Sandhi in Hindi संधि और संधि विच्छेद

संधि का हिन्दी व्याकरण में बहुत महत्व है. संधि दो शब्दो के जुड़ने से बनती है जिसमें किसी अक्षर का लोप होता है या फिर कोई नया अक्षर बनता है. इसके लिए सन्धि को ​कई प्रकारों में बांट कर उनके लिये नियम निर्धारित किये गये हैं. इस आलेख में संधि को उदाहरण सहित समझाते हुए उसे आसान भाषा में बताने का प्रयास किया गया है.

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संधि किसे कहते हैं?

जब दो अक्षरों को एक साथ मिलाकर उच्चारित किया जाये तो इसे अक्षर संधि कहा जाता है. इन दोनों अक्षरों को मिलाने से कहीं उच्चारण में साधारण अंतर आता है तो कहीं उच्चारण और उसके लिखने में बड़ा अंतर आ जाता है.

संधि कितने प्रकार की होती है या संधि के कितने भेद होते हैं?

संधि तीन प्रकार की होती है. 1. स्वरसंधि 2. व्यंजन संधि और 3. विसर्ग संधि

स्वर संधि की परिभाषा, नियम और स्वर संधि के उदाहरण

जब स्वर के साथ स्वर का मेल होता है तो उस संधि को स्वर संधि कहते हैं. स्वर सन्धि 7 प्रकार की होती है.

स्वर संधि के प्रकार

1. दीर्घ संधि
2. गुण संधि
3. वृद्धि संधि
4. यण या यादि चतुष्ठय संधि
5. अयादि चतुष्ठय संधि
6. पररूप संधि
7. पूर्वरूप संधि

दीर्घ संधि की परिभाषा, नियम और दीर्घ संधि के उदाहरण

ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ, ऋ या लृ के परस्पर मेल को दीर्घ सन्धि कहा जाता है. दीर्घ संधि में दो स्वरों के मेल पर एक दीर्घ स्वर बन जाता है और लघु स्वर का लोप हो जाता है.

संधि पहचानने की ट्रिक

नियमः अ और अ, अ और आ, आ और अ तथा आ और आ को मिलाने पर दीर्घ स्वर आ ही शेष बचेगा.

उदाहरणः वेद+अक्षर अर्थात वेदाक्षर
शोक+आतुर अर्थात शोकातुर
सेवा+अर्थ अर्थात सेवार्थ
विद्या+आलय अर्थात विद्यालय

नियमः इसी तरह इ और इ, इ और ई, ई और इ तथा ई और ई की संधि से दीर्घ स्वर ई शेष रह जाता है.

उदाहरणः गिरि+इन्द्र अर्थात गिरीन्द
फणि+ईश अर्थात फणीश
मही+इन्द्र अर्थात महीन्द्र
नदी+ईश अर्थात नदीश

नियमः उ और उ, उ और ऊ, ऊ और उ तथा ऊ और ऊ की संधि में दीर्घ स्वर ऊ शेष रह जायेगा.

उदाहरण भानु+उदय अर्थात भानूदय
लघु+उर्मि अर्थात लघूर्मि
स्वयंभू+उदय अर्थात स्वयंभूदय
वामोरू+ ऊरीकृत अर्थात वामोरूरीकृत

गुण संधि की परिभाषा, नियम और गुण संधि के उदाहरण

अ या आ के बाद ह्रस्व (छोटी) या दीर्घ (बड़ी) इ, उ, ऋ या लृ आये तो क्रम से दोनों के मेल से ए ओ अर् तथा अल् हो जाता है. इस संधि को गुण सन्धि कहा जाता है.

नियमः अ और इ, अ और ई, आ और इ तथा आ और ई की सन्धि से ए हो जाता है.

उदाहरणः जित+इन्द्रिय अर्थात जितेन्द्रिय
परम+ईश्वर अर्थात परमेश्वर
राजा+इन्द्र अर्थात राजेन्द्र
महा+ईश अर्थात महेश

नियमः अ और उ, अ और ऊ, आ और उ तथा आ और ऊ की सन्धि होने पर ओ हो जाता है.

उदाहरण: वसन्त+उत्सव अर्थात वसन्तोत्सव
जल+उर्मि अर्थात जलोर्मि
गंगा+उदक अर्थात गंगोदक
गंगा+उर्मि अर्थात ग्रंगोर्मि

नियमः अ और ऋ तथा आ और ऋ के मेल से अर् हो जाता है और इसी तरह लृ की सन्धि से अल् हो जाता है.

