राजस्थान के पशु मेले Cattle fairs of Rajasthan

राजस्थान के पशु मेले पूरी दुनिया में विख्यात हैं. राजस्थान के प्रत्येक अंचल में उत्साह एवं उमंग के साथ पशु मेले आयोजित  किये जाते हैं. पशुपालन की परंपरा से समृद्ध राजस्थान में पशु को परिवार के एक सदस्य के रूप में रखा जाता है, लोक देवता के नाम पर या धार्मिक उत्सवों के अवसर पर आयोजित होने वाले इन पशु मेलों में भारतीय संस्कृति की झलक देखने को मिलती है.

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था – एक देश की महानता और नैतिक प्रगति को इस बात से आंका जा सकता है कि वहां जानवरों से कैसा व्यवहार किया जाता है.

पशु किसान का धन है इसीलिए लोक देवता के नाम पर या धार्मिक उत्सवों के अवसर पर आयोजित होने वाले इन पशु मेलों में जहां एक ओर भारतीय संस्कृति की झलक देखने को मिलती है, तो वही पशु मेले पर्यटन और पशुपालन के लिए भी अति महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं. पशुपालकों को पशुधन का उचित मूल्य दिलवाने की दृष्टि से विश्वविख्यात राज्य स्तरीत पशु मेलों के अलावा राजस्थान में लगभग 250 पशु मेले प्रतिवर्ष लगते हैं.

जहां मेले के अन्य आकर्षणों के साथ ही हजारों की संख्या में जानवरों की खरीद-फरोख्त होती है. ये पशु मेले बेहतर पशु विपणन सुविधा उपलब्ध कराने के साथ-साथ ग्रामीण शिक्षा एवं विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

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भारत की कुल पशु संपदा में राजस्थान की भगीदारी

राजस्थान की पशु संपदा अतुलनीय है. और आंकडे भी इस गर्व की पुष्टि करते हैं. देश भर में ऊटों और बकरियों की संख्या के लिहाज से राजस्थान का स्थान देश में सिरमौर बना हुआ है, भारत की कुल पशु संपदा में 11.27 प्रतिशत भगीदारी के साथ राजस्थान राज्य दूसरे स्थान पर है.

राजस्थान के पशु मेले आयोजन के उद्देश्य

पशुपालकों को अपने पशुओं के क्रय-विक्रय हेतु बेहतर पशु विपणन सुविधा उपलब्ध करवाना.

पशुधन को अधिक समृद्ध एवं उन्नतिशील बनाने की ओर पशुपालकों का ध्यान आकृष्ट करना.

पशु प्रतियोगिताओं के आयोजन द्वारा पशुपालकों को समृद्ध एवं उन्नत नस्ल के पशु रखने की ओर प्रेरित करना एवं उस दिशा में पशुपालकों का उत्साहवर्धन करना.

पशुपालन व्यावसाय को बेहतर बनाने हेतु पशु मेलों के माध्यम से नवीनतम विभागीय योजनाओं का व्यापक प्रचार-प्रसार करना ताकि आम पशुपालक इन योजनाओं से लाभान्वित हो सकें.

सरकारी एवं गैर सरकारी स्तर पर विभिन्न संस्थाओं द्वारा प्रदर्शनी का आयोजन कर नवीनतम वैज्ञानिक जानकारी उपलब्ध करवाना.

राजस्थान में पर्यटन विभाग, राजस्थान सरकार और पशुपालन विभाग के सौजन्य से लगने वाले प्रमुख राजस्थान के पशु मेले

