ताजमहल – Tajmahal Amazing Facts and truths

ताजमहल की रोचक बातें और रहस्य- taj mahal essay

ताजमहल संसार की इमारतों में मनुष्य की अद्भुत कृति माना जाता हैं. अभी तक संसार में ताजमहल जैसा स्मारक कहीं और देखने को नहीं मिलता है. आगरे का ताजमहल संसार के लोगो के लिये आकर्षण का केन्द्र है. यही कारण है कि संसार प्रसिद्ध महान् आश्चर्यो में भारत का ताज महल भी शामिल है.

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सच तो यह है कि इस अद्भुत और खूबसूरत इमारत की शोभा और वास्तुशिल्प को समझने के लिये इसे एक बार देखना बहुत जरूरी है. अभी कलम के पास वह वाणी नहीं है कि ताजमहल का सौंदर्य शब्दों में किया जा सके.

why was the taj mahal built – क्या ताजमहल एक मकबरा है?

ताजमहल कोई महल या रहने वाली इमारत नहीं है बल्कि यह एक मकबरा है. भारत के प्रसिद्ध मुगल सम्राट अकबर के पौत्र शाहजहां ने अपनी पत्नी ‘मुमताज महल’ की याद में ‘ताजमहल’ का निर्माण करवाया था.

उसने अपनी और अपनी बेगम की समाधि के रूप में संसार को एक ऐसी इमारत भेंट की जिसकी जोड़ी आज तक ढूंढने पर भी नहीं मिलती. मुमताज महल को मृत्यु के बाद यहीं पर दफनाया गया. शाहजहां को भी इसी इमारत में दफनाया गया है. इस इमारत को मुमताज महल के नाम पर ही ताज महल कहा जाने लगा.

taj mahal story कौन थी मुमताज महल?

मुमताज महल शाहजहां की पत्नी थी. वह नूरजहां की भतीजी थी. ‘रिपोर्ट आन दी आर्कियोलॉजिकल रूल्स आफ इंडिया’ में मिस्टर ए. सी. एला कैरूलेली ने लिखा है कि मुमताज महल वजीर आजम नवाब आसिफ खां की बेटी थी उसका नाम बाबू बेगम भी था मुमताज महल का पहला नाम अर्जूमन्द बानो बेगम था.

जहांगीर के सबसे ज्येष्ठ पुत्र शाहजहां ने अर्जूमन्द के सौन्दर्य पर मुग्ध होकर उससे शादी की थी. पहले अर्जूमन्द बेगम का विवाह जमाल खां से हुआ था. उसी के घर एक दिन शाहजहाॅ ने उसे देखा था और उसके रूप पर ऐसा मुग्ध हुआ कि उससे विवाह करने की बात मन ही मन में ठान ली. बाद में परिस्थितिवश अर्जुमन्द बानो बेगम का अपने पति से अलगाव हो गया और शाहजहां ने उससे निकाह कर लिया.

मुमताज महल ही आगे चलकर भारत के सम्राट की पत्नी बनी और उसके मकबरे रूपी इस मन्दिर ताजमहल ने सारे संसार को आश्चर्य में डाल दिया. मुमताज महल ने कभी कल्पना भी की होगी कि भविष्य में उसके सौन्दर्य की पताका युगों-युगों तक लहराती रहेगी और वह अमर बन जायेगी?

about taj mahal in hindi points कैसे हुआ ताजमहल का निर्माण?

कालांतर में जहाॅगीर की मृत्यु हुई. शाहजहाॅ ही उसका सबसे बड़ा पुत्र था इसलिये गद्दी पर बैठने का हकदार वही था. गद्दी पर बैठने के बाद ही उसने अपनी प्यारी बेगम को मुमताज की उपाधि दी. शाहजहां के महल में मुमताज महल का दर्जा सबसे आला हो गया.

मुमताज महल से शाहजहां के चार लडके और तीन लड़कियां पैदा हुई. लोगों का कहना है कि मुमताज को अपनी मृत्यु की जानकारी पहले ही हो गई थी. मृत्यु के आगमन के पूर्व ही उसे इसका आभास हो गया था. मुगल बादशाहों में उन दिनों अपने मृत्यु से पूर्व अपना मकबरा बनवाने का प्रचलन था.

