Irfan Khan Biography and letter in hindi -इरफान खान की जीवनी

इरफान खान का जीवन परिचय 

इरफान खान की असामयिक मृत्यु Irfan khan death 29 अप्रेल, 2020 को मुंबई में हो गई. इरफान खान को भारत ही नहीं पूरी दुनिया में अपनी अभिनय क्षमता की वजह से जाना जाता था. उन्होंने ​भारतीय सिनेमा को कई प्रभावी भूमिकाओं से बेहतर बनाया.

उनकी आखिरी फिल्म अंग्रेजी ​मीडियम रही. इरफान खान को न सिर्फ उनके सिनेमाई प्रतिभा की वजह से बल्कि अपने स्वतंत्र विचार शैली की वजह से भी पहचान मिली. उनका जीवन बहुत संघर्षपूर्ण रहा. जिसकी एक झलक हम यहां दे रहें हैं.

इरफान खान का आरंभिक जीवन Irrfan khan short Biography

इरफान का जन्म राजस्थान के जयपुर में 7 जनवरी, 1966 को हुआ. उनके पिता का नाम जागीरदार खान और माता का नाम बेगम खान है. इरफान का परिवार व्यवसायी परिवार रहा.

बचपन में इरफान का रूझान क्रिकेट में ज्यादा रहा और वे एक बेहतरीन खिलाड़ी रहे. उनका चयन सीके नायुड टुर्नामेंट में भी हुआ.

उनकी प्रारंभिक शिक्षा जयपुर में ही हुई. कॉलेज के दिनों में उनका रूझान अभिनय की तरफ हो गया और अपनी इस प्रतिभा को निखारने के लिये उन्होंने नई दिल्ली के नेशनल स्कूल आफ ड्रामा में 1984 में प्रवेश ले लिया.

इरफान का टीवी करिअर

इरफान ने नेशनल स्कूल आफ ड्रामा में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद मायानगरी मुंबई का रूख किया. यहां उन्हें काफी संघर्ष का सामना करना पड़ा क्योंकि वे न तो किसी फिल्मी परिवार से आते थे और न ही उन्हें सिनेमाई जगत को कोई बड़ा नाम जानता था.

फिल्मों में काम खोजते हुये उन्होंने टेलीविजन का रूख किया. उन दिनों टेलीविजन का एक ही मतलब हुआ करता था— दूरदर्शन. अपनी अभिनय प्रतिभा की वजह से उन्हें सीरियलों में रोल मिलने शुरू हो गये, हालांकि ज्यादातर रोल छोटे होते थे.

उन्होनें इस दौर में चाणक्य, भारत एक खोज, सारा जहां हमारा, बनेगी अपनी बात, चंद्रकांता और श्रीकांत में काम किया. चंद्रकांता में उनके द्वारा निभाया गया बद्रीनाथ अय्यार का रोल बहुत लोकप्रिय रहा.

श्रीकांत धारावाहिक में उन्हें पहली बार के​न्द्रीय भूमिका निभाने का अवसर मिला और अपनी अभिनय प्रतिभा से उन्होने सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया.

उनके जीवन में बड़ा बदलाव तब आया जब भारत में दूरदर्शन के अलावा दूसरे चैनल्स ने प्रवेश किया और केबल टेलीविजन भारत में लोकप्रिय होने लगा. इरफान को स्टार टीवी के एक धारावाहिक डर में खलनायक की भूमिका मिली.

उन्होंने इस रोल को इतनी अच्छी तरह निभाया कि यह सीरियल सबसे ज्यादा देखा जाने वाला कार्यक्रम बन गया. इस रोल ने उन्हें पूरे भारत में पहचान दिलवा दी. इसके बाद तो उन्होंने टेलीविजन पर कई यादगार भूमिकायें की.

इरफान खान का फिल्मी करिअर irrfan khan movies

इरफान खान टीवी के जाने—माने चेहरे बन चुके थे लेकिन वे भारतीय सिनेमा में भी अपना योगदान देना चाहते थे. उनकी छवि और चेहरा परम्परागत नायक और खलनायक दोनों के लिये ही ठीक नहीं समझा जाता था.

ऐसे में उन्हें चरित्र भूमिकाओं का सहारा लेना पड़ा. इसी बीच मीरा नायर ने उन्हें सलाम बॉम्बे में एक कैमियो रोल के लिये अप्रोच किया. रोल साधारण था लेकिन इरफान ने अपने अभिनय कौशल से उस दृश्य को यादगार बना दिया. यह बड़े परदे पर उनकी पहली दमदार उपस्थिति थी.

इसके बाद 1990 में उनकी फिल्म आई, एक डॉक्टर की मौत. हालांकि इस फिल्म को कला फिल्म की संज्ञा दी गई और आम जनता में इसको लेकर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं हुई लेकिन इरफान की इस फिल्म ने कई कला अवॉर्ड अपने नाम किये और आलोचको ने इसकी बहुत प्रशंसा की.

उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय सिनेमा में फिल्म द वारियर में अपने काम से बहुत नाम कमाया और अब बॉलीवुड के साथ ही हॉलीवुड में भी इरफान को लोग पहचानने लग गये.

