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अनेकता में एकता भारतीय संस्कृति की विशेषता
अनेकता में एकता भारतीय संस्कृति की विशेषता है. भारतीय संस्कृति की गिनती दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं और संस्कृतियों में की जाती है. जब पूरी दुनिया में अज्ञान का अंधकार छाया हुआ था तब भारतभूमि पर वेद और उपनिषदों की रचना की जा रही थी.
भारतीय संस्कृति अपनी विद्वता के बल पर दुनिया को दर्शन और अध्यात्म के पाठ पढ़ाने की जमीन तैयार कर रही थी. भारत ने विद्वानों और वीरों की ऐसी परम्परा तैयार की कि लंबा वक्त गुजर जाने के बाद भी यह सदियों से अक्षुण्ण हैं.
अनेकता में एकता का सिद्धांत
ध्यान देने वाली बात यह है कि भारत की धरा पर प्रारंभ हुई इस सनातन संस्कृति के बाद अस्तित्व में आई मिस्र, यूनान और बेबीलोन की सभ्यतायें समय के साथ नष्ट हो गई लेकिन भारतीय संस्कृति सत्यं, शिवम, सुन्दरम के अपने मंत्र के साथ आज तक फल—फूल रही है. इसी महान संस्कृति ने सत्यमेव जयते, अहिंसा परमोधर्म और वसुधैव कुटुम्बकम जैसे पाठ पूरी दुनिया को पढ़ाये.
अनेकता में एकता भारत की विशेषता है कैसे
विचार करने की बात यह है कि आखिर विषम से विषम परिस्थितियों में भी यह संस्कृति अपने किन गुणों की वजह से जीवित रही. 5 हजार साल पुरानी यह सभ्यता अपने लचीलेपन और स्वीकार करने के गुणों की वजह से अपने अस्तित्व को बनाये रखने में सफल हुई है. आज भारत को देखें तो पूरी दुनिया की सभी संस्कृतियां यहां रहते हुए समृद्ध हुई है और दूसरों के साथ एक संतुलन कायम करने में भी कामयाब रही है.
अनेकता में एकता हिंद की विशेषता पर निबंध
आज जिस भारत को हम देखते है, उसका भौगोलिक अस्तित्व आजादी के बाद आया है. इस देश के तीन ओर से समुद्र है और उत्तर में दुनिया की सबसे विशाल पर्वतमाला हिमालय स्थित है. इन परिधियों में एक महान संस्कृति का आज विकास हो चुका है.
विविधता में साम्य और अनेकता में एकता इस महान भारतीय संस्कृति की पहचान बन चुकी है. हजारों आक्रमणों को सहन और ढेर सारी नई संस्कृतियों को आत्मसात कर लेने के बाद भी इस संस्कृति के बचे रहने का एकमात्र कारण इसका समावेशी दर्शन है.
अनेकता में एकता का साकार रूप है स्वतंत्र भारत
भारतीय संस्कृति का दूसरा प्रमुख गुण अध्यात्मवाद है जो इसे इसका लचीलापन देती है. भारत की भूमि पर जन्में अध्यात्म और दर्शन ने सबको अपनाने और नये विचार का स्वागत करने का साहस हमें दिया है. यही वजह रही कि जो आक्रमणकारी यहां आये, उन्होंने इस समावेशी दर्शन से प्रभावित होकर इस संस्कृति में अपना स्थान बना लिया.
भारतीय दर्शन में आत्मा को अमर और देह को नश्वर माना गया है. इसी तरह उसने संस्कृति को अमर और परम्परा को नश्वर माना है. संस्कृति को अक्षुण्ण रखते हुए भारतभूमि ने समय के साथ परम्पराओं का निर्माण किया है और उनकी तिलांजलि भी दी है.
वसुधैव कुटुम्बकम के मूल मंत्र का जाप करते हुए भारत ने पूरी दुनिया को एक परिवार के तौर पर रूपायित किया है. त्याग, तप और संयम को इस भूमि में हमेशा महिमामंडित किया गया है. इन गुणों ने इस भूमि को सहिष्णुता की खाद से सींचा है जिस पर एकता का वटवृक्ष हमेशा पल्लवित होता रहा है. भारत भूमि का दर्शन और अध्यात्म ही सही मायनों में यहां की अमूल्य निधियां हैं. इन्होंने पूरी दुनिया में भारत का गौरव और मान—सम्मान बढ़ाया है.
भारत को अनेकता में एकता वाला देश क्यों कहा जाता है?
भारतीय संस्कृति की इस विशेषता को समझने के लिए दूर—दूर से विद्वानों ने इस धरती का भ्रमण किया और इस रहस्य को समझने का प्रयास किया है. अपनी उदारता के कारण इस धरती ने उन्हें कभी निराश नहीं किया और अपने सभी रहस्य सभी के लिए उजागर किये हैं.
ह्वेनसांग, फाह्यान और मैक्समूलर जैसे विद्वान यहां आये और यहीं के होकर रह गये. सभी ने अपनी पुस्तकों और विचारों से भारत भूमि की प्रशंसा की. यहां के सर्वधर्म समभाव और प्रेम के सिद्धान्तों का परिचय पूरी दुनिया से करवाया.
भारत की सहिष्णुता की वजह से कई बार संकटो का सामना करना पड़ा लेकिन उसने अपने इस गुण को कभी नहीं छोड़ा. अपने शांतिप्रिय आचरण के कारण ही आज पूरी दुनिया में भारतीयों को बहुत ही सम्मान की नजर से देखा जाता है.
भारतीय पूरी दुनिया में कहीं भी गये अपने प्रेम के संदेश को साथ लेकर गये और वहां अपने कौशल से समाज को बेहतर दिशा दिखाने का काम किया है. भारत वासियों ने लाख संकट के बाद भी अनेकता में एकता के अपने गुण का कभी त्याग नहीं किया.
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