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लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की जीवनी
बाल गंगाधर तिलक bal gangadhar tilak के नाम से कौन भारतीय परिचित नहीं है? लोकमान्य जहां कर्मठ और साहसी सेनानी थे, वहां पूरे विचारक राजनीतिज्ञ भी थे. उनके ओजस्वी व्यक्तित्व से क्षत्रित्व का टपकता था, जो विद्या, बुद्धि एवं सात्विकता की आभा से और भी जीवन्त हो उठा था.
उनके जीवन की विशेषता थी उनकी सतत एकता. अपने सिद्धान्त पर वे हिमालय की भांति अटल रहे और अपने निर्दिष्ट लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जीवन के अन्तिम क्षण तक प्रयत्नशील रहे. उनकी राजनीति का सार था- शठे शाठयम्-जैसे को तैसा. उन्होंने जीवन-पर्यन्त इस सिद्धान्त को निभाया.
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक अपनी संस्कृति, रीति-नीति तथा आचार के प्रति पूर्ण श्रद्धा रखते थे. जनता के लिए उनके हृदय में आदर और प्रेम था और कदाचित् यही की लोकप्रियता का प्रमुख कारण था. जनता के प्रत्येक काम में, रीति-रिवाजों में से समान रूप से भाग लेते रहे, और साथ उसका पथ-प्रदर्शन उन्नति के राजमार्ग की ओर अग्रसर होते रहे. भारतीय जनता के समक्ष सबसे प्रथम ‘स्वराज्य’ शब्द का अर्थ प्रतिपादित करने वाले वे ही थे.
लोकमान्य गंगाधर तिलक का आरंभिक जीवन
लोकमान्य गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को रत्नागिरी मे हुआ. उनके पिता गंगाधर रामचन्द्र तिलक पूना जिले के स्कूलों के डिप्टी इन्सपेक्टर थे. लोकमान्य बाल्यावस्था से ही बड़े मेधावी तथा प्रखर बुद्धि के थे. आठ वर्ष की आयु में ही अपने भिन्न तक गणित, रूपावली, समास-चक्र तथा आधा अमरकोष कंठस्थ कर लिया था.
बाल गंगाधर तिलक की शिक्षा bal gangadhar tilak education
दस वर्ष की अवस्था में आपने पूना के सिटी-स्कूल में प्रवेश किया. 1872 में मैट्रिक की परीक्षा पास करके 1876 में डेक्कन कालिज से बीए की परीक्षा में उतीर्ण हुए. 1879 में वकालत की परीक्षा पास की. कालेज-जीवन से ही उनकी रूचि सार्वजनिक कार्यो की और हो गई थीं. उन्होंने निश्चय कर लिया था कि जीवन-भर सरकारी नौकरी न करके देश-सेवा का कार्य ही करता रहूंगा.
लोकमान्य तिलक का सार्वजनिक जीवन
शिक्षा-समाप्ति के साथ ही लोकमान्य के सार्वजनिक कार्यों का आरम्भ हो जाता है. सर्वप्रथम उनका ध्यान शिक्षा-प्रसार की ओर गया. इसके परिणामस्वरूप आपने 1 जनवरी 1880 को न्यू इंग्लिश स्कूल की स्थापना की अल्पकाल में ही स्कूल पर्याप्त उन्नति कर गया.
24 अक्टूबर, 1884 को तिलक सद्प्रयत्नों से दक्षिण शिक्षा-समिति की स्थापना हुई और 1885 में इसी प्रकार अपने अथक परिश्रम द्वारा लोकमान्य ने महाराष्ट्र में शैक्षणिक क्रांति उत्पन्न कर दी.
उस समय उनकी विद्धता की छाप अनेक विद्वानों मन पर अंकित हो चुकी थी. इन्हीं दिनों उन्होंने ओरिएंटल सोसायटी के लिए ज्योतिष-शास्त्र के आधार पर एक निबन्ध लिखा. जिसकी देश-विदेशों में बड़ी चर्चा फैली. इस निबन्ध में वेदों की प्राचीनता सिद्ध की गई थी, जो बाद में पुस्तक के तौर पर भी प्रकाशित हुआ. इस निबन्ध के कारण मैक्समूलर आदि विदेषी विद्वानों के हृदय में भी तिलक लिए श्रद्धा का भाव उत्पन्न हो गया था.
अखबार का संपादन कार्य- news paper by lokmanya tilak
लोकमान्य तिलक ने शिक्षा-सम्बन्धी कार्यों के साथ ही जनता में नव चेतना एवं नव जागृति उत्पन्न करने के लिए दो साप्ताहिक पत्र भी निकाले. पहला kesari paper ‘केसरी’ अंग्रेजी kesari newspaper में, जिसका सम्पादन उनके मित्र आगरकर करते थे, दूसरा ‘मराठा’, जिसका सम्पादन स्वयं लोकमान्य करते थे.
सन 1881 में ‘केसरी’ और ‘मराठा’ में कोल्हापुर रियासन के सम्बन्ध में कुछ आपत्तिजनक लेख प्रकाशित करने के अपराध में आगरकर और तिलक को चार-चार मास कारावास की सज़ा हुई. इस सजा से तिलक और आगरकर का नाम जनता में प्रसिद्ध हो गया और दोनों के प्रति लोगों में श्रद्धा-भाव बढ़ गया.
गणेश उत्सव का आरंभ और लोकमान्य तिलक
1893-94 में आपने महाराष्ट्र में जागृति उत्पन्न करने के लिए दो नवीन उत्सवों की परिपाटी चलाई. पहला गणेश-उत्सव और दूसरा शिवाजी-उत्सव’. ये दोनों उत्सव सार्वजनिक रूप से मनाये जाते थे. हजारों की संख्या में लोग इन उत्सवों पर एकत्र होते थे और राजनीतिक विषयों पर वाद-विवाद एवं भाषण आदि होते थे. आज भी ये उत्सव महाराष्ट में उसी उत्साह के साथ मनाये जाते हैं.
तिलक के राजनीतिक जीवन की शुरूआत
सन 1895 में लोकमान्य को बम्बई प्रान्तीय लेजिस्लेटिव काउन्सिल का सदस्य चुना गया. 1896 में महाराष्ट्र में घोर अकाल पड़ा, तिलक ने अकाल-पीड़ितो की भरसक सहायता की. 1897 में ‘मराठा में प्रकशित कुछ आपत्तिजनक पद्यों को लेकर उनपर राजद्रोह का अभियोग चलाया गया, जिसके परिणामस्वरूप उनको 18 माह की कड़ी कैद की सजा दी गई. किन्तु अध्यापक मैक्समूलर, सर विलियम हलटर तथा दादाभाई नौरोजी के प्रयत्नों से उनकी सजा की अवधि पूरी होने से 6 माह पूर्व ही छोड़ दिये गए.
तिलक का कांग्रेस से सम्बन्ध और अलगाव
सन 1898 से कांग्रेस में भी तिलक का प्रभाव बढ़ने लगा. उनकी पहचान एक उग्र विचारों के नेता के तौर पर थी, कांग्रेस की नरम नीति आपको पसन्द नहीं थी. उन्होंने कॉंग्रेस में एक उग्र दल की स्थापना की और उसका नेतृत्व स्वयं करने लगे.
1905 में बंग-भंग के कारण देश के राजनीतिक आन्दोलन में चेतना का संसार हुआ. तब उनके नेतृत्व में उग्र दल ने कांग्रेस पर अधिकार करने का प्रयत्न किया. 1907 में सूरत में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ. जिसमे दोनों दलों में झगड़ा हो गया और तिलक तथा उनका उग्र दल कांग्रेस से पृथक् हो गया.