इन फिल्मों से जहां इरफान को अपनी अभिनय प्रतिभा को दिखाने का अवसर मिला वहीं दूसरी ओर उन पर कला ​फिल्मों के अभिनेता होने की छाप लग गई. उनको सिर्फ कला फिल्मों के ही प्रस्ताव आने लगे.

मकबूल ने किया कमाल

जब इरफान खान पर कला फिल्मों के अभिनेता होने का ठप्पा लग चुका था तब विशाल उनके पास मकबूल का प्रस्ताव लेकर पहुंचे. इस फिल्म ने न सिर्फ बॉक्सआ​फिस पर सफलता के झंडे गाड़े बल्कि इरफान को भी मनोरंजक सिनेमा की दुनिया में प्रवेश करवा दिया.

इसके बाद आई उनकी दूसरी फिल्म रोग ने तो कमाल ही कर दिया. इस फिल्म ने उन्हें बॉलीवुड में स्थापित कर दिया और वे कई फिल्मों में बतौर खलनायक नजर आने लगे.

2004 में हासिल में अपने अभिनय के लिये उन्हें फिल्मफेयर का बेस्ट विलेन अवार्ड मिला. इरफान ने हमेशा लोगों के परशेप्सन को तोड़ा. छवियों को तोड़कर काम करना उनकी आदत में शुमार था.

जब उन्हें टेलीविजन का आर्टिस्ट समझा जाता था, उन्होंने कला फिल्मों के माध्यम से अपने आप को बड़े पर्दे का कलाकार साबित किया और जब उन्हें कला फिल्मों तक सीमित मान ​लिया गया तब उन्होंने कमर्शियल सिनेमा में झंडे गाड़े और जब उन्हें सिर्फ खलनायक के रोल के लिये टाइप्ड किया गया, उन्होंने मेट्रो में एक मिडिल क्लास प्रेमी की अपनी भूमिका से सबको चौंका दिया.

मेट्रो के लिये उन्हें बेस्ट सर्पोटिंग रोल का फिल्मफेयर मिला. जब लोगों ने उन्हें कमर्शियल सिनेमा का स्टार माल लिया तो उन्होंने एक बार फिर से टीवी का रूख किया और मानो या न मानो और क्या कहें जैसे सफल शो किए.

इसी बीच उनकी कई फिल्में आई और लोगों का मनोरंजन किया. इसके बाद उन्होंने लोगों को चौंकाया अपनी फिल्म पान सिंह तोमर के माध्यम से. इस फिल्म में निभाया गया उनका रोल कल्ट बन गया. लोग इस फिल्म के डॉयलॉग दोहराने लगे. इस फिल्म ने उन्हें सही मायनो में स्टार से सुपर स्टार बना दिया. इस फिल्म के लिये उन्हें नेशनल अवार्ड से नवाजा गया.

अब इस कमर्शियल सिनेमा के सुपर स्टार ने एक बार फिर कला फिल्मों की दुनिया का रूख किया और लंचबॉक्स में अपनी एक्टिंग स्किल्स से सबका दिल जीत लिया. इरफान को सदी का सबसे महान अभिनेता माना जाने लगा.

हैदर, न्यूयॉर्क, हिंदी मीडियम और करीब करीब सिंगल जैसी फिल्मों ने उनके लिये सफलता के नये कीर्तिमान रचे. इरफान को सफलता की गारंटी समझा जाने लगा.

इरफान खान का हॉलीवुड करिअर

इरफान खान को जितनी सफलता हिंदी सिनेमा में मिली, उतनी ही हॉलीवुड में. द वारियर की वजह से उनकी प्रतिभा से हॉलीवुड भी परिचित हो चुका था. इस वजह से उन्हें द माइटी हार्ट और द दार्जिलिंग लिमिटेड में काम करने का अवसर मिला.

इरफान खान को 2008 में स्लमडाॅग मिलेनियर में काम करने का मौका मिला. इस फिल्म को ऑस्कर मिला और हाॅलीवुड का ध्यान इस नफीस अदाकार के ऊपर गया. इसके बाद उनकी पान सिंह तोमर में उनके अभिनय का लोहा पूरी दुनिया मान गई. उन्होंने एचबीओ के लिए इन ट्रीटमेंट सीरिज में भी काम किया. इसी बीच हाॅलीवुड में उन्हें द अमेजिंग स्पाइडर मैन में छोटे रोल में देखा गया.

इरफान खान को आंग ली की फिल्म लाइफ आफ पाई में काम करने का मौका मिला. जिसे पूरी दुनिया में सफलता मिली. यह फिल्म इरफान के करिअर में एक मिल का पत्थर साबित हुई. उनकी द लंच बाक्स को कान फिल्म फेस्टीवल में ग्रैंड डियोर सम्मान मिला.जुरासिक वर्ल्ड और स्पाइडर मैन, द होम कमिंग जैसी फिल्में की.

