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Shivaji Biography in Hindi- शिवाजी की जीवनी
शिवाजी का भारती के आधुनिक इतिहास में बहुत अहम योगदान है. उन्होंने अपनी नीतियों और बहादूरी से मराठों के राज्य को एक बार फिर स्थापित किया. उनके उद्भव से मुगल कमजोर हुए और दिल्ली के प्रभाव से दक्खन बाहर हो गया.
महाराणा प्रताप ने जैसे पूरे जीवन अकबर को परेशान किया, ठीक उसी तरह शिवाजी ने औरंगजेब को कभी चैन की सांस नहीं लेने दी. औरंगजेब को तत्कालीन भारत में जब कोई चुनौती देने का साहस नहीं कर सकता था, शिवाजी राजे ने उसे नाको चने चबवा दिए.
शिवाजी का आरंभिक जीवन
शिवाजी का जन्म 19 फरवरी 1630 ईस्वी में पूना के निकट एक शिवनेरी में हुआ. उनके पिता का नाम शाह जी और माता का नाम जीजाबाई था. शाहजी एक जागीरदार थे. शिवाजी पर अपनी माता जीजाबाई का बहुत प्रभाव था. जीजाबाई एक असाधारण बुद्धिमती महिला थी.
उन्होंने शिवाजी में उच्च आदर्शों की स्थापना की. उन्होंने ही शिवाजी को रामायण, महाभारत और हिन्दु धर्म की शिक्षा दी. इसका शिवाजी पर बहुत प्रभाव पड़ा. शिवाजी को राजनीति की शिक्षा उनके गुरू कोडदेव से मिली.
शिवाजी बचपन से ही मेधावी थे. बहुत ही कम समय में उन्होंने रण कौशल, घुड़सवारी और अस्त्र-शस्त्र चलाना सीख लिया. मां जीजाबाई उनको देखकर कहा करती थी कि उनके कुल के गौरव को बढ़ाने वाला जन्म ले चुका था. शिवाजी ने उनकी बात को सत्य करके दिखाया.
शिवाजी और स्वामी रामदास
शिवाजी एक जागीरदार के पुत्र थे. उनके पास तमाम सुख-सुविधाएं थी लेकिन बचपन से ही अध्यात्म की ओर उनका झुकाव हो गया था. ऐसे में उनकी भेंट गुरू रामदास से हुई. उन्होंने ईश्वर के अपनी आस्था का प्रदर्शन गुरू रामदास से किया और उन्हें अपना शिष्य बनाने का आग्रह किया.
गुरू रामदास ने उन्हें समझाया कि अभी उनके देश को उनकी जरूरत है ताकि मुगलों के अत्याचार से देश की जनता को आजाद करवाया जा सके. गुरू रामदास ने शिवाजी को देश का, हिन्दु धर्म का और हिन्दुओं के उद्धार का काम दिया.
शिवाजी का संघर्ष
शिवाजी ने मुस्लिक आधिपत्य को समाप्त करने का बीड़ा बहुत ही कम आयु में उठा लिया। 1645 में मात्र 15 वर्ष की अल्पायु में ही अपने एक पत्र में हिंदवी स्वराज्य की बात की है.
उस समय बीजापुर राज्य अस्थिरता के दौर से गुजर रहा था. समय को अपने अनुकूल मानकर शिवाजी मावल क्षेत्र में वीर सैनिको को इकट्ठा करने लगे. जब उनके पास उचित लोग इकट्ठे हो गए तो उन्होंने दुर्गों के निर्माण की योजना बनाई. इसी बीच बीजापुर का सुल्तान आदिल शाह बीमार पड़ गया और सत्ता के लिए संघर्ष छिड़ गया.
शिवाजी ने बीजापुर के दुर्गों पर नियंत्रण की योजना बनाई और सबसे पहले तोरण के दुर्ग पर ध्यान केन्द्रित किया. आदिल शाह को इस बात के लिए राजी कर लिया कि वे तोरण के दुर्ग की जिम्मेदारी शिवाजी को सौंप दे. आदिलशाह इसके लिए राजी हो गया.
दुर्ग पर नियंत्रण मिलते ही शिवाजी ने सबसे पहले दुर्ग की मरम्मत पर ध्यान दिया. इसके बाद उन्होंने पास ही के दूसरे दुर्ग राजगढ़ पर ध्यान देना शुरू किया. उन्होंने जल्दी ही राजगढ़ पर भी अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया.
आदिलशाह को जब इस बात का पता चला तो वह नाराज हो गया और उसने शाह जी को शिवाजी पर नियंत्रण लगाने को कहा. शाह जी ने इस पर विशेष ध्यान नहीं दिया. राजगढ़ के बाद शिवाजी ने चाकन के दुर्ग पर भी कब्जा कर लिया और इसके बाद कोडना का दुर्ग भी उनके राज्य का हिस्सा बन गया.
औरंगजेब को उनकी बढ़ती ही शक्ति से चिंता होने लगी और उसने जयसिंह को शिवाजी पर नियंत्रण लगाने के लिए दक्खन भेजा. दोनों में बहुत संघर्ष हुआ और कभी जयसिंह का पलड़ा भारी रहा तो कभी शिवाजी का. कोंडना के किले पर अधिकार करने के दौरान ही जयसिंह से युद्ध करते हुए शिवाजी के विश्वसनीय सहयोगी तानाजी मालुसरे को वीरगति मिली.
शिवाजी ने पुरन्दर के किले पर भी अधिकार कर लिया. एक समय ऐसा आया जब चाकन से लेकर पुरन्दर तक उनका साम्राज्य स्थापित हो गया. इस सफलता के बाद उन्होनें अपनी सैनिक शक्ति और बढ़ाई और कोंकण पर हमाला कर दिया. कोंकण के नौ दुर्गों पर उन्होंने अधिकार कर लिया. इसी बीच बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह ने शिवाजी के पिता शाह जी को बंदी बना लिया.
अपने पिता को छुड़ाने के लिए बीजापुर के साथ संघर्ष को रोक दिया और अगले चार तक उन्होंने सिर्फ अपने सेना के संगठन पर ध्यान दिया और बीजापुर पर कोई हमला नहीं किया. इसके बाद उनकी शक्ति इतनी बढ़ चुकी थी कि वे मुगलों से लोहा लेने के लिए तैयार थे.
शिवाजी और औरंगजेब के बीच संघर्ष
शिवाजी जब दक्खन में अपनी ताकत बढ़ा रहे थे, औरंगजे एक शहजादे के नाते दक्खन की सूबेदारी कर रहा था. आदिलशाह की मौत के बाद औरंगजेब ने बीजापुर पर अधिकार कर लिया.
शिवाजी ने औरंगजेब की सेना पर धावा बोला और जुन्नार में उसे हराया. उसके घोड़े और माल पर कब्जा कर लिया. औरंगजेब इससे शिवाजी से नाराज हो गया लेकिन शाहजहां के कहने पर औरंगजेब ने शिवाजी से संधि कर ली.
इसके कुछ समय बाद शाहजहां की मृत्यु हो गई और औरंगजेब सत्ता के संघर्ष की वजह से दिल्ली लौट गया और बादशाह बन गया. इधर शिवाजी और अधिक मजबूत हो गए और बीजापुर से लड़ते रहे.
शिवाजी और अफजल खां
औरंगजेब के दिल्ली लौट जाने से अब बीजापुर सीधे-सीधे शिवाजी के निशाने पर आ गया. बीजापुर का नयया सुल्तान अब्दुल्लाह भटारी ने शिवाजी से लड़ने के लिए फैजल खां को भेजा. अफजल खां शिवाजी की युद्ध नीति के बारे में बहुत सुन चुका था इसलिए वह उनसे सीधे लड़ने के बजाय संधि के माध्यम से उन्हें गिरफ्तार करने की योजना बनाने लगा.
शिवाजी को इस षड़यंत्र के बारे में पता चल गया. शिवाजी पूरी तैयारी के साथ गए और जब अफजल खां ने कटार से उनकी पीठ पर हमला किया तो उन्होंने अपने बघनखे से उसकी छाती चीर दी. अफजल खां को मारने के बाद उन्होंने पन्हाला के दुर्ग पर अधिकार कर लिया. इसके बाद उन्होंने बीजापुर के दूसरे सिपासालार रूस्तम खां को हरा कर पवनगढ़, वसंतगढ़, राजापुर और दावुल के किलों पर भी अधिकार कर लिया.