नाम पशु मेला मेला अवधि (हिंदी पंचांग) मेला अवधि (अंग्रेजी कैलेंडर)
श्री रामदेव पशु मेलामाघ शुक्ल एकम से माघ शुक्ल पूर्णिमा5 से 19 फरवरी 2019
श्री शिवरात्रि पशु मेला माघ शुक्ल पूर्णिमा से फाल्गुन कृष्ण सप्तमी19 से 25 फरवरी 2019
श्री मल्लीनाथ पुश मेला चैत्र कृष्ण एकादशी से चैत्र शुक्ल एकादशी31 मार्च से 15 अप्रैल 2019
श्री बलदेव पशु मेला चैत्र शुक्ल एकम से चैत्र शुकल पूर्णिमा 6 से 19 अप्रैल 2019
श्री गोमतीसागर पशु मेला वैशाख शुक्ल त्रयोदशी से ज्येष्इ कृष्ण पंचमी 17 से 23 मई 2019
वीर तेजाजी पशु मेला श्रावण शुक्ल पूर्णिमा से भाद्रपद कृष्ण अमावस्या 15 से 30 अगस्त 2019
श्री गोगामेड़ी पशु मेला श्रावण शुक्ल पूर्णिमा से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा 15 अगस्त से 14 सितम्बर 2019
श्री जसवन्त प्रदर्शनी एवं पुश मेला आश्विन शुक्ल पंचमी से आश्विन शुक्ल चर्तुदशी 3 से 12 अक्टूबर 2019
श्री कार्तिक पशु मेला (पुष्कर) कार्तिक शुक्ल एकम से मार्गशीर्ष कृष्ण द्वितीया 28 अक्टूबर से 14 नवम्बर 2019
श्री चन्द्रभागा पशु मेला कार्तिक शुक्ल एकादशी से मार्गशीर्ष कृष्ण पंचमी 8 से 17 नवम्बर 2019

श्री रामदेव पशु मेला, नागौर World famous Ramdev cattle fair in nagaur

सम्पूर्ण भारत में सुन्दर, आकर्षण नागौरी नस्ल के बैल विख्यात हैं. इस नस्ल के बैलों का पशु मेला श्री रामदेव पशु मेले के नाम से राजस्थान के नागौर जिला मुख्यालय पर हर साल होता है. हिंदी पंचांग के अनुसार प्रतिवर्ष माघ शुक्ल एकम से पूर्णिमा तक लोक परम्पराओं के अनुसार आयोजित किया जाता है. यह राजस्थान के पशु मेले में प्रमुख स्थान रखता है

श्री रामदेव पशु का आयोजन साल 2019 में  5 से 19 फरवरी तक किया जायेगा.

मेल में भरी संख्या में पशु प्रेमी, स्थानीय वे विदेशी नागरिक आते है. नागौरी नस्ल की उत्पत्ति नागौर जिले का शिवालक क्षेत्र माना गया है, जो जिला मुख्यालय से दक्षिण पूर्व दिशा में लगभग 15 किलोमीटर की दूरी से शुरू हो जाता है. शिवालक क्षेत्र में प्रमुख रूप में भाकरोद, डेह, सीलगांव, संखवास, खजवाना एंव कुचेरा आदि गांव व कस्बे आते हैं.

यहां की लोक संस्कृति में नागौरी बैल रचे-बसे हैं. कृषि क्षेत्र में हुए विकास में नागौरी बैलों की अहम भूमिका रही है. विवाह, होली, दीपावली व अन्य तीज-त्यौहारों के अवसर पर यहां की ग्रामीण लोक संस्कृति मे नागौरी बैलों का गुणगान लोक गीतों में भी किया जाता है.

इसलिए लगता है नागौर का पशु मेला

किंवदंती है कि नागौर शहर की सीमा से लगे हुए मानासर गांव के समतल भू-भाग पर बाबा रामदेव की प्रतिमा स्वतः प्रकट हुई. श्रद्धालुओं ने इस भूमि पर छोटे से मंदिर का निर्माण कराया. मेले में आने वाले पशुपालक यहां बने मंदिर में लोक देवता श्री रामदेव बाबा का आशीर्वाद प्राप्त कर अपने पशुओं के स्वास्थ्य की कामना करते हैं.

श्री शिवरात्रि पशु मेला, करौली Shri Shivratri Pashu Mela karauli

राजस्थान के सिद्ध क्षेत्र करौली में श्री शिवरात्रि पशु मेला आयोजित किया जाता है. करौल परकोटे के बाहर दक्षिण पूर्व स्थित शिव मंदिर के सामने मेला मैदान में माघ शुक्ल पूर्णिमा से फाल्गुन कृष्ण सप्तमी तक प्रतिवर्ष श्री शिवरात्रि पशु मेला आयोजित किया जाता है.

साल 2019 में श्री शिवरात्रि पशु मेला का आयोजन 19 से 25 फरवरी तक किया जायेगा.

सदियों से करौली गौवंश रक्षक भगवान श्री कृष्ण के यदुवंश की राजधानी भी रहा है सप्ताह भर तक चलने वाले इस मेले में शामिल होने के लिए राजस्थान, हरियाणा, उत्तरप्रदेश एवं मध्यप्रदेश से भी पशुपालक आते हैं.

