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ओलम्पिया में जियस की मूर्ति
ओलम्पिया में जियस की मूर्ति दुनिया के प्राचीन 7 आश्चर्यों में से एक है. ओलंपिक में बृहस्पति की प्रतिमा का एक भव्य इतिहास है. ग्रीस एवं रोम सभ्यता और संस्कृति के महान स्तम्भ माने जाते हैं. ग्रीस की सभ्यता बहुत ही प्राचीन है. इसने भौतिक संसार को बहुत कुछ नया दिया है. एक वक्त था कि जब ग्रीस की संस्कृति और सभ्यता के क्षेत्र में काफी तरक्की की लेकिन समय के साथ उसका अंत भी हो गया.
कौन थे जियस या जुपीटर?
इतिहासकारों का मानना है कि ग्रीस के निवासियों में देवी-देवताओ की बहुत अधिक मान्यता थी. जिस प्रकार भारत के लोग ईश्वर के विभिन्न रूप को मूर्तियों में देखते है और उनकी पूजा करते हैं, उसी प्रकार ग्रीस के निवासी भी भिन्न-भिन्न देवी-देवताओं को मानते थे. वे भी ईश्वर के तरह-तरह के रूपों की कल्पना का आधार मर्तियों का मानकर उसकी पूजा किया करते थे. ग्रीस के इन देवताओं में जीयस या जुपीटर नामक देवता सबसे बड़े माने जाते हैं. जिउस को सभी देवताओं में महान समझा जाता था और इनके प्रति लोगों में श्रद्धा और भक्ति भावना बहुत अधिक है. जिस प्रकार भारत के हिन्दु भगवान इन्द्र को देवताओं का राजा मानते हैं. वही स्थान ग्रीस के देवी-देवताओं में जियस या जुपीटर का है. ग्रीस में यह धारणा है थी जुपीटर ही सभी देवी-देवताओं के राजा है. जिस प्रकार देवराज इन्द्र की पत्नी (इन्द्राणी) का नाम धात्री है, वैसे ही जुपीटर की पत्नी का नाम जूनो है.
जीयस या जुपीटर की मूर्ति का इतिहास
ग्रीस में जुपीटर और जूनों की मूर्तियों की पूजा बड़ी श्रद्धा के साथ होती थी. ग्रीस वासियों का मानना था कि उनकी हर सांस में जियस और जूनो का निवास हैं. सिर्फ यही नही इतिहास के प्रारम्भिक काल में ग्रीस कला, साहित्य एवं सभ्यता में पूर्णता प्राप्त कर चुका था. ग्रीस के महान साहित्यकार होमर ने ‘इलियड’ एवं ‘ओडिसी’ नामक महाकाव्यों की रचना की थी. होमर का समय ईसा से ग्यारह सौ वर्ष पूर्व का बताया जाता है. ‘इलियड’ की कथा रामायण की कथा की तरह ही हैं. हेरोडोट्स के इतिहास में भी इस बात का प्रमाण मिलता है कि जिन दिनों ग्रीस में अच्छी से अच्छी सुन्दर मूर्तियां आदि बना करती थीं, उन दिनों संसार के दूसरे देशों को इस कला की जानकारी भी नहीं थी. ग्रीस की जिस मूर्ति ‘जियस की मूर्ति’ का सौन्दर्य, इसका आकार और कारीगरी पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. संसार के किसी भी हिस्से में इतनी सुन्दर एवं अद्भुत मुर्ति नहीं है. यह मूर्ति ग्रीस के नगर ओलम्पिया में बनी. कुछ लोग इस मूर्ति को इसीलिये ओलम्पियाई जुपीटर के नाम से भी पुकारते है.
कौन था जियस की मूर्ति का कलाकार?
इस मूर्ति को बनाने वाले कलाकार का नाम था फिडियस. फिडियस बडा ही चतुर एवं योग्य कलाकार था. इसका जन्म ईसा से पांच सौ वर्ष पूर्व एथेन्स नगर में हुआ था. कलाकार फिडियस के जन्मकाल के सम्बन्ध में कई विद्वानों में मतभेद है. जिन दिनों फिडियस का जन्म हुआ, उन्हीं दिना सम्राट पेरिक्लियस का जन्म भी एथेन्स में हुआ था.
फिडियस की कला-कृतियो की धूम भी चारों ओर थी. सम्राट परिक्लियस ने कलाकार फिडियस को अपने दरबार में बुलाया और उससे नगर को सुन्दर बनाने के लिए मूर्तियां बनाने का काम दिया. उसने अनेक देवी देवताओं की अनोखी आकर्षक मूर्तियां बनाई. इन मूर्तियों में से फिडियस ने हाथी दांत और सोने एवं कीमती जवाहरातो से भी अनेक मूर्तियां बनाई थी.
