History of Money in hindi- मुद्रा का इतिहास

पैसे का सफरः कौड़ी से बिटकॉइन तक

मुद्रा का इतिहास या रूपये का चलन कब से शुरू हुआ। यह वास्तव में एक रोचक सवाल है। पैसे का सफर मानव इतिहास के सबसे रोमांचक यात्राओं में से एक है। आदमी ने वस्तु विनिमय के माध्यम से पहले पहल यह सीखा कि कैसे एक जरूरी चीज को पाने के लिए आपको अपनी दूसरी जरूरी वस्तुओं को देना होता है।

वस्तुओं को आदान-प्रदान वह आदिम परम्परा है जो मुद्रा या करेंसी के विचार का बीज बने। इसी ने मानव को एक ऐसी प्रणाली विकसित करने का आधार दिया जिसपर आज का आधुनिक करेंसी सिस्टम टिका हुआ है।

मुद्रा के पहले साक्ष्य कब मिलते हैं?

मुद्रा के पहले साक्ष्य करीब 1200 ईसापूर्व से मिलने शुरू हो जाते हैं। उस दौर में मनुष्य ने न तो कागज का आविष्कार किया था और न ही उसे धातु का उपयोग करके मुद्रा को ढालना आता था।

ऐसे में उसने प्रकृति द्वारा दी गई चीजों को ही अपनी मुद्रा का आधार बनाया। उस समय समुद्र की एक विशेष सीपी जिसे कौड़ी कहा जाता है को पहले पहल मुद्रा के तौर पर उपयोग में लाया गया क्योंकि यह एक ही साइज में उपलब्ध होती थी और इन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना आसान होता था।

कौड़ियों के भाव बिकना, दो कौड़ी का आदमी और कौड़ी-कौड़ी को मोहताज होना जैसी कहावते भी इसी ओर इशारा करती है कि कौड़ी का उपयोग मुद्रा के तौर पर होता था।

भारत के अलावा युरोप में भी इस बात के साक्ष्य मिले हैं कि कौड़ी का उपयोग मुद्रा के तौर पर होता था। फिजी में ह्वेल के दांत को भी मुद्रा के तौर पर उपयोग में लाने के साक्ष्य मिले हैं।

येप द्वीप जो अब माइक्रोनेशिया का हिस्सा है वहां लाइम स्टोन को तराश कर बनाई गई तश्तरीनुमा आकृतियों का मुद्रा के तौर पर उपयोग करते थे। आज भी वहां इन सिक्कों को संस्कृति का हिस्सा माना जाता है।

जाली मुद्रा की खोज

हर प्रणाली को कमियों को पहचान का उनका लाभ उठाने की परिपाटी पूरी दुनिया में पाई जाती है और मुद्रा भी इससे अछूती नहीं रही। प्राचीन काल से ही जाली मुद्रा का उपयोग होने लगा था।

इसके पहले पुख्ता साक्ष्य चौदहवीं शताब्दी से मिलने लगते हैं जब चीन और ब्रिटेन में जाली मुद्रा के उपयोग की वजह से लोगों को मृत्युदण्ड तक दिया जाने लगा था। बेन फ्रेंकलिन जिनके पास ब्रिटेन की करेंसी छापने का काम था उन्होंन जानबूझकर अपनी नोटो पर पेनिनसिल्वेनिया की स्पेलिंग गलत की ताकि इसका जाली संस्करण छापने वाले इस नाम को सही करके छापे और पकड़े जाएं।

भारत में जाली नोटों को चलन से बाहर करने के लिए नोटबंदी जैसे उपाय अपनाए गए। पूरी दुनिया में जाली करेंसी को छापने और उपयोग करने के लिए कड़ी सजा का प्रावधान है। अमेरिका में इसके लिए 20 साल तक की सजा सुना दी जाती है।

पहली बार कब ढाले गए सिक्के?

धातु की मुद्रा के उपयोग के प्रारंभिक साक्ष्य वैसे तो बेबीलोन में करीब 2000 ईसा पूर्व मिलने शुरू हो जाते है लेकिन सर्टिफाइड और एक शैली के सिक्के 7वीं शताब्दी ईसापूर्व से मिलने शुरू होते हैं। इस तरह के सिक्कों के सबसे पहले साक्ष्य तुर्की में मिले है, उसे समय तुर्की को लिडिया के नाम से जाना जाता था।

राजा एलाइटस ने पहली बार सोने और चांदी के मिश्रण का उपयोग करके सिक्के को ढाला जिसे इलेक्ट्रम नाम दिया गया। इन सिक्कों पर राजसी चिन्ह शेर का उपयोग किया गया है। एलाइटस के बेटे क्रोसिस ने चांदी और सोने के सिक्के अलग से चलाए। इसके बाद सिक्के आम प्रचलन में आ गए और उन्हें सबजगह मुद्रित किया जाने लगा।

चमड़े के सिक्के

मुद्रा के इतिहास में एक समय ऐसा भी आया जब इसे चमड़े पर मुद्रित किया जाने लगा। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह चमड़े का सुलभ होना था। धातु को ढालने का काम काफी खर्चीला और मुश्किल था।

ऐसे में ऐसे विकल्पों की तलाश की जाने लगी जिन्हें मुद्रा के तौर पर उपयोग में लाया जा सके और उन्हें मुद्रित करना आसान हो। उस समय कागज का आविष्कार नहीं हुआ था। ऐसे में चमड़ा ऐसी चीज थी जिसका उपयोग मुद्रा के तौर पर होने लगा।

रोमनो ने सबसे पहले चमड़े के सिक्के ढाले। रूस के राजा पीटर द ग्रेट ने भी चमड़े के सिक्कों का उपयोग किया। भारत में मुहम्मद बिन तुगलक ने चमड़े के सिक्कों का उपयोग किया।

कागज के नोट या वर्तमान करेंसी कब से उपयोग में लाई गई?