इस पशु मेले में हरियाणा नस्ल के बैलों की बेहद मांग रहती है.मेल में पशुपालकों के मनोरंजन हंतु प्राचीन परंपरागत लोक संगीत, लांगुरिया नृत्य, हैलाख्याल दंगल, नौटंकी, कवि सम्मेलन आदि का आयोजन भी किया जाता है.

मेले में आने वाले पशुपालक कैलादेवी, मदनमोहन जी तथा जैन मंदिर के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. इस मेले के तुरन्त बाद इसी स्थल पर माल मेला भरता है, जहां बड़ी संख्या में व्यापारी सामान का लेन-देन करने आते हैं. कहते हैं अतीत में यहां जवाहरात की दुकानें भी लगती थी. यह राजस्थान के पशु मेले में सबसे लंबे समय तक लगने वाले मेलों में एक है.

श्री मल्लीनाथ पशु मेला, तिलवाड़ा (बाड़़मेर) Mallinath cattle fair Barmer

वीर योद्धा रावल मल्लीनाथ जी की स्मृति में आयोजित होने वाले इस पशु मेले का आयोजन प्रतिवर्ष चैत्र कृष्ण एकादशी से चैत्र शुक्ल एकादशी तक किया जाता है. इस पशु मेले में कांकरेज नस्ल के बैल, मालानी नस्ल के घोड़े और ऊँटों की बिक्री जोर-शोर से की जाती है.

साल 2019 में 31 मार्च से 13 अप्रैल तक इस मले कि आयोजन किया जायेगा.

मल्लीनाथ पशु मेले की प्रचलित लोक कथा

चैत्र माह में लगने वाले श्री मल्लीनाथ पशु मेले के उद्गम की प्रचलित लोक कथा बेहद रोचक है. जब वीर रावल योद्धा मल्लीनाथ राजगद्दी पर विराजे तब विशाल भजन-कीर्तन का आयोजन किया गया, उसमें दूर-दूर से हजारों लोग एकत्रित हुए ओर आयेाजन की समाप्ति  पर लौटने से पूर्व अपनी सवारी के सुन्दर ऊँटों, रथ में लगे घोड़ों और आकर्षक बैलों का आदान-प्रदान किया, बस तभी से यह प्रथा चल पड़ी और इसने विशाल पशु मेले का रूप ले लिया.

बाड़मेर जिले के पचपदरा कस्बे के तिलवाड़ा गांव से गुजरने वाली शांत लूनी नदी में रात को इस मेले की रोशनी की छवि नयानाभिराम दृश्य रचती है.

श्री बलदेव पशु मेला, मेड़तासिटी (नागौर) Baldev Ram Pashu Mela Merta city

नागौर जिले में प्रतिवर्ष तीन राज्य स्तरीय पशु मेलों का आयोजन किया जाता है. लोकप्रिय किसान नेता श्री बलदेव राम मिर्धा की स्मृति में श्री बलदेव पशु मेला हर साल चैत्र शुक्ल एकम् से चैत्र शुक्ल पूर्णिमा तक आयोजित किया जाता है.

साल 2019 में 6 से 19 अप्रैल तक इस मेल का आयोजन किया जायेगा.

अतीत काल से ही नागौर जिला नागौरी नस्ल के गौवंश के कारण विश्व विख्यात रहा है. संत मीरा बाई के कारण नागौर के मेडता सिटी का ऐतिहासिक महत्व है. इस नगर में मध्यकालीन युग कें कृष्ण की अनन्य भक्त मीराबाई ने जन्म लिया. आज भी नगर के बीचों-बीच स्थित  मीराबाई के आराध्य देव श्री चारभुजा जी का मंदिर मीराबाई की चिरस्मृति बनाए हुए है.

श्री गोमती सागर पशु मेला, झालरापाटन (झालावाड़) Gomtisagar Pashu Mela jhalawar

झालावाड़ जिले के झालरापाटन नामक नगर में प्रतिवर्ष श्री गोमती सागर पशु मेला वैशाख शुक्ल त्रयोदशी से ज्येष्ठ कृष्ण पंचमी तक भरता है. यह पशु मेला हाड़ौती क्षेत्र का एक प्रसिद्ध मेला है जहां मालवी नस्ल के बैलों की खरीद-फरोख्त होती है.

साल 2019 मैं 17 से 23 मई तक इस मेल का आयोजन किया जायेगा.

