उर्दू: History of Urdu and Sher on Urdu

उर्दू की जानकारी और Urdu पर लिखे गये शेर

उर्दू का जन्म कहां हुआ और यह कैसे विकसित हुई, इसको लेकर कई थ्योरिज है. कई विशेषज्ञ इसका जन्म अरब और फारस में मानते हैं तो कुछ विद्वानों का मानना है कि इसका जन्म भारतीय उपमहाद्वीप में ही हुआ है.

इसे लश्कर यानी सेना की भाषा भी माना जाता है. ऐसा मानने के पीछे यह तर्क दिया जाता है कि यह भाषा फारसी और भारतीय संस्कृति के सैनिकों के एक साथ एक खेमें में रहने की वजह से विकसित हुई है.

Urdu शब्द का अर्थ ही है सैनिक शिविर. Urdu शब्द दरअसल तुर्की भाषा का शब्द है. माना जाता है कि यह शब्द पहले पहल तुर्क आक्रमणकारियों के साथ भारत आया.

तुर्क सैनिक शिविर को Urdu कहा करते थे. इसी वजह से शाहजहां द्वारा बनवाये गये लाल किले को उर्दू ए मुअल्ला कहा जाता है. साथ ही Urdu में बोलने वाली जबान को जबान ए उर्दू ए मुअल्ला कहा गया.

उर्दू भाषा का इतिहास

उर्दू हिन्द आर्य भाषा की श्रेणी में रखी जाती है. इस भाषा में ज्यादातर शब्द अरबी और फारसी से लिये गये है लेकिन कुछ मात्रा में संस्कृत के तत्सम शब्दों को भी इस भाषा में स्थान मिला है. शुरूआत में Urdu की​ लिपी फारसी ही रही लेकिन आज के दौर में देवनागरी में भी Urdu का प्रयोग बहुत प्रचलित हो गया है.

पाकिस्तान ने Urdu को अपनी राष्ट्रभाषा के तौर पर स्वीकार किया है. भारत के जम्मू-कश्मीर में इसे प्रशासनिक भाषा का दर्जा प्राप्त है. तेलंगाना, दिल्ली, बिहार और उत्तर प्रदेश में Urdu को अतिरिक्त शासकीय भाषा के तौर पर उपयोग में लाया जाता है. Urdu भारतीय उपमहाद्वीप सहित दक्षिण एशिया के कई हिस्सों में बोली जाती है.

उर्दू साहित्य

उर्दू में बहुत समृद्ध साहित्य रचा गया है. Urdu में गद्य साहित्य की जगह पद्य साहित्य की प्रधानता अधिक रही है. हिन्दी के प्रमुख रचनाकार प्रेमचंद दरअसल Urdu साहित्य के ही साहित्यकार थे.

उन्होंने हिंदी परिवेश की कहानियां Urdu में ही लिखी है. पद्य साहित्य में अमीर खुसरों का नाम प्रमुखता से लिया जाता है, जिन्होंने Urdu को राज दरबारों में विशेष प्रतिष्ठा दिलवाई. Urdu में शायरों की एक लंबी परम्परा है.

मीर तकी मीर, मिर्जा गालिब और आधुनिक काल में मजाज, जोश, फ़िराक़, फ़ैज़, हफ़ीज, जमील और आज़ाद के नाम उल्लेखनीय हैं. Urdu साहित्य के पद्य में गजल, नज्म और शेर ने लोकप्रियता के चरम को छूआ है. अब हिन्दी में भी गजल और शेर कहने की परम्परा शुरू हो गई है.

Urdu साहित्य में जितना विकास पद्य साहित्य का हुआ, उतनी लोकप्रियता गद्य को नहीं मिल पाई. कुछ नाटकों और व्यंग्यों को जरूरत प्रसिद्धि मिली लेकिन उपन्यासों और गद्य पिछले पायदान तक ही सीमित रही.

आधुनिक लेखकों में इस्मत चुगताई, सआदत हसन मंटो और कृश्नचंद्र को कुछ सफलता जरूर मिली लेकिन यह सीमित समय तक ही कायम रह सकी. इसकी तुलना में हिंदी साहित्य की गद्य विधा में कहीं ज्यादा सफल और लोकप्रिय प्रयोग हुये.

