरने लगा। उसकी पत्नी ललिता भी उसके साथ फिरने लगी। अपने पति ललित की दशा देखकर उसे बड़ा दुख होने लगा।
अन्त मे ललिता घूमते-घूमते विन्ध्य पर्वत पर निवास करने वाले महात्मा ऋष्यमूक के पास गई और श्राप से अपने पति के उद्धार पाने का उपाय पूछने लगी। ऋषि ने उसे कामदा एकादशी का व्रत करने का साधन बता दिया। पत्नी के श्रद्धापूर्वक व्रत करने से ललित श्राप से मुक्त होकर अपने गंधर्व स्वरूप को प्राप्त हो गया।
इसलिए, कामदा एकादशी व्रत का महत्व इस बात से जुड़ा हुआ है कि इस व्रत के द्वारा मनुष्य को उसकी इच्छाएं पूर्ण होती हैं जैसे कामदा ने राजा की इच्छा पूरी की थी। इस व्रत में भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है और उन्हें फल, फूल आदि का अर्पण किया जाता है।
कामदा एकादशी पूजा विधि
कामदा एकादशी का व्रत एक पवित्र और महत्वपूर्ण हिन्दू व्रत है जो भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस व्रत को सही ढंग से पूरा करने के लिए निम्नलिखित पूजा विधि का पालन कर सकते हैं:
पूजा सामग्री की तैयारी: पूजा के लिए आपको नींबू, दूध, दही, गंध, अक्षत, फूल, दीपक, अगरबत्ती, नरियल, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंध) और पूजा के लिए चाहिए जाने वाले फल और पानी इत्यादि की तैयारी करें।
व्रत की संकल्प: पूजा शुरू करने से पहले व्रती को अपने मन में व्रत की संकल्प लेनी चाहिए। इसमें आपको व्रत के उद्देश्य, अर्जित फल, और भगवान विष्णु की प्रार्थना करनी चाहिए।
भगवान विष्णु की पूजा: व्रत की पूजा में भगवान विष्णु को पूजने के लिए आपको पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य (फल, मिठाई, पानी), आरती की थाल, और मन्त्रों की जाप की आवश्यकता होगी। भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र के सामने एक चौकी की स्थापना करें।
भगवान विष्णु की पूजा के लिए मंत्र
भगवान विष्णु की पूजा के लिए निम्नलिखित मंत्र का जाप किया जा सकता है:
ॐ नमो नारायणाय॥ (Om Namo Narayanaya)
श्रीवत्स धरं विष्णुं शांतं पद्मनाभं सुरेशम्।
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्॥
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्।
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥
यह मंत्र भगवान विष्णु के गुणों की प्रशंसा करता है और उनकी कृपा को आमंत्रित करता है। इसे पूजा के दौरान जाप करते समय आप भगवान विष्णु की उपस्थिति महसूस कर सकते हैं और उनसे संवाद कर सकते हैं।
सम्पूर्ण भक्ति और आस्था के साथ इस मंत्र का जाप करने से आपको भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और आपके जीवन में शांति, सुख, और समृद्धि का आगमन होता है।
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