इरफान खान का पारिवारिक जीवन Irrfan khan personal life

इरफान खान ने 1995 में अपनी एनएसडी की साथी irrfan khan wife सुतपा सिकदर से शादी की. उनके दो बेटे बाबिल और अयान हैं. फरवरी 2018 में इरफान खान को एक दुर्लभ बीमारी irrfan khan cancer न्यूरोइंडोक्राइन कैंसर होने का पता चला. उन्होंने लंदन के एक अस्पताल में अपना इलाज करवाया. 

इरफान खान फिल्मोग्राफी Irfan khan filmography

1988— सलाम बॉम्बे
1989— कमला की मौत, जजीरा
1990— दृष्टि, एक डॉक्टर की मौत
1991— पिता
1993— करामाती कोट
1994— द क्लाउड डोर, पुरुष
1998— बड़ा दिन
2000— द गोल, घात
2001— द वॉरियर, कसूर, बोक्षू द मिथ, प्रथा
2002— काली सलवार, गुनाह , हाथी का अण्डा
2003— हासील, धुंध: द फॉग, फुटपाथ, मकबूल, द बाइपास
2004— शेडोज आॅफ टाइम, आन: मैन एट वर्क, रोड टू लद्दाख, चरस
2005— रोग, चेहरा, साढ़े सात फेरे
2006— यु होता तो क्या होता, द फिल्म, द किलर, डेड लाइन: सिर्फ 24 घण्टे, सैनिकुदू
2007— अ माइटी हार्ट, लाइफ इन ए मेट्रो, द नेमसेक, द दार्जिलिंग लिमिटेड, अपना आसमान, पार्टीशन
2008— तुलसी, सन्डे, क्रेजी—4, मुबंई मेरी जान, स्लमडॉग मिलेनियर, चमकू, दिल कबड्डी,
2009— एसिड फैक्टी, बिल्लू, न्यूयॉर्क
2010— राइट या रांग, नॉक आउट, हिस्स
2011— ये साली जिंदगी, सात खून माफ, थैंक्यू,
2012— पान सिंह तोमर, द अमेजिंग स्पाइडर मेन, लाइफ आॅफ पाइ
2013— साहब, बीबी और गैंगस्टर रिटर्नस, ​डी डे, द लंच बॉक्स
2014— गुंडे, हैदर
2015— किस्सा, पीकू, ​जुरासिक वर्ल्ड, तलवार, जज्बा
2016— द जंगल बुक, इंफर्नो, मदारी
2017— हिन्दी मिडियम, दूब: नो बेड आॅफ रोजेज, द सांग आॅफ स्कॉर्पियन्स, करीब—करीब सिंगल
2018— ब्लैक मेल, पजल, कारवां

Irrfan Khan letter from the hospital – इरफान खान का खत जो उन्होंने लंदन अस्पताल से लिखा

कुछ महीने पहले अचानक मुझे पता चला कि मैं न्यूरोएन्डोक्राइन कैंसर से ग्रस्त हूं। यह शब्द मैंने पहली बार सुना था। जब मैंने इसके बारे में सर्च की तो पाया कि इस पर ज्यादा शोध नहीं हुए हैं। इसके बारे में ज्यादा जानकारी भी मौजूद नहीं थी। ”यह एक दुर्लभ शारीरिक अवस्था का नाम है और इस वजह से इसके उपचार की अनिश्चितता ज्यादा है।’
‘अभी तक मैं तेज रफ्तार वाली ट्रेन में सफर कर रहा था। मेरे कुछ सपने थे, कुछ योजनाएं थीं, कुछ इच्छाएं थीं, कोई लक्ष्य था.. फिर किसी ने मुझे हिलाकर जगा दिया, मैंने पीछे मुड़कर देखा तो वो टीसी था। उसने कहा आपका स्टेशन आ गया है। कृप्या नीचे उतर जाइए- मैं कंफ्यूज था.. मैंने कहा- नहीं नहीं अभी मेरा स्टेशन नहीं आया। उसने कहा- नहीं आपको अगले किसी भी स्टॉप पर उतरना होगा। ‘इस डर और दर्द के बीच मैं अपने बेटे से कहता हूं, ‘मैं किसी भी हालत में ठीक होना चाहता हूं। मुझे अपने पैरों पर वापस खड़े होना है। मुझे ये डर और दर्द नहीं चाहिए।’

कुछ हफ्तों के बाद मैं एक अस्पताल में भर्ती हो गया। बेइंतहा दर्द हो रहा है.. ‘मैं जिस अस्पताल में भर्ती हूं, उसमें बालकनी भी है.. बाहर का नजारा दिखता है। कोमा वार्ड ठीक मेरे ऊपर है। सड़क की एक तरफ मेरा अस्पताल है और दूसरी तरफ लॉर्ड्स स्टेडियम है… इस दर्द के बीच मैंने वहां विवियन रिचर्ड्स का मुस्कुराता पोस्टर देखा। मुझे ऐसा लगा कि ये दुनिया मेरी कभी थी ही नहीं। अब उस ओर देखकर ऐसा लगता है कि जिंदगी और मौत के बीच एक लंबी रोड है.. बस ये रोड। 

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