Urdu पर महान शायरों के शेर

उर्दू है जिसका नाम, हमीं जानते हैं दाग
सारे जहां में धूम, हमारी जबां की है।

नहीं खेल ऐ दाग, यारों से कह दो
कि आती है उर्दू, जबां आते—आते।

– दाग देहलवी

हिन्दू है न मुस्लिम है, रिजा मजहबे उर्दू
दोनों ही आगोश* में ये फूली फली है।

*आगोश- गोद

जायें तो कहां जायें, बता ऐ बुते-उर्दू*
बर्बाद तेरे रूप के, मारे तेरी लट के।

*बुते Urdu- उर्दू रूपी प्रेमिका

– कालीदास गुप्ता रिजा

अभी न गुलशने उर्दू* को, बे चिराग कहो
खिले हुये हैं अभी ,चंद फूल शाखों पर

*गुलशने Urdu- उर्दू का बाग

– राजेन्द्र नाथ रहबर

लिपट जाता हूं मों से और मौसी मुस्कुराती है
मैं Urdu में गजल कहता हूं, हिंदी मुस्कुराती है।

– मुनव्वर राना

जिस शहर में उर्दू का चलन आम हो जावेद
उस शहर का बाशिंदा, शरीफाना लगे है।

– जावेद वशिष्ट

वो उर्दू का मुसाफिर है, यही पहचान है उसकी
जिधर से गुजरता है, सलीका* छोड़ जाता है।

*सलीका- शिष्टता

– अज्ञात

वो इक जनाजा, जिस पर उर्दू लिखा हुआ
वो जा रहे हैं, कौम के रहबर लिये हुये

– मुख्तार अहसन अन्सारी

सितम* इस मर्तबा, उर्दू पे टूटा
खबर हिंदी के अखबारों में निकली

*सितम- अत्याचार

– शकील जमानी

अब उर्दू क्या है, उर्दू एक कोठे की तवाइफ है
मजा हर एक लेता है, मुहब्बत कौन करता है।

– खुर्शीद अफसर बिसवानी

मेरी अल्लाह से बस इतनी दुआ है राशिद
मैें जो उर्दू में वसीयत लिखूं, बेटा पढ़ ले।

– राशिद

दीमक है जो दिन-रात हमें चाट रही है
हम रैक में उर्दू की किताबों की तरह है।

– तरन्नुम आहूजा

तुम्हें आ जायेंगे, आदाबे—हस्ती*
तुम उर्दू से, मुहब्बत करके देखो।

*आदाबे हस्ती- जीवन की शिष्टतायें

– नाशिर नकवी

जिन शहरों में गूंजी थी, गालिब की नवां* बरसों
उन शहरों में अब उर्दू, बे नामों—निशां ठहरी
ऐलान हुआ जिस दिन आजादी ए कामिल* का
इस मुल्क की नजरों में, गद्दार जबां ठहरी।

*नवा- आवाज, *आजादी ए कामिल- पूर्ण स्वतंत्रता

– साहिर लुधियानवी

मौकूफ* कुछ हमीं पे नहीं, रौनके अदब
खिदमत गुजार* और भी, उर्दू जबां के हैं।

*मौकूफ- निर्भर, *गुजार- सेवक

– बी डी कालिया हमदम

उर्दू के मुहाफिज* हैं, हिंदू न मुसलमां ही
बेगोद से बच्चे को, अब किसने उठाना है

*मुहाफिज- रक्षक

– टी एन राज

इसी के दम से है, तहजीब का सफर जारी
कदम-कदम जो ये, उर्दू जबान की राह में है।

– फिजा इब्न फैजी

वो इत्र दान सा लहजा, मेरे बुजुर्गों का
रची बसी हुई, उर्दू जबान की खुश्बू

– बशीर बद्र

खिदमते उर्दू करूंगा उम्र भर
ये मेरी पूजा, मेरा ईमान है

– एच के लाल

मजहब क्या है किसी जबां का, तुम्ही बताओ उर्दू वालों
शहरे सुखन* के सैयिदजादे*, हम काफिर कहलाये गये।

*शहरे सुखन- कविता का नगर, *सैयिदजादे- समर्पित कलमकार

– सत्यपाल आनंद

मुल्ला बना दिया है, इसे भी मुहाजे जंग*
इस सुल्ह का प्याम थी, Urdu जबां कभी

*मुहाजे जंग- युद्धक्षेत्र

– आनंद नारायण मुल्ला

अहमदे पाक* की खातिर थी खुदा को मंजूर
वर्ना कुरां भी उतरता, ब-जबाने-उर्दू।

*अहमदे पाक- हजरत मुहम्मद साहब, खातिर- मान-सम्मान

– जोश मलीहाबादी

हमारे अहद् ने तहजीब, छीन ली हमसे
ये मोजिजा* है कि Urdu जबान बाकी है।

*मोजिजा- चमत्कार

– नजीम जाफरी

वो जिसका पढ़ता नहीं कोई, बोलते सब हैं
जनाबे मीर, ये कैसी जबान छोड़ गये।

– मुनव्वर राना

शाम तक कितने हाथों तक गुजरूंगा मैं
चाय खाने में, Urdu के अखबार सा।

– बशीर बद्र

जुल्म Urdu पे भी होता है, इसी निस्बत* से
लोग उर्दू को, मूसलमान समझ बैठे हैं।

*निस्बत- सम्बन्ध

– अकील नोमानी

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