अहमद शाह अब्दाली जिसे अहमद शाह दुर्रानी के नाम से भी जाना जाता है. एक बादशाह और आक्रमणकारी था, जिसने भारत पर कई बार हमले किये और भारत का धन तथा वैभव लूटा. अहमद शाह अब्दाली को भारत में सिर्फ एक लुटेरे के तौर पर ही जाना जाता है लेकिन उसके जीवन के दूसरे पहलू भी थे.
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अहमद शाह अब्दाली का आरंभिक जीवन
अहमद शाह अब्दाली का जन्म 1722 ईस्वी में हुआ. अब्दाली के जन्म स्थान को लेकर विवाद है. कुछ इतिहासकार उसका जन्म स्थान अफगानिस्तान के हेरात शहर में मानते हैं तो कुछ इतिहासकार पाकिस्तान के मुल्तान शहर को उसका जन्म स्थान मानते हैं.
अब्दाली के पिता का नाम मोहम्मद जमान खान और माता का नाम जर्गुना बेगम था और उनका सम्बन्ध अफगानिस्तान के अब्दाली कबीले से था. इस कबीले को दुर्रानी कबीला भी कहा जाता था, जिसका सम्बन्ध प्राचीन दुर्रानी साम्राज्य से जोड़ा जाता है. अब्दाली के पिता मोहम्मद जमान खान का जीवन दुश्वारियों से भरा पड़ा था.
मोहम्मद जमान खान अब्दाली कबीले का मुखिया था और ईरानी साम्राज्य के साथ संघर्ष के दौरान उसे अपना देश छोड़कर लंबा समय निर्वासन में गुजारना पड़ा. ईरानियों ने उसे गिरफ्तार कर लिया और लंबे समय तक कैद में रखने के बाद समझौता करने पर 1715 में रिहा किया गया. इसके बाद वह अफगानिस्तान छोड़कर अपने रिश्तेदारों के पास मुल्तान आ गया और वहीं पर अहमद शाह अब्दाली का जन्म हुआ.
अहमद शाह के पिता ने जिंदगी भर नादिर शाह से संघर्ष किया और अपने पिता के संघर्ष का गवाह बने अहमद शाह अब्दाली को यह जल्दी ही समझ में आ गया कि नादिर शाह से जीत पाना लगभग नामुमकिन है.
अहमद शाह अब्दाली का उदय
अहमद शाह अब्दाली के जीवन में एक बड़ा बदलाव तब आया जब नादिर शाह ने कंधहार पर हमला कर उसे अपने अधीन कर लिया. इस वजह से कंधहार में रहने वाले अब्दाली कबीले को भी उसकी अधीनता स्वीकार करनी पड़ी और नादिर शाह ने अपनी फौज में अब्दाली की एक घुड़सवार फौज का शामिल कर लिया. अहमद शाह अब्दाली और उसका भाई जुल्फीकार भी इस फौज का हिस्सा बन गये.
जुल्फीकार को नादिरशाह पसंद नहीं था और इस वजह से उसने जल्दी ही उसका साथ छोड़ दिया लेकिन अब्दाली ने नादिरशाह के नजदीक पहुंचने के लिये अपना सबकुछ झोंक दिया और उसकी मेहनत रंग लाई. अहमद शाह अब्दाली जल्दी ही नादिर शाह का सबसे विश्वस्त सिपाही बन गया और उसकी निजी फौज का हिस्सा बन गया.
नादिर शाह को जल्दी ही अहमद शाह अब्दाली ने अपने भरोसे में ले लिया. नादिर शाह ने उसे अब्दाली फौज का सिपहासालार बना दिया. नादिर के साथ उसने 1738 में मुगल साम्राज्य पर हमला कर दिया. इस हमले के दौरान नादिर शाह को उसने अपनी वीरता से भी प्रभावित कर लिया.
अहमद शाह अब्दाली कैसे बना बादशाह?
