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Essay on Indira Gandhi in Hindi – इंदिरा गांधी पर निबन्ध

Essay on Indira Gandhi in Hindi इंदिरा गांधी पर निबन्ध

इंदिरा गांधी पर निबन्ध

इंदिरा गांधी ने आधुनिक भारत के निर्माण एवं विकास में जो भूमिका निभाई है वह युगों तक स्मरणीय एवं अनुकरणीय रहेगी. वे भारत में अपितु विश्व में 20वीं शताब्दी की सर्वोत्कृष्ट महिमा मण्डित महिला के रूप में सम्मानित हुई हैं. विश्व में शांकि की स्थापना के अनवरत प्रयत्नों के फलस्वरूप उन्हें मरणोपरान्त नेहरू शांति पुरस्कार प्रदान किया गया.  

Indira Gandhi Biography in Hindi

इंदिरा गांधी का बचपन

इंदिरा गांधी स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू की संतान थीं. इंदिरा गांधी की मां का नाम कमला नेहरू व दादा का नाम पं. मोती लाल नेहरू था. पं. मोती लाल नेहरू अपने समय के प्रसिद्ध वकील व समृद्धशाली व्यक्ति थे. उनका घर आनन्द भवन बहुत विशाल एवं सुखसुविधा से पूर्ण था. आनन्द भवन उन दिनों देश की राजनितिक गतिविधियों का मुख्य स्थान था. देश के शीर्ष नेता वहां एकत्रित होकर स्वतंत्रता आंदोलन की रूपारेखा तैयार करते थे. इलाहबाद स्थित इसी आनन्द भवन में 19 नवम्बर 1917 को इंदिरा गांधी का जन्म हुआ था. घर की इकलौती संतान होने के कारण इंदिरा जी का लालनपालन बड़े प्यार से हुआ तथा बचपन सुखसुविधाओं में बीता लेकिन अपने परिवार के संस्कार के अनुरूप इंदिरा गांधी में देश प्रेम की भावना बचपन से ही जाग्रत हो गई. 7-8 वर्ष की उम्र में जोन ऑफ आर्क का जीवन इनका आदर्श बन गया. होनहार बिरवान के होत चीकने पात की कहावत इन पर अक्षरशः घटित हुई.
जब इंदिरा 13 वर्ष की हुई थीं तभी उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सदस्या बनकर देश सेवा करने की इच्छा प्रकट की. लेकिन छोटी उम्र के कारण इंदिरा गांधी की अभिलाषा जब पूरी नहीं हुई तो उन्होंने गुस्से में आकर कहा कि मैं अपनी कांग्रेस स्वयं बनाऊंगी. दृढ़ इच्छा लेकर इंदिरा गांधी ने बच्चों की एक सेना बना ली और मां से पूछकर इसका नाम वानर सेना रखा. मां ने कहा था, जैसे वानरों ने लंका को जीतने में राम की मदद की और रावण को मारा वैसे तुम भी बापू की मदद करना.

इंदिरा गांधी की शिक्षा Education of Indira Gandhi

परिवार के लगभग सभी सदस्यों के राजनीति में व्यस्त रहने के कारण तथा मां कमला नेहरू की बीमारी के कारण इंदिराजी की शिक्षा-दीक्षा नियमित रूप से नहीं हो सकी. विभिन्न स्कूलों में शिक्षा लेने के बाद 1934 में इंदिरा गांधी ने हाई स्कूल की शिक्षा पास की और उसी वर्ष रविन्द्र नाथ टेगौर के शांति निकेतन विद्यालय में प्रवेश लिया. शांति निकेतन की शिक्षा ने इंदिराजी को भारतीय कला एंव संस्कृति का प्रेमी बना दिया. घर के संस्कारों से भी भारतीय संस्कृति के प्रति उनकी गहरी रूची पहले से ही थी.
फरवरी 1936 को इंदिरा गांधी की मां कमला नेहरू का देहांत स्विट्जरलैण्ड के एक अस्पताल में हुआ. और एक बार फिर इंदिरा गांधी की पढ़ाई में रूकावट पैदा हुई. सन् 1937 में वे अपने पिता के साथ इंगलैण्ड गईं, जहां ऑक्सफोर्ड के एक कॉलेज में उन्होंने प्रवेश लिया लेकिन एर वर्ष में श्रीमती स्वरूप रानी के निधन के कारण इन्हें कॉलेज छोड़ना पड़ा.

इंदिरा गांधी का वैवाहिक जीवन Married Life of Indira Gandhi

1942 में इंदिरा गांधी का विवाह फारसी युवक फिरोज गांधी से हुआ और इंदिरा नेहरू श्रीमती इंदिरा गांधी के नाम से जाने जानी लगी. 1944 में राजीव एवं 1946 में संजय गांधी का जन्म हुआ.

इंदिरा गांधी का राजनीतिक जीवन Political Career of Indira Gandhi

बड़े लम्बे सघर्षों एवं बलिदानों के बाद अगस्त 1947 में भारत ब्रिटिश राज्य की पराधीनता से मुक्त हुआ. देश को आजादी मिली. पं. जवाहर लाल नेहरू देश के प्रथम प्रधानमंत्री बने. देश का विभाजन हुआ और उसी समय महात्मा गांधी की आकस्मिक हत्या से देश की स्थिति बड़ी डावांडोल हो गई. नेहरू जी के कंधों पर भारी उत्तरदायित्व आ गया. और उन्हें किसी अभिन्न सहायक की आवश्यकता थी जो देश के संचालन में उनका हाथ बंटाए. उनकी पुत्री इंदिरा गांधी ने यह कार्य बहुत ही लगन एवं कर्तव्य निष्ठा से निभाया. एक तरह से वह उनकी सहायक, मित्र, संरक्षक एवं सबकुछ बन गई.
नेहरू जी के निकट संपर्क में आकर इंदिरा गांधी को सामाजिक राजनीतिक एवं आर्थिक कार्यक्षेत्र बहुत व्यापक हो गया था. और उसी दौरान उनका अनुभव भी परिपक्व हो गया. देश विदेश की अनेक यात्राओं में नेहरू के साथ रहकर उन्होंने तरह तरह की जानकारियां प्राप्त की.
सन् 1956 में लाल बहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री बने और इंदिरा जी उनके मंत्रिमंडल में पहली बार सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनीं. और उन्होंने यह कार्य पूरे उत्तरदायित्व एवं कुशलता से निभाया. महात्मा गांधी एवं नेहरू के आदर्शों का पालन करते हुए वे निरन्तर आगे और आगे बढ़ती रहीं.

