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Katyayani Mata navratri pooja vidhi-माँ कात्यायनी

Katyayani Mata navratri pooja vidhi-माँ कात्यायनी

माँ कात्यायनी की पूजा विधि- Katyayani Mata Pooja vidhi

दुर्गापूजा के छठवें दिन मां कात्यायनी की उपासना की जाती है. उस दिन साधक का मन ‘आज्ञा’ चक्र में स्थित होता है. योगसाधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है. इस चक्र में स्थित मन वाला साधक मां कात्यायनी के चरणों में अपना सर्वस्व निवेदित कर देता है. इनका स्वरूप अत्यन्त ही भव्य और दिव्य है.

इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला और भास्वर है. इनकी चार भुजाएं हैं. माताजी का दाहिनी तरफ के दो हाथों में से एक हाथ अभयमुद्रा में है तथा दूसरा वरमुद्रा में है. बायीं तरफ के एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में कमल-पुष्प सुशेभित है. इनका वाहन भी सिंह है.

मां कात्यायनी का मंत्र – katyayani mantra

चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना.
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी.

मां कात्यायनी बीज मंत्र – katyayani beej mantra

ॐ ह्रीं नम:।

मां कात्यायनी जाप मंत्र katyayani devi mantra

ॐ देवी कात्यायन्यै नमः।

जो उपासक कुण्डलिनी जाग्रत करने की इच्छा से देवी अराधना में समर्पित हैं, उन्हें दुर्गा पूजा के छठे दिन माँ कात्यायनी katyayani devi जी की सभी प्रकार से विधिवत पूजा अर्चना जरूर करनी चाहिए और फिर मन को आज्ञा चक्र में स्थापित करने हेतु मां का आशीर्वाद लेकर साधना में बैठना चाहिए. माँ कात्यायनी की भक्ति से मनुष्य को अर्थ, कर्म, काम, मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है.

मां कात्यायनी की पूजा विधि

इस दिन सबसे पहले कलश और उसमें उपस्थित देवी देवता की पूजा करें फिर माता के परिवार में शामिल देवी देवता की पूजा करें जो देवी की प्रतिमा के दोनों तरफ विराजमान हैं. इनकी पूजा के पश्चात ही देवी कात्यायनी जी की पूजा की जाती है. पूजा की विधि शुरू करने पर हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर देवी के मंत्र से ध्यान किया जाता है

परिपूर्ण आत्मदान करने वाले ऐसे भक्त को सहज भाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं. मां कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होे जाती हैै. वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है.

मां कात्यायनी की पूजा के लाभ

उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं. जन्म-जन्मान्तर के पापों को विनष्ट करने के लिये मां की उपासना से अधिक सुगम और सरल मार्ग दूसरा नहीं है. इनका उपासक निरन्तर इनके सान्निध्य में रहकर परमपद का अधिकारी बन जाता हैै. अतः हमें सर्वतोभावेन मां के शरणागत होकर उनकी पूजा-उपासना के लिये तत्पर होना चाहिये.

मां कात्यायनी की कथा

मां दुर्गा के छठवें रूप का नाम कात्यायनी है. इनका कात्यायनी नाम इस प्रकार पड़ा.- कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि थे. उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए. इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए. इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे.

इन्होंने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी. उनकी इच्छा थी कि मां भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें. और फिर मां भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली थी.

कुछ काल पश्चात् महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बहुत बढ़ गया तब भगवान् ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिये एक देवी को उत्पन्न किया. महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की. इसी कारण से यह कात्यायनी कहलायीं.

ऐसी भी कथा मिलती है कि ये महर्षि कात्यायन के वहां पुत्रीरूप से उत्पन्न भी हुईं थीं. आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्ल सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी को तीन दिन- इन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी को महिषासुर का वध किया था.

मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं. भगवान कृष्ण को पतिरूप में पाने के लिये ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा कालिन्दी-यमुना के तटपर की थी. ये ब्रजमंडल अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं.

मां कात्यायनी की आरती

जय कात्यायनि माँ, मैया जय कात्यायनि माँ।
उपमा रहित भवानी, दूँ किसकी उपमा॥ मैया जय कात्यायनि….

गिरजापति शिव का तप, असुर रम्भ कीन्हाँ।
वर-फल जन्म रम्भ गृह, महिषासुर लीन्हाँ॥ मैया जय कात्यायनि….

कर शशांक-शेखर तप, महिषासुर भारी। शासन कियो सुरन पर, बन अत्याचारी॥
मैया जय कात्यायनि…. त्रिनयन ब्रह्म शचीपति, पहुँचे, अच्युत गृह।

महिषासुर बध हेतू, सुर कीन्हौं आग्रह॥ मैया जय कात्यायनि….
सुन पुकार देवन मुख, तेज हुआ मुखरित।

जन्म लियो कात्यायनि, सुर-नर-मुनि के हित॥ मैया जय कात्यायनि….
अश्विन कृष्ण-चौथ पर, प्रकटी भवभामिनि। पूजे ऋषि कात्यायन, नाम काऽऽत्यायिनि॥

मैया जय कात्यायनि…. अश्विन शुक्ल-दशी को, महिषासुर मारा।

नाम पड़ा रणचण्डी, मरणलोक न्यारा॥ मैया जय कात्यायनि….
दूजे कल्प संहारा, रूप भद्रकाली। तीजे कल्प में दुर्गा, मारा बलशाली॥

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मैया जय कात्यायनि…. दीन्हौं पद पार्षद निज, जगतजननि माया।

देवी सँग महिषासुर, रूप बहुत भाया॥ मैया जय कात्यायनि….
उमा रमा ब्रह्माणी, सीता श्रीराधा। तुम सुर-मुनि मन-मोहनि, हरिये भव-बाधा॥

मैया जय कात्यायनि…. जयति मङ्गला काली, आद्या भवमोचनि।

सत्यानन्दस्वरूपणि, महिषासुर-मर्दनि॥ मैया जय कात्यायनि….
जय-जय अग्निज्वाला, साध्वी भवप्रीता।

करो हरण दुःख मेरे, भव्या सुपुनीता॥ मैया जय कात्यायनि….
अघहारिणि भवतारिणि, चरण-शरण दीजै।

हृदय-निवासिनि दुर्गा, कृपा-दृष्टि कीजै॥ मैया जय कात्यायनि….
ब्रह्मा अक्षर शिवजी, तुमको नित ध्यावै।

करत ‘अशोक’ नीराजन, वाञ्छितफल पावै॥ मैया जय कात्यायनि….

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