ISRO भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन
ISRO का पूरा नाम भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन Indian Space Research Organisation है. ISRO का गठन 15 अगस्त, 1969 को हुआ था. जिसका प्रमुख उद्देश्य अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का विकास तथा विभिन्न राष्ट्रीय आवश्यकताओं में उनका उपयोग करना है. डॉ.विक्रम ए. साराभाई को भारत में अंतरिक्ष कार्यक्रमों का संस्थापक जनक माना जाता है.उन्ही के नाम से भारत में ISRO विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) तिरुवनंतपुरम में है.
अंतरिक्ष विभाग और अंतरिक्ष आयोग को सन् 1972 में स्थापित किया गया था. और 01 जून, 1972 में इसरो को अंतरिक्ष विभाग के अंदर शामिल किया गया.पहले भारतीय उपग्रह का नाम आर्यभट्ट था. इसका प्रमोचन 19 अप्रैल, 1975 को पूर्व सोवियत संघ से किया गया.
ISRO ने दो प्रमुख अंतरिक्ष प्रणालियों Space systems की स्थापना की है, संचार, दूरदर्शन प्रसारण Broadcasting तथा मौसम-विज्ञान सेवाओं के लिए इन्सैट, और संसाधन मॉनिटरन और प्रबंधन के लिए भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह (आईआरएस) IRS प्रणाली. इसरो ने अभीष्ट कक्ष में इन्सैट और आईआरएस की स्थापना के लिए दो उपग्रह प्रमोचन यान, पीएसएलवी और जीएसएलवी विकसित किए हैं.
इसरो कि प्रयोगशालाएँ
भारत में इसरो कि छह प्रमुख केंद्र Main center तथा कई अन्य इकाइयाँ, एजेंसी, सुविधाएँ और प्रयोगशालाएँ स्थापित हैं. जिसमे इसरो उपग्रह केंद्र (आईएसएसी) बेंगलूर ISRO Satellite Center Bengaluru में, सतीशधवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी-शार) श्रीहरिकोटा Satish Dhawan Space Center Sriharikota में, द्रव नोदन प्रणाली केंद्र (एलपीएससी) तिरुवनंतपुरम,बेंगलूर LNSYC Thiruvananthapuram, Bengaluru और महेंद्रगिरी में, अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (सैक), अहमदाबाद Space Usage Center (SAC), Ahmedabad में और राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (एनआरएससी), हैदराबाद National Remote Sensing Center (NRSC), Hyderabad में स्थित हैं.
ISRO का उपग्रह केंद्र Satellite center of ISRO
उपग्रहों को इसरो उपग्रह केंद्र (आईजैक) में बनाया जाता है. राकेट Rocket / प्रमोचन Launch यान विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी), तिरुवनंतपुरम में बनाए जाते हैं. इसरो की प्रमोचन सुविधा एसडीएससी शार में स्थित है, जहाँ से प्रमोचन यानों और परिज्ञापीराकेटों का प्रमोचन किया जाता है. तिरुवनंतपुरम स्थित टर्ल्स से भी परिज्ञापीराकेटों का प्रमोचन किया जाता है.
उपग्रहों को दो वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है, यथा संचार उपग्रह और सुदूर संवेदन उपग्रह. संचार उपग्रह आम तौर पर संचार, दूरदर्शन प्रसारण, मौसम-विज्ञान, आपदा चेतावनी आदि की ज़रूरतों के लिए भू-तुल्यकाली कक्षा में कार्य करते हैं. और सुदूर संवेदन उपग्रह प्राकृतिक संसाधन मॉनिटरन और प्रबंधन के लिए अभिप्रेत है और यह सूर्य-तुल्यकाली ध्रुवीय कक्षा (एसएसपीओ) से परिचालित होता है.
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राकेटों का प्रमोचन कहाँ से किया जाता है? Rocket Launching
इसरो की प्रमोचन सुविधा एसडीएससी शार में स्थित है, जहाँ से प्रमोचन यानों और परिज्ञापीराकेटों का प्रमोचन किया जाता है. तिरुवनंतपुरम स्थित टर्ल्स से भी परिज्ञापीराकेटों का प्रमोचन किया जाता है.
भारत में अंतरिक्ष कार्यक्रम का प्रारंभ कहाँ हुआ?
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का प्रारंभ तिरुवनंतपुरम के निकट थुम्बाभूमध्यरेखीय राकेट प्रमोचन केंद्र ThumbboomRound Rocket Launch Center (TLC) में हुआ.पृथ्वी की भू-चुंबकीय भूमध्यरेखा Earth’s geo-magnetic equator थुम्बा से हो कर गुज़रती है इस लिए राकेट प्रमोचन केंद्र के रूप में थुम्बा का चुनाव किया गया था.