उदाहरणः देव+ऋषि अर्थात देवर्षि
राजा+ऋषि अर्थात राजर्षि

वृद्धि संधि की परिभाषा, नियम और वृद्धि संधि के उदाहरण

जब अ या आ के बाद ए, ऐ, ओ या औ आत तो वह सन्धि के बाद बदलकर ऐ और औ हो जाता है. इसको वृद्धि संधि कहते हैं.

नियमः अ और ए, आ और ए तथा आ और ऐ की सन्धि से ऐ हो जाता है.
उदाहरणः एक+एक अर्थात एकैक
परम+ऐश्वर्य अर्थात परमैश्वर्य
तथा+एव अर्थात तथैव
महा+ऐश्वर्य अर्थात महैश्वर्य

नियमः अ और ओ, अ और औ तथा आ और औ की सन्धि से औ हो जाता है.
उदाहरणः सुन्दर+ओदन अर्थात सुन्दरौदन
महा+औषधि अर्थात महौषधि
परम+औषधि अर्थात परमौषधि
परम+औदार्य अर्थात परमौदार्य
अपवादः अक्ष+ऊहिणी अर्थात अक्षौहिणी को दीर्घ सन्धि के स्थान पर वृद्धि संधि कहा जाता है लेकिन यह अपवाद है.

यण या यादि चतुष्टय संधि की परिभाषा, नियम और यादि संधि के उदाहरण

जब ह्रस्व (छोटी) या दीर्घ (बड़ी) इ, उ, ऋ और लृ के पीछे क्रम से इन स्वरो के स्थान पर कोई और स्वर आये तो इ का य, उ का व, ऋ का र और लृ का ल होकर उसी स्वर में जुड़ जाता है. इस प्रकार की सन्धि को यण या यादि चतुष्टय संधि कहा जाता है.

नियमः इ और अ, ई और अ, इ और आ, ई और आ, इ और उ, ई और उ, इ और ऊ, ई और ऊ, इ और ए, ई और ए, इ और ऐ, ई और ऐ, इ और ओ, ई और औ तथा इ और ऋ की संधि से य, यू, या, या, यु, यु, यू, यू, ये, ये, यै, यै, यो, यो, यौ, यौ तथा य हो जाता है. ऋ और लृ के उदाहरण प्रायः भाषा में नहीं मिलते है लेकिन परन्तु नियम यही रहता है.

उदाहरणः यदि+अपि अर्थात यद्यपि
गोपी+अर्थ अर्थात गोप्यर्थ
दधि+आनय अर्थात दध्यानय
देवी+आगमन अर्थात देव्यागमन
प्रति+उत्तर अर्थात प्रत्युत्तर
सखी+उक्त अर्थात सख्युक्त
नि+ऊन अर्थात न्यून
प्रति+एक अर्थात प्रत्येक
अति+ऐश्वर्य अर्थात अत्यैश्वर्य
युवति+ऋतु अर्थात युवत्यृतु

नियमः उ और अ, ऊ और आ, उ और आ, ऊ और आ, उ और इ, ऊ और इ, ऊ और ई, ऊ और ए, ऊ और ऐ, उ और ओ, ऊ और ओ, उ और औ, ऊ और औ तथा ऋ और अ, ऋ और आ की सन्धि से व, व, वा, वा, वि, वि, वी, वी, वे, वे, वै, वै, वो, वो, वौ, वौ तथा र, रा हो जाते हैं.

उदाहरणः मधु+अरि अर्थात मध्वरि
सग्यु+अम्बु अर्थात सरयवम्बु
सु+आगत अर्थात स्वागत
अनु+हत अर्थात अन्वित
अनु+एषणा अर्थात अन्वेषणा
बहु+ऐश्वर्य अर्थात बह्वैश्वर्य
पितृ+अनुमति अर्थात पित्रनुमति
मातृ+आनन्द अर्थात मात्रानन्द

अयादि चतुष्टय संधि की परिभाषा, अयादि संधि के सूत्र और अयादि संधि के उदाहरण

जब ए, ऐ, ओ तथा औ के पीछे कोई स्वर आता है तो क्रम से ए का अय्, ऐ का आय्, ओ का अव तथा और का आव हो जाता है. इसको अयादि सन्धि कहते हैं.

