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Ganga river history in hindi language गंगा नदी की आत्मकथा
मेरा जन्म कैसे हुआ?-Ganga river history
मेरा जन्म पुराणों में लिखा हुआ है. संसार के पालक और हिंदुओं के सर्वपूज्य परमदेव भगवान विष्णु के पदनखों से मेरा जन्म हुआ. संसार के सृष्टा ब्रह्मा ने भगवान विष्णु की चरणामृत को अपने कमंडल में धारण किया. भगवान ब्रह्मा के कमंडल में ही मेरा निवास होता अगर राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को अभिशाप न मिलता होता. इन अभिशापित पुत्रों को त्राण दिलवाने के लिए उनके वंशज महाराज भागीरथ को मेरी जरूरत थी, मेरे पवित्र जल से ही उनके पुरखों को प्रेत योनी से मुक्ति मिलती.
गंगा यानि मुझे पृथ्वी पर लाने के लिए महाराज भागीरथ ने इतना कठोर तप किया कि कठिन और दृढ़निश्चय का अर्थ ही भगीरथ प्रयास कहा जाने लगा. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर मुझे धरती पर आने का आदेश स्वयं ब्रह्मा ने दिया लेकिन परेशानी थी कि मेरा प्रबल वेग धरती सहन नहीं कर सकती थी. जब-जब संकट पैदा हुआ हुआ है, देवों के देव महादेव ने संकट से उबारा है. इस संकट को दूर करन के लिए स्वयं महादेव ने अपने जटाजूटों को खोल दिया और मेरे वेग को निर्बल कर अपनी जटाओं में धारण किया. मुझे धारण करने के कारण उनका नाम पड़ा गंगाधर.
शिव की जटाओं में अनेक वर्षों तक चक्कर काटने के बाद मैं ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष की दशमी तिथि को पृथ्वी पर आई. मेरे प्रबल वेग ने मार्ग में आने वाली हरेक बाधा और वस्तु को स्वयं में समाहित कर लिया. इसी क्रम में जब ऋषि जह्ननु के आश्रम पहुंची और उनके यज्ञमंडप को नष्ट कर दिया. क्रुद्ध ऋषि ने मुझ भागीरथी को अपने तपोबल से चुल्लु में भर लिया और पी गए. भागीरथ ने उनसे प्रार्थना की और मुझे मुक्त करने का आग्रह किया. उनकी प्रार्थना को स्वीकार करते हुए ऋषि ने मुझे अपने कान के रास्ते बाहर निकाल दिया. इसी वजह से मुझे एक नया नाम जह्नुतनया ओर जाह्नवी मिला. वहां से आगे बढ़ी और रसातल में पहुंच कर मैंने भागीरथ के पूर्वजों और सगरपुत्रों का उद्धार किया और मेरे पावन जल की स्पर्श की वजह से उन्हें स्वर्ग में स्थान मिला.
मैं भगवान विष्णु की चरणामृत बनी, ब्रह्मा के कमंडल में स्थान पाया और महादेव ने मुझे अपने शीश में धारण किया. इन त्रिदेवों की कृपा मिलने से मैं अक्षय यशस्विनी बन गई. मैं ही थी जो शिव के तेज को शांत करके स्कन्द के जन्मग्रहण में सहायिका बनी. मैंने न जाने कितने पतितों का उद्धार किया. इतने सब के बाद भी मुझे इस बात का गर्व है कि मैं इस भारत भूमि के सबसे वीर योद्धा भीष्म की जननी हूं. मैं अगर कुछ भी न होती तो भी भीष्म जैसे पुत्र की जननी होना भी मेरे लिए असाधारण बात है. भारत वर्ष के सूदीर्घ इतिहास में जो दो चार वीरवती माताएं हुई है, भीष्म ने मेरा नाम सर्वोपरी रखा है. महाभारत मेरे पुत्र भीष्म की तेजोमयी गाथा से अटा पड़ा है.
मेरा अतीत जितना गौरवपूर्ण और तेजस्वी है, मेरा वर्तमान भी उससे कम नहीं है. मैं जब हिमालय की गोद से निकलती हूं तो उस गंगोत्री में हिमालय के उन गुणों को अपने साथ लेकर जन-जन तक आती हूं जो उन्हें निरोग और समृद्ध बनाता है. मेरा प्रसाद इस देश को जो हिमालय की शिखर से शुरू होतो है वो बंगोपसागर या बंगाल की खाड़ी तक अनवरत बहता है. हिमालय यदि भारत का रजतमुकुट है तो मैं गंगा उसके वक्षस्थल का हीरक हार. इस देश के तीर्थ मेरे किनारे पर प्राण पाते हैं और मेरा पारसजल खेतों की मिट्टी में सोना उपजाता है.