इस हार से बीजापुर का सुल्तान बौखला गया और शिवाजी से लड़ने के लिए खुद लाव लश्कर लेकर निकल पड़ा लेकिन शिवाजी से जीतने से पहले ही सिद्धी जौहर में विद्रोह हो गया और उसे शिवाजी से संधि करनी पड़ी. बीजापुर के सुल्तान ने शिवाजी को स्वतंत्र शासक मान लिया और उन्होंने अपने साम्राज्य की स्थापना कर ली.
शिवाजी और औरंगजेब
शिवाजी जब दक्षिण मेें अच्छी तरह जम गए तो उनका पुराना दुश्मन दिल्ली का सुल्तान बन गया था. औरंगजेब को यह बात हमेशा सालती रहती थी कि वह शिवाजी की वजह से दक्षिण में सफल नहीं हो सका था.
उसने इस बात का बदला लेने के लिए डेढ़ लाख की फौज के साथ शाइस्ता खां को भेजा. बहुत प्रयास के बाद भी शाइस्ता खां शिवाजी को हरा नहीं पाया. उसकी डेढ़ लाख की फौज पर शिवाजी ने सिर्फ साढ़े तीन सौ सिपाहियों के साथ धावा बोला और शाइस्ता खां के पांव उखड़ गए. उसे जान बचाकर भागना पड़ा. उसे अपनी चार अंगुलियां गंवानी पड़ी और उसके सारे बेटे मारे गए.
औरंगजेब उसकी नाकामी से नाराज हो गया और उसे बंगाल भेज दिया. इसके बाद शिवाजी ने मुगल साम्राज्य को चुनौती देते हुए सूरत में लूट की और औरंगजेब को एक बार फिर चुनौती दी. इस बार औरंगजेब ने जयसिंह को शिवाजी से लड़ने के लिए भेजा.
शिवाजी ने जयसिंह के साथ संधि कर ली और इस बात के लिए राजी हो गए कि वे औरंगजेब से मिलने दिल्ली आएंगे. जयसिंह ने उन्हें आश्वासन दिया कि उनके साथ वे कुछ गलत नहीं होने देंगे.
औरंगजेब ने धोखा दिया और शिवा जी को कैद कर लिया. औरंगजेब शिवाजी की हत्या करवाना चाहता था. शिवाजी की मदद जयसिंह ने की और शिवाजी अपने पुत्र सहित औरंगजेब की नजरबंदी से भाग निकले. जयसिह को विष पीकर अपनी जान देनी पड़ी.
वहां से निकलने के बाद उन्होंने एक बार फिर सूरत पर हमला किया और औरंगजेब से लड़ना शुरू कर दिया. 1674 तक शिवाजी ने अपने पूरा साम्राज्य मुगलों से आजाद करवा लिया.
4 अक्टूबर 1674 को उन्होंने पुरंदर के किले मे अपना राज्याभिषेक करवाया और छत्रपति की उपाधि धारण की. विजयनगर साम्राज्य के बाद दक्षिण में स्थापित होने वाला यह दूसरा हिंदु राज्य था. उन्होंने अपने नाम के सिक्के चलवाए और स्वतंत्र शासक की तरह राज्य किया.
शिवाजी की मृत्यु
शिवाजी की मृत्यु 3 अप्रेल 1680 को बीमारी से हुई. शिवाजी के पुत्र संभाजी को उनका उत्तराधिकारी चुना गया. उनकी मृत्यु के बाद औरंगजेब ने मराठा साम्राज्य पर आक्रमण कर दिया लेकिन वह मराठों को हराने में असफल ही रहा.
जब औरंगजेब के पुत्र अकबर ने विद्रोह किया तो संभाजी ने उसे अपने यहां शरण दी. शिवाजी ने एक मजबूत साम्राज्य की स्थापना की थी जो आने वाले दो सौ सालों तक भारत की राजनीति को किसी न किसी तरह प्रभावित करता रहा.
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