परिज्ञापी राकेट क्या है?
परिज्ञापी का मतलब, ऊपरी वायुमंडल के भौतिक प्राचलों के मूल्यांकन के लिए प्रयुक्त रोकेट है. भारतीय परिज्ञापी राकेटों पर अक्षर ‘RH’ और अंक क्या सूचित करते हैं. RH परिज्ञापी राकेट ‘रोहिणी’ का द्योतक है और अगले अंक राकेट के व्यास को सूचित करते है. इस लिए इस परिज्ञापी कहा जाता है.
लॉन्चर्स
अंतरिक्ष यान को अंतरिक्ष में ले जाने के लिए लॉन्चर्स या लॉन्च वाहनों का उपयोग किया जाता है. भारत में दो परिचालन लांचर हैं: ध्रुवीय उपग्रह लॉन्च वाहन (पीएसएलवी) और जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च वाहन (जीएसएलवी). स्वदेशी क्रायोजेनिक ऊपरी चरण के साथ जीएसएलवी ने उपग्रह उपग्रहों के 2 टन वर्ग तक लॉन्च करने में सक्षम बनाया है. जीएसएलवी का अगला संस्करण जीएसएलवी एमके III है, जिसमें स्वदेशी उच्च जोर क्रायोजेनिक इंजन और मंच है, जिसमें संचार उपग्रहों के 4 टन वर्ग लॉन्च करने की क्षमता है.
भारत द्वारा विकसित प्रमोचन यान
एसएलवी-3 के अलावा, भारत ने संवर्धित उपग्रह प्रमोचन यान (एएसएलवी), ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन यान (पीएसएलवी) और भू-तुल्यकाली उपग्रह प्रमोचन यान (जीएसएलवी) का विकास किया.
चंद्रयान-1 क्या है?
चंद्रयान-1 अंतरिक्ष-यान द्वारा-चंद्रमा का वैज्ञानिक अन्वेषण है. भारतीय भाषाओं (संस्कृत और हिन्दी) में- चंद्रयान का तात्पर्य है “चंद्र अर्थात चंद्रमा, यान अर्थात वाहन” अर्थात, चंद्रमा अंतरिक्ष-यान. चंद्रयान-1 प्रथम भारतीय ग्रहीय विज्ञान और अन्वेषण मिशन है.
चंद्रयान-1, श्रीहरिकोटा (शार), भारत में स्थित सतीशधवन अंतरिक्ष केंद्र से 22 अक्तूबर, 2008 को प्रमोचित किया गया जो 28 अगस्त 2009 तक 312 दिनों के लिए प्रचालन में रहा.
चंद्रयान के वैज्ञानिक उद्देश्य
चंद्रयान-1 मिशन का उद्देश्य दृश्य, निकट अवरक्त, न्यून ऊर्जा एक्स-किरण और उच्च ऊर्जा एक्स-किरण क्षेत्रों में चंद्रमा की सतह का उच्च विभेदन सुदूर संवेदन करना है. इसके विशेष वैज्ञानिक लक्ष्य हैं. चंद्रमा के निकटस्थ और दूरस्थ (5-10 मी. उच्च स्थानिक और तुंगता विभेदन सहित) दोनों ओर के त्रि-आयामी एटलस तैयार करना मैग्नीशियम, एल्यूमीनियम, सिलिकॉन, कैल्शियम, आइरन तथा टाइटेनियम जैसे खनिजों और रासायनिक तत्वों तथा उच्च परमाणु संख्या के रेडॉन, यूरेनियम और थोरियम जैसे उच्च स्थानिक विभेदन वाले तत्वों का चंद्रमा की संपूर्ण सतह पर उपस्थिति का रासायनिक और खनिजीय मानचित्रण करना.
हम समकालिक प्रकाशीय भूवैज्ञानिक और रासायनिक मानचित्रण से विभिन्न भूवैज्ञानिक इकाइयों की पहचान और चंद्रमा के उद्भव व प्रारंभिक विकास के इतिहास से संबंधित परिकल्पना की जांच करने में समर्थ होंगे जिससे चंद्रमा की सतह की प्रकृति को समझने करने में मदद मिलेगी.
चंद्रयान-1 पर कौन से वैज्ञानिक उपकरण लगे हैं?
अंतरिक्षयान चंद्रयान-1 पर ग्यारह वैज्ञानिक उपकरण लगे हैं. इनमें पाँच भारतीय और छह विदेशी नामत , ईएसए के तीन, नासा के दो तथा बल्गेरियाई विज्ञान अकादमी का एक वैज्ञानिक उपकरण शामिल है. इनका चयन इसरो के अवसर की घोषणा के माध्यम से किया गया. दो ईएसए उपकरणों में भारतीय सहयोग शामिल है.
