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टॉयलेट एक प्रेम कथा: सामाजिक प्रयास वाला सिनेमा
टॉयलेट एक प्रेम कथा फिल्म का ट्रेलर रिव्यू
टॉयलेट एक प्रेम कथा एक एक सामाजिक व्यंग्य है जो खुले शौच के खतरे से निपटने, जनमानस में बदलाव और सामाजिक परिवर्तन की लहर से निपटने के साथ-साथ भारत को बदलने के लिए तैयार है।
फिल्म का परिवेश ग्रामीण रखा गया है क्योंकि यह समस्या ग्रामीण भारत में ज्यादा पैर पसारे हुए हैं. फिल्म का परिवेश उत्तर प्रदेश और हरियाणा का मिला—जुला रूप लगता है. फिल्म की कहानी भी साफ है कि अक्षय कुमार जो इस फिल्म में नायक है को शादी करनी है और उन्हें फिल्म की नायिका यानी भूमि पेडनेकर से प्रेम हो जाता है.
काफी जद्दोजहद के बाद शादी होती है और कहानी में नया मोड़ आता है जब नई दुल्हन को पता चलता है कि घर में शौचालय नहीं है. नायक के पिता घर में शौचालय बनाने के सख्त खिलाफ है और अक्षय कुमार के काफी प्रयासों के बाद भी शौचालय न होने की वजह से भूमि घर छोड़कर चली जाती है.
यहां से बदलाव की कथा शुरू होती है जिसे नायक अपनी निजी लड़ाई के बजाय सामाजिक सरोकार की तरह लड़ता है. इसमें वह कितना सफल होता है, यह तो फिल्म देखने के बाद ही पता चल पाएगा.
आइडिया आफ स्टोरी
फिल्म की स्टोरी में नयापन है और ट्रेलर भी इसे देखने के लिए मजबूर करता है. मध्यमवर्गीय परिवार की पारिवारिक जद्दोजहद देखने का मौका एक बार फिर दर्शको के सामने है.
यह भारतीय सिनेमा का वह दौर है जहां आपको गांव पर केन्द्रित सिनेमा न के बराबर दिखाई देता है. इससे पहले आमिर खान लगान में भारत के गांव को दिखा चुके हैं लेकिन वह आजादी के पहले का गांव था, आजादी के बाद का गांव अभी भारतीय सिनेमा में बहुत मुखर होकर सामने नहीं आया है.
पीपली लाइव और सुपर फ्लॉप किसान में आधुनिक भारतीय गांव दिखा था लेकिन ये कहानियां गांव से ज्यादा दूसरे विषयों पर केन्द्रित थी. टॉयलेट एक प्रेम कथा गांव की संस्कृति और आग्रहों की कहानी है.
सबसे अच्छी बात यह है कि यह टॉयलेट जैसे विषय पर बात कर रही है जो स्वच्छता और स्वास्थ्य दोनो से जुड़ी हुई है. फिल्मकार के सामने एक बड़ी चुनौती है कि वह किस तरह एक गांव के सिनेमा के लिए शहरी वर्ग को आकर्षित करता है.
फिल्म में हास्य का पुट है और वैसे भी हम टॉयलेट जोक्स पर कुछ ज्यादा ही हंसते हैं. श्री नारायण सिंह पहली बार निर्देशन में हाथ आजमा रहे हैं, इससे पहले वे बॉलीवुड फिल्मों में संपादन का काम देख चुके हैं.