इंदिरा गांधी का प्रधानमंत्री कार्यकाल  Indira Gandhi as PM of India

1966 में शास्त्रीजी के आकस्मिक निधन से देश को कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा. देश में बड़े नेताओं की समस्या उत्पन्न हुई इस समय इंदिरा गांधी ने देश के प्रधानमंत्री का पद ग्रहण कर देश को कठिन परिस्थितियों से उबारा. उन्होंने चुनाव में मोरारजी देसाई को हराकर 26 जनवरी 1966 में देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री के पद को सुशोभित किया और लगातार तीन आम चुनाव में जीत कर प्रधानमंत्री चुनी गईं.
लोगों को शंका थी कि सुखसुविधाओं में पली इंदिरा गांधी इतने विशाल देश की बागडोर सफलता पूर्वक कैसे संभाल सकेंगी. किन्तु शीघ्र ही लोगों का भ्रम दूर हो गया. श्रीमती गांधी बड़ी निर्भीक एवं सशक्त प्रधानमंत्री के रूप में जनता का आकर्षण बिन्दु बन गईं.
18 वर्ष प्रधानमंत्री के पद पर रहकर इंदिराजी ने देश की अनेकानेक समस्याओं का सुन्दर समाधान किया और देश को विकास तथा समृद्धि की ओर अग्रसर किया. 1971 में बंगला देश को स्वतंत्रता दिलाने में श्रीमती गांधी की जयजयकार हुई.

इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री के रूप योगदान

इंदिरा गांधी ने देश की अशिक्षा, गरीबी, असमानता आदि को दूर करने के लिए अथक परिश्रम किया. गरीबी हटाओ, उनके कार्यक्रम का विशेष लक्ष्य था. देश की समृद्धि के लिए खेती, उद्योग, विज्ञान तकनीकी, कला, संस्कृति एवं खेलकूद आदि के विकास में उनका योगदान बहुत महत्वपूर्ण है. बैंकों का राष्ट्रीयकरण करके गरीबों को कामकाज के लिए ऋण लेने की सुविधा प्रदान की.
इंदिरा गांधी के प्रयासों का ही फल था कि खेती के क्षेत्र में ‘‘हरित क्रांति’’ हुई जिससे देश खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर हो गया. उनके 20 सूत्री कार्यक्रम ने गरीब गांवों की काया पलटने और खुशहाली लाने के लिए योजनाबद्ध कार्य किया. श्रीमती गांधी ने ही श्रमेव जयते का नया नारा दिया. स्त्रियों की शिक्षा, बच्चों के शारीरिक विकास आदि की महत्वपूर्ण योजनायें उन्होंने चालू की. उनकी विदेश यात्राओं से भारत की छवि अन्तर्राष्ट्रीय जगत् में उभर कर आई. गुट निरपेक्ष राष्ट्रों की अध्यक्षा होने के नाते उन्होंने वर्तमान युद्धों की विभीषिका रोकने का प्रशंसनीय प्रयास किया. सन् 1982 में एशियाड की आयोजना एवं उसकी उल्लेखनीय सफलता श्रीमती गांधी के प्रयासों का ही फल था.
इंदिरा गांधी का व्यक्तित्व बहुत सरल और मानवीय गुणों से भरपूर था. उनके हृदय में मानव मात्र के लिए अपार स्नेह था. वे दीन-दुखियों की सहारा थीं. उनका सारा समय देश की सेवा के लिए समर्पित था. पिता की भांति वे भी बच्चों से बहुत प्यार करती थीं.  कर्तव्य एवं अनुशासन की भावना उनमें कूट-कूट कर भरी हुई थी. अनुशासन ही देश को महान् बनाता है यह उनका नारा था.
अपने अगणित गुणों के कारण उन्हें देश की सर्वोच्च उपाधियों से सुशोभित किया गया. भारत के सर्वोच्च सम्मान भारतरत्न की उपाधि से उन्हें सम्मानित किया गया.

इंदिरा गांधी का बलिदान 

जितना बड़ा किसी का व्यक्तित्व होता है, उतने अधिक उसके उत्तरदायित्व होते हैं, उतनी ही बाधाएं एवं विघ्न उसके कार्यों में रूकावट डालने के लिए उत्पन्न होते रहते हैं. पंजाब की समस्या भी एक ऐसा ही संकट था. पंजाब में उन्होंने आतंकवादियों के निपटारे के लिए सेना भेजी जिससे कुछ लोग प्रसन्न नहीं थे. 31 अक्टूबर 1984 को उन्हीं के दो अंगरक्षकों ने उन पर गोली चलाई जिससे उनका मुत्यु हो गई. देश सेवा में श्रीमती गांधी ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिये. देशवासियों ने अपार श्रद्ध एवं आंसू भरी आंखों से उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की.
इंदिरा गांधी भारत की अद्वितीय महिला एवं प्रशासक के रूप में वे अमर रहेंगी.
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