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कौन थे चरक और कैसे लिखी गई चरकसंहिता?
चरक संहिता लिखने वाले चरक को आयुर्वेद का जनक माना जाता है. आयुर्वेद चिकित्सा के बारे में लिखी उनकी पुस्तक चरकसंहिता आज भी वैद्यों द्वारा पढ़ी जाने वाली सबसे सुलभ पुस्तक है. आयुर्वेद के पुराने ग्रंथो मे कहानियां मिलती हैं कि ब्रह्म ने आयुर्वेदशास्त्र का ज्ञान प्रजापति को बतलाया. प्रजापति से यह ज्ञान अश्विनी कुमारों ने सीखा.
अश्विनी कुमारों को देवताओं का वैद्य माना जाता है। वैदिक साहित्य में अश्विनी कुमारों ने सीखा. वैदिक साहित्य में अश्विनीकुमारों के चमत्कारिक इलाजो के बारे मे कई कथाएं मिलती हैं. अश्विनीकुमारो से यह ज्ञान इंद्र ने सीखा. इन्द्र आर्यों के सबसे बड़े देवता थे. इसके बाद आयुर्वेद के ग्रन्थो मे अलग-अलग कथाएं मिलती हैं. चरक-सहिता ग्रंथ मे आगे की कथा इस प्रकार है.
चरक संहिता में आयुर्वेद की कथा
एक समय ऐसा आया जब आर्यों के जीवन मे रोग विघ्न डालने लगे. इससे ऋषियो को चिंता होने लगी. इस सकंट पर विचार करने के लिए हिमालय की तराई बहुत-से ऋषियो का एक सम्मेलन हुआ. इन ऋषियो ने भरद्वाज को अपना नेता चुना और आयुर्वेद का ज्ञान प्राप्त करने के लिए भरद्वाज को इंद्र के पास भेजा गया. भरद्वाज इंद्र के पास गए. इंद्र ने भरद्वाज को आयुर्वेद का ज्ञान बतलाया. बाद मे भरद्वाज ने यह ज्ञान आन्नेय-पुनर्वसु को बताया.
आगे आन्नेय-पुनर्वसु ने यह ज्ञान अपने छह शिष्यो को बताया. ये छह शिष्य थे-अग्निवेष, भेल, जतूकर्ण, पराशर, हारीत और क्षारपाणि. बाद में इन शिष्यों ने अपने-अपने आयुर्वेद-ग्रंथ लिखे. इनमे अग्निवेष का ग्रंथ अधिक प्रसिद्ध हुआ. चरक-संहिता मे अग्निवेष ने आन्नेय के ज्ञान का ही संग्रह किया है.
इस आख्यान के अनुसार आयुर्वेद की परंपरा बहुत प्राचीन हैं. इनमे भरद्वाज, पुनर्वसु और अग्निवेष को हम ऐतिहासिक व्यक्ति मान सकते हैं. भगवान बुद्ध के समय मे मगध देश मे जीवक नाम के एक प्रसिद्ध वैद्य हुए. आयुर्वेद का अध्ययन करने के लिए वे तक्षशिला गए थे. वहां उन्होंने आचार्य आन्नेय के पास रहकर चिकित्साशास्त्र का अध्ययन किया था. आन्नेय-पुनर्वसु संभवत आज से लगभग ढाई हजार साल पहले हुए.
कैसे लिखी गई चरक संहिता?
‘चरक-संहिता’ आयुर्वेद शास्त्र का सबसे पुराना ग्रन्थ है. दरअसल, इस ग्रन्थ मे आन्नेय के ज्ञान का संग्रह किया गया है. चरक-संहिता के प्रत्येक अध्याय के आरम्भ मे लिखा हुआ मिलता है, ‘भगवान आन्नेय ने इस प्रकार कहा.’
कुछ अध्यायों के अंत में लिखा हुआ मिलता है कि ‘इस तंत्र यानी शास्त्र को आचार्य अग्निवेष ने तैयार किया, चरक ने इसका संपादन किया और दृढ़बल ने इसे पूरा किया.’ इस प्रकार हम देखते हैं कि आज ‘चरक-संहिता’ नाम का जो ग्रंथ मिलता है उसका ज्ञान मूलतः आन्नेय-पुनर्वसु के उपदेशों पर आधारित है. अग्निवेश ने इस ज्ञान को ग्रन्थ का रूप दिया, चरक ने इसमें संशोधन किया और बाद मे दृढ़बल ने इसमे नए अध्याय जोड़े.
यही वजह है कि चरक-संहिता लोग अब चरक की ही रचना मानते है. पर यह बात सही नहीं है. हमारे देश मे चरक नाम के अनके व्यक्ति हुए हैं. अग्निवेष का आयुर्वेद-ज्ञान उनकी शिष्य-परम्परा मे चलता रहा होगा.
ये शिष्य एक स्थान से दूसरे स्थान मे चलते रहकर रोगियो का इलाज करते होंगे. निरंतर चलते रहने के कारण ही इन ज्ञान को ‘चरक’ का नाम दिया गया होगा. यह भी संभव है कि चरक नाम के किसी वैद्य ने ही इस ज्ञान का संशोधन एवं संपादन किया हो.
