दारा सिंह कैसे बने राम के हनुमान?-Dara Singh Biography

Biography of Dara Singh in Hindi – दारा सिंह की जीवनी

दारा सिंह ने रामायण में हनुमान का किरदार निभा कर अपने आप को भारतीय जनमानस में हमेशा के लिये अमर कर लिया. जब भी हनुमान जी का जिक्र आता है तब लोगो के जहन में Dara Singh की छवि उभर आती है.

दारा सिंह का जीवन भी रामायण की कथा की तरह ही कई उतार—चढ़ावों से भरा रहा और उनके जीवन के कई ऐसे पहलू है जिससे लोग कम ही परिचित है. उनको लेकर कई मिथक भी है, जिन्हें उनकी इस जीवनी में दूर करने की कोशिश की गई है.

दारा सिंह का शुरूआती जीवन

Dara Singh का पूरा नाम दारा सिंह रंधावा था. उनका जन्म 19 नवम्बर 1928 को पंजाब के धरमचक गांव में हुआ. उनका बचपन अपने गांव में ही बीता. उन दिनों पंजाब में कुश्ती बहुत लोकप्रिय खेल था. उनके ​परिवार में भी अखाड़े को सम्मान दिया जाता था.

इस माहौल में Dara Singh की रूचि कुश्ती में हो गई. बचपन से ही उनकी कद—काठी अच्छी थी और वे शरीर से मजबूत थे इसलिये परिवार ने भी उन्हें कुश्ती के लिये प्रोत्साहित किया.

दारा सिंह कैसे बने रूस्तम—ए—हिंद?

जब दारा सिंह ने कुश्ती में हाथ आजमाने शुरू किये तब भारत अंग्रेजों को गुलाम था और स्थानीय मुकाबलों के अलावा आगे बढ़ने का कोई विशेष रास्ता नहीं था.

छोटे—मोटे मुकाबलों में पहलवानों को धूल चटाते हुये Dara Singh आगे बढ़ने के लिये रास्ते की तलाश कर रहे थे. इसी बीच 1947 में भारत आजाद हो गया और दारा सिंह को भी सिंगापुर जाने का मौका मिला.

सिंगापुर में दारा सिंह को एक ड्रम बनाने वाली फैक्ट्री में नौकरी मिल गई. यहीं पर उन्होंने अपने गुरू हरनाम सिंह से अंतर्राष्ट्रीय स्तर की कुश्ती की ट्रेनिंग लेनी शुरू कर दी. हरनाम सिंह उन दिनों ग्रेट वर्ल्ड स्टेडियम से जुड़े हुये थे.

ग्रेट वर्ल्ड स्टेडियम सिंगापुर का एम्यूजमेंट पार्क था, जहां बहुत तरीको से लोगों का मनोरंजन किया जाता था और पूरी दुनिया से लोग इस पार्क में मनोरंजन के लिये आते थे.

Dara Singh अपने शारीरिक सौष्ठव की वजह से लोगों के आकर्षण का केन्द्र रहते थे. Dara Singh height उनकी लंबाई 6 फुट 2 इंच थी. वजह 127 किलो और छाती की चौड़ाई 130 सेमी थी. इतना लंबा चौड़ा आदमी सहज ही सबको अपनी ओर आकर्षित कर लेता था.

यहीं पर उनको कुश्ती की अंतराष्ट्रीय दुनिया जिसे प्रोफेशनल रेसलिंग कहते हैं, उसकी जानकारी मिली. उनके गुरू ने उनकी शारीरिक मजबूती देखते हुये प्रोफेशनल रेसलिंग में हाथ आजमाने की सलाह दी और दारा सिंह ने उनकी इस सलाह को मान भी लिया.

प्रोफेशनल रेसलिंग की दुनिया में उस समय अमेरिकी और रशियन पहलवानों का दबदबा था. Dara Singh ने पूरी दुनिया में प्रोफे​श​नल रेसलिंग के धुरंधरों को मात दी. उस समय रेसलिंग के बड़े नाम माने जाने वाले बिन वर्ना, फिर्पो जुबिस्को, जॉन डी सिल्वा, रिकि डजन, डैनी लिंच और स्की ली जैसे पहलवानों का मुकाबला किया.

पूरी दुनिया में उन्होंन भारतीय कुश्ती का झंडा बुलंद किया और जल्दी ही वे बहुत मशहूर हो गये. लोग पहलवानी का पर्याय दारा सिंह ही मानने लगे. इसी बीच भारत में रूस्तम—ए—हिंद प्रतियोगिता हुई. 1954 में हुई इस प्रतियोगिता में उन्होंने फाइनल मुकाबले में मशहूर पहलवान टाइगर जोगिन्दर सिंह को हरा कर यह खिताब अपने नाम कर लिया.

इसके बाद Dara Singh ने कॉमनवेल्थ चैम्पियनशिप में जॉर्ज गॉर्डियेंको को हराया। इसके अलावा मुंबई में आयोजित हुये वर्ल्ड चैंपियनशिप में 1968 में भारत को गौरव दिलवाते हुये इस खिताब को अपने नाम कर लिया.

1983 में उन्होंने कुश्ती से सन्यास ले लिया. उनके बाद किसी और पहलवान ने वैसी ख्याती नहीं पाई जैसी दारा सिंह ने अपने कुश्ती के कौशल से कमाई.

दारा सिंह का पहलवान से अभिनेता का सफर

दारा सिंह एक ऐसे पहलवान थे जिनके पास मजबूत शरीर के साथ ही एक सुंदर चेहरा भी था. यह वह दौर था जब उनके ही राज्य पंजाब से आने वाले धर्मेन्द्र बॉलीवुड पर छाये हुये थे. ऐसे में पंजाब से आने वाले एक और युवा Dara Singh भी हिंदी फिल्म जगत में अपना भाग्य आजमाने आया.