ऐसा माना जाता है कि कागज का आविष्कार सबसे पहले चीन में ही हुआ। इसलिए यह भी मान लेना चाहिए कि पेपर करेंसी या कागज को नोटों का प्रचलन भी सबसे पहले वहीं से शुरू हुआ।

झेनझोंग साम्राज्य जिसने दसवीं शताब्दी में चीन में राज किया सबसे पहले करेंसी नोटों की शुरूआत की। इस नए प्रचलन में इस पर एक वादा मुद्रित किया जाता था या नोट डाला जाता था कि इसके बदले सोने की या चांदी की मुद्राओं को लिया जा सकता है।

कागज हल्का होता था और इसे लेकर सफर करना आसान होता था। ऐसे में कागज के प्रॉमिसिरी नोट तेजी से प्रचलन में आए और धातू की मुद्रा को उन्होंने चलन से बाहर कर दिया।

प्लास्टिक मनी का विकास

कागज के नोट के साथ ही एक और संस्था ने विकास किया जिन्हें हम बैंक कहते हैं। इन बैंकों ने इन कागज के नोटों की सुरक्षा और अपना धन वहां जमा करवाने पर एक निश्चित लाभ राशि देने का व्यवसाय शुरू किया।

इन संस्थाओं को समय के साथ एक समस्या आने लगी जब बैंक लूटे जाने लगे और लोगों से कागज की मुद्रा छीनी जाने लगी। ऐसे में सबसे बड़ी परेशानी यह थी कि नोट पर किसी व्यक्ति विशेष का स्वामित्व तय नहीं किया जा सकता था।

इस समस्या से निजात पाने के लिए एक ऐसी मुद्रा का चलन शुरू किया गया जिसका उपयोग उस व्यक्ति विशेष की मर्जी के बगैर नहीं हो सकता था। क्रेडिट या डेबिट कार्ड इसी जरूरत को पूरा करते थे।

अमेरिका के रहने वाले राल्फ श्नाइडर और फ्रेंक मैकनमारा ने एक डाइनर्स क्लब की स्थापना की। वहां पैसे जमा करवा कर एक कार्ड की मदद से उन्हें इस्तेमाल किया जा सकता था।

1959 में अमेरिकन एक्सप्रेस ने पहली बार प्लास्टिक कार्ड को इंट्रोड्यूस किया। इसके बाद आईबीएम ने 1960 में इस कार्ड में मैग्नेटिक स्ट्रिप को जोड़ दिया। 1990 से इन कार्ड्स में माइक्रो चिप आने लगी।

डेबिट और क्रेडिट कार्ड ने करेंसी के विनिमय को ज्यादा सुरक्षित और आसान बना दिया लेकिन समय के साथ इनकी कमियां भी सामने आने लगी। क्रेडिट कार्ड फ्रॉड और हैकिंग के चलते इस माध्यम में भी कई समस्याओं से सिर उठाना शुरू कर दिया। इससे निजात दिलाने में डिजिटल करेंसी ने बहुत प्रमुख भूमिका निभाई है।

मनी वॉलेट

सूचना क्रांति ने मोबाइल को आम आदमी का डिवाइस बना दिया और इस डिवाइस की वजह से डिजिटल मनी का सपना साकार हुआ। आज हम पेटीएम, फोनपे और इसी तरह के सैकड़ो एप्स की मदद से अपनी करेंसी का भुगतान करते हैं और अपने खाते में पैसे मंगाते हैं।

इस प्रक्रिया में फिजिकल मनी या कागज की मुद्रा की जगह सिर्फ एक आंकड़े का परिवर्तन होता है। इस नई क्रांति ने डिजिटल मुद्रा का मार्ग प्रशस्त किया है जो अभी बिटकाइन, जैसी भविष्य की मुद्रा का आधार बनेगी।

बिटकाइन्स

बिटकाइन एक डिजिटल करेन्सी है जिसकी शुरूआत प्रोग्रामर्स के एक समूह जिन्हें सतोषी नाकामोटो कहा जाता है ने 2009 में की थी। फिलहाल यह करेंसी किसी देश के सेंट्रल बैंक द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है और भारत सहित कई देशों ने इसके उपयोग पर पाबन्दी लगा रखी है। अब तक 17 मिलियन से ज्यादा बिटकॉइन करेंसी बनाई जा चुकी है और तमाम पाबंदियों के बावजूद यही मुद्रा का भविष्य होगी।

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