चरक के जीवन के बारे में जानकारी
चरक कब हुए, कहां पैदा हुए, इसके बारे मे हमें कोई जानकारी नही मिलती. एक चीनी बौद्ध-गंथ में उल्लेख मिलता है कि चरक नाम के एक वैद्य राजा कनिष्क के दरबार मे रहते थे. कनिष्क का समय है ईसा की पहली शताब्दी. इसलिए हम मान सकते है कि ईसा की पहली शताब्दी मे चरक ने इस संहिता का संपादन किया होगा. चरक-संहिता उत्तर भारत मे ही रची गई है, क्योंकि इसमे उत्तर भारत के ही स्थानों के उल्लेख मिलते हैं.
असल मे हमे चरक-संहिता के बारे मे ही जानकारी प्राप्त करनी है. हमने यह भी देखा है कि यह ग्रंथ किसी एक वैज्ञानिक की रचना है. इसमे आन्नेय-पुनर्वसु, अग्निवेश, चरक और दृढ़बल के ज्ञान का समावेश हुआ है. दृढ़बल शायद कश्मीर के रहनेवाले थे और वे तीसरी या चौथी सदी मे हुए होंगे.
क्यों सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ है चरकसंहिता?
चरक-संहिता आयुर्वेदशास्त्र का सबसे प्राचीन ग्रंथ है. अरबी भाषा मे भी इस गंन्थ का अनुवाद हुआ था. ग्यारहवीं शताब्दी में मध्य-एशिया के प्रसिद्ध यात्री अलबरूनी लिखते हैं-‘हिंदुओं की एक पुस्तक है, जो चरकसंहिता के नाम से प्रसिद्ध है.
यह औषधि-विज्ञान की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक मानी जाती है. दंतकथा है कि द्वापर-युग मे अग्निवेष नाम के एक ऋषि हुए, पर बाद मे उन्हें चरक कहा जाने लगा.’ चरक-संहिता मे चीनी, यवन, पह्लव, शक, वाहिलक आदि विदेशी जातियो का तथा उनके खान-पान आदि का भी विवरण मिलता है
‘चरक-संहिता’ संस्कृत भाषा में है और गद्य तथा पद्य मे लिखी गई है. इस आठ स्थानों और 120 अध्यायो मे बांटा गया है. आठ स्थान और उनमे बतलाई गई बाते संक्षेप मे इस प्रकार हैं.
1. सूत्रस्थान: इसमे औषधि-विज्ञान, आहार, पथ्यापथ्य, विशेष रोग और शरीर तथा मन के रोगों की चिकित्सा का वर्णन है.
2. निदानस्थान: इस भाग में रोग के कारणो का पता लगाने को निदान कहते हैं. इसमे आठ प्रमुख रोगों की जनकारी दी गई है.
3. विमानस्थान: इस प्रकरण रूचिकर और शरीरवर्धक भोजन के बारे मे जानकारी है.
4. शारीरस्थान: इस प्रकारण मे शरीर की रचना, गर्भ मे बालक का जन्म तथा विकास कैसे होता है, आदि बाते बतलाई गई हैं.
5. इंद्रियस्थान: इसमे रोगों की चिकित्सा का वर्णन है.
6. चिकित्सास्थान: इसमे खास रोगों के लिए कुछ खास इलाज बतलाए गए हैं.
7. कल्पस्थान: इनमे छोटे-मोटे इलाजो के बारे मे जानकारी दी गई है.
8. सिद्धिस्थान: इसमें भी विभिन्न रोगों के इलाज की जानकारी दी गई है.
चरक संहिता आयुर्वेदिक औषधियों का विशाल संग्रह
हमें यह जान लेना चाहिए कि चरक-संहिता मे शरीर की चिकित्सा अर्थात् काय-चिकित्सा का ही वर्णन हैं इसमे शल्य-चिकित्सा (सर्जरी) की जानकारी नही मिलती. शल्य-चिकित्सा के बारे मे जिस ग्रंथ मे जानकारी मिलती है, उसका नाम है ‘सुश्रुत-संहिता’ चरक-संहिता मे तम्बाकू, नाड़ी-परीक्षा और पारे की औषधियो के बारे मे भी कोई जानकारी नही मिलती. चरक-संहिता मे उपचार और औषधियो के बारे मे अच्छी जानकारी दी गई है. इसलिए आज भी वैद्य लोग इस ग्रन्थ का इस्तेमाल करत हैं.
मां के गर्भ मे बालक किस प्रकार जन्म लेता है और धीरे-धीरे वह कैसे बढ़ता है, इसके बारे मे तो चरक ने बहुत ही अच्छी जानकारी दी है. चरक ने यह भी बताया है कि वात, पित्त और कफ मे से किसी एक या दो के असंतुलन से शरीर बीमार हो जाता है. इसमे आंख के 96 रोग बतलाए गए हैं. औषधियां मुख्यत: वनस्पति से तैयार की जाती थी. सभी औषधियो को 50 भागो मे बांटा गया है.
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