मेरे ही तट पर बैठकर तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना की. धर्म मेरी नाव है और सत्य मेरी पतवार. मेरे पावन जल में अपने पाप धोने दुनिया भर से लोग आते है. मैं स्वयं मैली होकर सबको स्वच्छ कर रही हूं. मेरे असंख्य पुत्र जो मुझे मां गंगा कहते हैं बस एक ही उम्मीद रखती हूं कि मेरे प्रवाह को वे निरंतर बनाए रखें और स्वच्छ बनाए रखे ताकि एक गौरवमयी देश की गौरवमयी नदी होने का गर्व सदैव मेरे पास रहे.
Ganga River Map |
गंगा नदी कहां से कहां तक बहती है?-ganga river origin
tributaries of ganga |
गंगा नदी की सहायक नदियां-tributaries of ganga
गंगा नदी के किनारे स्थित प्रमुख शहर-Ganga river route
गंगा नदी की भौगोलिक स्थिति-10 points about Ganga river in hindi
गंगा नदी की घाटी भारत की सबसे बड़ी नदी घाटी है जो भारत के कुल क्षेत्रफल के 26 प्रतिशत भू-भाग पर फैली हुई है. गंगा का मैदान 8 लाख 61 हजार 404 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. देश की 43 प्रतिशत जनसंख्या गंगा के मैदान में रहती है. गंगा नदी का मैदान देश के 11 राज्यों उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, छतीसगढ़, झारखण्ड, बिहार, पश्चिम बंगाल और दिल्ली तक फैला हुआ है.
गंगा भारत के लिए धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है ही लेकिन इसके प्रवाह क्षेत्र के कारण बने विशाल गंगा के उपजाऊ मैदान के कारण बड़ा आर्थिक लाभ भी मिलता है. भारत की सबसे घनी जनसंख्या इसी गंगा के मैदान में पाई जाती है.
पुराणों में गंगा नदी-ganga goddess in Indian Mythology
हिन्दु धर्म में गंगा को बहुत महान नदी माना गया है और ढेरों धर्मग्रंथों में गंगा को लेकर श्लोक और ऋचाओं का निर्माण ऋषियों ने किया है-
श्लोकः अस्या जल्स्य गुणाः शीतत्वम्, स्वादुत्वम, स्वछत्वम, अत्यन्तरूच्यत्वम्, पथ्तत्वम्, पावनत्वम्, पापहारित्वम्, तृष्णामोहध्वंसत्वम्, दीपनत्वम, प्रज्ञाधारित्वंच, इति राजनिर्घण्टः।
अर्थः ठंडक, स्वादयुक्त, स्वच्छ, मीठा, औषधीय, पवित्र पापहारी, प्यास और मोह नष्ट करने वाला, दिमाग प्रज्वलित करने वाला, प्रज्ञा पैदा करना गंगा नदी के पानी के गुण हैं।
श्लोकः गंगां पुण्यजलां प्राप्य त्रयोदष विवर्जयेत्।
शौचमाचमनं सेकं निर्माल्यं मलघर्षणम्।
गात्रसंवाहनं क्रीड़ां प्रतिग्रहमथोरतिम् ।।
अन्यतीर्थरतिचैवः अन्यतीर्थ प्रषंसनम्।
वस्त्रत्यागमथाघातं सन्तारंच विषेषतः।।
अर्थः इस श्लोक में गंगा में निम्न कामों का निषेध बताया गया हैः गंगा में शौच और कुल्ला, पूजा में उपयोग किए गए बासी फूल और चढ़ावा, गंदगी, मृत शरीर, दान लेना, निंदा करना, कपड़े धोना, नहाना और शोर करना महापाप है।
श्लोकः त्रिभिः सारस्वतं तोयं सप्ताहेन तु यामुनम्।
सद्यः पुनाति गांगेयं दर्षनादेव नार्मदम्।।
(मत्स्य पुराण 185/10-11)
अर्थः इस श्लोक में कहा गया है कि सरस्वती नदी में तीन दिन नहाने से, यमुना में एक सप्ताह नहाने से और गंगा में मात्र एक डुबकी लगा लेने से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं.
