दलाई लामा एक बौद्ध आध्यात्मिक गुरु हैं और तिब्बत के सर्वोच्च राजनीतिक और धार्मिक नेता है. फिलहाल वे भारत के धर्मशाला में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं.
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Short Biography of Dalai Lama दलाई लामा संक्षिप्त जीवनी
दलाई लामा का जन्म 6 जुलाई, 1935 को तेकस्तर (तिब्बत) में हुआ था. 15 वर्ष की उम्र में वे दलाई लामा के रूप में तिब्बत की राजनीतिक सत्ता के प्रमुख बने. इसी वर्ष चीन ने तिब्बत पर आक्रमण कर दिया.
जिसके बाद दलाई लामा अपने हजारों अनुयायियों के साथ भारत में हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला आ गया. यहां उन्होंने तिब्बत की निर्वासित सरकार की स्थापना की. इसके बाद से Dalai Lama ने तिब्बत की स्वायत्तता के लिए अनेक प्रयास किए हैं.
हालांकि, चीन की सरकार ने निर्वासित तिब्बत सरकार के साथ समझौता करने की कोई मंशा आज तक प्रकट नहीं की है. वे भारत में धर्मशाला स्थित तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रमुख हैं. तिब्बती लोग उन्हें पूर्व के दलाई लामाओं का अवतार मानते हैं. Dalai Lama अपने मानवतावादी कार्यों के लिए भी जाने जाते हैं. उन्हें 1989 में नोबल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया.
Early life of Dalai Lama दलाई लामा प्रारम्भिक जीवन
दलाई लामा का जन्म 6 जुलाई 1935 को उत्तर पूर्व तिब्बत के तेकस्तर में एक किसान परिवार में हुआ था. दलाई लामा अपने 16 भाई-बहनों में पांचवें थे. 13वें दलाई लामा थुबतेन ग्यातसो के उत्तराधिकारी के लिए कई महीनों तक चली खोज कई आध्यात्मिक प्रतीकों की पहचान के बाद दो वर्ष के बालक ल्हामों थोंडप के रूप में पूरी हुई. बालक ल्हामो का नामकरण तेन्जिन ग्यातसो के रूप में किया गया और उन्हें 14वां दलाई लामा घोषित किया गया.
Dalai Lama को बौद्ध धर्म में अवलोकितेस्वर का अवतार माना जाता है और उन्हें करुणा का प्रतीक माना जाता है. वे ऐसे महापुरुष माने जाते हैं जिन्होंने मानवता के कल्याण के लिए परलोक का जीवन त्यागकर पुनः पृथ्वी पर जन्म लेने स्वीकार किया है.
दलाई मंगोलियन भाषा का शब्द है जिसका शब्द आर्थिक है समुद्र. इसी प्रकार ग्यात्सो तिब्बती भाषा का शब्द है, इसका भी शाब्दिक अर्थ समुद्र है. लामा शब्द का अर्थ गुरु होता है. इस तरह Dalai Lama का शाब्दिक अर्थ हुआ ऐसा गुरु जो ज्ञान का समुद्र है.
Teachings of Buddhism बौद्ध धर्म की शिक्षा
बौद्ध धर्म ईसा पूर्व छठी शताब्दी में भगवान बुद्ध ने प्रारम्भ किया. यह दुनिया के सबसे प्राचीनतम धर्मों में से एक है. भारत से शुरू हुए इस धर्म का पूर्व और दक्षिण एशिया में तेजी से प्रचार-प्रसार हुआ. तिब्बत में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार 8वीं शताब्दी में हुआ.
बौद्ध धर्म के अनुसार आर्यसत्य चार हैं-. पहला, इस संसार मेंदुख है. दूसरा, दुख के कारण हैं. तीसरा दुख के निवारण हैं और चौथा दुखों का निवारण अष्टांगिक मार्ग पर चलकर किया जा सकता है. अष्टांगिक मार्ग हैं-सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वाक, सम्यक कर्म, सम्यक जीविका, सम्यक प्रयास, सम्यक स्मृति एवं सम्यक समाधि.
आर्य सत्यों में मानव के अस्तित्व, जीवन, मृत्यु और स्व के बारे में अनेक शिक्षाएं समाहित हैं. अन्य धर्मों में जहां ईश्वर पर विश्वास को प्रमुखता दी गई है जबकि बौद्ध धर्म में सत्य की खोज करने, उसे समझने और उसे अपने अनुभवों की कसौटी पर कसने को महत्व दिया गया है.
बौद्ध धर्म के अनुसार मनुष्य का पुनर्जन्म होता है किन्तु वह इस जीवन में उस मनुष्य के अपने कर्म पर निर्भर है. जिस तरह एक दीपक से दूसरा दीपक प्रकाशित होता है, उसी तरह किसी एक व्यक्ति की चेतना दूसरे व्यक्ति की चेतना में समाहित हो सकती है.