उदाहरणः ने+अन अर्थात नयन
गै+अक अर्थात गायक
पौ+अन अर्थात पवन
पौ+इत्र अर्थात पवित्र
गो+ईश अर्थात गवीश
पौ+अक अर्थात पावक
भौ+इनी अर्थात भाविनी
भौ+उक अर्थात भावुक
इसी तरह नायक का संधि विच्छेद नै—अक अर्थात नायक

पररूप संधि की परिभाषा, नियम और पररूप संधि के उदाहरण

जब उपसर्ग के अन्त में ह्रस्व या दीर्घ अकार हो और उसके पीछे ए या ओ आये तो अकार का लोप हो जाता है और उसको किसी विशेष चिन्ह से बताया भी नहीं जाता है. इसे पररूप सन्धि कहा जाता है.

उदाहरणः उप+ओषण और उपोषण

पूर्वरूप संधि की परिभाषा, नियम और पूर्वरूप संधि के उदाहरण

जब किसी शब्द के अन्त में ए और ओ हो और दूसरे शब्दों के आरंभ में अ हो तो उस अ का उच्चारण नहीं होता है और केवल ऽ का चिन्ह बना देते हैं.
उदाहरणः सखे+अर्पय अर्थात सखेऽर्पय

व्यंजन संधि की परिभाषा, नियम और व्यंजन संधि के उदाहरण

जब स्वर के साथ व्यंजन का या फिर व्यंजन के साथ व्यंजन का मेल होता है तो उसको व्यंजन संधि कहा जाता है. स्वर सन्धि की तरह व्यंजन संधि सुगम नहीं होती है.

व्यंजन संधि पहचानने की ट्रिक

नियमः जब क् के पीछे ग, ज, ड, द, ब, घ, झ, ढ, ध, भ, य, र, ल, व अथवा कोई स्वर हो तो प्रायः क् के स्थान में म् हो जायेगा.

उदाहरणः दिक्+गज अर्थात दिग्गज
धिक्+याचना अर्थात धिग्याचना
दिक्+दर्शन अर्थात दिग्दर्शन
धिक्+जड अर्थात धिग्जड
दिक्+अंबर अर्थात दिगम्बर
वाक्+इश अर्थात वागीश

नियमः जब अनुनासिक वर्ण के पहले क्, च्, ट्, त्, प् में से कोई अक्षर रहता है तो क् के स्थान पर ड्, च् के स्थान ड़्, ट् के स्थान पर ण्, त् के स्थान पर न् और प् के स्थान पर म् हो जाता है.

उदाहरणः प्राक्+भुख प्राड़्मुख
वाच्+मय अर्थात वाड़्मय
षट्+मंडप अर्थात षण्मंडप
जगत्+नाथ अर्थात जगन्नाथ
अप्+मय अर्थात अम्म्य

नियमः जब ट्, या पू के पीछे ग, ज, ड, द, ब, ध, झ, ढ, ध, भ, य, र, ल, व अथवा कोई स्वर आये तो चू के स्थान पर ज्, ट् के स्थान पर ड् और प के स्थान पर ब् हो जाता है.

उदाहरणः अच्+विकार अर्थात अज्विकार
अच्+अन्त अर्थात अजन्त
षट्+दर्शन अर्थात षड्दर्शन
षट्+अंग अर्थात षड्ंग
अप्+ज अर्थात अब्ज
अप्+ईश्वर अर्थात अवीश्वर

नियमः जब छ के पहले ह्रस्व स्वर आये तो छ दीर्घ हो जाता है और च और छ को मिलाकर लिखा जाता है. इस नियम में अपवाद स्वरूप छ कहीं+कहीं पहले भी लिखा जाता है.

उदाहरणः वृक्ष+छाया अर्थात वृक्षच्छाया
परि+छेद अर्थात परिच्छेद
लक्ष्मी+छाया अर्थात लक्ष्मीच्छाया

नियमः जब त् या द् के बाद च, छ, ट या ठ हो तो त् या द् के स्थान पर सन्धि में च या ट् हो जाता है.

उदाहरणः सत्+चरित्र अर्थात सच्चरित्र
उत्+छिन्न अर्थात उच्छिन्न
सत्+टीका अर्थात सट्टीका
सत्+ठक्कुर अर्थात सट्ठक्कुर

नियमः जब त् या द् के बाद ज, झ, ड या ढ हो तो त् या द् की जगह संधि के दौरान ज् या झ् हो जाता है.

उदाहरणः सत्+जाति अर्थात सज्जाति
तत्+झक्कार अर्थात तज्झंकार
तत्+डिमडिम अर्थात तड्डिमडिम

नियमः जब त् या द् के पीछे श होता है तो त् या द् का च् होकर श में मिलता है परन्तु साथ के श का भ्ज्ञी रूप छ हो जाता है.

