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केदारनाथ धाम की महिमा
केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड में चार धाम और पंच केदार धार्मिक यात्राओं का हिस्सा है. भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग में केदारनाथ की अपनी अलग ही महिमा है. माना जाता है. कि केदारनाथ में भगवान शिव सदैव विराजमान रहते हैं. गरुण पुराण में केदारनाथ को सभी पापों को मिटाने वाला बताया गया है. पौराणिक मान्यता के अनुसार केदारनाथ का नाम सतयुग के राजा केदार के नाम पर रखा गया है.केदारनाथ में पांडवों ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए बड़ी तपस्या की थी और यहां पांडवों द्वारा मंदिर भी बनाया गया था. वर्तमान मंदिर आदि शंकराचार्य ने बनवाया था.
केदारनाथ मंदिर समुद्र तल से 3584 मीटर की ऊंचाई पर मंदाकिनी नदी के किनारे स्थित है. बर्फ से ढके पर्वतों के बीच स्थित केदारनाथ की प्राकृतिक सुंदरता तीर्थयात्रियों के साथ पर्यटकों को भी बहुत आकर्षित करती है. यह भी माना जाता है कि केदारनाथ दर्शन के बाद ही बद्रीनाथ दर्शन के लिए जाना चाहिए. केदारनाथ धाम की पौराणिक महिमा इस प्रकार है.
केदारनाथ धाम की कथा
महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद पांडव चाहते थे कि उन्हें गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति प्राप्त हो जाए. इसके लिए वे भगवान शिव की आराधना करना चाहते थे. भगवान शिव पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे. इसलिए पांडव जहां भी जाते, भगवान शिव वहां उन्हें दर्शन नहीं देते. पांडवों से रुष्ट भगवान शिव आखिरकार केदार में आकर अंतर्ध्यान हो गए. पांडव भी शिव जी के पीछे-पीछे केदार जा पहुंचे. इस पर महादेव बैल का रूप धरकर पशुओं के झुंड में शामिल हो गए. पांडवों को शंका हो गई कि शायद शिव जी उनसे नाराज है, इसलिए दर्शन नहीं देना चाहते. भीम ने विशाल रूप बनाकर अपने दोनों पैर पहाड़ पर फैला दिए. गाय, बैल सहित सभी अन्य पशु तो पैरों के नीचे से निकल गए लेकिन शंकर भगवान जो बैल का रूप धारण किए हुए थे वे पैरों के नीचे से निकलने के बजाय भूमि में अंतर्ध्यान होने लगे. इस पर भीम ने बैल की पीठ का उभार पकड़ कर उन्हें रोकने की कोशिश की.
पांडवों का भक्ति भाव और तीव्र लगन देखकर महादेव का मन शांत हो गया और उन्होंने दर्शन देकर पांडवों को पाप से मुक्ति प्रदान की. इसके बाद से ही केदारनाथ धाम में बैल की पीठ के आकृति-पिंड के रूप में भगवान शिव की आराधना की जाती है.
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दिल्ली से केदारनाथ कैसे पहुंचें Kedarnath Yatra from Delhi
दिल्ली में आईएसबीटी कश्मीरी गेट से ऋषिकेश और श्रीनगर (गढ़वाल) के लिए बस मिल जाती है. इसके बाद ऋषिकेश और श्रीनगर सहित टिहरी, पौड़ी, देहरादून, हरिद्वार, उत्तरकाशी, चमोली सहित उत्तराखंड के सभी प्रमुख शहरों से गौरीकुंड के लिए बसें मिल जाती हैं. बस या सड़क मार्ग से आने वाले यात्री केदारनाथ तक पहुंचने के मुख्यतः दो मार्ग हैं, जो इस प्रकार हैं.
मार्ग 1- टिहरी से अगस्त्यमुनि, गुप्तकाशी, सोनप्रयाग, गौरीकुंड, गरुड़ चट्टी होते हुए केदारनाथ.
मार्ग 2 – ऋषिकेश, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, गौरीकुंड होकर केदारनाथ.