Making of The Dalai Lama दलाई लामा बनने की यात्रा
तेन्जिन ने अपनी धार्मिक शिक्षा 6 वर्ष की आयु में शुरू कर दी थी. उन्होंने तर्क, तिब्बती कला एवं संस्कृति, संस्कृत, चिकित्सा एवं बौद्ध दर्शन की शिक्षा प्राप्त की. बौद्ध दर्शन में उन्होंने तर्कशक्ति, बुद्धि, भिक्षु अनुशासन, तत्व मीमांसा, ज्ञान मीमांसा की शिक्षा ली.
11 वर्ष की आयु में तेनजिन की मुलाकात हेनरिक हैरर नाम के ऑस्ट्रियन पर्वतारोही से हुई, जिसने उन्हें बाहरी दुनिया की शिक्षा से अवगत कराया. वर्ष 2006 में हैरर की मृत्यु तक दलाई लामा की उनसे मित्रता रही.
वर्ष 1950 में 15 वर्ष की आयु में दलाई लामा के रूप में तेनजिन ने तिब्बत की पूर्ण राजनीतिक सत्ता की जिम्मेदारी संभाली. हालांकि, उनकी सत्ता बहुत कम समय ही चल सकी. अक्टूबर 1950 में चीन ने तिब्बत पर आक्रमण कर दिया. 1954 में दलाई लामा माओ त्सेतुंग से शांति वार्ता के लिए बीजिंग गए.
चीनी सैनिकों की प्रताड़ना से तंग आकर 1959 में तिब्बत में विद्रोह हुआ. दलाई लामा और उनके साथियों का मानना है कि चीन सरकार की तैयारी थी कि दलाई लामा की हत्या कर इस विद्रोह को कुचल दिया जाए.
इससे बचने के लिए दलाई लामा अपने हजारो अनुयायियों के साथ हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला आ गए, जहां उन्होंने तिब्बत की निर्वासित सरकार की स्थापना की. उस वक्त चीन सरकार का मानना था कि दलाई लामा एक धार्मिक आन्दोलन के प्रतीक हैं.
जिसके लिए कम्युनिस्ट विचारधारा में कोई स्थान नहीं है. चीन सरकार उन्हें तिब्बत की स्वायत्तता का समर्थक एक अलगाववादी मानती है . चीन सरकार उन्हें तिब्बत में हुए विद्रोह के लिए जिम्मेदार भी मानती है.
Dalai Lama Conflicts With China दलाई लामा के चीन के साथ मतभेद
Dalai Lama ने तिब्बत की स्वायत्ता के लिए अब तक अनेक प्रयास किए हैं. 1963 में उन्होंने तिब्बत के संविधान का प्रारूप जारी किया जिसमें तिब्बत सरकार के लोकतंत्रीकरण सहित अनेक सुधारों को सम्मिलित किया गया था. इस संविधान को निर्वासित तिब्बतियों का चार्टर कहा जाता है.
सितम्बर 1987 में दलाई लामा ने चीन सरकार के साथ समझौते और वहां अशांति की स्थिति खत्म करने के लिए तिब्बत के लिए पांच बिंदु का शांति प्रस्ताव तैयार किया. 15 जून, 988 को उन्होंने स्ट्रासबोर्ग (फ्रांस) में अमरीकी संसद के सदस्यों को सम्बोधित किया, जिसमें उन्होंने चीन सरकार के साथ बातचीत का प्रस्ताव दिया और चीन के अंदर ही तिब्बत स्वायत्तशासी लोकतांत्रिक राजनीतिक क्षेत्र की मांग की. इसमें तिब्बत की विदेश नीति और रक्षा को चीन के नियंत्रण में रखा गया था. इन दोनों को छोड़कर अन्य मामलों को तिब्बत सरकार के अधीन रखा गया था.
तिब्बत की निर्वासित सरकार ने स्ट्रासबोर्ग प्रस्ताव के प्रति चीन के नकारात्मक रुख को देखते हुए वर्ष 1991 में इसे अवैधानिक करार दे दिया.
दलाई लामा के मानवतावादी कार्य Humanitarian Work of Dalai Lama
दलाई लामा तिब्बती बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक नेता हैं. बोधिसत्व की परम्परा का अनुसरण करते हुए उन्होंने अपना जीवन मानवता की सेवा को समर्पित किया है. उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखी हैं और ज्ञान, करुणा, पर्यावरण संतुलन सहित विभिन्न विषयों पर अनेक कांफ्रेंस, व्याख्यान और कार्यशालाओं को सम्बोधित किया है. दलाई लामा ने अमेरिका, रूस सहित यूरोप, एशिया और लैटिन अमेरिका के कई देशों की यात्रा की है.
दलाई लामा को तिब्बत की मुक्ति के अहिंसक प्रयासों और पर्यावरण समस्याओं को दूर करने के प्रयासों के लिए वर्ष 1989 में नोबल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया.
10 मार्च 2011 को तिब्बत से निर्वासन की 52वीं वर्षगांठ पर उन्होंने तिब्बत की निर्वासित सरकार के राजीनितक प्रमुख की अपनी जिम्मेदारी किसी निर्वाचित नेता को सौंपने की इच्छा प्रकट की.
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