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दरगाह अजमेर शरीफ़ का इतिहास
अजमेर शरीफ़ दरगाह सबसे महत्वपूर्ण मुस्लिम तीर्थ स्थलों में से एक है। राजस्थान के अजमेर जिले में स्थित अजमेर शरीफ दरगाह में हर वर्ष होने वाले सालाना उर्स के मेले में लाखों की संख्या में सभी समुदायों के श्रद्धालु ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के दरगाह में सजदा करते हैं और अमन चैन की दुआ मांगते हैं।
राजस्थान में रामदेवरा के अलावा अजमेर शरीफ ऐसी जगह है, जहां सभी समुदायों के लोग आते हैं और ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर माथा टेक सजदा करते हैं। जायरीन यहां बाबा की दरगाह पर माथा टेकने के साथ ही फूल, मखमली कपड़ा, इत्र और चंदन चढ़ाते हैं।
सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का 807 वें उर्स का आयोजन उर्दू कलैंडर के अनुसार रजब महीने में चांद दिखने के साथ ही उर्स की शुरूआत हो जाएगी। अंग्रेजी कलैंडर के अनुसार साल 2021 में उर्स की शुरूआत 11 मार्च से हो रही है।
ख्वाजा साहब की दर पर हर बरस होने वाले वार्षिक पवित्र पर्व उर्स से पहसे अजमेर में स्थित बुलंद दरवाजे पर ध्वज फहराया जाता है। यह ध्वज राजस्थान के ही भीलवाड़ा के गौरी परिवार द्वारा चढ़ाया जाता है।
Ajmer Urs 2021 Date and Detailed Programme – अजमेर शरीफ उर्स 2021 की तारीख एवं कार्यक्रम
11 मार्च 2021 | चांद दिखने पर झंडा चढ़ाया जाएगा |
.. मार्च 2021 | जन्नती दरवाजा खुलने के साथ उर्स की शुरुआत |
.. मार्च 2021 | छठी शरीफ |
.. मार्च 2021 | नमाज ए जुमा |
22 मार्च 2021 | बड़ा कुल के साथ उर्स का समापन |
विशेष नोट | चांद दिखने के अनुसार इस कार्यक्रम में बदलाव संभव है |
अजमेर शरीफ के नाम – Other Names of Ajmer Sharif
क्यों मानते हैं उर्स Kwaja Gharib Nawaz Urs
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भारत की महान आध्यात्मिक परंपराओं के प्रतीक हैं। गरीब नवाज द्वारा की गयी मानवता की सेवा सदैव प्रेरणा स्रोत रही है। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेर आए और फिर यहीं बस गए।
उन्होंने लोगो को आपसी भाईचारे का पाठ पढ़ाया इतिहासकारों के अनुसार जब ख्वाजा मोइनुद्दीन 89 वर्ष की उम्र में एक दिन खुदा की इबादत करने के लिए अपने आप को 6 दिन तक कमरे में बंद रखा और फिर अपना शरीर त्याग दिया। बाद में लोगों ने उस स्थान पर मोइनुद्दीन का मकबरा बना दिया जिसे लोग आज अजमेर शरीफ दरगाह के नाम से जानते हैं। यहां हर साल उर्स भरता है जो 6 दिन तक चलता है।
इस साल उर्स में यह होगा खास Urs 2021
दरगाह के बुलंद दरवाजे पर उर्स का झंडा अस्र की नमाज के बाद लंगर खाना गली स्थित गरीब नवाज गेस्ट हाउस से झंडे का जुलूस रवाना होगा। नमाज़ के बाद शाही कव्वाल गरीब नवाज की शान में सूफियाना कलाम पेश करते हुए झंड़े के आगे चलेंगे।
उर्स के अवसर पर बड़े पीर साहब की पहाड़ी से 25 तोपों की सलामी दी जाएगी। जुलूस लंगर खाना गली, नला बाजार और दरगाह बाजार होते हुए दरगाह पहुंचेगा। दरगाह में रोशनी के वक्त से पहले बुलंद दरवाजे पर इस झंडे को चढ़ा दिया जाएगा। चांद की 29 तारीख को परंपरा के अनुसार दरगाह में स्थित जन्नती दरवाजा जायरीन के लिए खोल दिया जाएगा।
क्यूल दिवस
क्यूल दिवस उर्स का अंतिम दिन है जो त्यौहार के छठे दिन होता है। यह इस त्यौहार सबसे महत्वपूर्ण दिन भी है। सुबह प्रार्थना के बाद लोग पवित्र कब्र के पास इकठ्ठा होना शुरू करते हैं। उसके बाद कुरान पाक की आयतें पढ़ी जाती हैं। जायरीन एक—दूसरे को छोटी पगड़ी बांधते हैं और शांति, ख़ुशी तथा सम्पन्नता के लिए प्रार्थना करते हैं।