अहमद शाह अब्दाली के बादशाह बनने की घटना बहुत ही विचित्र तरीके से घटित हुई. दरअसल 1747 में नादिरशाह की उसके ही अंगरक्षकों ने हत्या कर दी. इस हत्या के पीछे उसकी एक पत्नी की साजिश बताई गई लेकिन इसको लेकर कोई पुष्ट बात तक इतिहासकार नहीं पहुंचते क्योंकि नादिरशाह की हत्या से लाभ अहमद शाह अब्दाली को पहुंचा.
अहमद शाह अब्दाली को जब अपने मालिक की हत्या के बारे में पता चला तो वह नादिर शाह के पहुंचा और उसके शव से कोहिनुर की अंगुठी लेकर अपने बांह पर बांध लिया. यह एक तरह से नादिर शाह के तख्त पर उसका दावा था. उस समय तक उसका अधिकार क्षेत्र इतना अधिक बढ़ चुका था कि कंधार में उसका विरोध करने की कोशिश किसी ने नहीं की और इस तरह अफगानिस्तान में अब्दाली के साम्राज्य की नींव पड़ी.
अहमद शाह के भारत पर आक्रमण
अहमद शाह ने अपने मालिक नादिर शाह के साथ कई बार भारत पर आक्रमण किया था और हर बार उसे बहुत सारा धन यहां से यहां मिला था. भारत के वैभाव ने उसे बहुत प्रभावित किया था. साथ ही इस्लाम का प्रभाव भी उस पर बहुत गहरा था. उसने तख्त पर बैठते ही पादशाह-ए-गाजी की उपाधि धारण की थी. भारत उस समय हिन्दु बहुल देश था और वह यहां इस्लाम का प्रसार भी करना चाहता था.
मुगलों के बारे में वह कोई अच्छी राय नहीं रखता था और उसने कई बार नादिर शाह के साथ उनके खिलाफ भी अभियान किया था. 1748 से 1767 तक उसने मुगलों पर सात बार हमला किया. बादशाह बनने के बाद उसने एक बार फिर भारत का रूख किया. उसका पहला निशाना मुगले शासक बने. उसने भारत पर पहला आक्रमण दिसम्बर, 1747 में किया.
खैबर दर्रे को पार करते हुये 40 हजार की फौज के साथ वह भारत आया. सबसे पहले उसने पेशावर पर कब्जा कर लिया. इसके बाद 1748 में उसने सिन्ध नदी को पार करने में सफलता पाई और आगे बढ़ते हुये लाहौर पर भी कब्जा कर लिया. आगे बढ़ते हुये उसने पंजाब और सिंध के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया.
अहमदशाह अब्दाली को 1950 में भारत अभियान रोकना पड़ा क्योंकि अफगानिस्तान में नादिरशाह के पोते शाह रूख ने हेरात में सर उठाना शुरू कर दिया था. उसने भारत से अपना ध्यान हटाकर हेरात पर कर लिया. उसकी फौजों ने 1751 में ईरान पर कब्जा कर लिया. उसने शाहरूख को माफ कर दिया और दुर्रानी वंश की नींव ईरान में डाल दी.
अहमद शाह अब्दाली और मराठों का संघर्ष
औरंगजेब की मृत्यु के बाद भारत मे मुगल साम्राज्य बहुत कमजोर हो चुका था और भारत में मराठे नई शक्ति के तौर पर उभर रहे थे. शिवाजी महाराज के हिंदु साम्राज्य का उत्थान अपने चरम था. उस समय दक्षिण से उत्तर तक कोई भी शासक मराठाओं से टकराने का साहस नहीं कर सकता था.
मराठों ने दिल्ली सल्तनत तक को अपने अधीन कर लिया था और उन्हें भी मराठों को अधीनता के परिणामस्वरूप चैथ चुकाना पड़ता था. 1752 में मराठों और मुगलों के बीच अहमदिया संधि की गई थी. बालाजी बाजीराव उस समय मराठों को पेशवा थे.