श्री गोमती सागर पशु मेला, हाड़ौती क्षेत्र के झालरापाटन (झालावाड़) कस्बे में मालवी नस्ल के पशुओं के क्रय-विक्रय का केन्द्र बिन्दु है. गोमती सागर के पवित्र तट पर लगने वाला यह पशु मेला न केवल पशुओं के खरीद-फरोख्त के लिए अपितु जन साधारण के लिए भी एक धार्मिक तीर्थ स्थल है.

यहां मालवा और हाड़ौती क्षेत्र से आने वाले सैंकड़ों लोग पवित्र गोमती सागर तट पर स्नान करते हैं. इस मेले में आने वाले पशुपाल, व्यापारी एवं श्रद्धालुओं के लिए झालरापाटन नगर में स्थित सूर्य मंदिर आकर्षण का केन्द्र है.

वीर तेजाजी पशु मेला, परबतसर (नागौर) Shree Veer Tejaji Cattle fair

कृषि कार्यों के और गौरक्षक देवता के रूप में पूजनीय लोक देवता वीर तेजाजी की स्मृति में परबतसर में श्री वीर तेजाजी पशु मेला आयेाजित किया जाता है. हिंदी पंचांग के अनुसार यह मेला प्रतिवर्ष श्रावण शुक्ल पूर्णिमा से भाद्रपद अमावस्य तक लगता है.

साल 2019  में 15 से 30 अगस्त तक इस मेल का आयोजन किया जायेगा.

श्री वीर तेजाजी पशु मेल की प्रचलित लोक कथा

तेजाजी का बलिदान राजस्थान के मध्यकाल की एक अविस्मणीय घटना है. एक प्रचलित लोक कथा के अनुसार नागोर जिले के ग्राम खरनाल में जन्मे वीर तेजाजी अपने ससुराल पनेर (तहसील किशनगढ़) जा रहे थे, उसी समय कुछ डाकू ब्राह्यण की गायें छीन कर ले गये, चीख पुकार सुनकर तेजाजी गायों को छुड़ाने के लिए डाकुओं के पीछे दौड़ पड़े.

इसी दौरान उन्हें रास्ते में एक सांप मिला ओर उसने उन्हें काटना चाहा. इस पर तेजाजी ने कहा कि पहले वह गायों  को डाकुओं से मुक्त करा लें फिर वे स्वयं सर्पदंश के लिए उपस्थित हो जाएगें. कहा जाता है कि तेजाजी ने डाकुओं से गायों को तो मुक्त करा लिया किन्तु अपने क्षत विक्षत शरीर को लेकर वे नाग देवता के पास पहुंचे तो उसने रूधिरासिक्त शरीर को काटने से इन्कार कर दिया.

इस पर तेजाजी ने अपनी जीभ निकाली जिस पर सांप ने दंतक्षत किया और गौरक्षक वीर तेजाजी स्वर्ग सिधार गये.तेजाजी का बलिदान किशनगढ़ के सुरसुरा गांव के निकट हुआ था, किंतु उनका स्मारक स्थल परबतसर खेरिया तालाब के तट पर स्थित है, यही वह स्थान है जहां पशुपालन विभाग द्वारा प्रतिवर्ष श्री वीर तेजाजी पशु मेले का आयोजन किया जाता है.

श्री गोगामेड़ी पशु मेला, गोगामेड़ी (हनुमानगढ़) Gogamedi Cattle Fair

श्री गोगामेड़ी पशु मेला हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक लोक देवता गोगाजी की स्मृति में हिंदी पंचाग के अनुसार प्रतिवर्ष श्रावण शुक्ल पूर्णिमा से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा तक लगता है.

साल 2019 में  15 अगस्त से 14 सितम्बर तक मेल का आयोजन किया जायेगा.

पावन एवं प्रसिद्ध गोगामेड़ी नामक यह स्थान राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले की नोहर तहसील में पड़ता है, जहां भारी तादाद में ऊंटों की खरीद-फरोख्त होती है.लोक देवता गोगाजी की स्मृति में होने वाले  श्री गोगामेड़ी पशु मेले में वीर गोगाजी की समाधि तथा गोगा वीर व जाहर पीर के जयकारों के साथ गोगाजी तथा गोरखनाथ के प्रति भक्ति की अविरल धारा बहती है.

गोगा जी मेल की प्रचलित लोक कथा

गुरू गोरखनाथ के परम शिष्य गोगा जी का जन्म चुरू जिले के ददरेवा गांव में हुआ था. गोगाजी, गुरूभक्त होने के साथ-साथ वीर योद्धा एवं कुशल राजा भी थे. गोगा जी राजस्थान के पांच पीरों में से एक माने जाते हैं, मुस्लिम इन्हें जाहर पीर या गोगा पीर नाम से मानते हैं.

