ब्लैकहोल से खतरे में है दुनिया-What is Black hole

ब्लैकहोल (black holes) कैसे करेंगे इस दुनिया का विनाश?

ब्लैकहोल एक ऐसी नई पहेली है, जिसके बारे में ढेर सारे प्रश्न हैं और उनके उत्तर खोजना अभी विज्ञान के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है. ब्रह्मांड अपने अंदर ढेरों रहस्य छुपाए हुए हैं और मानव जाति एक एक करके उन रहस्यों पर से पर्दा उठा रही है. इन रहस्यों में से एक है ब्लैकहोल जिस पर पिछले तीन दशकों में बहुत सारी बातें सामने आई है.

क्या होते हैं ब्लैकहोल? what is blackhole

अक्सर यह प्रश्न पूछा जाता है कि क्या होते हैं ब्लैक होल्स what is the black holes? ब्लैकहोल एक सघन द्रव्यमान का पिण्ड है, जिसका गुरूत्वाकर्षण बल इतना अधिक होता है कि यह अपने अंदर हरेक चीज को समा लेता है. यहां तक की प्रकाश भी इसके अंदर जाकर बाहर नहीं आ सकता है. अपनी इस खूबी की वजह से यह एकदम काले होते हैं और इन्हें देख पाना असंभव होता है.

who discovered black holes ब्लैकहोल के बारे में सबसे पहले 1783 में दुनिया को भूविज्ञानी जॉन मिचेल ने अपने एक पत्र के माध्यम से बताया था, जिसे उन्हानें तब के प्रख्यात वैज्ञानिक हेनरी केवेंडिश को लिखा था. तब इस बात पर बहुत ध्यान नहीं दिया गया और इसे एक वैज्ञानिक की कल्पना माना गया.

इसके बाद 1796 में एक और वैज्ञानिक तथा ​गणितज्ञ पिएर्रे-साइमन लाप्लास ने अपनी किताब एक्स्पोसिशन डू सिस्टेम डू मोंडे में ब्लैकहोल का उल्लेख किया. इसे तब भी गंभीरता से नहीं लिया गया और इसे प्रायोगिक तौर पर भी खोजने की कोई कोशिश नहीं की गई. शुरूआती समय में इसको लेकर कोई खास काम नहीं हुआ.

स्टीफन हॉकिंग ने ब्लैकहोल को बनाया रोचक विषय?

महान वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने ब्लैकहोल के रहस्यों what are black holes से पहले पहल पर्दा उठाया और दुनिया के सामने ऐसी बाते रखीं, जिससे ब्लैकहोल के अस्तित्व को नकाराना लगभग असंभव हो गया. उन्होंने 70 के दशक में ब्लैकहोल और बिगबैंग को लेकर कई सिद्धान्त प्रस्तुत किए. उनके निर्माण की प्रक्रिया बताई.

उनके सहयोगी रहे रोजर पेनरोज को वर्ष 2020 में ब्लैकहोल को आइन्साइटन के सापेक्षता के सिद्धान्त के आधार पर समझाने की वजह से नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. दरअसल पेनरोज और हॉकिन्स ने मिलकर ब्लैकहोल्स पर कई थ्योरम्स का प्रतिपादन किया ​जिन्हें पेनरोस—हॉकिंग सिंगुलैरिटी थ्योरम्स कहा गया.

क्या है पेनरोस हॉकिंग सिंगुलैरिटी थ्योरम?

पेनरोस हॉकिंग सिंगुलैरिटी थ्योरम को हम यहां आसान भाषा में समझाने की कोशिश कर रहे हैं. इन थ्योरम्स के अनुसार सिंगुलैरिटी यानी एक से सम्पूर्ण ब्रह्मांड रचा गया है. दरअसल ब्लैकहोल से ही ब्रह्मांड का निर्माण होता है और वह फिर इसी में समा जाता है.

ब्लैकहोल लगातार अपने अंदर द्रव्यमान खींचता रहता है और उसका आकार बड़ा होता जाता है. बहुत बड़े ब्लैकहोल को मैसिव ब्लैकहोल कहा जाता है. एक समय ऐसा आता है जब वह पूर ब्रह्मांड के द्रव्यमान मो अपने अंदर समेट लेता है और यह इतना ज्यादा सघन हो जाता है कि उसे संभाल नहीं पाता है और एक धमाके के साथ फट पड़ता है, इस घटना को बिग बैंग कहते हैं।

इस धमाके के साथ नये ब्रह्मांड का निर्माण शुरू हो जाता है। इस नये ब्रह्मांड में समय के साथ फिर से ब्लैक होल का निर्माण शुरू हो जाता है और ये फिर से ब्रह्मांड को अपने अंदर समेटना शुरू कर देते हैं और यही प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है।

स्टीफन हॉकिंग ने ब्लैकहोल को लेकर एक भौतिकीय विरोधाभास के सिद्धान्त को भी सामने रखा जिसे हॉकिंग पैराडॉक्स कहते हैं। हॉकिंग पैराडॉक्स के हिसाब से माने तो ब्लैक होल लगातार विकिरण उत्सर्जित करते रहते हैं। ऐसा करते हुए वे एक दिन समाप्त हो जाते हैं लेकिन भौतिक विज्ञान का मानना है कि कोई भी पदार्थ नष्ट नहीं होता है। इस विरोधाभास को ही हॉकिंग पैराडॉक्स कहा गया है।

