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Indian Navy History and Progress in hindi- भारतीय नौसेना

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भारतीय नौसेना bhartiya nausena in hindi

भारतीय नौसेना Indian Navy भारतीय सेना का समुद्र में सैनिक प्रतिनिधित्व करती है. लगभग 50 हजार नौसेनिको से लैस यह विश्व की पाँचवी सबसे बड़ी नौसेना है. एशिया की यह सबसे बड़ी नौसैनिक ताकत है. चीन से भी बड़ा नौसेनिक बेड़ा भारत के पास मौजूद है. भारतीय नौसेना के पास दुनिया की वह हर तकनीक है जो इसे एक आधुनिक और विध्वंसक सैन्य ताकत में तब्दील करती है. भारतीय नौसेना अपने विध्वसंको, विमान वाहक जहाजो और बेहतरीन पनडुब्बियों के लिए जाना जाता है. 

भारतीय नौसेना का इतिहास indian navy ki jankari hindi me

भारतीय नौसेना का गठन सन् 1613 ई. में हुआ. ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी समुद्री सीमाओं के विस्तार के लिए  इंडियन मेरीन की स्थापना की. 1685 ई. में इसका नाम बदल कर ‘बंबई मेरीन’ कर दिया गया. 1857 की क्रांति के बाद भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन का अंत हो गया और बंबई मेरीन सीधे इंग्लैण्ड के अधीन हो गई. 8 सितंबर 1934 ई. को भारतीय विधानपरिषद् ने भारतीय नौसेना अनुशासन अधिनियम पारित किया और बंबई मेरीन का नाम बदल कर रॉयल इंडियन नेवी कर दिया गया. आजादी के बाद रॉयल इंडियन नेवी से रॉयल शब्द हटा दिया गया.

भारत में नौसेना का इतिहास information on jal sena in hindi

भारत में ज्यादतर लडाइयां मैदानों में लड़ी गई और नौसेना का वैसा उन्नत उदाहरण कहीं देखने को नहीं मिलता. कोलम्बस पहला नाविक रहा जिसने समुद्र के रास्ते भारत पहुंचने में सफलता प्राप्त की. 
अधिकारिक तौर पर सबसे पहले यूरोपीय ही अपने समुद्री बेड़े लेकर भारत की बंदरगाहों तक पहुंचे. डच, फ्रांसीसी और अंग्रेजी बेड़ो ने पहले पहल नौसेनिक दस्तक दी. 5 सितंबर 1612 को  ईस्ट इंडिया कंपनी के लड़ाकू जहाजों (युद्धपोतों) का पहला बेड़ा सूरत के बंदरगाह पर पहुँचा था. यह बेड़ा ‘द ऑनरेबल ईस्ट इंडिया कंपनीज़ मॅरीन’ कहलाता था. 

बाद में यह ‘द बॉम्बे मॅरीन’ कहलाया गया. पहले विश्व युद्ध के दौरान इस नौसेना का नया नाम ‘रॉयल इंडियन मॅरीन’ रखा गया. द्वितीय विश्व युद्ध आते-आते रॉयल इंडियन नेवी में लगभग आठ युद्धपोत थे. युद्ध के ख़त्म होने तक पोतों की संख्या बढ़कर 100 हो गई थी. द्वितीय विश्वयुद्ध के समय नौसेना का विस्तार हुआ और अधिकारी तथा सैनिकों की संख्या 2,000 से बढ़कर 30,000 हो गई एवं बेड़े में आधुनिक जहाजों की संख्या बढ़ने लगी.

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स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत की नौसेना नाम मात्र की थी. विभाजन की शर्तों के अनुसार लगभग एक तिहाई सेना पाकिस्तान को चली गई. कुछ अतिशय महत्व के नौसैनिक संस्थान भी पाकिस्तान के हो गए. 26 जनवरी 1950 को भारत गणतंत्र बना और इस दिन भारतीय नौसेना ने अपने नाम के सामने से रॉयल नाम को त्याग दिया. उस समय भारतीय नौसेना में 32 नौ-परिवहन पोत और लगभग 11,000 अधिकारी और नौसैनिक थे.

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भारतीय नौसेना के पहले कमांडर-इन-चीफ़, रियल एडमिरल आई.टी.एस. हॉल थे. father of indian navy in hindi पहले भारतीय नौसेनाध्यक्ष (सी.एन.एस.) वाइस एडमिरल आर.डी. कटारी थे, जिन्होंने 22 अप्रॅल 1958 को कार्यभार संभाला. भारत सरकार ने नौसेना के विस्तार की तत्काल योजना बनाई और एक वर्ष बीतने के पहले ही ग्रेट ब्रिटेन से 7,030 टन का क्रूजर ‘दिल्ली’ खरीदा.
इसके बाद ध्वंसक राजपूत, राणा, रणजीत, गोदावरी, गंगा और गोमती खरीदे गए. इसके बाद आठ हजार टन का क्रूजर खरीदा गया. इसका नामकरण मैसूर हुआ. 1964 ई. तक भारतीय बेड़े में वायुयानवाहक, विक्रांत (नौसेना का ध्वजपोत), क्रूजर दिल्ली एवं मैसूर दो ध्वंसक स्क्वाड्रन तथा अनेक फ्रिगेट स्कवाड्रन थे, जिनमें कुछ अति आधुनिक पनडुब्बीनाशक तथा वायुयाननाशक फ्रिगेट सम्मिलित किए जा चुके थे.
ब्रह्मपुत्र, व्यास, बेतवा, खुखरी, कृपाण, तलवार तथा त्रिशूल नए फ्रिगेट हैं, जिनका निर्माण विशेष रीति से हुआ है. कावेरी, कृष्ण और तीर पुराने फ्रिगेट हैं जिनका उपयोग प्रशिक्षण देने में होता है. कोंकण, कारवार, काकीनाडा, कणानूर, कडलूर, बसीन तथा बिमलीपट्टम से सुंरग हटानेवाले तीन स्क्वाड्रन तैयार किए गए हैं.
छोटे नौसैनिक जहाजों के नवनिर्माण का कार्य प्रारंभ हो चुका है और तीन सागरमुख प्रतिरक्षा नौकाएँ अजय, अक्षय तथा अभय और एक नौबंध ध्रुवक तैयार हो चुके हैं. कोचीन, लोणावला, तथा जामनगर में भारतीय नौसेना के प्रशिक्षण संस्थान हैं. आई एन एस अरिहन्त भारत की नाभिकीय उर्जा पनडुब्बी है.

