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भारतीय खेल जगत के गुमनाम सितारे-2
भारतीय खेल जगत के गुमनाम सितारे हजारों की तादाद में हैं. स्टार खिलाड़ियों की चमक के आगे भुला दिए गए भारतीय खेल जगत के ये वो हीरो हैं जिन्होंने आजाद भारत का नाम तो रोशन किया मगर उन्हें उनके हिस्से की प्रसिद्धी नहीं मिल पाई.
हिंदुस्तान की आजादी के 70 साल में स्टार खिलाड़ियों के साथ में कई ऐसे महान खिलाड़ी भी पैदा हुए जिन्होंने दुनिया में भारत की खेल प्रतिष्ठा को चमकाया. भारतीय खेल जगत के ये वो हीरो हैं जिन्होंने हिंदुस्तान का सिर गर्व से ऊंचा किया मगर समय के साथ हमने इन्हें भुला दिया. आइए जानते हैं इनकी वो उपलब्धियां जिन पर हम आज भी गर्व कर सकते हैं.
भारतीय खेल जगत के गुमनाम सितारे
1- श्रवण सिंह (एथलीट) – Sarwan Singh (Athlete)
श्रवण सिंह आजाद हिंदुस्तान के उस एथलीट का नाम है जिसने 1954 के मनीला एशियन गेम्स Manila Asian Games 1954 में 110 बाधा दौड़ Hurdle Race में देश के लिए गोल्ड मेडल जीता. फिर इसके बाद इस खिलाड़ी का जीवन रोज कमाकर खाने वाले एक टैक्सी ड्राइवर के रूप में बीता.
यहां तक की रोजी रोटी के लिए इस एथलीट को अपना वो गोल्ड मेडल तक बेचना पड़ा जिसने देश को गौरव दिलाया था. मनीला में आयोजित हुए दूसरे एशियन खेलों में हिंदुस्तान को चार और एथलीटों ने भी गोल्ड मेडल दिलाया था मगर श्रवण सिंह का मेडल इसलिए अहम था कि उन्होंने महज 14.7 सेकंड में दौड़ पूरी कर जापान के दो नामी एथलीटों को कड़े मुकाबले में एक सेकंड के अंतर से धूल चटाई थी. माना जाता है कि पानसिंह तोमर Pansingh Tomar जैसा एथलीट भी पंजाब में जन्मे श्रवण सिंह की खोज थे.
2- मुरलीकांत पेटकर (तैराक) – Murlikant Petkar (Swimmer)
बहुत कम लोग जानते होंगे की पैरालम्पिक खेलों Paralympics में भारत के पहले गोल्ड मेडलिस्ट मुरलीकांत पेटकर थे. जर्मनी के हेडलबर्ग Heidelberg में आयोजित 1972 के पैरालम्पिक्स में मुरलीकांत ने गोल्ड मेडल जीता और 50 मीटर फ्रीस्टाइल तैराकी की प्रतिस्पर्धा 37.33 सेकंड में जीतकर वर्ल्ड रिकॉर्ड कायम किया.
भारतीय सेना की इलेक्ट्रिकल एंड मैकेनिकल इंजीनियरिंग कोर हैदराबाद में क्राफ्ट्समैन रैंक के जवान मुरलीकांत पेटकर मूलतः एक बॉक्सर थे और 1965 में उन्होंने बॉक्सिंग का नेशनल खिताब जीता. पाकिस्तान के विरुद्ध 1965 के युद्ध में देश के लिए उन्होंने जान की बाजी लगा दी और गोली लगने से जख्मी होने के कारण वह दिव्यांग हो गए.
इसके बावजूद पेटकर ने यह कई बार साबित किया कि जज्बा हो तो विकलांगता बाधा नहीं बनती. मुरलीकांत पेटकर ने की रगों में केवल बॉक्सिंग ही नहीं बल्कि कई खेलों का हुनर दौड़ रहा था. इन्हीं खेलों में पेटकर ने तीन और खेलों जेवलिन थ्रो तथा स्लैलम Slalom में में हिस्सा लिया और फाइनल तक पहुंचे.
इतना ही नहीं तैराकी की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में चार मेडल जीतने वाले पेटकर ने 1968 के तेल अवीव पैरालम्पिक्स Tel Aviv Paralympics में टेबल टेनिस में भी हिस्सा लिया और पहला राउंड जीता.
अर्जुन अवार्ड के लिए मुरलीकांत का आवेदन तो खारिज हो गया मगर बॉलीवुड की एक आने वाली फिल्म के बाद शायद भारतवासी इस मराठी योद्धा की वीरता और जज्बे के बारे में और अधिक जान पाएंगे.
3- शंकर लक्ष्मण (हॉकी गोलकीपर) – Shankar Laxman (Hockey Goalkeeper)
मध्यप्रदेश के मऊ में 7 जुलाई 1933 को जन्मे शंकर पिल्लै लक्ष्मण देश के वो महान खिलाड़ी रहे जिन्होंने हॉकी में देश को ओलम्पिक में दो गोल्ड मेडल व एक सिल्वर मेडल तथा एशियन गेम्स में भी दो गोल्ड व सिल्वर मेडल दिलाए. जानकर आश्चर्य होगा कि शंकर लक्ष्मण को उनके योगदान के लिए भारत सरकार की ओर से अर्जुन अवार्ड और पद्मश्री सम्मान मिला.