चंद्रमा का तापमान कितना है?
चंद्रमा पर तापमान चरम सीमाओं पर पहुँच जाता है. सूरज की रोशनी में प्रकाशित चंद्रमा का पहलू लगभग 130 ºसें तक झुलसाने जितना गरम हो जाता है, और रात में यही पहलू -180 ºसें. पर अत्यधिक ठंडा हो जाता है.
चंद्रयान-1 मिशन को साकार करने का कुल बजट
प्रस्तावित भारतीय चंद्रमा मिशन चंद्रयान-1 को साकार करने के लिए बजटीय अनुमान 386 करोड़ रुपए (लगभग $76मिलियन) है. इसमें नीतभार विकास के लिए 53 करोड़ रुपए (लगभग $11 मिलियन), अंतरिक्षयान बस के लिए 83.00 करोड़ रुपए (लगभग $17 मिलियन), गहन अंतरिक्ष नेटवर्क की स्थापना के लिए 100 करोड़ रुपए (($20 मिलियन), पीएसएलवीप्रमोचन यान के लिए 100 करोड़ रुपए (($20 मिलियन) और वैज्ञानिक डेटा केंद्र के लिए 50 करोड़ रुपए ($10 मिलियन), बाह्य नेटवर्क समर्थन और कार्यक्रम प्रबंधन व्यय शामिल हैं.
भारत का पहला स्वदेशी परिज्ञापी राकेट, आरएच-75, 20 नवंबर, 1967 में प्रमोचित किया गया.
भारत का पहला प्रमोचन यान को नाम उपग्रह प्रमोचन यान-3 था. इसका प्रथम सफल प्रमोचन एसडीएससी, शार से 18 जुलाई, 1980 को संपन्न हुआ. भारतीय भूमि से भारत द्वारा प्रमोचित सर्वाधिक भारी उपग्रह 2 सितंबर, 2007 को जीएसएलवी-एफ़04 द्वारा प्रमोचित 2130 कि.ग्रा. भार वाला उपग्रह इन्सैट-4सी.आर. भारत द्वारा प्रमोचित सर्वाधिक भारी उपग्रह है.
संचार उपग्रह
दूरसंचार, टेलीविजन प्रसारण, उपग्रह समाचार सभा, मौसम पूर्वानुमान, आपदा चेतावनी और खोज और बचाव संचालन सेवाओं का संचार उपग्रह सपोर्ट करता है.
पृथ्वी निरीक्षण उपग्रह
दुनिया में सबसे बड़ा नागरिक रिमोट सेंसिंग उपग्रह नक्षत्र – भूमि और जल संसाधनों Water resources के क्षेत्रों में अनुप्रयोगों की भीड़ का सपोर्ट करने वाले उपग्रहों की विषयगत श्रृंखला; मानचित्रकारी; और महासागर और वातावरण का ध्यान रखने के काम आता है.
भारतीय स्पेसक्रफ्ट
वैज्ञानिक अंतरिक्ष यान
खगोल विज्ञान, खगोल भौतिकी, ग्रह और पृथ्वी विज्ञान, वायुमंडलीय विज्ञान और सैद्धांतिक भौतिकी जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान के लिए अंतरिक्ष यान काम आता है.
नेविगेशन उपग्रह
नागरिक उड्डयन आवश्यकताओं की उभरती मांगों को पूरा करने के लिए नेविगेशन सेवाओं के लिए उपग्रह और स्वतंत्र उपग्रह नेविगेशन सिस्टम के आधार पर स्थिति, नेविगेशन और समय की उपयोगकर्ता आवश्यकताओं को पूरा करता है.
प्रायोगिक उपग्रह
प्रायोगिक उद्देश्यों के लिए मुख्य रूप से छोटे उपग्रहों का एक मेजबान. इन प्रयोगों में रिमोट सेंसिंग, वायुमंडलीय अध्ययन, पेलोड विकास, कक्षा नियंत्रण, वसूली प्रौद्योगिकी आदि शामिल हैं.
छोटे उपग्रह
उप 500 किग्रा वर्ग उपग्रह – पृथ्वी इमेजिंग और विज्ञान मिशन के लिए स्टैंड-अलोन पेलोड के लिए एक मंच जो समय के साथ त्वरित मोड़ के भीतर है.
छात्र उपग्रह
इसरो के छात्र उपग्रह कार्यक्रम की कल्पना नैनो / पिको उपग्रहों के विकास के लिए विभिन्न विश्वविद्यालयों और संस्थानों को प्रोत्साहित करने के लिए की गई है.
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