सन 1908 में सरकार ने तिलक पर राजद्रोह का अभियोग लगा- कर छः वर्ष के निर्वासन एवं 1000 रूपये जुर्माने की सज़ा दी. लोकमान्य तिलक छः वर्ष तक बर्मा की मांडले जेल में ही रहे. वहां आपको अनेक यातनाएं सहन करनी पड़ी.
लोकमान्य तिलक का गीता दर्शन – bal gangadhar tilak books
जेल में ही तिलक ने अपना प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘गीता-रहस्य’ लिखा. ‘गीता-रहस्य’ में कर्मयोग की श्रेष्ठता को प्रमाणित किया गया है. अभी तिलक जेल मे ही थें कि आपकी पत्नी का देहान्त हो गया 1914 में वे जेल से रिहा किये गए.
महात्मा गांधी और तिलक में मतभेद – bal gangadhar tilak slogan
1914 में प्रथम महायुद्ध प्रारम्भ हो जाने से देश में अशांति की लहर दौड़ गई. इसी समय लोकमान्य ने देश में स्वराज्य का नारा बुलन्द किया. उन्होंने समस्त देश का विस्तृत भ्रमण करके राष्ट्र की सोई हुई शक्ति को पुनः जागृत किया. उस समय राष्ट्र के कोने-कोने में तिलक की यह ललकार गूंज रही थी-स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मै उसे लेकर ही रहूंगा.
उस समय कॉंग्रेस के नरम दल में गांधी जी का आधिपत्य था. गांधी जी महायुद्ध में ब्रिटिश सरकार को बिना किसी शर्त के सहायता देने के पक्ष में थे-तिलक ने इसका विरोध किया. उनका कहना था कि ब्रिटिश सरकार की नीयत का कोई भरोसा नहीं, अतः सरकार हमें जितने अधिकार देगी, उतनी ही उसकी सहायता की जाये. इस बात पर गांधी जी और लोकमान्य में मतभेद हो गया किन्तु लोकमान्य अपने सिद्धान्त पर अटल रहे.
महायुद्ध की समाप्ति पर उनकी बात की सत्यता गांधी जी को भी स्वीकार करनी पड़ी. वास्तव में तिलक एक दूरदर्शी राजनीतिज्ञ थे. परिस्थिति से लाभ उठाना वे भली प्रकार से जानते थे.
सन 1918 में दिल्ली में होने वाले कॉंग्रेस अधिवेशन का सभापति तिलक को चुना गया, किन्तु इसी बीच वे इंग्लेंड चले गए. 1919 में अमृतसर-कांग्रेस में सम्मिलित हुए थे. वहां तिलक का दिया भाषण bal gangadhar tilak speech बड़ा तर्कपूर्ण एवं प्रभावशाली था. उन्होंने सरकारी सुधारो की कटुआलोचना की.
तिलक कांग्रेस को प्रज्ञावादी-दल बनाकर शिक्षा, आन्दोलन एवं संगठन द्वारा स्वराज्य-प्राप्ति का स्वप्न देख रहे थे, किन्तु कुसमय ने उनका स्वप्न पूरा न होने दिया. सन् 1920 में तिलक डेमोक्रेटिक स्वराज्य-पार्टी की स्थापना की, जिसका उदेश्य मांटेग्यू सुधार-योजना के सम्बन्ध में कार्य शैली स्थिर करना था.
लोकमान्य गंगाधर तिलक की मृत्यु – bal gangadhar tilak death
1920 में एक मुकदमे के सम्बन्ध में वे बम्बई गए, किन्तु वहां जाकर बीमार हो गए. उनकी बीमारी से समस्त देश में चिन्ता फैल गई. बड़े-बड़े योग्य डाॅक्टरों की चिकित्सा से भी लाभ न हुआ और 21 जुलाई को रात्रि के बारह बजे भारतीय स्वाधीनता-संग्राम का यह साहसी सेनानी सदैव के लिए सो गया. उनकी मृत्यु का दुःख समाचार सुनकर समस्त देशवासी व्यग्र हो उठे.
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