कमोबेश सभी मुगल बादशाहों ने अपने मकबरे खुद बनवाये थे. पत्नी की मृत्यु को देखते हुये शाहजहां ने भी ताजमहल के निर्माण का काम शुरू करवाया.

जयपुर और राजपूताने से इसमें लगाने के लिए संगमरमर पत्थर लगवाया गया था. कहते हैं एक गज लम्बे और एक गज चौड़े चौकोर संगमरमर का मूल्य उस समय 4 रूपये लगता था.

पीले रंग का जो पत्थर इसमें लगा हुआ है उसे नर्मदा नदी के तट से लाया गया था इसकी लागत भी उतनी ही थी जितनी संगमरमर की थी. काला पत्थर संगनूसा चार-पहाडी नामक स्थान से मंगाया गया था.

एक गज चौड़े और एक गज लम्बे चौकोर काले पत्थर का मूल्य लगभग 90 रूपये लगता था. इसमें लगाने के लिये चीन से स्फटिक पत्थर मंगवाया गया था.

इस पत्थर का मूल्य बहुत अधिक अधिक देना पड़ता था. अनुमान के अनुसार एक गज लम्बे और एक गज चौड़े चौकोर स्फटिक पत्थर के लिये लगभग पांच सौ से भी अधिक रूपये देने पड़ते थे.

इसके अतिरिक्त तिब्बत से ‘नीलम’, सिंहल द्वीप से ‘सिपास्लाजूली’ नामक मणि, बगदाद से पथराग’ नाम की मणि एवं पंजाब से ‘हीरा’ इसमे जड़ने के लिये मंगवाया गया था.

इनके अलावा और भी कितने ही प्रकार के बहुमूल्य पत्थर तथा तरह-तरह की मणियां भिन्न-भिन्न देशों से इसमें लगाने के लिए मंगवाई गई थी.

ताजमहल के बनाने में जिस धनराशि का व्यय शाहजहां ने किया होगा, इसका अन्दाज हम उपर्युक्त विवरणों से लगा सकते है. सामानो के मूल्य को तो आज छोड़ ही दीजिये, एक विवरण के अनुसार केवल प्रमुख-प्रमुख कारीगरों को ही उनकी मजदूरी के रूप में लगभग एक एक करोड़ रूपये दिये गये थे.

छोटे मोटे कारीगरों एवं दैनिक कार्य करने वाले मजदूरों की गिनती इसमें नहीं है. उनको मजदूरी में कितने रूपये दिये गये होंगे, इसका सही-सही अनुमान लगाना कठिन है.

ताजमहल के बनवाने में जो संपूर्ण लागत खर्च हुई, उसी के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है. कोई यह बताता है कि ताजमहल के बनाने में 18465186 रूपये खर्च हुए है और कोई उसकी लागत 31748826 रूपये बताता है. पर उपरोक्त ये दोनो आकड़ों का उचित आधार नहीं मिलता है.

कर्नल एण्डरसन ने ताजमहल की लागत का अन्दाजा लगाते हुए लिखा है कि इस पर 14148826 रूपये खर्च हुये थे. एक अन्य इतिहासकार का कहना है कि ताजमहल पर 6 करोड़ 60 लाख रूपये खर्च हुए थे.

आंकड़ो के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद हैं. मुस्लिम काल के इतिहास मे इस बात का कही कोई वर्णन नहीं मिलता है कि ताजमहल पर वास्तव में शाहजहाॅ ने कितना खर्च किया था.

इसीलिये ताज महल पर असली-लागत कया आई थी इसका ठीक-ठीक पता नहीं चल सकता है. प्रमाणों के अभाव में विद्वानों द्वारा निर्धारित काल्पनिक राशि को ही मानकर चलना होगा.

taj mahal kab bana – ताजमहल कब बना?

सन् 1630 ई मे ताजमहल का बनना शुरू हुआ था. लोगों का कहना है कि इसके बनने में लगभग बीस वर्ष लगे थे. कोई-कोई विद्वान बताते है कि ताजमहल के पूरा होने में सत्रह वर्ष लगे थे.