उदाहरणः उत्+शिष्ट अर्थात अच्छिष्ट
सत्+शास्त्र अर्थात सच्छास्त्र

नियमः जब त् व द् के पीछे ह होता है तो त् या द् के स्थान में द् हो जाता है और साथ के ह का रूप ध हो जाता है.

उदाहरणः उत्+हार अर्थात उद्धार
तत्+हित अर्थात तद्धित

नियमः जब त् या द के पीछे ल होता है तो त् या द् की जगह ल् हो जाता है.

उदाहरणः उत्+लंघन अर्थात उल्लंघन

नियमः जब त् के पीछे ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व अथवा कोई स्वर हो तो त् के स्थान पर द् हो जाता है और जब द् के पीछे यह अक्षर आते हैं तो द् ज्यों का त्यों बना रहता है.

उदाहरणः उत्+घाटन अर्थात उद्घाटन
उत्+दीपक अर्थात उद्दीपक
भविष्यत्+वाणी अर्थात भविष्यद्वाणी
सत्+आनंद अर्थात सदानंद
महत्+औषध अर्थात महौषध

नियमः जब अनुस्वार के पीछे कोई स्वर हो तो अनुस्वार का म हो जाता है.

उदाहरणः सं+अचार अर्थात समाचार
सं+उदाय अर्थात समुदाय

विसर्ग संधि की परिभाषा, नियम और विसर्ग संधि के उदाहरण

जब किसी शब्द में विसर्ग आ रहा हो और उसकी संधि किसी स्वर या व्यंजन वाले शब्द के साथ होने से कोई विकार पैदा हो रहा हो तो उस सन्धि को विसर्ग संधि कहा जाता है.

विसर्ग संधि पहचानने की ट्रिक

नियमः जब किसी पद के अन्त में स् या र् हो तो उसको ऐसे उच्चारित किया जाता है.
उदहारणः मनस्+ मनः दुस या दुः

नियमः जब विसर्ग के पीछे ह्रस्व अ होता है तो उसका ओ हो जाता है और सन्धि के नियम से स्पष्ट करने के लिए वहां ऽ का चिन्ह लगा देते हैं.
उदाहरणः मनः+अभिलाष अर्थात मनोऽभिलाष

नियमः जब इ या उ युक्त अक्षर के सामने विसर्ग और हो उसके पीछे क, ख या प, फ आये तो विसर्ग ष् में बदल जाता है.
उदाहरणः निः+कृति अर्थात निष्कृति
निः+खलु अर्थात निष्खलु
निः+फल अर्थात निष्फल

नियमः जब विसर्ग के पीछे च या छ हो तो विसर्ग का श हो जाता है.
उदाहरणः निः+छल अर्थात निश्छल

नियमः जब विसर्ग के पीछे त या थ हो तो विसर्ग का स् हो जाता है.
उदाहरणः धनुः+टंकार अर्थात धनुष्टंकार

नियमः जब विसर्ग के पीछे त या थ हो तो विसर्ग का स् हो जाता है.
उदाहरणः निः+तार अर्थात निस्तार

नियमः जब विसर्ग के पीछे अथवा आ को छोड़ कर कोई अन्य स्वर हो और उसके पीछे कोई स्वर या ग, ज, ड, द, ब, ध, झ, ध, भ, ड़, ण, न, भ, य, र, ल, व, ह में से कोई अक्षर हो तो विसर्ग की जगह र हो जाता है.
उदारहणः निः+अर्थ अर्थात निरर्थ
निः+गुण अर्थात निर्गुण
निः+जल अर्थात निर्जल

नियमः जब विसर्ग के पीछे ग, ज, ड, द, ब, ध, झ, ढ, ध, भ, ड़, ण, न, म, य, र, ल, व अथवा ह हो तो उस विसर्ग का ओ हो जाता है.
उदाहरणः मनः+गत अर्थात मनोगत
मनः+भाव अर्थात मनोभाव
मनः+रथ अर्थात मनोरथ
मनः+हर अर्थात मनोहर

नियमः जब विसर्ग से पहले तो अ या आ को छोड़कर कोई स्वर हो और विसर्ग के पीछे र हो तो स्वर विसर्ग से पहले तो उसको दीर्घ कर देते हैं.
उदाहरणः निः+रोग अर्थात नीरोग

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