नौसेना का संगठन jal sena ki jankari

नौसेनाध्यक्ष जो एडमिरल रैंक का अधिकारी होता है को उप-नौसेनाध्यक्ष (वाईस एडमिरल या रियर एडमिरल) के दर्ज़े के पाँच मुख्य स्टाफ़ अधिकारियों का सहयोग मिलता है. भारतीय नौसेना कुल तीन नौसैनिक कमान हैं.
1.पश्चिमी कमान (कार्यकारी मुख्यालय मुंबई में),
2.पूर्वी कमान (कार्यकारी मुख्यालय विशाखापट्टनम में)
3.दक्षिणी कमान (कार्यकारी मुख्यालय कोच्चि में)
प्रत्येक कमान का प्रमुख एक फ़्लैग ऑफ़िसर उप-नौसेनाध्यक्ष (वाइस एडमिरल) के पद वाला मुख्य अधिकारी होता है. भारतीय नौसेना प्राद्वीपीय भारत के 6,400 किलोमीटर लंबे समुद्रतट की सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार है. एक स्वतंत्र अर्द्ध सैनिक सेवा, भारतीय तटरक्षक (इंडियन कोस्ट गार्ड) भारतीय नौसेना भारत के समुद्रवर्ती और अन्य राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण योगदान उपलब्ध कराती है.

भारतीय नौसेना के सतह जहाज

विक्रमादित्य, विराट, दिल्ली श्रेणी, राजपूत श्रेणी, कोलकाता श्रेणी
तिर श्रेणी, पाल जहाज/नाव, सागरधवानी श्रेणी
संधायक श्रेणी, मकर श्रेणी
रिंकेत श्रेणी, सुपर दवोरा II श्रेणी, बंगाराम क्लास, कार निकोबार श्रेणी, तत्काल सहायता जलयान
बेड़ा टैंकर, टारपीडो रिकवरी जलयान, सागर टग, निरीक्षक श्रेणी
सुकन्या श्रेणी, सरयू श्रेणी, कारवार श्रेणी
कुम्भिर श्रेणी, एलसीयू (एम -3) श्रेणी
ऑस्टिन श्रेणी, श्रदुल कॉस, मगार श्रेणी
वीर श्रेणी, अभय श्रेणी
कोरा श्रेणी, खुकरी श्रेणी
ब्रह्मपुत्र श्रेणी, गोदावरी श्रेणी, लिएंडर (नीलगिरि) श्रेणी
शिवालिक श्रेणी, तलवार श्रेणी, कमोरटा श्रेणी

विध्वंसक:

दिल्ली श्रेणी:दिल्ली श्रेणी के विध्वंसक मिसाइल को विध्वंसक निर्देशित-मिसाइल के रूप में वर्गीकृत किया जाता है. दिल्ली श्रेणी की वाहिका एक विशाल युद्धपोत हैं जिसे पूर्ण रुप से भारत में डिजाइन और निर्मित किया गया है. दिल्ली श्रेणी की वाहिका का कोलकाता श्रेणी के विध्वंसक और विक्रांत श्रेणी के विमान वाहक द्वारा अधिक्रमण जल्द ही हो जाएगा. दिल्ली श्रेणी की वाहिका को मुंबई के मझगांव डॉक लिमिटेड में निर्मित किया गया है. सियाचीन ग्लेश्यिर के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य
राजपूत श्रेणी: राजपूत श्रेणी निर्देशित-मिसाइल विध्वंसक को काशिन- II श्रेणी के रूप में भी जाना जाता है. इस पोत को पूर्व सोवियत संघ में बनाया गया था. यह ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल प्रणाली द्वारा तैनात भारतीय नौसेना में शामिल पहली पोत हैं. राजपूत श्रेणी के पोत की भूमिका में विमान भेदी तथा वाहक टास्क फोर्स पनडुब्बियों से रक्षा, कम ऊँचाई पर उड़ाने वाले विमान और क्रूज मिसाइलों से पनडुब्बी रोधी युद्ध के रूप में संरक्षण शामिल है.

कोलकाता श्रेणी: कोलकाता श्रेणी के विध्वंसक प्रसिद्ध प्रोजेक्ट 15 ‘दिल्ली’ श्रेणी के विध्वंसक हैं, जिनकी सेवाओं की शुरुआत 1990 के दशक के आखिरी हुई थी. इस विध्वंसक के निर्माण की परिकल्पना भारतीय नौसेना के डिजाइन निदेशालय द्वारा की गई थी. जहाजों भारत कोलकाता, कोच्चि और चेन्नई के प्रमुख बंदरगाह शहरों के बाद नाम दिया गया है. जहाज का नामकरण भारत के प्रमुख बंदरगाह के शहरों जैसे कोलकाता, कोच्चि और चेन्नई के नाम किया गया है.

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