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इच्छामृत्यु या Euthanasia
Euthanasia जिसे हिंदी में इच्छा मृत्यु की संज्ञा दी जाती है. एक प्रक्रिया है जिसमें अत्यधिक कारूणिक और दयनीय स्थिति में जीवित व्यक्ति को अपने प्राणों का अंत करने की वैधानिक आज्ञा दी जाती है. Euthanasia या इच्छामृत्यु अपने बीज विचार के समय से ही विवादों में रही है. एक तबका इसको वैध बनाने की मांग करता है तो दूसरा धड़ा इसके विरोध में है और इसके दुरूपयोग की चिंता पर अपने प्रश्न उठाता है.
क्या होती है Euthanasia या इच्छामृत्यु?
Euthanasia या इच्छामृत्यु जैसे पहले बताया जा चुका है कि तकलीफ में जीवन बिता रहे लोगों की इच्छा पर उन्हें मृत्यु प्रदान करने का विचार है. दुनिया भर में Euthanasia या इच्छामृत्यु को लेकर अलग—अलग कानून बने हुए है. ब्रिटेन, नीदरलैण्ड, और बेल्जियम जैसे देशों में Euthanasia या इच्छामृत्यु को वैध बनाया जा चुका है लेकिन इसके लिए एक लंबी कानूनी प्रक्रिया होती है जो अपवाद मामलों में उपयोग में लाई जाती है.
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Euthanasia या इच्छामृत्यु के प्रकार
Euthanasia या इच्छामृत्यु को कई वर्गों में वर्गीकृत किया गया है. मूख्य रूप से यह voluntary, non-voluntary या involuntary में विभाजित है. voluntary वर्ग में व्यक्ति स्वयं अपने मृत्यु के लिए आवेदन करता है जबकि non-voluntary या involuntary ऐसी स्थिति होती है जब व्यक्ति स्वयं फैसला लेने में सक्षम नहीं होता है और उसके आधार पर उसका कोई निकट रिश्तेदार या सम्बन्धित व्यक्ति उसके मृत्यु के लिए आग्रह करता है. हालांकि non-voluntary या involuntary को अभी किसी भी देश में कानूनी मान्यता नहीं मिली हुई है और इस तरह के कृत्य को हत्या की श्रेणी में ही रखा जाता है.
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क्या होता है Passive euthanasia?
Passive euthanasia को pulling the plug भी कहा जाता है. भारत के सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अपने फैसले में Passive euthanasia को वैधानिक बना दिया है. दुनिया के कई देशों में Passive euthanasia को कानूनी दर्जा प्राप्त है. Active euthanasia दुनिया के कुछ देशों जैसे बेल्जियम, कनाडा और स्विट्जरलैण्ड में कानूनी रूप से वैध है.
Active euthanasia और Passive euthanasia में अन्तर
Active euthanasia और Passive euthanasia में सिर्फ प्रक्रिय का अंतर होता है. Active euthanasia में किसी गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति को तय मानक के अनुसार मृत्यु प्रदान की जाती है जो कम दर्दनाक होती है और व्यक्ति की निश्चित समय मृत्यु हो जाती है जबकि Passive euthanasia में व्यक्ति को सिर्फ उपचार देना बंद कर दिया जाता है और उपचार के अभाव में उसके मरने की प्रतिक्षा की जाती है. Passive euthanasia ज्यादा दर्दनाक और लंबी प्रक्रिया है.