केदारनाथ मार्ग पर गौरीकुंड वाहन द्वारा पहुंचने के लिए अंतिम स्थान है. गौरीकुंड से 14 किलोमीटर की ट्रेकिंग कर केदारनाथ पहुंचा जा सकता है. लेकिन 2013 में आई प्राकृतिक आपदा के बाद सोनप्रयाग से केदारनाथ पहुंचने का 21 किलोमीटर लम्बा नया ट्रेकिंग रूट तैयार किया जा रहा है. अभी, हेलीकॉप्टर केदारनाथ मंदिर तक पहुंचने का सबसे अच्छा और आसान तरीका है.
हवाई मार्ग से
केदारनाथ जॉलीग्रांट एयरपोर्ट से 238 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दिल्ली से जॉलीग्रांट एयरपोर्ट के लिए रोजाना फ्लाइट उपलब्ध हैं. जॉलीग्रांट एयरपोर्ट से गौरीकुंड सड़क मार्ग से आसानी जाया जा सकता है.
ट्रेन से
केदारनाथ से निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश 216 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. ऋषिकेश के लिए दिल्ली सहित कई बड़े शहरों से सीधी ट्रेनें उपलब्ध हैं. ऋषिकेश से श्रीनगर होकर गौरीकुंड के लिए बसें उपलब्ध हैं.
केदारनाथ धाम का मौसम
शीतकालीन मौसम के दौरान, भारी हिमपात और चरम ठंडा मौसम के कारण केदारनाथ छह महीने के लिए बंद हो जाता है.
गौरीकुंड केदारनाथ मार्ग पर अंतिम स्थान था, लेकिन 2013 में केदारनाथ बाढ़ के साथ एक नया ट्रेकिंग मार्ग तैयार किया जा रहा है। यह 21 किलोमीटर की यात्रा के लिए तैयार होगा, जो कि सोनप्रयाग या सीतापुर से शुरू होती है.
बद्रीनाथ धाम का महत्व
बद्रीनाथ भगवान विष्णु के 108 दिव्य देसम अवतारों में वैष्णवों के लिए पवित्र मंदिरों में से एक है. बद्रीनाथ मंदिर आदि शंकराचार्य द्वारा बनाया गया था. उनको ही शुरू में गंगा की 12 धाराओं में से एक अलकनन्दा नदी में बद्रीनारायण की मूर्ति के दर्शन हुए थे. वर्तमान मंदिर 16 वीं शताब्दी में गढ़वाल के राजा द्वारा बनाया गया था.
बद्रीनाथ मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में समुद्र तल से 3415 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यह मंदिर अलकनंदा नदी के पानी के समुद्र के किनारे पर गढ़वाल हिमालय की साइलेंट घाटी में स्थित है. उत्तराखंड में चार धाम की धार्मिक यात्राओं का ये मंदिर एक हिस्सा है. सुंदर मौसम, घने जंगल, बर्फ से ढंके पहाड़ों, आसपास की हरी घाटी वाली पवित्र नदी पर्यटकों को बद्रीनाथ आने के लिए प्रेरित करती है. बद्री विशाल के बारे में पौराणिक कथा इस प्रकार है.
ब्रदीनाथ धाम की कथा
प्राचीन काल में भगवान विष्णु एक बार तपस्या करने के लिए स्थान खोज रहे थे. काफी ढूंढ़ने के बाद वे इस शांत और सुरम्य स्थान पर पहुंचे, जो नीलकंठ पर्वत के पास था. चूंकि भगवान विष्णु को यह ज्ञात था कि यह स्थान भगवान शिव का है. इसलिए वे एक रोते हुए बालक का वेश धरकर महादेव के पास पहुंचे. अनुमति मिलने पर विष्णु जी घोर तपस्या में लीन हो गए. तपस्या करते करते कई साल बीत गए, भगवान विष्णु भारी हिमपात से ढक गए, लेकिन तपस्या में वे इतने लीन थे कि उन्हें इसका पता ही नहीं चला. लक्ष्मी जी से अपने पति की यह हालत देखी नहीं गई तो वे बद्री यानी बेर का पेड़ बनकर उन्हें छाया प्रदान करने लगीं. इस तरह कई साल गुजर गए, बद्री का पेड़ भी बर्फ से पूरी तरह ढक गया.
भगवान विष्णु की तपस्या जब पूरी हुई और उन्होंने बर्फ से ढके बद्री के पेड़ को देखा तो वह पहचान गए कि ये तो लक्ष्मी जी हैं जिन्होंने उनकी सहायता के लिए साथ-साथ तपस्या की है. इस पर भगवान विष्णु ने कहा कि चूंकि आपने भी बद्री वृक्ष के रूप में मेरे साथ तपस्या की है तो इस स्थान पर आपकी भी पूजा की जाएगी और इस स्थान को बद्रीनाथ के रूप में ख्याति मिलेगी. स्थान बद्रीनाथ के नाम से जाना जाने लगा. बद्रीनाथ मंदिर के प्रवेश द्वार पर, भगवान शिव की मुख्य मूर्ति बर्ड गारुड पर रखी गई है, जो भगवान बद्रीनारायण का वाहन है.
देश के प्रमुख शहरों से बद्रीनाथ की दूरी
दिल्ली से बद्रीनाथ की दूरी 491 किलोमीटर है. कोलकाता बद्रीनाथ की दूरी 1719 किलोमीटर. बंगलौर से बद्रीनाथ की दूरी 2495 किलोमीटर और जयपुर से बद्रीनाथ की दूरी 801 किलोमीटर है.
हवाई मार्ग से बद्रीनाथ की यात्रा
जॉली ग्रांट एयरपोर्ट की दूरी बद्रीनाथ से 314 किमी है. जो कि बद्रीनाथ का सबसे निकटतम हवाई अड्डा है. जॉली ग्रांट एयरपोर्ट के लिए दिल्ली से आसानी से फ्लाइट उपलब्ध हैं. जौली ग्रांट एयरपोर्ट से बद्रीनाथ तक टैक्सी आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं. इसके अलावा हरिद्वार और आस -पास के शहरों से चार धाम यात्रा के दौरान आसानी से हेलीकॉप्टर उपलब्ध हो जाता है.
ट्रेन से बद्रीनाथ की यात्रा
ऋषिकेश रेलवे स्टेशन एनएच 58 पर बद्रीनाथ से पहले 295 किलोमीटर की दूर पर स्थित है. जो कि बद्रीनाथ के सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन है. ऋषिकेश रेलवे स्टेशन भारत के लगभग सभी प्रमुख रेलवे स्टेशन के साथ अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है. ऋषिकेश, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, चमोली, जोशीमठ आदि से बद्रीनाथ के लिए टैक्सी और बसें आसानी से उपलब्ध हो जाती है.
सड़क मार्ग से बद्रीनाथ की यात्रा
आईएसबीटी कश्मीरी गेट से बद्रीनाथ, हरिद्वार, ऋषिकेश, पौड़ी, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, उखीमठ, श्रीनगर, चमोली और उत्तराखंड राज्य के प्रमुख स्थलों के लिए बसें आसानी से उपलब्ध हो जाती है. सड़क मार्ग से बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग 58 से जुड़ा हुआ है.
बद्रीनाथ का मौसम
मई के महीने में बद्रीनाथ के लिए पर्यटन की शुरुआत हो जाती है. सूर्य देव के दर्शन होते रहने से मौसम अपेक्षाकृत खुशनुमा रहता है. बद्रीनाथ मंदिर के कपाट भी आम तौर पर अप्रेल के अंत तक खुल जाते हैं. मई के महीने में बर्फ़बारी तो नहीं होती लकिन जमीन पर बर्फबारी देखने को आसानी से मिल जाती है. वही जून के महीने में मौसम गर्म होने के साथ ही बर्फ पिघलने लगती है.
बद्नीनाथ के आस -पास के अन्य दर्शनीय स्थल
ब्रह्म कपाल, तप्त-कुंड, शेषनेत्र, चरणपादुका, नीलकंठ, माणा गाँव, वेद व्यास गुफा, गणेश फा, वसु धारा, भीम पुल, लक्ष्मी वन, अलकापुरी और सतोपंथ.
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