भरत के वंश में शान्तनु नामक एक राजा थे। उनके तीन पुत्र थे–देवव्रत, चित्रागंद ओर विचित्रवीर्य। देवव्रत ने आजन्म अविवाहित और कभी राज्य न करने की भीष्म प्रतिज्ञा की थी, इस वजह से वे भीष्म नाम से प्रसिद्ध हो गये। चित्रागंद एक युद्ध में मारे गये। ऐसी दशा में अपनी माता सत्यवती के कहने से भीष्म काशी के राजा इन्द्रद्युमन की तीनों पुत्रियों अंबा, अंबिका ओर अबालिका का स्वयंवर सभा से हरण कर हस्तिनापुर ले आये।
इन तीनों में अंबा सबसे बड़ी थी। हरण के पश्चात उसने भीष्म को बताया कि वह सोमदेश के राजा शाल्व को पतिरूप में वरण कर चुकी है, अतएव भीष्म ने उसे शाल्व के पास पहुँचा दिया, किन्तु शाल्व॒ ने यह कहकर उसका वरण नहीं किया कि उसे भीष्म ने युद्ध कर जीता है और क्षत्रिय के तौर पर वह अब अंबा को स्वीकार नहीं कर सकता।
अंबा ने अपनी दुर्दशा का कारण भीष्म को समझा और उनसे वदला लेने के लिए, परशुराम के पास पहुँची किन्त वसु के अवतार, महाबली योद्धा अपने शिष्य भीष्म को युद्ध में पराजित नहीं कर पाए। इससे निराश हो अंबा तपोवन में जाकर उम्र तप करने लगी।
शिवजी ने उसके तप से प्रसन्न हो, उसे वरदान दिया कि तुम दूसरे जन्म में पुरुषत्व प्राप्त कर युद्ध में भीष्म को मारोगी। तम राजा द्रूपद के यहाँ जन्म लोगी ओर तुम्हे सब स्मरण रहेगा। अंबा ने अग्नि का आवाहन कर आत्मदाह कर अपने प्राण त्याग दिए।
अंबा कैसे बनी भीष्म की मृत्यु का कारण?
अगले जन्म में उनका जन्म पांचाल नरेश द्रुपद के पुत्र शिखण्डी के तौर पर हुआ। जब कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत का युद्ध हुआ तब भीष्म के इच्छा मृत्यु का वरदान की वजह से वे अजेय दिखाई दे रहे थे। ऐसे में पांडव स्वयं उनके पास उनकी मृत्यु का कारण पूछने गए।
तब भीष्म ने महादेव द्वारा अंबा को दिए गए वरदान के बारे में पांडवों को बताया और अर्जुन को आदेश दिया कि वे अपने रथ पर शिखण्डी को लेकर आए। चुंकि उन्हें ज्ञात है कि शिखण्डी वास्तव में राजकुमारी अंबा है इसलिए वे उसपर शस्त्र नहीं चलाएंगे।
पांडवों ने इस युक्ति से भीष्म पितामह को शरशय्या बध्य कर दिया। अंबा को अपना प्रतिशोध मिल गया और भीष्म ने अपने पाप का प्रायश्चित कर लिया। अंबा से छोटी बहिन का नाम अंबिका था।
वेदव्यास के नियोग द्वारा अंबिका के गर्भ से धृतराष्ट्र नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। सबसे छोटी वहन अंबालिका थी। उसके गर्भ से पांडु का जन्म हुआ। धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव और पांडू के पुत्र पांडव कहलाये।
कौन था शाल्व जिसने अंबा से विवाह करने से किया था इंकार?
शाल्व शिशुपाल का मित्र था। वह रुक्मिणी के विवाह के अवसर पर बारात में, शिशुपाल की ओर से गया था। रुक्मिणी-हरण के समय यदुवंशियों ने युद्ध मे जरासन्ध आदि के साथ शाल्व फो भो हराया था। उस समय शाल्व ने यदुवंशियों के नाश की प्रतिज्ञा की थी।
इसी कारण उसने आशुत्तोष भगवान् शंकर को मनाने के लिए उम्र तपस्या की। शंकर के प्रसन्न होने पर शाल्व ने वर माँगा कि मुझे आप ऐसा विमान दीजिए जो देवता, असुर, मनुष्य, गंध, नाग ओर राक्षसों से भी तोड़ा न जा सके।
विमान स्वेच्छाचारी ओर यदुवंशियों का नाश करनेवाला हो। तब भगवान् शंकर ने मय दानव से लोहे का “सोम” नामक विमान बनवाकर शाल्व को दे दिया। शाल्व ने इसी विमान पर चढ़ द्वारका पर चढ़ाई कर दी। भगवान कृष्ण के पुत्र प्रद्युमन ओर शाल्व का घमासान युद्ध हुआ।
उन दिलों श्रीकृष्ण ओर बलराम इन्द्रपस्थ गये हुए थे। श्रीकृष्ण द्वारका पर आई विपत्ति की सूचना पाकर लौट आये। श्रीकृष्ण और शाल्व में युद्ध होता रहा। अन्त मे भगवान् के चक्र से उसकी मृत्यु हो गई ओर उसका दिव्य विमान भी चूर-चूर हो गया।
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