अजमेर शरीफ़ दरगाह का इतिहास – History of Ajmer Sharif
प्रसिद्ध सूफी संत मोइनुद्दीन चिश्ती का जन्म 1141 में और मृत्यु 1236 ईस्वी में हुई थी। ख्वाजा मोइनुद्दीन अजमेर आए और फिर यहीं बस गए। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भारत की आध्यात्मिक परंपराओं के प्रतीक भी माने जाते हैं। 89 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने आप को 6 दिन तक खुद को कमरे में बंद रखा और अपना शरीर त्याग दिया बाद में लोगों ने उस स्थान ख्वाजा मोइनुद्दीन का मकबरा बना दिया।
कहते हैं मांडू के सुल्तान ग़यासुद्दीन ख़िलजी ने 1465 में इस स्थान पर दरगाह और गुम्बद का निर्माण करवाया। बाद में बादशाह अकबर के शासन काल में भी दरगाह में निर्माण कार्य करवाए गए।
दरगाह अजमेर शरीफ़ का मुख्य द्वार निज़ाम गेट कहलाता है। इसका निर्माण 1911 में हैदराबाद स्टेट के तत्कालीन निजाम, मीर उस्मान अली खां ने करवाया। उसके बाद मुगल सम्राट शाहजहां ने यहां शाहजहांनी दरवाजा बनवाया। सुल्तान महमूद खिलजी ने गरीब नवाज की दरगाह में बुलन्द दरवाजे का निर्माण करवाया था।
दरगाह के अंदर नक्काशी किया हुआ एक चांदी का कटघरा है, जहां ख्वाजा साहब की मजार है। इस कटघरे का निर्माण जयपुर के महाराजा राजा जयसिंह ने करवाया था। दरगाह में खूबसूरत महफिल खाना भी है, जहां कव्वाल महान सूफी संत की शान में कव्वाली गाते है।
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की जीवनी – Life of Khwaja Moinuddin Chishti
ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का जन्म ख़ुरासान प्रांत के ‘सन्जर’ नामक गांव में हुआ था। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने ही भारत में ‘चिश्ती सम्प्रदाय’ का प्रचार-प्रसार अपने गुरु उस्मान हारुनी के दिशा-निर्देशों पर किया किया।
इनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा अपने पिता के संरक्षण में हुई। जिस समय ख्वाजा मोइनुद्दीन मात्र 15 वर्ष के थे, इनके पिता का देहांत हो गया। बचपन में ख्वाजा अन्य बच्चों से अलग थे। वे फकीरों की संगत और इबादत में अपने आप को व्यस्त रखते थे।
ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती सन 1195 ईस्वी में मदीना से भारत आए थे। तब मोहम्मद गौरी की फौज अजमेर के राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान से पराजित होकर वापस गजनी की ओर भाग रही थी।
भागती हुई सेना के सिपाहियों ने ख्वाजा मोइनुद्दीन से कहा कि आप आगे न जाएं। आगे जाने पर आपके लिए ख़तरा पैदा हो सकता है, किंतु ख्वाजा मोइनुद्दीन नहीं माने। वह कहने लगे- ‘मैं अल्लाह की ओर से मोहब्बत का संदेश लेकर जा रहा हूं।’
ख्वाजा थोड़ा समय दिल्ली रुके उसके बाद लाहौर चले गए। काफी समय लाहौर रहने के बाद मुइज्ज़ अल-दिन मुहम्मद के साथ अजमेर आए और वही बस गए।
अजमेर शरीफ़ दरगाह की यात्रा का समय – Time to visit Ajmer Sharif
वैसे तो अजमेर दरगाह पर हाजरी साल भर के किसी भी महीने में दी जा सकती है। फिर भी उर्स का त्यौहार अजमेर शरीफ दरगाह की यात्रा के लिए सर्वोत्तम समय है। उर्स के दौरान यह पवित्र स्थान रात दिन खुला रहता है। उर्स के दौरान दरगाह का मुख्य द्वार जन्नती द्वार कहलाता है, जो आमतौर पर बंद रहता है।
अजमेर दरगाह के प्रमुख स्थल – Places to visit at Ajmer Sharif
अजमेर दरगाह के कई हिस्से दर्शनीय हैं। इनमें निजाम गेट, बुलंद दरवाजा, डीग्स, चिराग, शामखाना या महफिलखाना, बेगमी दालान, बीबी हाफिज जमाल की मजार, औलिया मस्जिद, जन्नती दरवाजा, अकबरी मस्जिद आदि प्रमुख हैं।
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