कैसे बनी ओलम्पिया में जियस की मूर्ति?
जियस की महान मूर्ति को फिडियस ने ओलम्पिया नगर में बनाया था. ओलम्पिया उन दिनो ग्रीस का प्रसिद्ध नगर था और यह नगर खेलकूद की विश्व स्तरीय प्रतियोगिताओं के लिए काफी मशहूर था.ओलम्पिया में प्रत्येक सत्तरवे वर्ष पर एक बहुत बड़ा मेला लगा करता था. कोई-कोई विद्वान इसे प्रत्येक उनहत्तरवें वर्ष पर बतलाते हैं. इस मेले का आयोजन एक बड़े दालान में होता था.
एक बार एथेन्स नगर के निवासियो पर इस मेले के संचालन का भार सौंपा गया था तो उन्होंने वहां पर जुपीटर या जियस की मूर्ति स्थापित करने की योजना बनाई. मूर्ति के निर्माण के लिये उन्होंने फिडियस से प्रार्थना की. फिडियस को इससे पहले एथेन्स में सोना चोरी करने का आरोप लगा कर निकाल दिया गया था.
फिडियस यह बात सोच कर मूर्ति बनाने को तैयार हुआ कि ओलम्पिया मे मैं ऐसी अद्भुत मूर्ति बनाऊंगा जैसी एथेन्स में एक भी नहीं और यही सोचकर उसने विश्व प्रसिद्ध जुपीटर या जीयस की मूर्ति का निर्माण किया. फिडियस की कामना पूरी हुई. ओलम्पिया की वह मूर्ति सचमुच में एथेन्स ही नहीं, बल्कि सारे-संसार में अपने ढंग की अनूठी अकेली मूर्ति है.
जियस की मूर्ति की विशेषतायें
सोने और हाथी दांत की बनी हुई यह मूर्ति इतनी ऊंची थी कि जिस मन्दिर में उसे प्रतिष्ठित किया गया था वह उसकी छत से टकाराती थी. मूर्ति को एक मन्दिर में स्थित सिंहासन पर प्रतिष्ठि किया गया था. लोगों का कहना है कि यदि उस मूर्ति को खडा किया जाता तो वह इतनी ऊंचाई हो जाती कि मन्दिर की छत तोड कर बाहर निकल जाती. जुपीटर की इस मूर्ति के नीचे दाहिनी औ ‘विजय देवी’ की एक छोटी सी मूर्ति के सिर पर मुकुट रखा हुआ था और हाथों में माला थी.
जुपीटर की मूर्ति के बायें हाथ में एक दण्ड बना हुआ था. यह दण्ड कई प्रकार के धातुओं के सम्मिश्रण से बनाया गया था. जुपीटर को जो वस्त्र पहनाया गया था, वह स्वर्ण का वस्त्र था. जिस हाथ में दण्ड था, उसी पर एक पन्ने की मूर्ति भी बनी हुई थी. मूर्ति के स्वर्ण वस्त्र पर तरह-तरह की बेल-बूटे एवं तरह-तरह के पत्तियों के चित्र बने हुए थे जो देखने में बडे ही मनोरम मालूम पड़ते थे.
जुपीटर की इस मूर्ति की ऊंचाई का सही-सही पता नहीं चलता है. जिस मन्दिर में यह मूर्ति प्रतिष्ठित थी उसकी ऊंचाई 65 फीट की बताते हैं. इससे भी हम मूर्ति की ऊंचाई का एक अन्दाज आसानी से लगा सकते हैं. क्योंकि पहले ही यह बताया जा चुका है कि मन्दिर के उस कमरे में जिसमें मूर्ति रखी गई थी, मूर्ति का ऊपरी भाग सटता हुआ सा जान पडता था. अतः प्रतिष्ठित अवस्था में मूर्ति की ऊंचाई प्रायः 60 फीट की हो सकती थी.
जिस सिंहासन पर मूर्ति रखी गई थी वह सिंहासन आवनूस की लकड़ी, हाथी दांत और स्वर्ण का बना हुआ था. उसमें चारों तरफ बहुमूल्य मोती और मणियां जड़ी हुई थी. मूर्ति के सिर पर आलिव की शाखा की तरह का मुकुट रखा गया था. यह मूर्ति फिडियस की सर्वोत्तम एवं अद्वितीय रचना थी. आश्चर्य की बात तो यह थी कि यह मूर्ति देखने में जितनी विशाल लगती थी, उतनी धातु उसने नहीं लगाई गई थी. मूर्ति की लम्बाई-चौड़ाई एवं डील-डौल को इतने तोले हुये पैमाने पर कलाकार ने बैठाया था, कि कही से भी उसमें कोई कमी नहीं दिखलाई पडती थी.
