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होली के उत्सव और गीत

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होली एक ऐसा त्योहार है, जो पूरी दुनिया में भारत का प्रतिनिधित्व करता है। इस रंगों के त्यौहार का उत्सव मनाने पूरी दुनिया से सैलानी भारत आते हैं और भारतीयता के रंग में अपने आप को सराबोर कर लेते हैं। भारत भर में यह त्यौहार अपने रंगों की तरह ही कई तरीको से मनाया जाता है। बरसाने की लट्ठमार होली, बृज की होली, ब्यावर के बादशाह की होली और जयपुर के गोविन्द देव जी में होली दुनिया भर में प्रसिद्ध है।

होली अपने रंगों के साथ ही गीतों के लिए भी जानी जाती है। भारत का हिंदी सिनेमा तो होली के गीतों के बिना अधुरा है। हिंदी सिनेमा अपने आरंभिक दौर से ही होली के गीतों को बनाता बुनता रहा है।

नवरंग का गीत अरे जा रे हट नटखट हो या फिर हाल ही में आई बलम पिचकारी गीत, ने हिंदी सिनेमा को समृद्ध ही किया है। लोकगीतों में भी इस उत्सव का विशेष स्थान है। उत्तर प्रदेश और बिहार में फाग गाए जाते हैं जो मस्ती और आनंद का संचार करते हैं तो राजस्थान के बीकानेर में रम्मतों की परम्परा है जो सुंदर और अश्लील दोनों का सम्मिश्रण कहे जा सकते हैं। यहां हम भारत में मशहूर होली के उत्सवों का विवरण दे रहे हैं। साथ ही कुछ लोकगीतों की भी बात की जाएगी।

ब्रज  उत्सव

राजस्थान में ब्रज उत्सव हर साल फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष में दो दिनों के लिए आयोजित किया जाता है, होली से पहले यह त्योहार शुरु हो जाता है. यह त्योहार राधा और कृष्ण के निर्बाध प्रेम का भी प्रतिरूप कराता है. बृज  मुख्यत: राधा कृष्ण की रासलीला पर आधारित  नृत्य होता है. राजस्थान के भरतपुर जिले में ये त्योहार धूम-धाम से मनाया जाता है.

लठमार होली

ब्रज के बरसाना गाँव में एक अलग होली खेली जाती है, इसे  लठमार होली कहते हैं. ब्रज की होली ख़ास होती है क्योंकि इसे कृष्ण और राधा के प्रेम से जोड़ कर देखा जाता है .यहाँ की होली में नंदगाँव के पुरुष और बरसाने की महिलाएं भाग लेती हैं क्योंकि कृष्ण नंदगांव के थे और राधा बरसाने की थीं.

नंदगाँव की टोलियाँ जब पिचकारियाँ लिए बरसाना पहुँचती हैं तो उन पर बरसाने की महिलाएँ खूब लाठियाँ बरसाती हैं. पुरुषों को इन लाठियों से बचना होता है और साथ ही महिलाओं को रंगों से भिगोना होता है.

जयपुर के गोविन्द देव जी में होली की मस्ती

जयपुर के अराध्य देव गोविन्द देव जी मंदिर में होली के अवसर पर  विशेष आयोजन होता है. मंदिर प्रांगण में होली के एक सप्ताह पूर्व ही कार्यक्रम  शुरु हो जाते है सही मायने में गोविंद के दरबार की होली न केवल देखने लाइक बल्कि भक्ति रस का वो समुद्र है.

जहां जात-पात से कही ऊपर उठ कर कलाकार गोविंद के चरणों में अपनी हाजरी लगाते है. बरसों से परवीन मिर्जा, रूप सिंह शेखावत और गुलाबो जैसे अनेक विश्व प्रसिद्ध कलाकार अपनी कला से ठाकुर जी को रिझाते हैं. मंदिर में भव्य रंग उत्सव मनाया जाता है.जहां भगवान और भगत दोनों ही रंगों में रंग होते है और भगत गाते है ‘हाथी, घोड़ा, पालकी, जय कन्हैया लाल की’.

होली के फाग

होली का त्योहार के पहले से ही फाग उत्सव शुरु कर देते  हैं. फाग में चंग और स्थानीय लोक वाद्य यंत्रों के साथ समूह में पारंपरिक गीत गाये जाते हैं. विशेषतः राजस्थान और उतरप्रदेश के मथुरा के साथ ही बरसाने में गाये जाने वाल लोक गीत (फाग) सुनने में बड़े ही मनमोहक होते हैं.

इसके साथ ही राजस्थान के ब्यावर में होली के अगले दिन निकलने वाली बादशाह की सवारी और कोड़ा मार होली पुष्कर की कपड़ाफाड़ होली, शेखावाटी में मनाया जाने वाला गींदड़ उत्सव और फाग, उतर प्रदेश के मथुरा में सात जगह सात दिन तक चलने वाला होली उत्सव, रोहतक ,पंजाब,ओडिशा का ढोला जत्रा, बंगाल का बसंतो उत्सव के साथ ही देश का  ऐसा कोई राज्य नहीं है जहां होली का धमाल ना हो.

भारत के अलावा बांग्लादेश, पाकिस्तान, मलेशिया, यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका, कनाडा और नेपाल की होली भी काफी खास होती है.

