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जल प्रदूषण पर निबंध एवं रोकने के उपाय
जल प्रदूषण आज मानव जीवन के लिए सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है. इससे न सिर्फ जीवन पर संकट है बल्कि शुद्ध जल की उपलब्धता भी इससे कम हो रही है. जल वह प्राकृतिक उपहार है, जिसका कोई विकल्प नहीं है. इसीलिए जल को अमृत या जीवन कहा गया है.
हमारे शरीर में 70 प्रतिशत, सब्जियों में 95 प्रतिशत और मांस में 60 प्रतिशत जल पाया जाता है. मनुष्य को जिस वस्तु की सबसे अधिक आवश्यकता पड़ती है वह जल ही है और उसमें भी ताजा और मीठा जल.
Water availability on earth पृथ्वी पर जल की उपलब्धता
Water availability in Indiaभारत में जल की उपलब्धता
राष्ट्रीय समेकित जल संसाधन विकास आयोग (NCIWRD) के अनुसार देश में हिमपात व बारिश को मिलाकर 4000 करोड़ घन मीटर (बीसीएम) सतही जल प्रति वर्ष उपलब्ध होता है.
वाष्पीकरण के बाद 1869 करोड घन मीटर सतही जल ही इसमें से शेष बचता है. किन्तु कुछ भौगोलिक तथा अन्य कारणों से इसका भी साठ प्रतिशत ही अर्थात 690 करोड़ घन मी. सतही जल और 432 करोड़ घन मी. भूमिगत जल यानी कुल 1123 करोड़ घन मी. जल ही उपयोग योग्य मिल पाता है.
वर्षा का जल केवल 3-4 महीने ही उपलब्ध रहता है. जल का वितरण भी असमान है, पश्चिमी भाग में जहाँ राजस्थान में केवल 100 मिमी वर्षा होती है तो चेरापूंजी में 10000 मिमी से भी अधिक वर्षा एक वर्ष में होती है.
कैसी विडम्बना है कि ‘जल बिच मीन पियासी’. जल की अनन्त मात्रा होते हुए भी मनुष्य के उपयोग के लिए जो जल उपलब्ध है, उसकी मात्रा सीमित है. यदि वह भी दूषित हो जाये तो फिर हमारे सारे कार्य रूक जायेंगे. इसलिए जल हमारी चिन्ता का विषय है.
Problem of water pollution जल प्रदूषण की समस्या
जल जीवन में महत्वपूर्ण कारक है. यह सार्वभौमिक विलायक है, जिसमें भूमि में मौजूद सभी खनिज पदार्थ घुल सकते हैं. मिट्टी में डाले गये उर्वरकों( नाइट्रोजनी व फास्फेटी) तथा पेस्टीसाइडों का कुछ अंश भी रिसकर इस जल में मिल जाता है, जिससे यह दूषित होने लगता है.
जल प्रदूषण की समस्या समाज की उत्पत्ति के साथ ही अस्तित्व में आ गई थी. जल मानव समाज द्वारा केवल पीने हेतु ही नहीं वरन् कई विभिन्न रूपों, साफ-सफाई आदि के लिए प्रयोग किया जाता है. इसी कारण इसके प्रदूषित होने की सम्भावनाएं और अधिक बढ़ जाती हैं.
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Causes of water pollution in Hindi जल प्रदूषण के कारण
जल एक प्राकृतिक संसाधन, मानव की मुख्य आवश्यकता और एक बहुमूल्य राष्ट्रीय पूँजी है. वर्तमान में कई ऐसे कारक हैं जिनके कारण हमें स्वच्छ जल नहीं मिल पा रहा है.
जल प्रदूषक जो जल की गुणवत्ता को कम करते हैं, मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं- रासायनिक, जैविक और भौतिक. इन तीन प्रदूषकों को आठ भागों में बाँटा गया है- पैट्रोलियम पदार्थ, पेस्टीसाइड व हरबिसाइड, भारी धातु, अवशिष्ट पदार्थ, कार्बनिक पदार्थ, सैडीमैन्ट्स, संक्रामक जीव और थर्मल प्रदूषण.
शहरों और गांवों में साबुन से नहाने, कपड़े और बर्तन धोने जैसे घरेलू उपयोग और फैक्ट्रियों में औद्योगिक उपयोग के बाद वेस्ट वाटर (अवशिष्ट जल) बिना उपचारित किए सीधे ही नदी नालों में छोड़ दिया जाता है.
वायु में मौजूद गैस और धूल के कण भी वर्षा जल में मिल कर उसे प्रदूषित कर देते हैं. जब जल अधिक समय तक एक ही जगह पर जमा रहता है, तो इसमें विषाणु, जीवाणु, परजीवी, कवक उत्पन्न हो जाते हैं.