नमामी गंगे कार्यक्रम
‘नमामी गंगे कार्यक्रम’ एक एकीकृत संरक्षण मिशन है, जिसे जून 2014 में केंद्र सरकार द्वारा 20,000 करोड़ रुपये के बजट के साथ ‘फ्लैगशिप प्रोग्राम’ के रूप में अपनाया गया ताकि राष्ट्रीय नदी गंगा के प्रदूषण, संरक्षण और कायाकल्प के उद्देश्यों को पूरा किया जा सके.
नमामी गंगे कार्यक्रम के तहत प्रमुख उपलब्धियां हैं: –
1. सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाना: – उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल राज्यों में 63 सीवरेज प्रबंधन परियोजनाएं. 1187.33 की सीवरेज क्षमता बनाने के लिए कार्य निर्माणाधीन है. हाइब्रिड एन्युइटी पीपीपी मॉडल आधारित दो परियोजनाएं जगजीतपुर, हरिद्वार और रामाना, वाराणसी के लिए शुरू की गई हैं.
2. नदी के सामने आधारभूत ढांचों का विकास: नदी के सामने 28 विकास परियोजनाओं का निर्माण, आधुनिकीकरण. 182 घाटों और 118 श्मशान के नवीनीकरण के लिए 33 परियोजनाएं शुरू की गई हैं.
3. नदी की सतह की सफाई: घाटों और नदी की सतह पर तैरते ठोस कचरे के संग्रह के लिए 11 स्थानों पर तेजी से काम चल रहा है.
4. जैव-विविधता संरक्षण: जैव विविधता संरक्षण और गंगा कायाकल्प के लिए गंगा नदी में मत्स्य संरक्षण, गंगा नदी डॉल्फिन संरक्षण शिक्षा कार्यक्रम शुरू किया गया है. देहरादून, नरोरा, इलाहाबाद, वाराणसी और बराकपुर में 5 जैव-विविधता केंद्र की पहचान की गई है. प्रजातियों को की बहाली के लिए विकसित किया गया है.
5. वनीकरण: वन्यजीव संस्थान के माध्यम से गंगा के लिए वानिकी, केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान और पर्यावरण शिक्षा केंद्र स्थापित किया गया है. वन अनुसंधान परियोजना, देहरादून द्वारा तैयार की गई विस्तृत परियोजना रिपोर्ट के अनुसार गंगा के लिए 2300 करोड़ रूपये के औषधीय पौधों के लिए उत्तराखंड के 7 जिलों में कार्य शुरू किया गया है.
6. सार्वजनिक जागरूकता: सार्वजनिक पहुंच और सामुदायिक भागीदारी को मजबूत बनाने के लिए कार्यशालाओं, संगोष्ठियों और सम्मेलनों और कई जागरूकता गतिविधियों की एक श्रृंखला आयोजित की गई. रैलियों, अभियानों, प्रदर्शनियों, श्रम दान, स्वच्छता प्रतियोगिताओं, वृक्षारोपण में आमजन को जोड़ा गया है.
7. प्रभावी औद्योगिक निगरानी: 760 सकल प्रदूषण उद्योग (जीपीआई) में से 572 में रियल टाइम एफ़्लुएंट मॉनिटरिंग स्टेशन (ईएमएस) स्थापित किया गया है. अब तक 135 जीपीआई को क्लोजर नोटिस जारी किया गया है और अन्य को निर्धारित मानदंडों के अनुपालन और ऑनलाइन ईएमएस की स्थापना के लिए समय सीमा दी गई है.
8. गंगा ग्राम: पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय (एमओडीडब्ल्यूएस) ने 5 राज्यों (उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल) में गंगा नदी के किनारे स्थित 1674 ग्राम पंचायतों की पहचान की. इन ग्राम पंचायतों में शौचालयों के निर्माण के लिए पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय को 578 करोड़ रूपये जारी किए गए हैं. 8 लाख 54 हजार शौचालयों का निर्माण पूरा कर लिया है. 7 आईआईटीज का कंसोर्टियम गंगा नदी बेसिन योजना की तैयारी में लगा हुआ है और 65 गांवों को मॉडल गांवों के रूप में विकसित करने के लिए 13 आईआईटीज द्वारा अपनाया गया है.