कैसे बनते हैं ब्लैक होल? facts on black holes

भौतिक विज्ञानियों ने इस बात के पुख्ता सबूत जुटा लिए हैं कि ब्लैकहोल का निर्माण कैसे होता है. दरअसल ब्लैकहोल्स मरे हुए तारे हैं. हर तारे के जीवन के दिन निश्चित होते हैं और वह दिन तब आता है जब तारे के अंदर का सारा ईंधन जल जाता है और उसमें एक धमाका होता है। इस धमाके के बाद वह तारा एक सुपर नोवा स्टार बन जाता है।

यह सुपर नोवा समय के साथ ठंडा होता चला जाता है और सिमटने लगता है। इससे इसका द्रव्यमान संघनित होने लगता है। अगर तारा छोटा है तो वह एक न्यूट्रान स्टार में तब्दील हो जाता है और कहीं वह बहुत बड़ा है तो वह सघन होते—होते इतना भारी हो जाता है कि एक घने काले पिण्ड में बदल जाता है। इस घने काले पिण्ड का गुरूत्वाकर्षण इतना अधिक होता है कि यह अपने पास से गुजरने वाले प्रकाश को भी अपने अंदर ​खींच लेता है। इसे ही ब्लैकहोल कहते हैं।

क्या होता है सुपर मैसिव ब्लैकहोल?

वर्ष 2020 के भौतिकी नोबेल के लिए रोजर पेनरोज के साथ ही रेनहार्ड गेंजेल और एंड्रिया गेज का नाम भी घोषित किया गया था। इन दोनो वैज्ञानिकों ने दुनिया को ‘सुपरमैसिव कॉम्पैक्ट ऑब्जेक्ट’ से परिचित करवाया।

यह बहुत विशाल ब्लैकहोल्स होते हैं जो कि हमारी आकाशगंगा के केन्द्र में स्थित है। अभी तक ऐसे दो मैसिव ब्लैकहोल्स को खोज पाने और उनकी तस्वीर ले पाने में हमारे वैज्ञानिकों को सफलता मिली है।

इनमें से एक मैसिव ब्लैकहोल को जिनमें से हमारी आकाश गंगा में स्थित मैसिव ब्लैकहोल को सेजे​टेरिएस ए नाम दिया गया है स्थित है और दूसरा मैसिव ब्लैकहोल पृथ्वी से 55 प्रकाश वर्ष दूर मेसियर 87 आकाशगंगा में स्थित है । सेजेटेरिएस ए का द्रव्यमान सूर्य से चार मिलियन गुना अधिक है। सेजिटेरियस ए की इवेंट होराइज़न तस्वीरे टेलीस्कोप से ली गई है।

क्या है ब्लैकहोल्स का भारतीय कनेक्शन

ये आपको शायद ही पता हो कि पेनरोस-हॉकिंग सिंगुलैरिटी थ्योरम्स जिनके आधार पर आज ब्लैकहोल्स के बारे में समझ विकसित हो रही है जिसे सूत्र पर आधारित है, उसे एक भारतीय गणितज्ञ ने दुनिया के सामने रखा था। दरअसल यह थ्योरम्स रायचौधरी इक्वेशन पर आधारित है। यह इक्वेशन कोलकाता में रहने वाले प्रसिद्ध गणितज्ञ अमल कुमार रायचौधरी ने दिया था।

यह इक्वेशन उन्होंने दुनिया के सामने 1955 में रखा था। ब्लैकहोल्स को समझने में भारतीय वैज्ञानिक एस. चंद्रशेखर द्वारा दिए गए चंद्रशेखर लिमिट सिद्धान्त ने भी बहुत मदद की है। रायचौधरी इक्वेशन में सामान्य सापेक्षता में द्रव्यमान-ऊर्जा के किसी भी दो बिट्स के बीच बल को निरूपित किया गया है।

इवेंट होराइजन और ब्लैकहोल के बीच क्या है सम्बन्ध?

ब्लैक होल में द्रव्यमान इतना सघन और गुरूत्वाकर्षण इतना ज्यादा होता है कि उसमें से कुछ भी बाहर नहीं आ सकता है। उसमें जाने वाला प्रकाश भी वहीं कैद हो जाता है।

इसलिये इनकी तस्वीर लेना असंभव है लेकिन वैज्ञानिकों ने इन ब्लैकहोल्स के बाहर एक सीमा रेखा निर्धारित करने में सफलता पाई हैं जहां प्लाज्मा, गैस और धूलकणों के बादल है और वे निरन्तर विक​रण उत्सर्जित करते हैं।

इन सीमाओं को इवेंट होराइजन कहा जाता है। इनकी तस्वीर ली जा सकती है और इनकी मदद से ब्लैक होल की उपस्थिति का पता लगाया जा सकता है। वैज्ञानिकों ने सेजिटेरियस ए के के अलावा पृथ्वी से 55 प्रकाश वर्ष दूर मेसियर 87 आकाशगंगा के केन्द्र में स्थित ब्लैकहोल की तस्वीरे प्राप्त करने में सफलता पाई है।

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