Table of Contents
रानी की बाव Rani ki Vov
रानी की बाव stepwell गुजरात के पाटन जिले में स्थित है. इस बावड़ी का निर्माण सोलंकी राजवंश के राजा भीमदेव प्रथम के याद में उनकी पत्नी रानी उदयामति ने निर्माण कराया था. जिस बाद में करणदेव ने निर्माण कार्य पूरा करवा था. इस लिए इस बावड़ी का नाम “रानी की बाव” है. देखने में बेहद खूबसूरत इस बावड़ी में कई तरह की सीढ़ियां हैं.इतिहासकारों की माने तो ये बावड़ी सरस्वती नदी से जुड़ी हुई है. बावड़ी के नीचे एक छोटा द्वार भी है, जिसके अंदर कई किलोमीटर लंबी एक सुरंग थी जो फ़िलहाल बंद है.
रानी की वाव की फोटो वाला 100 रुपये का नया नोट आरबीआई RBI जल्द जारी करेगा.
RBI का नया नोट जल्द जारी होगा. आरबीआई ने 100 रुपये के नए नोट का डिजाइन जारी कर दिया है. नोट का रंग लैवेंडर है. नोट के पीछे रानी की वाव को दर्शाया गया है. नोट के पीछे बनी रानी की वाव गुजरात के पाटन गांव में है. ये बावड़ी सरस्वती नदी के किनारे पर स्थित है.
कब हुआ रानी की बाव का निर्माण Rani ki Vav History in hindi
रानी की बाव का निर्माण 10वीं सदी में सोलंकी वंश की रानी उदयामति ने करवाया था. बावड़ी की चौड़ाई 20 मीटर, लंबाई 64 मीटर और गहराई लगभग 27 मीटर है.
बाव सात मंज़िला ही जिसमे मारू-गुर्जर स्थापत्य शैली का उपयोग किया गया है बाव जल संग्रह की तकनीक, बारीकियों और अनुपातों की कला क्षमता की जटिलता को दर्शाता है.वाव की दीवारों और स्तंभों पर सैकड़ों नक्काशियां की गई हैं. सात तलों में बाटी गई बाव कि सीढ़ीदार कुएं में नक्काशी की गई 500 से अधिक बड़ी मूर्तियां और एक हज़ार से अधिक छोटी मूर्तियां हैं.
बाव की दीवारों पर भगवान राम, कल्कि, राम, कृष्णा, नरसिम्हा, वामन, वाराही ,वामनावतार, महिषासुरमर्दिनी, कल्कि अवतार और भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों के अनको चित्र मूर्तियो के रूप में अंकित हैं. साल 2001 में इस बावड़ी से गणेश और ब्रह्मा की 11वीं और 12वीं शताब्दी में बनी दो मूर्तियां भी चोरी हुई थी.
इसलिए कहा जाता है इस बाव
हिंदुस्तान के अधिकतर राज्यों में बोलचाल में स्थानीय भाषा का ही महत्व दिया जाता है. गुजरात की स्थानीय भाषा में बावड़ी या तालाब को ‘बाव’ कहते हैं कहते है. इसलिए गुजरात कि ये विश्व प्रसिद्ध रानी की बावड़ी stepwell रानी की बाव के नाम से जानी जाती है.
विश्व विरासत की सूची में शामिल है रानी की बाव facts about Rani ki Vav
भारत की इस विरासत को यूनेस्को UNSCO ने 2014 में विश्व विरासत World Heritage Site की सूची में शामिल किया था. यूनेस्को की टीम ने रानी की बाव, बावड़ी को भारत की सभी बावड़ियों की रानी के खिताब से भी नवाजा.
यह भी पढ़ें:
कैसे पहुंचें रानी की बाव
हवाई मार्ग
हवाई मार्ग से रानी की बाव पहुंचने के लिए अहमदाबाद एयरपोर्ट पहुंचने के बाद सड़क मार्ग से लगभग 123 किलोमीटर rani ki vav distance from ahmedabad की दूर तय करे आप पाटन के रानी की बाव पहुंच सकते है.
सड़क मार्ग
सड़क मार्ग पहुंचने के लिए अपने निजी वाहन से रानी की बाव पहुंच सकते है.साथ ही गुजरात के लगभग सभी शहरो से पाटन के लिए बस वे निजी साधन से पंहुचा जा सकता है. अहमदाबाद से पाटन पहुंचे में लगभग 4 घंटे और मेहसाणा से पाटन पहुंचने में 1 घंटा लगता है.
रेल मार्ग
रेल मार्ग से भारत से सभी प्रमुख स्टेशन से अहमदाबाद तक ट्रैन की सुविधा उपलब्ध है.रानी की बाव का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन मेहसाणा है.
रानी की बाव देखने का समय rani ki vav timings
सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक रानी की बाव पर्यटको के लिए खुली रहती है.
Rani Ji ki Bawdi Rajasthan |
राजस्थान में भी है रानी जी की बावड़ी
गुजरात से सटे राजस्थान में भी जल संरक्षण की परम्परा का उत्कृष्ट नमूना है. राजस्थान के बूंदी जिले में रानी जी की बावड़ी स्थित है. यह भी एक stepwell है जो देखने में काफी कुछ रानी की बाव की तरह ही दिखती है. दोनों का वास्तुशिल्प लगभग एक ही है. बूंदी स्थित रानी जी की बावड़ी का निर्माण बूंदी के रावराजा अनिरूद्ध सिंह की रानी नाथावती ने करवाया था. इसका निर्माण 16 वीं सदी के आखिर में यानि 1699 मे करवाया गया. यहां भी रानी की बाव की तरह ही खम्भों पर देवताओं के सुंदर चित्र उत्कीर्ण किए गए हैं. यहां भगवान दशावतार और नवगृह के साथ ही हाथी की मूर्तियां दर्शनीय है.
यह भी पढ़ें: