ईरान-अमेरिका और परमाणु बम- Iran-America Relationship and Iran Nuclear Programme
ईरान-अमेरिका, अमेरिका ने ईरान से किये अपने परमाणु समझौते को रद्द कर दिया है. इसके साथ ही एक बार फिर डाॅनल्ड ट्रंप की अगुआई वाली अमेरिकी सरकार एक बार फिर से विवादों में आ गई है और अमेरिका-ईरान सम्बन्ध एक बार फिर पटरी से उतर गए हैं. इससे पहले अमेरिका और सहयोगी पांच देशों ने ईरान के परमाणु परीक्षणों को लेकर एक समझौते पर बहुत मशक्कत के बाद दस्तखत किए थे, वो अब इतिहास का हिस्सा बन गया है.
इस समझौते के तहत ईरान के परमाणु क्षमता एवं भंडार को सीमित किया जाना था. इसमें यह शर्त भी थी ईरान का एकमात्र यूरेनियम संवर्धन केन्द्र ईरान के शहर नतांज में होगा, जहां शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु संवर्धन की अनुमति दी जाएगी. ईरान के अन्य केन्द दूसरे कामों के लिए उपयोग में लिए जाएंगे.
ईरान का परमाणु कार्यक्रम – iran nuclear program timeline
ईरान के परमाणु कार्यक्रम की शुरूआत 1950 में शुरू हुई. इस शुरूआत में अमेरिका और यूरोप ने भी ईरान का साथ दिया. इस कार्यक्रम को एटम्स आफ पीस नाम दिया गया था. यह साथ तब तक बना रहा जब तक ईरान में क्रांति नहीं हो गई और ईरान की सत्ता ईरान के शाह के हाथ से निकल गई.
iran nuclear issue summary
1979 में हुई इस क्रांति के बाद अयैतुल्लाह खमैनी का उद्भव हुआ. इस ईरानी ने इस कार्यक्रम को अनैतिक कहते हुए खारिज कर दिया और ईरान का परमाणु कार्यक्रम ठंडे बस्ते में चला गया. इस परिवर्तन के बाद ईरान ने एनपीटी और अन्य मास डिस्ट्रक्शन वेपन्स को लेकर की जानी वैश्विक संधियों पर भी हस्ताक्षर किए.
1979 में बंद हो गए परमाणु कार्यक्रम को एक बार फिर से शुरू करने का मौका 1987 में मिला जब अर्जेन्टीना की नेशनल एटाॅमिक एनर्जी ने उसके साथ यूरेनियम संवर्द्धन को लेकर एक समझौता किया. इस समझौते का परिणाम 1993 में जाकर आया. जब उसे यूरेनियम की सप्लाई मिली.
ईरान का परमाणु कार्यक्रम में ढेरों रिसर्च साइट्स के अलावा दो यूरेनियम माइन्स एक रिसर्च रियेक्टर और यूरेनियम प्रोसेसिंग फैसेलिटी शामिल है. दुनिया को ईरान से शिकायत है कि उसने चोरी छुपे इस कार्यक्रम को चलाया है और कभी भी इसकी ठीक-ठीक जानकारी इंटरनेशनल एटाॅमिक एनर्जी एजेंसी के साथ साझा नहीं की.
यूरोपीय देश और संयुक्त राज्य अमेरिका जहां ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर प्रतिबंध लगा रहे हैं वही दूसरी ओर रूस से उसे पूरा सहयोग मिला है. रूस की एजेंसी के ही मदद से ईरान ने 2011 में अपना पहला परमाणु रिएक्टर बुशहेर एक पूरा किया. 2007 में अमेरिकी एजेंसी ने खुलासा किया कि ईरान 2003 से ही परमाणु हथियार बनाने की तैयारी कर रहा है.
इस खुलासे ने पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया और ईरान को एक बार फिर मुश्किलों का सामना करना पड़ा. 2011 में आईएईए ने भी इसी तरह के आरोप अपनी रिपोर्ट में ईरान पर लगाए. इस रिपोर्ट के बाद ईरान ने आईएईए को धमकी दी की, अगर ईरान के साथ रवैया नहीं बदला गया तो वह एजेंसी के साथ सहयोग करने के वादे पर फिर से विचार करेगा.
परमाणु कार्यक्रम का वैश्विक असर
ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर पूरी दुनिया में अलग-अलग तरह के स्वर पैदा हुए. अमेरिका और पूरा यूरोप इसके विरोध में खड़ा हो गया लेकिन रूस ने इसे दुश्मन का दुश्मन दोस्त वाली थ्योरी को ध्यान में रखते हुए न सिर्फ समर्थन दिया बल्कि उसे सहयोग भी दिया. क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी इसरायल ईरान के इस विकास को लेकर हमेशा आशंकित रहा है और हाल ही हुए समझौते को लेकर इसरालय इस कदर परेशान हुआ कि उसने ईरान पर हमले तक की चेतावनी दे डाली.
ईरान में 1979 में हुई इस्लामी क्रांति से पहले तक के शासक मोहम्मद रजा पहेलवी से अमेरिका के रिश्ते बहुत ही नजदीकी रहे लेकिन इस क्रांति ने इनके बीच सबकुछ बदल डाला. हालात इस कदर खराब होते गए कि 1995 तक अमेरिका ने ईरान के साथ व्यापार पर इम्बार्गो लगा रखा था. ईरान के परमाणु कार्यक्रम ने इसे और बिगाड़ दिया.
अमेरिका ईरान के मिसाइल कार्यक्रम को लेकर कभी चिंतित रहा है. इस परमाणु समझौते का अमेरिका के भीतर ही विरोध हो रहा है और राष्ट्रपति ओबामा को सीनेटर्स के गुस्से का सामना करना पड़ा है. हालात इस कदर बिगड़ गए थे कि कि राष्ट्रपति कार्यालय को इसके लिए चिट्ठी जारी करनी पड़ी.
इजरायल ईरान का क्षेत्रीय प्रति़द्वंद्वी रहा है. इजरायल और ईरान में राजनैतिक के अलावा धार्मिक विवाद भी रहे हैं जो उनके इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. हालांकि दोनों देशों के संबंध मधुर भी रहे, जब ईरान पर पहेलवी वंश का शासन था.
इजरायल के साथ सम्बन्ध बिगड़ने की शुरूआत भी 1979 में ही जब ईरान में इस्लामी क्रांति ने अपना वर्चस्व स्थापित किया. 1947 में ईरान उन 13 देशों में शामिल था जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन के दो टुकड़े करने के प्रस्ताव के विरोध में वोट किया था.
इजरायल के संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनने को लेकर भी ईरान ने विरोध दर्ज करवाया था. वह इजरायल के निर्माण से ही उसका विरोधी रहा. इन हालातों ने इन दोनों मुल्कों को चिर प्रतिद्वंद्वी बना दिया. इजरायल इस समझौते के बावजूद अपने लिए सारे विकल्प खुले रखना चाहता है और मध्य एशिया में अपने समकक्ष किसी को खड़ा होने देगा, इस पर मुश्किल से ही यकीन किया जा सकता है लेकिन इस समझौते के टूटने ने तो ईरान और अमेरिका को एक बार फिर आमने-सामने ला खड़ा किया है.