पूना मराठा साम्राज्य की राजधानी थी और वहीं से वे पूरे भारत का शासन देखा करते थे. मराठों ने अपनी बहादुरी से तैमूर शाह को भारत से भगा दिया और पेशावर तक उनके साम्राज्य की जद में आ चुका था. मराठों की बढ़ती हुई ताकत कीे दबाने के लिये अहमद शाह अब्दाली ने मराठों से संघर्ष करने का फैसला किया और एक लाख की फौज को लेकर भारत आया.
पानीपत की तीसरी लड़ाई – Third Battle of Panipat
पानीपत की तीसरी लड़ाई Third Battle of Panipat अहमद शाह अब्दाली और मराठा सेनापति सदाशिव राव भाउ के बीच 14 जनवरी, 1761 को लड़ी गई. इस लड़ाई के परिणाम और इसके स्थान को लेकर इतिहासकारों में भारी मतभेद है.
कई साहित्यकार इस लड़ाई में अहमद शाह अब्दाली को एक विजेता के तौर पर दिखाते हैं तो कई साहित्यकारों का यह मत है कि यह लड़ाई अनिर्णित रही और इसमें दोनों पक्ष ने आखिर में समझौता कर लिया.
इस लड़ाई में एक दिन में सबसे ज्यादा लोगों ने अपनी जान गंवाई. कई इतिहासकार तो यह मानते हैं कि एक दिन की लड़ाई में एक लाख से ज्यादा लोग मारे गये और इसमें तोपखाने का इस्तेमाल दोनों पक्षों ने भारी पैमाने पर किया. इस लड़ाई के कुछ प्रमुख तथ्य इस प्रकार है-
पानीपत की तीसरी लड़ाई के प्रमुख विवादित तथ्य
- पानीपत की तीसरी लड़ाई में अहमद शाह अब्दाली की तरफ से बड़ी तोपों का इस्तेमाल किया गया.
- अहमद शाह अब्दाली के साथ आये इतिहासकारों ने इसमें अपने बादशाह की विजय बताई है लेकिन उसका वर्णन अतिरंजना से भरपूर लगता है.
- इस लड़ाई के बाद भी मराठा भारत की सबसे बड़ी ताकत बने रहे और माधवराव के नेतृत्व में एक लाख की फौज का उल्लेख मिलता है, अगर पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों को इतना बड़ा नुकसान होता तो इतनी जल्दी इतनी बड़ी फौज बना पाना नामुमकिन प्रतीत होता है.
- इस लड़ाई के बाद अहमद शाह अब्दाली ने फिर कभी भारत का रूख नहीं किया. अगर वह विजेता होता तो अपने आक्रमणों को कभी बंद नहीं करता. इससे यह बात भी स्पष्ट होती है कि अहमद शाह अब्दाली को भी इस लड़ाई में भारी नुकसान हुआ था.
अहमद शाह अब्दाली की मृत्यु
अहमद शाह ने मध्य एशिया मे कई युद्ध अभियान किये लेकिन अपने जीवन के अंतिम दौर पर में वह ज्यादातर समय कंधार में ही रहा. 16 अक्टूबर 1772 में उसकी मृत्यु हो गई. उसे कंधार शहर में ही स्राइन आफ क्लोक में दफना दिया गया.
अहमद शाह अब्दाली सिर्फ एक योद्धा और शासक ही नहीं बल्कि एक कवि भी था और उसने पश्तों भाषा में कई कवितायें लिखी. उसकी सबसे मशहूर कविता देश के लिये प्रेम को उसके मकबरे पर खुदवाया गया है. उसने इस कविता में लिखा कि मैं दिल्ली के तख्त को भूल गया जब मुझे पख्तूनवा के खूबसूरत पहाड़ याद आये.
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