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किसान के मित्र है केंचुए
केंचुए का वैज्ञानिक नाम Lumbricina है. केंचुए किसानों के सबसे बड़े मित्र होते हैं. ये भूमि की उर्वरता को बढ़ाकर किसान को फायदा पहुंचाते हैं. यह खेतों की मिट्टी को अपने मल से ज्यादा ऊपजाउ बना देता है. मरने के बाद इसका शरीर में मिट्टी के पोषण को बढ़ाने वाला होता है.
केंचुआ का वर्गीकरण-केंचुआ haplotaxida
वैज्ञानिक नाम: Haplotaxida
उच्च वर्गीकरण: Earthworms
रैंक: गण
केंचुआ की संरचना
केचुएं के शरीर के दोनो हिस्से यानि मुख और पूंछ का आकार नुकीला होता है, जिसकी मदद से यह आसानी से जमीन खोदकर उसके अंदर की मिट्टी को बाहर निकाल देते है. जरूरत के मुताबिक यह केंचुए रोज 16 से लेकर 20 तक छिद्र बना देते हैं. इन छेदों से पानी और वायु जमीन के भीतर प्रवेष कर जाती है जिससे इन्हें नाइट्रोजन जैसा जरूरी पोषक तत्व मिलता है.
केंचुए मिट्टी के कार्बनिक और खनिज तत्वों को खाकर उन्हें ऊपजाउ बन देते हैं. इससे वायु के भीतर संचार बढ़ता है. अनेक अध्ययनों से पता चला है कि एक साल में केचुंए एक हैक्टेयर क्षेत्र में नौ हजार ग्राम मिट्टी को नीचे से ऊपर ले आते हैं. यानि हर दस साल में केंचुए पूरे एक हेक्टेयर क्षेत्र में उपजाऊ मिट्टी की 5 सेमी तह लगा देते हैं.
केंचुए का पाचन तंत्र
केंचुए मिट्टी में पाए जाने वाले पोषक तत्वों को अपनी आहार नाल द्वारा अवषोषित कर लेते हैं और अपचित हिस्से को छोटी-छोटी गोलियों या फिर एक लंबी डोरी के रूप में मल के तौर पर अपने शरीर के बाहर निकाल देते हैं. केचुंए जहां रहते हैं, कुछ ही समय बाद वहां अपने मल के रूप में उपजाऊ मिट्टी का ढेर लगा देते हैं. इस ढेर को वैज्ञानिक भाषा में कास्टिंग कहा जाता है. एक बार में एक केंचुआ मल के तौर पर अपने वजन के बराबर मिट्टी अपने शरीर से बाहर निकाल देता है. केंचुओं के मल में साधारण मिट्टी की तुलना में डेढ़ गुना चूना, तीन गुना मैग्नेषियम, पांच गुना नाइट्रोजन, साढ़े सात गुना फाॅस्फोरस और ग्यारह गुना पोटेषियम होता है. इसके मल की वजह से मिट्टी में बैक्टिरिया की मात्रा में भी इजाफा होता है. इसके अलावा केंचुए के मल में 40 प्रतिषत यूरिया, 20 प्रतिषत अमोनिया और 40 प्रतिषत अमीनो एसिड होता है जिसे किसान कृत्रिम खाद के तौर पर खेतों को उपजाऊ बनाने के लिए इस्तेमाल करता है.
केंचुआ विशेषताओं का खजाना
केंचुए का मल खेती के लिए किसी सोने के समान है. केंचुए के मल से जैव विविधता में बढ़ोतरी होती है. जिससे खेती की पैदावार में कई गुना इजाफा होता है. केचुएं के मल के साथ इसका मूत्र भी बहुत उपयोगी होता है. केंचुए का मूत्र फफुंदी नाषक होता है और यह कीटो को भी दूर भगाता है.
केंचुए के मूत्र के साथ एक समस्या यह है कि उसके पास मल विसर्जन करने की जगह की तो होती है लेकिन उसके पास मूत्र विसर्जन की कोई जगह नहीं होती है. इस कारण उसका मूत्र उसके शरीर से एक लिसलिसे द्रव की तरह बाहर आता है. इसको एकत्रित करने के लिए केचुओं पर पानी का छिड़काव कर करने के बाद विसर्जित द्रव को इकट्ठा कर लिया जाता है.
केंचुआ का उत्सर्जन तंत्र
केंचुए के मूत्र में पर्याप्त मात्रा में अमोनिया होता है जो भूमि में रहने वाले जीवाणुओं के लिए अनूकूल वातावरण का निर्माण करता है. केंचुए अकार्बनिक खनिज पदार्थों को भूमि पर इधर-उधर स्थानान्तिरत करते हैं. केंचुओं की कुछ प्रजातियां भूमि की गहरी सतह की मिट्टी को निकाल कर ऊपरी सतह पर स्थानान्तिरत करने के लिए जानी जाती है.
देखने में भद्दा लगने वाला यह जीव वास्तव में मानव के लिए बहुत उपयोगी है. पूरी तरह निरापद और उपयोगी इस जीव की खूबियों को उपयोग में लाने के लिए वैज्ञानिक ने इसकी कई किस्मों पर काम करना शुरू कर दिया है.
केंचुओं का जीवन चक्र
1. केंचुए द्विलिंगी (Bi-sexual or hermaphodite) होते हैं
2. एक ही शरीर में नर (Male) तथा मादा (Female) जननांग (Reproductive Organs) पाये जाते हैं।
3. केंचुए लगभग 30 से 45 दिन में वयस्क (Adult) हो जाते हैं और प्रजनन करने लगते हैं।
4. एक केंचुआ 17 से 25 कोकून बनाता है और एक कोकून से औसतन 3 केंचुओं का जन्म होता है।
5. केंचुओं में कोकून बनाने की क्षमता अधिकांशतः 6 माह तक ही होती है। इसके बाद इनमें कोकून बनाने की क्षमता घट जाती है।
6. केंचुओं में देखने तथा सुनने के लिए कोई भी अंग नहीं होते किन्तु ये ध्वनि एवं प्रकाश के प्रति संवेदनशील होते हैं और इनका शीघ्रता से एहसास कर लेते हैं।
7. शरीर पर श्लैष्मा की अत्यन्त पतली व लचीली परत मौजूद होती है जो इनके शरीर के लिए सुरक्षा कवच का कार्य करती है।
8. शरीर के दोनों सिरे नुकीले होते हैं जो भूमि में सुरंग बनाने में सहायक होते हैं।
9. केंचुओं में शरीर के दोनों सिरों (आगे तथा पीछे) की ओर चलने (Locomotion) की क्षमता होती है।
10. केंचुओं में मैथुन प्रक्रिया लगभग एक घण्टे तक चलती हैं।