जीयस की मूर्ति की मान्यता
ग्रीस के निवासियों में, विशेषकर ओलम्पिया नगर के रहने वालों में इस मूर्ति से सम्बन्धित कितनी ही प्रकार की कहावते एवं किंवदतियां प्रचालित हैं. लोगो मे इस धारणा का बाहुल्य है कि जब वह मूर्ति बनकर तैयार हो गई तो जियस उसे देखकर बहुत प्रसन्न हुए. उनका आनन्द चरम सीमा पर पहुंच गया और वह इतने आनन्द विभोर हो उठे कि अपने समस्त आराधकों की उपस्थिति में ही अपने वज्रास्त्र का मन्दिर में पड़ी मेज पर जोरों से प्रहार किया. जिसके परिणाम स्वरूप उस मेज के टुकड़े-टुकड़े हो गये थे. जुपीटर की प्रसन्नता की इस याद में मेज के टूटे अंश वहीं मन्दिर में रखे गये थे.
इस मूर्ति में जितने हाथी दांत का इस्तेमाल किया गया था, उसका अन्दाजा लगाना कठिन है. लोगों का कहना है कि हजारों की संख्या में हाथियों की हत्या की गई थी और उनके दांत उखाड़े गये थे. उन दांतो को तेज यन्त्र से फाड़ कर पतले-पतले बारीक तख्ते तैयार किये गये थे. उन्हीं से विश्व के इस आष्चर्य जियस की मूर्ति का निर्माण हुआ था.
ओलम्पिया में जियस का मंदिर
जिस मंदिर में जियस की मूर्ति स्थापित की गई है, वह भी कलाकारी का बेजोड़ नमूना है. यह मन्दिर बहुत ही सुन्दर है. इसकी दीवारों पर आकर्षक ढंग चित्रकारी की गई है. अनेक देवी देवताओं की आकृतियां मन्दिर की दीवारो पर बनाई गई थीं. इनमें ग्रीस के तत्कालीन सम्राट के भी चार चित्र बने हुए थे. सम्राट के ये चित्र संगमूसा और संगमरमर पत्थरों के मेल से बनाये गये थे.
पूरा मंदिर सफेद संगमरमर के पत्थर का बना हुआ था. मन्दिर के सामने वाले स्थान की लम्बाई-चौड़ाई 240 फीट है मन्दिर में 120 स्तम्भ थे और इन्ही स्तम्भो पर मंदिर की छत टिकी हुई थी. अब इस मंदिर के कुछ अवषेष मात्र बचे हुए हैं. मन्दिर के 120 स्तम्भों में से जिन पर मन्दिर की छत खडी थी, सोलह स्तम्भ आज भी खडे हुए हैं. इनमें से प्रत्येक स्तम्भ की लम्बाई चालीस हाथ ऊंची है.कलाकार फिडियस की कृतियों का अद्भुत नमूना आज भी ग्रीस का देखने को मिलेगा.
एथेन्स का मिनर्वा मंदिर
एथेन्स नगर मे उसका बनाया हुआ मिनर्वा मन्दिरआज भी फिडियस की कलाकारी का अद्भुत नमूना है. मिनर्वा ग्रीस निवासियो की देवी है. मिनर्वा देवी के इस मन्दिर को बनाने मे फिडियस ने अपनी कला का अद्भुत चमत्कार दिखाया है. कलाकार फिडियस ने मन्दिर के द्वार पर मिनर्वा देवी के जन्म की पूरी कथा अंकित कर रखी है. मिनर्वा देवी की जो मूर्ति फिडियस ने बनाई थी, वह मूर्ति भी आज विद्यमान नही है. विद्वानो का कहना है कि सम्राट पैरिक्लियस की मृत्यु के सवा सौ वर्ष बाद उस मूर्ति को लोगो न तोड़ दिया.
मूर्ति के सम्बन्ध में विद्वानों का मत है कि उसका मूल्य लगभग 20 लाख रूपये होगा. वह मूर्ति 25 हाथ ऊंची थी तथा सोने एवं हाथी दांत से बनाई गई थी. इस मन्दिर के बनवाने में भी सम्राट पैरिक्लियस ने अपार धन व्यय किया था.
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