श्री गोगामेड़ी लोक देवता गोगाजी का समाधिस्थल है. सिद्ध पुरूष के रूप में पूजे जाने वाले गोगाजी के देवरे गांव-गांव में मिल जाएंगे, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली तथा दूसरे प्रान्तों के लाखों श्रद्धालु आते हैं.

भक्तजन गुरू गोरखनाथ के टीले पर जाकर शीश नवाते हैं, फिर गोगाजी के मंदिर में मत्था टेक मन्नत मांगते हैं. यह मेला पशुओं की खरीद-फरोख्त से व्यापारिक गतिविधियों का महत्वपूर्ण केन्द्र बना हुआ है.

श्री जसवंत प्रदर्शनी एवं पशु मेला, भरतपुर Jaswant Pardasni and Cattle Fare Bharatpur

श्री जसवंत प्रदर्शनी एवं पशु मेला हिंदी पंचांग के अनुसार प्रति वर्ष आश्विन शुक्ल पंचमी से आश्विन शुक्ल चर्तुदशी तक भरतपुर में आयोजित किया जाता है.

साल 2019 में 3 से 12 अक्टूबर तक श्री जसवंत प्रदर्शनी एवं पशु मेल का आयोजन किया जायेगा.

उत्तरप्रदेश की सीमा से सटा भरतपुर बृजलोक की संस्कृति और साहित्य और साहित्य के उत्थान में भी अपना अमूल्य योगदान देता रहा है. मेले में खेलकूद प्रतियोगिताएं एवं विशाल कुश्ती दंगल के साथ ही सांस्कृतिक कार्यक्रमों के तहत नौटंकी, कव्वाली एवं कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया जाता है.

भरतपुर रियासत के महाराजा कृृष्णसिंह ने अपने दादा महाराज जसवंत सिंह की स्मृति को चिरस्थाई बनाने के लिए उनके नाम पर इस मेले की शुरूआत एक छोटे से हाट के रूप में की थी. मेला स्थल के पास ही एक बगीचा है, जहां वर्षों पहले बाबा गोलमोल नाम के सिद्ध महात्मा रहा करते थे.

श्री जसवंत प्रदर्शनी एवं पशु मेल की प्रचलित लोक कथा

स्थानीय समाज में एक प्रचलित कथा के अनुसार बाबा गोलमोल अपने शिष्यों से कहा करते थे कि यह भूमि भविष्य मे सोना उगलेगी तथा वहां पर मीना बाजार लगा करेगा, आगे चलकर महात्मा की भविष्यवाणी सच साबित हुई और यहां दशहरे के अवसर पर जसवंत प्रदर्शनी एवं पशुमेला भरने लगा.

दशहरे के मौके पर भरतपुर में लगने वाली नुमाइश ऐतिहासिक है. नुमाइश मैदान में पहले पशु मेला भरता है जहां पशुपालक पशुओं की खरीद-फरोख्त करते हैं. भरतपुर के इस मेले में पक्की दुकानें बनी हुई हैं, जहां कपडे़, मिठाइयां, लोहा बाजार, महिलाओं के श्रृंगार की वस्तुएं, बच्चों के खिलौने, खाद्य व्यंजन, फोटो स्टूडियों आदि की दुकानें लगती हैं.

इसके अतिरिक्त ग्रामीण कारीगरों के मिट्टी, लकड़ी, लोहे तथा पीतल की नक्काशीदार कलात्मक हस्तशिल्प की दुकानें भी यहां लगायी जाती हैं.मेले में खेल तमाशों के मंडप, झूले, सर्कस एवं जादूगरों के जादुई करिश्मों के पांडाल भी यहां जन समुदाय के आकर्षण के केन्द्र होते हैं.

पुष्कर मेला Pushkar Fair

ब्रह्या जी ने पुष्कर में कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक यज्ञ किया था, जिनकी स्मृति में अनादिकाल से यहां कार्तिक मेला लगता आ रहा है. कार्तिक पूर्णिमा के महत्व को रेखांकित करता पुष्कर में लगने वाला कार्तिक पशु मेला लोकप्रियता की ऊंचाई पर है.