इसके बावजूद दुनियाभर में हॉकी के रॉक ऑफ जिब्राल्टर Rock of Gibraltar के नाम से मशहूर शंकर लक्ष्मण ने अपनी जिंदगी बेहद गरीबी में बिताई और अवसाद Gangrene के कारण 72 वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई.
शंकर लक्ष्मण भारतीय हॉकी टीम के ऐसे पहले गोलकीपर थे जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय टीम की कप्तानी की. शंकर थाईलैंड के बैंकॉक में आयोजित 1966 के एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीतने वाली हॉकी टीम के कप्तान थे.
इतना ही नहीं, ओलम्पिक में एक के बाद एक लगातार तीन फाइनल मैच खेलने वाले वह अकेले खिलाड़ी थे. उनका हॉकी के प्रति इतना जुनून था कि उन्होंने 13 वर्ष की उम्र में ही हॉकी के लिए स्कूल छोड़ दी थी. शंकर लक्ष्मण भारतीय सेना की मराठा लाइट इंफेंट्री से 1979 में कैप्टन के पद से रिटायर हुए.
शंकर 1956 के मेलबोर्न ओलम्पिक Melbourne Olympics में बिना कोई मैच हारे फाइनल में पाकिस्तान को 1-0 से हराने वाली भारतीय टीम का भी हिस्सा थे. शंकर लक्ष्मण की 29 अप्रैल 2006 को अवसाद के कारण मृत्यु हो गई. उनकी श्रद्धांजलि में द गार्जियन अखबार ने यह लिखा-
Shankar Laxman was one of the greatest hockey players of all time at a time when the sport had a status close to religion in India. –TheGuardian
4- मारिया इरुडयम (कैरम) – Maria Irudayam (Carrom)
कैरम खेल में अर्जुन अवार्ड जीतने वाले एक मात्र खिलाड़ी हैं एंथनी मारिया इरुडयम. कैरमबोर्ड में लगातार अद्भुत प्रदर्शन करने और चैम्पियन बने रहने वाले इरुडयम को भारत सरकार ने 1996 में अर्जुन अवार्ड से नवाजा.
इरुडयम 1981 में स्टेट टाइटल जीतने के बाद अगले ही वर्ष नेशनल चैम्पियन बन गए. चेन्नै में जन्में इरुडयम कैरम में नौ बार नेशनल चैम्पियन और 1991 एवं 1995 में दो बार वर्ल्ड चैम्पियन रहे. जर्मन कैरम फेडरेशन German Carrom Federation ने भी 1998 में मारिया इरुडयम को बेस्ट इंटरनेशनल प्लेयर Best International Player अवार्ड से सम्मानित किया.
इतनी सफलताओं के बावजूद वह कभी सुर्खियों में नहीं रहे और उन्होंने हमेशा सामान्य जीवन व्यतीत किया. दी हिंदु अखबार में 24 अप्रैल 2009 को प्रकाशित उनके एक इंटरव्यू में उन्होंने हताशा भरे शब्दों में कहा था कि एक दशक से भी ज्यादा समय से कैरम में मैं ही अवार्ड जीतता आ रहा हूं कोई दूसरा खिलाड़ी इस खेल में अवार्ड ही नहीं जीत रहा.
इसीलिए कैरम में युवा प्रतिभाओं को तराशने तथा प्रोत्साहन देने के लिए उन्होंने अपना पूरा योगदान दिया और इसके लिए एक एकेडमी भी शुरू की. कैरम में अपनी सफलता और योगदान के लिए उन्हें कैरम का सचिन तेंदुलकर भी कहा गया मगर इस महान खिलाड़ी के बारे में कुछ लोग ही जानते होंगे.
5- आशा रॉय (एथलीट) – Asha Roy (Athlete)
भारत की सबसे तेज धावक का नाम पूछा जाए तो बहुत कम लोग बता सकेंगे की यह खिताब 5 जनवरी 1990 को पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गांव घनश्यामपुर में जन्मी एक गरीब लड़की आशा रॉय को 2011 में मिला था. आशा का परिवार बेहद गरीब था, कच्चे घर में रहता था और उनके पिता घर-घर जाकर सब्जी बेचते थे.
आशा को भले की दो वक्त खाने की पूरी खुराक भी नहीं मिलती थी मगर उसने 2011 में कोलकाता में आयोजित 51 वीं नेशनल ओपन एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में 100 मीटर की प्रतिस्पर्धा 11.85 सेकंड में और 200 मीटर की प्रतिस्पर्धा 24.36 सेकंड में पूरी कर रिकार्ड कायम किया था.
पुणे में 2013 में आयोजित 20वीं एशियन एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में भी आशा ने 200 मीटर ट्रैक एंड फील्ड इवेंट में सिल्वर मेडल जीता. पटियाला में 2013 में आयोजित इंडियन ग्रैंड प्रिक्स चैम्पियनशिप में भी आशा ने 200 मीटर में गोल्ड मेडल जीता.
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