1952 में उनकी पहली फिल्म आई संगदिल. फिल्म ने ठीक—ठाक काम किया लेकिन दारा ने सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया. इसके बाद उनकी फिल्में थोड़े—थोड़े अंतराल में आती रही लेकिन सफलता उन्हें 1962 में आई फिल्म किंगकांग से मिली.

इस फिल्म ने बॉक्स आफिस पर तहलका मचा दिया. इसके बाद तो उनके पास फिल्मों की झड़ी लग गई. उनको ज्यादातर ऐसी ही फिल्में मिली जिसमें या तो उनको पहलवान का रोल निभाना था या फिर किसी सूपर हीरो का.

Dara Singh और मुमताज

शुरूआत में कद काठी की वजह से कोई भी भारतीय अभिनेत्री उनके साथ बहुत छोटी नजर आती थी. उस समय की प्रमुख अभिनेत्रियों ने उनके साथ काम करने से इंकार कर दिया तब उनका साथ मुमताज ने दिया और मुमताज के साथ Dara Singh की जोड़ी को लोगो ने बहुत पसंद भी किया. इसके बाद तो हर दूसरी फिल्म में वे मुमताज के साथ नजर आने लगे.

​मीडिया में दारा सिंह और मुमताज के प्रेम को लेकर खबरे भी गढ़ी जाने लगी लेकिन दोनो ने इस मामले में हमेशा गरिमामयी चुप्पी बनाये रखी. Dara Singh ने अपने लिये कई फिल्में खुद डायरेक्ट और प्रोड्यूस भी की.

उन्होंने पंजाबी भाषा की ढेरों फिल्में की. पंजाबी भाषा की उनकी फिल्म नानक दुखिया सब संसार, मेला मित्रां दा, लंबरदारनी, सवा लाख से एक लड़ाउ बहुत सफल रही. उनकी आखिरी फिल्म जब वी मेट रही.

कैसे बने दारा सिंह से हनुमान?

80 के दशक में रामानंद सागर रामायण पर सीरियल का निर्माण करने जा रहे थे और सभी पात्रों के लिये अभिनेताओं का चयन किया जा रहा था. अरूण गोविल को राम के पात्र के लिये चुन लिया गया था.

हनुमान के पात्र के लिये जब किसी योग्य अभिनेता की बात आई तो सबने एक मत से दारा सिंह का नाम लिया क्योंकि इससे पहले भी वे कई फिल्मों में भीम सेन का रोल निभा चुके थे. इसके अलावा उनकी जैसी कद—काठी का कोई दूसरा अभिनेता दूर—दूर तक नजर नहीं आ रहा था.

जब इस रोल के लिये रामानंद सागर ने दारा सिंह से संपर्क किया तो उन्होंने हर्ष के साथ इस रोल के लिये हामी भर दी. इस सीरियल में रामानंद सागर ने भाषा का विशेष ख्याल रखा था और संस्कृतनिष्ठ हिंदी में संवाद तैयार किये गये थे.

दारा सिंह की हिंदी पर उनकी मातृभाषा पंजाबी का प्रभाव स्पष्ट नजर आता था. पहले तो इस बात पर विचार किया गया लेकिन बाद में हनुमान के संवाद दारा सिंह ने अपनी आवाज में ही डब किया.

उनकी इस विशेष शैली दर्शकों को बहुत भाई और हुनमान के चुटीले दृश्यों में उनकी इस तरह की संवाद अदायगी की वजह से और ज्यादा जान आ गई. उन्होंने भगवान हनुमान का रोल इतनी खूबी से निभाया कि लोग उन्हें वास्तविक हनुमान मानने लगे.

अपने रोल को मिली विश्वसनियता और छवि इतनी प्रबल थी​ कि जब बीआर चोपड़ा ने महाभारत बनाई तो एक विशेष दृश्य में हनुमान के रोल के लिये दारा सिंह से ही सम्पर्क किया गया और उन्होंने इस अतिथि भूमिका को बहुत सुंदर तरीके से निभाया.

दारा सिंह के जीवन के अनछूये पहलू

  • दारा सिंह को फिल्मों से बहुत प्रेम था और पंजाब में ही फिल्मों के निर्माण को प्रोत्साहित करने के लिये उन्होंने मोहाली में एक स्टूडियो का निर्माण किया, जिसमें फिल्मे बनाई जाती थी.
  • दारा सिंह ने राजनीति में भी हाथ आजमाया और भारतीय जनता पार्टी ज्वाइन की. भाजपा ने उन्हें राज्यसभा का सदस्य बनाया.
  • Dara Singh ऐसे पहले खिलाड़ी थे जिन्हें राज्यसभा के लिये नामित किया गया.
  • Dara Singh family दारा सिंह के छह बच्चे हैं. Dara singh son विंदु दारा सिंह एक लोकप्रिय हस्ती है. दारा सिंह के जीवन पर एक कॉमिक बुक द ग्रेट दारा सिंह आक्सफोर्ड बुकस्टोर मेंं लांच की गई.
  • Dara Singh ने दो बार विवाह किया. Dara Singh wife उनकी पहली पत्नी बचनो कौर की मृत्यु 1952 में हुई. इसके बाद 1961 में उन्होंने दूसरा विवाह सुरजीत कौर के साथ किया.
  • दारा सिंह की मृत्यु 12 जुलाई, 2012 को मुंबई में हुई.

यह भी पढ़ें:

शिवाजी की जीवनी

गोस्वामी तुलसीदास जी की जीवनी

हिंदु धर्म के 16 संस्कार की विधि

रामदेव जी कथा और जीवनी

Leave a Reply