हिंदी पंचाग के अनुसार पुष्कर में प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल एकम से मार्गशीर्ष कृष्ण द्वितीया तक मेल का आयोजन होता है. साल 2019  में 28 अक्टूबर से 14 नवम्बर तक पुष्कर मेल का आयोजन किया जायेगा. आज पुष्कर मेला पूरे विस्वे में प्रसिद्ध है इस मेल में ऊँटों सहित अन्य पशु आकर्सन का केन्द्र होते है जिन्हे देखने के लिए देश और दुनिया लोग एकत्रित होते है.

नाग पहाड़ियों के बीच बसा तीर्थ गुरू पुष्कर सृष्टि के रचयिता ब्रह्या की यज्ञस्थली और ऋषियों की तपस्थली रहा है. यहां प्रति वर्ष विश्वविख्यात कार्तिक पशु मेला लगता है. यही वह स्थान है, जहां महर्षि विश्वामित्र ने गायत्री मंत्र और आयार्च भरत ने नाट्यशास्त्र की रचना की थी, वहीं जमदान्गि ऋषि और मुनि अगस्त्य ने तपस्या की थी. तपस्या, धर्म एवं साहित्य सृजन के इस सिलसिले ने ही पुष्कर को धार्मिक नगरी का अस्तित्व प्रदान किया.

पुष्कर प्रसिद्ध तीर्थस्थल है, सभी तीर्थ करके पवित्र पुष्कर झील में स्नान करना शुभ माना गया है. यहां की असीम शांति और पवित्रता के कारण बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटक लम्बे प्रवास पर आते हैं.

पुष्कर मेल और मुगल बादशाह जहांगीर

मुगल बादशाह जहांगीर अजमेर के दौलताखान में रहे, जो आजकल यहां राजकीय संग्रहालय बना हुआ है. मुगल सेना में युद्ध के लिए घोड़ों की बढ़ती मांग के कारण बादशाह ने पुष्कर के कार्तिक मेले को पशु मेले का रूप दिया.

पशु मेले के दौरान यहां घोड़ों की सर्वाधिक बिक्री हुई. सोलहवीं सदी उत्तरार्द्ध तक यह पशु मेला दूर-दूर तक विख्यात हो गया था. ब्रिटिश काल में पुष्कर घाटी वाली सड़क बनी और मेले की रौनक में उत्तरोत्तर वृद्धि होने लगी.

श्री चन्द्रभागा पशु मेला, झालरापाटन (झालावाड़) Chandrabhaga Cattel Fair in Jhalawar

प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी से मार्गशीर्ष कृष्ण पंचमी तक झालावाड़ जिले के झालरापाटन नामक नगर में से गुजरने वाली चन्द्रभागा नदी के किनारे पर श्री चन्द्रभागा पशु मेला आयोजित होता है.

यहां दूर-दूर से देशी-विदेशी पर्यटक, पशुपालक और किसान आते हैं. मालवी नस्ल के बैल इस मेले का प्रमुख आकर्षण हैं.

साल 2019 में 8 से 17 नवम्बर तक इस मेल का आयोजन किया जायेगा पशु मेले के अलावा चन्द्रभागा नदी का पुराणों में भी धार्मिक महत्व माना गया है, यही कारण है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन इस मेले की रौनक चैगुनी हो जाती है.

मेले के दौरान हजारों की संख्या में नर-नारियों इस पवित्र नदी में स्नान कर पुण्य प्राप्त करते हैं. किंवदंती है कि इसी चन्द्रभागा नदी में स्नान करने से वीर विक्रमादित्य का कोढ़ समाप्त हुआ था. वीर विक्रमादित्य द्वारा निर्मित शिवमन्दिर आज भी चन्द्रभागा नदी के पवित्र घाट पर मौजूद है.

महाराजा झाला जालिम सिंह ने अपने शासन काल के दौरान राज्य की अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए व्यापारिक केन्द्र बनाने का फैसला लिया और चन्द्रभागा नदी के किनारे पशु मेला लगाया गया. जहां दूर-दूर से देशी-विदेशी पर्यटक, पशुपालक और किसान आते हैं. मालवा की सीमा पर स्थित होने के कारण झालावाड़ जिला मालवी नस्ल के पशुओं के लिए समृद्ध माना जाता है.

मेला अवधि के दौरान विभिन्न राजकीय, गैर राजकीय एवं स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा विकासात्मक प्रदर्शनियां एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं. मेले में पशुओं की विभिन्न प्रतियोगिताएं आयोजित कर पशुपालकों का उत्साहवर्घन भी किया जाता है.

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