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आंवला नवमी पूजा का विधान All about Amla Navami in Hindi
हिन्दी महीने के अनुसार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन आंवला नवमी मानते हैं अंग्रेजी कैलेन्डर के अनुसार इस साल 5 नवम्बर के दिन आंवला नवमी 2019 मनाई जाएगी, इस दिन को त्यौहार के रूप मे मनाया जाता है.
आंवला नवमी के दिन व्रत किया जाता है, कहते हैं कि कार्तिक सुधि नवमी को किया हुआ दान बहुत पुण्य देने वाला होता है इस दिन किया हुआ धर्म कार्य अक्षय हो जाता है. इस दिन गौमाता, सोना, वस्त्र-आभूषण, अनाज आदि के दान से ब्रह्मा हत्या जैसे पाप भी दूर हो जाते हैं. इस नौमी को धात्री नवमी के नाम से भी जाना जाता है.
कैसे कर आंवला नवमी पर पूजा?
इस दिन आंवला के वृक्ष की पूजा की जाती है इस दिन आंवले के वृक्ष को दूध से सिचकर तिलक करे, कच्चा सूत लपेटे वे कपूर वे घी की बाती बना कर आरती करें और वृक्ष की परिक्रमा लगाए फिर कुष्मांड का पका हुआ फल लेकर उसमें थोड़ा चैकोर टुकड़ा निकालकर अंदर सोना या कोई आभूषण, चांदी का रुपया या सामर्थ अनुसार दान सामग्री कुष्मांड में डाल कर कटे हुए टुकड़े से वापस बंद कर दें फिर उसे लाल वस्त्र में बांध कर ब्राह्मण को दे दे.
लोकाचार में ये एक धर्म और आस्था का दिन होता है आजकल के समय में दूध की कमी के कारण दूध में थोड़ा जल मिलाकर भी आंवले को सिचा जाता है इस दिन सुहागन महिलाये नए वस्त्र और आभूषण तो पहनती ही है साथ में (नथ) नाक में पहनने वाली नत अवश्य पहनती है यह व्रत सुख सौभाग्य को बढ़ावा देने वाला होता है
आंवला नवमी पूजन सामग्री
जल, दूध, रोली-मोली,
कच्चा सूत, घी, कपूर,
कुष्मांड का फल, लाल वस्त्र,
अनाज व सामर्थ के अनुसार दान देने की सामग्री
आंवला नवमी की कहानी
एक गांव में एक साहूकार अपने परिवार के साथ रहता था. वह साहूकार आंवला नवमी के दिन आंवले के पेड़ के नीचे ब्राह्मणों को भोजन कराता था और साथ ही सोने -चांदी का दान देता था पर उसके बेटे और बहू को यह बात अच्छी नहीं लगती थी.
साहूकार के बेटे बहुओं ने सोचा ऐसे तो पिताजी अपना घर लुटा देंगे और उन्होंने कहा इस तरह यदि आप से धर्म करते रहेंगे और बिना मतलब धन को मिट्टी में मिलाना भी अच्छा नहीं है. इन सारी बातों को सुनने के बाद साहूकार अपनी पत्नी के साथ घर छोड़ दूसरे गांव में जा बसा और वहां उसने दुकान खोल ली और अपने घर में आंवला का पेड़ लगा लिया.
साहूकार की पत्नी अपने हाथों से उस आंवले के पेड़ की देख-रेख करने लगी और साहूकार की दुकान भी खूब चलने लगी और साहूकार ने पहले की तरह फिर से ब्राह्मण को भोजन कराना व आभूषणों का दान भी करना शुरू कर दिया. वहीं दूसरी ओर उसके बेटों का कारोबार धीरे-धीरे ठप हो गया और नौबत यहां तक आ पहुंची कि खाने पीने के लाले पड़ लगे.
एक दिन उनके मन में विचार आया कि अपन लोग तो पिताजी के भाग्य से ही कमा रहे थे. ऐसा विचार कर सबने अपने मां-बाप का पता लगाया और उनके पैरों में पड़ गये और कहा कि हम तो आपके ही पुण्य से कमा रहे थे. साहूकार ने कहा कि भाई मेरा इसमें क्या दोष है. तुम लोगों ने ही धन को लुटाना बेकार बताया.
अब मैं क्या करूं, अपना-अपना काम संभालो. कल को फिर कहोगे कि धन को मिट्टी में मिलाने लग गये. इस पर बेटे-बहूओं ने माफी मांगी और कहा कि आप जैसा करेेंगे वैसा हमें मंजूर है. आप हमारे साथ चलो. साहूकार फिर से अपने गांव में आ गया. घर में फिर से आनन्द हो गया. सब लोग मिलकर आंवले की पूजा करने लगे.
हे आंवला देव जैसा साहूकार पर खुश हुए हो, वैसे सब पर होना.
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