अधिकतर लोग बीस वर्ष के लगभग का समय ही मानते हैं. इस बात का ऐतिहासिक प्रमाण, नहीं मिलता कि प्रतिदिन इसमें कितने मजदूर काम किया करते थे. फिर भी मजदूरों की संख्या हजारों से कम नही रही होगी.

ताजमहल के द्वार (फाटक) चांदी के बने हुए थे. इसकी भीतरी दीवारों पर हीरे, मोती, और मणियों से काम किये गये थे. पर दुर्भाग्य से वे बहुमूल्य हीरे, जवाहरात एवं मोती अब नहीं रहे.

कहा जाता है कि एक सन् 1764 ई में हुये एक आक्रमण में ताजमहल के हीरे, मोतियों को निकाल लिया और चांदी के फाटक भी उखाड़ कर लिया गया. मुमताज महल की एक अत्यन्त मूल्यवान चादर बनवाई गई थी. पर अब वह चादर भी नही रही है. सन 1720 में चादर को अमीर हुसैन अली अपने साथ लेकर चला गया था.

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taj mahal inside – ताजमहल का वास्तुशिल्प

ताजमहल बाहर से भी उतना ही सुन्दर और शोभायमान दिखाई पड़ता है, उतना वह भीतर से भी है. इसके चारों तरफ परकोटा खिंचा हुआ है. परकोटे के भीतर एक अत्यन्त ही मनोहर उपवन है और इसी उपवन के मध्य ताजमहल की सुन्दर इमारत खड़ी है. ताजमहल के बाहर के हिस्से भी बड़े मनोरम हैं. बाहर का दृष्य देखने में बड़ा ही मनोहर मालूम पड़ता है.

परकोट के भीतर का क्षेत्रफल 1240×670 हाथ के लगभग है. चारों तरफ चारदीवारी से घिरा हुआ है और प्रवेश के लिये चार मार्ग हैं सबसे बड़े द्वार फाटक 94 हाथ लम्बा और 74 हाथ चौड़ा है.

इसी फाटक से होकर भीतरी दृश्य और उपवन के लिए रास्ता गया है. उपवन में वृक्षों की आकर्षक सुन्दर पंक्तियां खड़ी है जो देखने में बड़ी ही सुन्दर मालूम पड़ती है. उपवन में सफेद रंग का बना हुआ है. एक बड़ा ही सुन्दर हौज है.

इसी हौज के सामने ताजमहल है. मुमताज का समाधि मन्दिर एक सुन्दर चौकोर चबूतरे पर बनी हुई है. चबूतरा हर तरफ से 208 फीट लम्बा और 12 फीट उंचा है. चबूतरे के चारों कोनों पर चार ऊंची-ऊंची मीनारें बनी हुई हैं.

प्रत्येक मीनार की ऊंचाई पितहत्तर फीट की है. इन मीनारों की बनावट इतनी मनमोहक तथा सुन्दर है, जिसक मोटाई 120 फीट तथा ऊंचाई 40 फीट की है. गुम्बज के चारों तरफ भी चार अन्य छोटी-छोटी मीनारें बनी हुई है. इनमें से प्रत्येक मीनारे की ऊंचाई 21 फीट की बताई जाती है.

यह तो हुई ताजमहल की बाहरी बनावट की बात. भीतर का हिस्सा तो बाहर के हिस्से से भी कई गुना अधिक सुन्दर है. भीतरी दीवारों पर चारों तरफ रंग-बिरंगे बेल-बूंटे, फल-फूल आदि बनाय गयें हैं. इनकी बनावट बहुमूल्य रंग-बिंरगे पत्थरों से की गई है. इनका सौन्दर्य अवर्णनीय है. ताज महल की भीतरी दीवार पर फारसी में लिखा है-

‘आर्जूमन्द बानू जिसे मुमताज महल की उपाधि मिली थी, प्यारे शौहर सम्राट शाहजहां के साथ हमेशा—हमेशा के लिये इस मकबरे में आराम कर रही है. बेगम की मृत्यु 1840 हिजरी में हुई.’

