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कैला देवी मंदिर, करौली की क्यों है इतनी मान्यता
कैला देवी मंदिर राजस्थान के करौली जिले में स्थित है. इस मंदिर की पूरे देश में बहुत मान्यता है और दूर—दूर से श्रद्धालु मंदिर में मां कैला देवी के दर्शन करने आते हैं. इस मंदिर की वजह से करौली को विश्व के नक्शे में पहचान मिली हुई है. इस मंदिर की इतनी मान्यता क्यों है और क्या है मां कैला देवी का इतिहास यह जानने के लिए इस आलेख को पूरा पढ़ें.
कैला देवी मंदिर का स्थापत्य – Architecture of Kaila Devi Temple
कैला देवी के मंदिर का निर्माण मध्यकालीन है. मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 1600 ईस्वी में त्रिकूट पर्वत पर यहां के राजा भोमपाल ने करवाया था. मंदिर नागर शैली में बनावाया हुआ है. मंदिर के गर्भगृह में मां की तेजस्वी मूर्ति स्थापित है. मंदिर का निर्माण करौली में बहुतायत से मिलने वाले लाल पत्थर से की गई है.
दरअसल इस मंदिर में मां की दो मूर्तियों की स्थापना की गई है. इसमें मूल मूर्ति की प्रतिमा का मुख कुछ तिरछा प्रतीत होता है. माना जाता है कि यहां से पहले यह मूर्ति नगरकोट में स्थापित थी.
वहां के पुजारी ने आक्रांताओं के डर से इस मूर्ति को वहां से निकालकर यहां स्थापित कर दिया. इस मंदिर मेंं मां की स्थापना को लेकर कई मान्यतायें प्रचलित हैं. दूसरी मूर्ति मां चामुण्डा की है, जिनकी मान्यता मां कैला देवी के बराबर ही है.
कैला देवी का इतिहास – history of kaila devi Temple
कैला देवी को उत्तर भारत का शक्तिपीठ भी माना जाता है. कैला देवी को मां दुर्गा का ही एक अवतार माना गया है. मां कैला के सम्बन्ध में दो कथायें प्रमुख रूप से प्रचलित है.
पहली कथा के अनुसार देवकी और वसुदेव के आठवें पुत्र के बदले यशोदा की जो पुत्री मथुरा लाई गई थीं, वे ही मां योगमाया है जो कैला देवी के रूप में यहां प्रतिष्ठित हो गई हैं. मां कैला देवी को मां योगमाया का ही अवतार माना जाता है.
दूसरी कथा के अनुसार यहां प्राचीनकाल में नरकासुर नाम का राक्षस आतंक मचाया करता था. वहां ग्रामीणों और नगरवासियों की जान ले लिया करता था. उसके आतंक से इस पूरे क्षेत्र में भय का वातावरण रहा करता था.
नरकासुर से छुटकारा पाने के लिए लोगों ने मां दुर्गा की अराधना की. मां ने प्रसन्न होकर उन्हें नरकासुर से मुक्त करने का वरदान दिया. नरकासुर का वध करने के लिए मां ने कैला देवी का रूप धारण किया और उसका वध करके लोगों को नरकासुर से छुटकारा दिलवाया.
कैला देवी का लक्खी मेला- Lakhi Mela Kaila devi
कैला देवी मंदिर अपने लक्खी मेले के लिए बहुत प्रसिद्ध है. यह मेला चैत्र मास के द्वादशी से शुरू हो जाता है जो 15 दिन तक चलता है. श्रद्धालु मंदिर के पास ही स्थित कालीसिल नदी में स्नान कर मां के दर्शन करते हैं.
यहां के भोपे मां की पूजा में लांगुरिया लोकगीत गाते हैं. मेले में राजस्थान के अलावा उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और मध्यप्रदेश से भी दर्शनार्थी आते हैं. मेले के लिए जिला प्रशासन विशेष व्यवस्था करता है. मेले में लोग अपने मन्नते उतारतें है, मुण्डन करवाते हैं और मां की अराधना करते हैं.
कैला देवी मन्दिर में दर्शन का समय – Kaila devi Temple Visiting Hours
मन्दिर सुबह 4 बजे से खुल जाता है और रात को 9 बजे तक मां कैला देवी के दर्शन किये जा सकते हैं लेकिन दूर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए शाम 6 बजे तक दर्शन कर लेना ठीक रहता है क्योंकि यह मंदिर करौली शहर से 25 किलोमीटर दूर स्थित है.
हालांकि मंदिर के आसपास ठहरने के लिए विकल्प है लेकिन ज्यादा बेहतर होगा कि करौली शहर में रहने का इंतजाम किया जाये. दिन में एक बार मां के शयन के लिए 11 बजे पट बंद होत है जो बाद में खुल जाते हैं.
कैसे पहुंचें कैला देवी – How To Reach Kaila devi
कैला देवी सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है और करौली से 23 किलोमीटर के सफर के बाद आसानी से यहां पहुंचा जा सकता है. kaila devi temple nearest railway station सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन गंगापुर सिटी gangapur city to kaila devi by bus है जो मंदिर से 36 किलोमीटर दूर है. सबसे नजदीकी एयरपोर्ट जयपुर में स्थित है जो यहां से करीब 167 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. सड़क मार्ग सुविधाजनक और संसाधनों से भरपूर है. दिनभर यहां आने के लिए वाहन उपलब्ध रहते हैं.
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