फाग गीत लिरिक्स

1- सजनी हो मन मोर मनावै बसन्त न आवै। (टेक)
फूलै फूल फरे जनि तरूवर राग फाग कोउ गावै,
रहत उदास मोर मन दिन भर छिनहूं नहि धीरे धरावै।
अम्बा मउर कूच महुआ मंह कोइलि कुहुक मचावै,
दखिन बयारि बहत जिय जारत पीतम मोहिं ओ दरसावै।

2- आज बिरज में होरी रे रसिया
होरी तो होरी बरजोरी रे रसिया
उड़त अबीर गुलाल कुमकुमा
केशर की पिचकारी रे रसिया
आज बिरज में होरी रे रसिया
उतते ग्वाल बाल सब आवत,
इत वृषभान दुलारी रे रसिया।
आज बिरज में होरी रे रसिया
बाजत बीन मृदंग पखावज,
गावत दे दे तारी रे रसिया।
आज बिरज में होरी रे रसिया
श्याम श्यामली खेलें होरी,
अद्भुत रूप तिहारों रे रसिया।
आज बिरज में होरी रे रसिया
अपने अफने घर से निकली
कोई गोरी कोई कारी रे रसिया
आज बिरज में होरी रे रसिया

3- मथुरा की कुंज गलिन में
होरी खेल रहे नंदलाल

मोहे भर पिचकारी मारी
साड़ी की आब उतारी

झूमर को कर दियो नाश
मथुरा की कुंज गलिन में
होरी खेल रहे नंदलाल

मोरे सिर पर धरी कमोरी,
मोसे बहुत करी बरजोरी
मोरे मुख पर मलो गुलाल
मथुरा की कुंज गलिन में
होली खेल रहे नंदलाल

होलिका की कहानी What is the story of Holi festival?

एक समय अत्याचारी राक्षसराज हिरण्यकश्यप ने तपस्या करके ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त कर लिया कि संसार का कोई भी जीव, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य उसे नहीं मार सके. यहां तक कि कोई शस्त्र  भी उसे न मार पाए.

ऐसा वरदान पाकर वह अत्यंत निरंकुश बन बैठा. हिरण्यकश्यप के यहां प्रहलाद जैसा परमात्मा में विश्वास करने वाला भक्त पुत्र पैदा हुआ. प्रहलाद  भगवान विष्णु का परम भक्त था और उस पर भगवान विष्णु की पूर्ण कृपा थी.

हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को आदेश दिया कि वह उसके अतिरिक्त किसी अन्य की स्तुति न करे. प्रहलाद के न मानने पर हिरण्यकश्यप उसे जान से मारने पर उतारू हो गया. हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मारने के अनेक  उपाय किए लेकिन वह  भगवान विष्णु की  प्रभु-कृपा से बचता रहा.

हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को अग्नि से बचने का वरदान था. हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका की सहायता से प्रहलाद को आग में जलाकर मारने की योजना बनाई.

होलिका बालक प्रहलाद को गोद में उठा जलाकर मारने के उद्देश्य से आग में बैठ गयी. प्रभु-कृपा से होलिका जल कर वहीं भस्म हो गई और प्रहलाद का बाल भी बाँका न हुआ  इस तरह प्रहलाद को मारने के प्रयास में  होलिका की मृत्यु हो गई तभी से होली  का त्योहार मनाया जाने लगा.

कुछ समय बाद हिरण्यकश्यप को मारने के लिए भगवान विष्णु नरसिंह अवतार में खंभे से निकले  और दरवाजे की चौखट पर बैठकर अत्याचारी हिरण्यकश्यप को मार डाला.

होली के पकवान What do you eat on Holi?

होली के दिन पकवान बनाने का रिवाज है और इस दिन घरों में गुंझिया, नमकीन, मालपुए और पकौड़े विशेष रूप से बनाए जाते हैं. कई लोग इस दिन घरों में अपने रिश्तेदारों को शाम को भोजन पर आमंत्रित भी करते हैं.

शाम के भोजन पर चावल, कड़ी और दही बड़े प्रमुखता से बनाए जाते हैं. होली में ठण्डाई पीने और पिलाने का प्रचलन बहुत प्रसिद्ध है और भांग की ठण्डाई का भी उपयोग किया जाता है. भांग को पीसकर ठण्डाई के शरबत में मिलाकर उपयोग में लाया जाता है.

इको फ्रेंडली होली अपनाएं How we can make Holi festival Eco friendly?

होली में रंग और पानी का उपयोग किया जाता है. पुराने समय में होली खेलने के लिए प्रयोग किये जाने वाले रंग पूरी तरह प्राकृतिक होते थे जो त्वचा के लिए फायदेमंद होते थे.

इसी तरह गुलाल में भी प्राकृतिक चीजों का ही इस्तेमाल किया जाता था लेकिन समय के साथ बाजार में रासायनिक रंगों की बहुतायत हो गई जो त्वचा के बहुत खतरनाक है. हमें जहां तक संभव हो सके होली खेलने के लिए इको फ्रेंडली कलर्स का उपयोग करना चाहिए जो बाजार में आसानी से उपलब्ध है.

आप चाहे तो रंग घर में भी बना सकते हैं. पीला गुलाल बनाने के लिए अरारोट के आटे में हल्दी मिलाई जा सकती है. लाल गुलाल के लिए टेसू के फूल के रस को अरारोट में मिलाकर उपयोग में लिया जा सकता है.

साथ ही पानी का प्रयोग कम करना चाहिए क्योंकि पानी व्य​र्थ करने से हम आखिर में इस सीमित संसाधन का गलत दोहन ही करते हैं. इसलिए होली को ज्यादा से ज्यादा इको फ्रेंडली बनाइए और रंगों के उत्सव का आनंद उठाइए.

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