Euthanasia या इच्छामृत्यु का इतिहास
Euthanasia या इच्छामृत्यु के साक्ष्य प्राचीन इतिहास के स्रोतों से मिलना शुरू हो जाता है. सबसे पहले इसके प्रमाण प्राचीन रोम और ग्रीस में दिखाई देते है. जहां इच्छामृत्यु देने के लिए कार्मिक रखने का उल्लेख मिलता है. सुकरात और प्लेटो जैसे दार्शनिकों ने भी इसके सम्बन्ध में अपने विचार अपनी पुस्तकों में रखे हैं और इसका समर्थन किया है तो दूसरी ओर चिकित्सा विज्ञान के जनक हिप्पोक्रेटस इसका खुलकर विरोध करते हैं. Euthanasia या इच्छामृत्यु शब्द पहली बार फ्रांसिस बेकन की किताब Euthanasia medica में पढ़ने को मिलता है, जिसमें वे इसे परिभाषित करते हुए कहते है कि इस प्रक्रिया में किसी को मृत्यु तक पहुंचाने में उसकी सहायता की जाती है.
Euthanasia या इच्छामृत्यु पर आधुनिक विवाद
Euthanasia या इच्छामृत्यु पर 18वीं सदी के मध्य तक आते—आते विवाद होना शुरू हो गया जो मूल रूप से धार्मिक ओर वृहद् तौर पर सामाजिक भी था. इस पर पहला रिकॉर्डेड बयान 1870 में मिलता है जब एक स्कूल टीचर सैम्युअल विलियम्स ने बर्मिंघम स्पेक्यूलेटिव क्लब में इच्छामृत्यु के खिलाफ एक भाषण दिया. जिसे बाद में कई प्रकाशनों में जगह मिला.
इसके बाद पूरी दुनिया में जगह—जगह क्लोरोफॉर्म और इस तरह के निश्चेतको के प्रयोग पर बहस छिड़ गई क्योंकि मृत्युशैय्या पर लेटे ज्यादातर मरीजो को क्लोराफार्म की मदद से ही नीम बेहोशी में भेज कर मरने के लिए छोड़ दिया जाता था. इस बहस ने इतना ज्यादा उग्र रूप ले लिया कि निश्चेतकों के उपयोग को लेकर कई देशों में कानून बने और उन्हीं कानूनों को आधार बनाकर आज के मेडिकल साइंस में गंभीर आॅपरेशन्स से पहले मरीज के परिजनों से कसेंट साइन करवाया जाता है कि अगर निश्चेतक के उपयोग से कोई हानि होती है जो यह सिर्फ परिस्थितिजन्य होगी. इसे किसी भी तरह हत्या या इच्छामृत्यु के प्रयास के तौर पर नहीं माना जाएगा.
Euthanasia या इच्छामृत्यु कौनसे देशों में वैध है?
- दुनिया भर के कई देशों में इच्छामृत्यु को कानूनी रूप से वैध बनाया गया है और इसके लिए एक प्रक्रिया भी निर्धारित की गई है ताकि कोई इस कानून का दुरूपयोग न कर पाए.
- अल्बानिया में यदि परिवार के तीन या उससे अधिक सदस्य अपने किसी गंभीर रूप से बीमार पारिवारिक सदस्य के लिए इच्छामृत्यु की मांग करते हैं तो उचित जांच के बाद इसकी स्वीकृति दी जाती है.
- इसी तरह आयरलैण्ड में मरीज अगर खुद मरने की इच्छा प्रकट करता है तो उसका उपचार बंद कर दिया जाता है.
- मैक्सिको और नार्वे में भी Passive euthanasia को वैध स्वरूप दिया गया है.
भारत और euthanasia
भारत में euthanasia को लेकर बड़ी बहस अरूणा शानबाग को लेकर शुरू हुई जिसमें एक रेप अंटेप्ट के दौरान अरूणा शानबाग कोमा में चली गई थी और 42 साल तक कोमा में रही. उनके लिए एक जर्नलिस्ट पिंकी विरानी ने इच्छामृत्यु की मांग की थी लेकिन उनकी इस मांग को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था. इसके पीछे आधार यह था कि इस तरह की मांग सिर्फ परिवार का ही कोई व्यक्ति कर सकता था. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने परिवार की मांग पर किसी को इच्छा मृत्यु देने की मांग को स्वीकार कर लिया और भारत में इच्छा मृत्यु कानूनी तौर पर वैध हो गई.