समुद्र में कच्चे तेल का रिसाव भी जल प्रदूषण की एक बड़ी वजह है. जो बड़े-बड़े जहाज कच्चे तेल को एक देश से दूसरे देश ले जाते हैं, उनके दुर्घटनाग्रस्त होने पर बहुत बड़ी मात्रा में कच्चे तेल का रिसाव समुद्र में हो जाता है.
कई किलोमीटर तक समुद्री जल के ऊपर तेल की परत फैल जाती है, जिससे पानी में ऑक्सीजन की कमी होने के कारण जीव-जंतुओं की मृत्यु हो जाती है. कारखानों में बहुत गर्म या बहुत ठंडे जल का उपयोग भी किया जाता है, उपयोग के बाद इसे जल स्रोतों में प्रवाहित कर दिया जाता है, इस तरह फैले ऊष्मीय प्रदूषण के कारण जलीय जीवों पर संकट बन आता है.
Effects of water pollution जल प्रदूषण का दुष्प्रभाव
जल प्रदूषण का प्रभाव मनुष्यों, पशुओं तथा पौधों सभी पर समान रूप से पड़ता है. जलवाहित रोग तथा भारी धातुओं जैसे नाइट्रेट व फ्लोराइड आदि या कार्बनिक यौगिकों की उपस्थिति से होने वाली बीमारियों से मानव तथा पशुओं के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है. उद्योगों में भी प्रदूषित जल उपयोगी नहीं होता.
जल प्रदूषण से मछलियाँ विशेष रूप से प्रभावित होती हैं. झील और नदियों के किनारे दुर्गन्ध बढ़ जाती है तो ऐसे स्थानों को मनोरंजन के लिए निषिद्ध कर दिया जाता है.
जल में घुले कीटनाशकों, उर्वरकों तथा डिटरजेन्टों का एक दुष्प्रभाव यह भी है कि उससे थलीय जन्तुओं को हानि पहुँचती है. प्रदूषण से भूजल भी अछूता नहीं रहता है, वही प्रदूषित जल शहरी क्षेत्र की आपूर्ति को बुरी तरह प्रभावित करता है.
घरेलू और औद्योगिक या निर्माण के अपशिष्ट को बिना उपचारित किये जल में प्रवाहित करने से गाद या सिल्टेशन की समस्या हो सकती है. सतही जल में जलीय वनस्पति तथा ‘ऐल्गन ब्लूम’ में अधिक वृद्धि हो जाने को सुपोषण कहते हैं. इससे गहरे जल में आक्सीजन की मात्रा कम होने लगती है तथा सूर्य का प्रकाश नीचे तक नहीं पहुँच पाता है जिससे मछलियां मरने लगती हैं.
Ways to control water pollution जल प्रदूषण पर नियंत्रण के उपाय
जल प्रदूषण का मुख्य कारण लापरवाही है. इसका मूल रूप से सिर्फ एक ही समाधान है- प्रकृति की रक्षा करना. भारत में जल प्रदूषण से सम्बन्धित प्राकृतिक कारण भी बहुत हैं, फिर भी प्रदूषण फैलाने वाले को रोकने के लिए कई उपाय किए जा सकते हैं.
➤ कारखानों से निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थों का निस्तारण ठीक प्रकार से किया जाए. अवशिष्ट युक्त जल को बिना उपचारित किए जल स्रोतों में बहाने पर सख्ती से रोक लगनी चाहिए.
➤ कार्बनिक पदार्थों को जल में प्रवाहित करने से पूर्व उनका आक्सीकरण किया जाना चाहिए.
➤ जलीय जीवाणुओं को खत्म करने के लिए ब्लीचिंग पाउडर का प्रयोग करना चाहिए.
➤जल प्रदूषण से होने वाले नुकसान के प्रति लोगों को जागरूक करना चाहिए.
Legal aspects of water pollution जल प्रदूषण का कानूनी पहलू
जल प्रदूषण सामान्य रूप से प्रदूषण फैलाने वालों द्वारा जानबूझ कर किये गये कार्यों का परिणाम है. दूसरों के उपभोग या अपने आनन्द के लिए भूमि, जल व वायु का गैर कानूनी है.
इस प्रकार की क्रियाएं जब एक सीमा से अधिक बढ़ने के मामले में संविधान के अनुच्छेद 21 के अन्तर्गत जीवन के अधिकार में प्रदूषण मुक्त पर्यावरण, हवा, पानी भी सम्मिलित हैं और जो भी पर्यावरण, हवा, पानी को दूषित करता है तो वह संविधान के अनु 21 का उल्लंघन है. बिना स्वच्छ जल के मानव जीवन सम्भव नहीं है इसलिए जल संरक्षण किया जाना अति आवश्यक है.
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