ताजमहल की मरम्मत

ताजमहल के बन जाने के बाद उसकी देखभाल के लिये शाहजहां ने कई स्थाई आदमी मुकर्रर कर दिये थे. उनी तनख्वाहे थीं. उसकी समय-समय पर मरम्मत के लिये भी उचित प्रबन्ध कर दिया गया था.

कहते हैं कि इस काम के लिये उसने तीस गांवों को अलग निकाल दिया गया था. उन तीस गांवो की सालाना आमदनी चार लाख रूपयों की होती थी. पर धीरे-धीरे मुगलों की अमलदारी में ये तीस गांव भी चल गये.

बीच-बीच में ताज महल की मरम्मत का भी कोई प्रबन्ध नहीं हुआ. परिणामत जहां-तहां से इस जगत प्रसिद्ध इमारत में खराबियां आने लगी. पर अंग्रेजी शासनकाल में भारत के गवर्नर जनरल लार्ड कर्जन ने इस प्रसिद्ध इमारत की मरम्मत के लिये कई हजार रूपयों का अनुदान स्वीकृत किया. यह ताज महल का पहला जीणोंद्धार था.

भारत के आजाद होने के बाद ताजमहल के रखरखाव को सरकार ने अपने हाथों में ले लिया और समय—समय पर इसकी उचित देखभाल की जाती है.

taj mahal ka rahasya hindi me -ताजमहल का रहस्य

ताजमहल को लेकर हाल ही में कुछ ऐसी बाते सामने आई जिसका लेकर खबर बनी. कुछ विद्वानों और लेखको ने दावा किया है कि ताजमहल एक हिंदू देवस्थान था और इसका नाम तेजो महालय था. हालांकि इस दावे की कोई ​अधिकारिक पुष्टि नहीं की गई और इसे महज कॉन्सपिरेसी थ्योरी ही माना जाता है.

ताजमहल में एक तहखाना है जिनका दरवाजा यमुना की तरफ खुलता है, इन दरवाजों को भी ईंट की दीवार लगाकर बंद किया गया है. इन बंद दरवाजों को लेकर भी कई तरह के सवाल उठते रहे हैं लेकिन अभी तक इस मामले में कोई तथ्यात्मक बात सामने नहीं आई है.

कैसे पहुंचे आगरा?

आगरा को ताजमहल ने अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलवाई है. यह भारत का एक प्रमुख शहर है और दिल्ली के नजदीक है. हवाई जहाज से आने वाले यात्रियों के लिये इंदिरा गांधी अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डा, दिल्ली सबसे नजदीक पड़ेगा. यहां से सड़क मार्ग से आगरा पहुंचा जा सकता है.

रेलमार्ग से आगरा पहुंचना बहुत आसान है और देश के हरेक हिस्से से आगरा के लिये ट्रेन सुविधा उपलब्ध है. यहां भारतीय रेल के तीन प्रमुख रेलवे स्टेशन आगरा कैंट, आगरा फोर्ट और आगरा ईदगाह है. आगरा फोर्ट से ताजमहल सबसे नजदीक है.

सड़क मार्ग से भी आगरा आसानी से पहुंचा जा सकता है. देश के कई महत्वपूर्ण हाइवे यहां से गुजरते हैं. आगरा के लिये देश के सभी राज्यों से बस सेवा चलती है. दिल्ली से हर 10 मिनट पर आगरा के लिये बस उपलब्ध हो जाती है.

taj mahal timings – ताजमहल देखने का समय

सैलानियों के लिये ताजमहल को सुबह 6.00 पर प्रवेश देना प्रारंभ कर दिया जाता है. देशी और विदेशी सैलानियों के लिये टिकट की दरें अलग—अलग हैं. कैमरा अंदर ले जाने का शुल्क अलग से देना होता है.

मांग करने पर ताजमहल प्रशासन द्वारा गाइड भी निश्चित शुल्क पर उपलब्ध करवा दिया जाता है. यह ऐति​हासिक इमारत शाम 6.30 तक सैलानियों के लिये खुली रहती है.

शुक्रवार को इस ताजमहल को बंद रखा जाता है और शाम की नमाज के लिये ही खोला जाता है. अगर आप चांदनी रात में ताजमहल देखना चाहते हैं तो रात 8.30 से 12.30 तक ताजमहल को देख सकते हैं.

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