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Essay on bhartiya kisan in hindi किसान पर निबंध
विकट गर्मी पड़ रही है. भगवान सूर्य अपनी प्रचंड किरणों से पृथ्वी को जलाकर तवा सा बना रहे हैं. वायु सूर्य के ताप से गर्म होकर कोड़े से मार रही है. चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ है. पशु-पक्षी जलाशयों के निकट वृक्षों की छाया में शरण ले रहे हैं.
छाया भी भीषण सूर्य प्रकोप से भयभीत होकर शरीर को सिकोड़े हुए वृक्षों के नीचे छुपी हुई है. दोपहर का समय है. इस समय क्या धनवान, क्या दरिद्र, क्या पक्षी, क्या पशु, क्या चेतन क्या जड़ सभी विश्राम कर रहे हैं. पर अभागा किसान निरन्तर परिश्रम करने में संकल्पित है. उसका शरीर धूप से जलकर काला हो गया है. आंखे बैठी हुई हैं. मुख मुरझाया हुआ है. शरीर पर एक जीर्ण-शीर्ण धोती लिपटी हुई है और नंगे पैर खेत की तपती मिट्टी से भुने जा रहे हैं.
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एड़ी से चोटी तक वह पसीने में तर है परन्तु अपनी कठिन तपस्या से तनिक भी पीछे नहीं हट रहा है. जिस प्रकार वह ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की असहय गर्मी और लू के थपेड़ो को सहता है, उसी प्रकार वर्षा ऋतु में मेघों की मूसलाधार झड़ी और शीतकाल में ठंड के प्रकोप को सहता है.
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भारतीय किसान का जीवन परिश्रम, संतोष, त्याग और करूणा का जीवन है. प्रातः काल पौ फटने पर जब सारा संसार सोता रहता है. वह जाग जाता है और अपने बैलों को खोलकर खेत को रवाना होता है. वहां पहुंचकर वह कठिन परिश्रम में लग जाता है.
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इधर उसकी स्त्री चक्की चलाना, कुंए से पानी खींच कर लाना, गोबर थापना, बच्चों की देखभाल करना और भोजन बनाने जैसे कार्यों में व्यस्त रहती है. दोपहर को रूखा-सूखा भोजन लेकर वह किसान की पत्नी बच्चों के साथ खेत पर जाती है. पहले अपने पति को खाना खिलाकर फिर वह बचा-खुचा खाती है.
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इसके बाद वह उसके कठोर कार्य में हाथ बंटाती है. मखमल के फर्श पर पैर छीलने वाली अथवा गुलाब की पंखुड़ियों से शरीर में खरोंच डालने वाली कोमलता विधाता ने उसे नहीं दी है. यह अच्छी बात है अन्यथा बेचारा किसान उससे कैसे अपना कार्य करवाता.
सूर्यास्त के बाद वह दंपति थककर घर लौटता है और घरेलू कार्यों से छुट्टी पाकर नींद की आगोश में खो जाता है. भारतीय किसान दरिद्र रहता है. उसकी गरीबी के प्रमुख कारण कर्ज का बोझ, उपज की कमी, वर्षा पर निर्भरता आदि है. न तो उसके लिए और उसके बच्चों को खाने के लिए भर पेट भोजन है और न पहनने को तन भर कपड़े है. न तो उसके लिए रहने को वर्षा, गर्मी और शीत से बचाने वाला घर है और न मनोरंजन का कोई साधन है. वह सदा ऋण से दबा रहता है.
कभी महाजन का सूद चुकाना है तो कभी किसान क्रेडिट कार्ड की किस्त. उसका जीवन कष्ट में ही बीतता है. अनेक प्रकार की चिंताए उसके दिमाग में घर किए रहती है लेकिन धीरज के साथ किसान सब कुछ सहता है और जिस दिन फसल तैयार होती है, हरे भरे खेतों को देखकर वह फूला नहीं समाता. खेत के दाने-दाने को एकत्र करते समय उसकी आनंद की सीमा नहीं होती है. उस समय क्षण भर के लिए उसकी चिंताए दूर हो जाती है.
भारतीय किसान अन्य देशो के किसानों की अपेक्षा दयनीय और दुख भरा जीवन व्यतीत करता है. इसका सबसे बड़ा कारण है, खेती की शोचनीय दशा. जहां जर्मनी, जापान और अमेरिका आदि देशो के किसान छोटे से छोटे भूभाग से अधिक से अधिक उपज प्राप्त करते हैं, वहीं हमारे देश का किसान बड़े-बड़े खेतों से भी कम उपज ही ले पाता है.
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किसी भी देश से भारत में प्रति एकड़ पैदावार कम होती है. इसका कारण यह है कि अन्य देशो में विज्ञान ने खेती के क्षेत्र में बड़ी ज्यादा उन्नति की है. पर भारत में भरसक प्रयास करने के बाद भी खेती के पुराने तरीके ही अपनाए जा रहे हैं. हमारा किसान खेती की रोगों की रक्षा करना नहीं जानता. अधिक उपज के लालच में रासायनिक खाद और उर्वरकों का बहुत अधिक इस्तेमाल कर अपनी जमीन को बर्बाद कर बैठता है.
हमारे देश में नहरों और सिंचाई के अन्य साधनों की कमी होने के कारण किसान वर्षा के जल पर ही अधिक निर्भर रहता है. कई बार बारिश के अभाव में उसकी फसल सूख जाती है और उसकी आशाओं पर पानी फिर जाता है. यह है हमारे किसान का भाग्य.
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भारतीय किसान वर्ष में लगभग 4 माह तक बेकार रहता है. खेती-किसानी का काम नहीं होने पर वह दूसरे घरेलू उद्योग-धंधों में हाथ नहीं आजमाता. भारतीय किसान कम पढ़ा-लिखा होता है. इस कारण वह खेती की नई उन्नत तकनीकों से भी दूर रहता है. अल्प शिक्षित होने का कारण वह बाजार में अपनी उपज का पूरा मूल्य भी नहीं प्राप्त कर पाता है. अक्सर वह अपना माल सस्ता बेचता है और दूसरे से बीज, उर्वरक और अन्य सामग्री महंगी दरों पर खरीदता है. इसका परिणाम यह होता है कि वह कर्ज के जाल से मुक्त ही नहीं हो पाता है.
ख़ुशी की बात है कि कुछ वर्षों से हमारी सरकार का ध्यान किसान की दशा सुधारने की ओर आकर्षित हुआ है. सरकार उनके ऋण भार को हल्का करने के लिए नये-नये कानून बना रही है. उनको नई तकनीक उपलब्ध करवाने के लिए उन्हें जागरूक कर रही है. कई योजनाओं के माध्यम से उन्हें खेती से संबंधित उत्पादों में सब्सिडी के तौर पर सहायता दे रही है. आषा है उसकी दषा में जल्दी ही सुधार आएगा. भारत की उन्नति किसान की उन्नति पर निर्भर करती है. हमारा देष कृषि प्रधान है इसलिए जब मिट्टी से सोना पैदा करने वाला हमारा मेहनतकश किसान खुशहाल हो जाएगा, तब यह देश तरक्की के रास्ते पर तेजी से आगे बढ़ेगा.
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1 Comment
Add Yours →Nice. Yah ek acche tarike se likha gaya tha mujhe bahut pasand Aaya.