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गौतम बुद्ध की प्रेरक कहानियां
भगवान बुद्धः श्रद्धा की शक्ति
एक बार बुद्ध भिक्षाटन के लिए निकले। एक गरीब ने उनको सूखी रोटी का टुकड़ा दिया। उन्होंने बहुत प्रसन्नता के साथ उसे ले लिया। अगले द्वार पर उनको स्वादिष्ट भोजन दिया गया। ’ले भिक्षु’ कहकर उनके पात्र में डाल दिया। बुद्ध ने उसे हाथ तक नहीं लगाया। आगे जाकर वह स्वादिष्ट भोजन कुत्तों को खिला दिया। साथ चलते शिष्य ने आश्चर्य से पूछा, ’भगवन् आपने यह क्या किया! क्या आधी रोटी से आपका पेट भर गया! इतना स्वादिष्ट भोजन आपने फेंक दिया!’
शिष्य ने इसका कारण पूछा।
महात्मा बुद्ध ने मुस्करा कर उत्तर दिया, ’उसमें श्रद्धा न थी।’ श्रद्धापूर्वक दिया गया छोटा सा दान लाखों के रुपयों के दान से बढ़कर होता है। श्रद्धा में शक्ति और आकर्षण होता है।
महात्मा बुद्ध का प्रेरक प्रसंगः वृक्ष का सम्मान
गौतम बुद्ध एक दिन एक वृक्ष को नमन कर रहे थे। उनके एक
शिष्य ने यह देखा तो उसे हैरानी हुई। वह बुद्ध से बोला-’भगवन! आपने इस वृक्ष को नमन क्यों किया?’
शिष्य ने यह देखा तो उसे हैरानी हुई। वह बुद्ध से बोला-’भगवन! आपने इस वृक्ष को नमन क्यों किया?’
शिष्य की बात सुनकर बुद्ध बोले-’क्या इस वृक्ष को नमस्कार करने से कुछ अनहोनी घट गई?’
शिष्य बुद्ध का जवाब सुनकर बोला-’नहीं भगवन! ऐसी बात नहीं है, किंतु मुझे यह देखकर हैरानी हुई कि आप जैसा महान व्यक्ति इस वृक्ष को नमस्कार क्यों कर रहा है? वह न तो आपकी बात का जवाब दे सकता है और न ही आपके नमन करने पर प्रसन्नता व्यक्त कर सकता है।’
बुद्ध हल्का सा मुस्करा कर बोले-’वत्स! तुम्हारा सोचना गलत है। वृक्ष मुझे जवाब बोल कर भले न दे सकता हो, किंतु जिस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति के शरीर की एक भाषा होती है, उसी प्रकार प्रकृति और वृक्षों की भी एक अलग भाषा होती है। अपना सम्मान होने पर ये झूमकर प्रसन्नता और कृतज्ञता दोनों ही व्यक्त करते हैं। इस वृक्ष के नीचे बैठकर मैंने साधना की, इसकी पत्तियों ने मुझे शीतलता प्रदान की, धूप से मेरा बचाव किया। हर पल इस वृक्ष ने मेरी सुरक्षा की। इसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना मेरा कर्तव्य है। प्रत्येक व्यक्ति को प्रकृति के प्रति सदैव कृतज्ञ बने रहना चाहिये, क्योंकि प्रकृति व्यक्ति को सुंदर व सुघड़ जीवन प्रदान करती है। तुम जरा इस वृक्ष की ओर देखो कि इसने मेरी कृतज्ञता व धन्यवाद को बहुत ही खूबसूरती से ग्रहण किया है और जवाब में मुझे झूमकर यह बता रहा है कि आगे भी व प्रत्येक व्यक्ति की हरसंभव सेवा करता रहेगा।’
बुद्ध की बात पर शिष्य ने वृक्ष को देखा तो उसे लगा कि सचमुच वृक्ष एक अलग ही मस्ती में झूम रहा था और उसकी झूमती हुई पत्तियां, शाखाएं व फूल मन को एक अद्भुत शांति प्रदान कर रहे थे। यह देखकर शिष्य स्वतः वृक्ष के सम्मान में झुक गया।
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क्रोध करने वाला है वास्तव में अछूत
महात्मा बुद्ध प्रवचन सभा में आकर मौन बैठ गये। शिष्य
समुदाय उनके इस मौन के कारण चिंतित हुए कि कहीं वे अस्वस्थ तो नहीं है। आखिर एक शिष्य ने पूछ ही लिया, ’’भन्ते! आप आज इस तरह मौन क्यों हैं?’’ वे नहीं बोले तो दूसरे शिष्य ने फिर पूछा -’’ गुरुदेव! आप स्वस्थ तो हैं?’’ बुद्ध फिर भी मौन ही बैठे रहे।
समुदाय उनके इस मौन के कारण चिंतित हुए कि कहीं वे अस्वस्थ तो नहीं है। आखिर एक शिष्य ने पूछ ही लिया, ’’भन्ते! आप आज इस तरह मौन क्यों हैं?’’ वे नहीं बोले तो दूसरे शिष्य ने फिर पूछा -’’ गुरुदेव! आप स्वस्थ तो हैं?’’ बुद्ध फिर भी मौन ही बैठे रहे।
इतने में बाहर से एक व्यक्ति ने जोर से पूछा -’’आज आपने मुझे धर्मसभा में आने की अनुमति क्यों नहीं दी?’’
बुद्ध ने कोई उत्तर नहीं दिया और आंखें बन्द कर ध्यानमग्न हो गये। वह बाहर खड़ा व्यक्ति और जोर से बोला- ’’मुझे धर्मसभा में क्यों नहीं आने दिया जा रहा है?’’
धर्मसभा में बैठे बुद्ध के शिष्यों में से एक ने उसका समर्थन करते हुए कहा – ’’भन्ते! उसे धर्मसभा में आने की अनुमति प्रदान कीजिये।’’
धर्मसभा में बैठे बुद्ध के शिष्यों में से एक ने उसका समर्थन करते हुए कहा – ’’भन्ते! उसे धर्मसभा में आने की अनुमति प्रदान कीजिये।’’
महात्मा बुद्ध ने आंखें खोलीं और बोले- ’’नहीं, उसे अनुमति नहीं दी जा सकती है क्योंकि वह अछूत है।’’
’’अछूत! मगर क्यों? सारे शिष्य सुनकर आश्चर्य में पड़े गये कि भन्ते यह छुआछूत कब से मानने लग गये?
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महात्मा बुद्ध ने शिष्य समुदाय के मन के भावों को ताड़ते हुए कहा ’’हां, वह अछूत है। वह आज अपनी पत्नी से लड़ कर आया है। क्रोध से जीवन की शांति भग होती है। क्रोधी व्यक्ति मानसिक हिंसा करता है। इस क्रोध के कारण ही शारीरिक हिंसा होती है। क्रोध करने वाला अछूत होता है क्योंकि उसकी विचार तंरंगें दूसरों को भी प्रभावित करती हैं। उसे आज धर्मसभा से बाहर ही रहना चाहिए। उसे वहां खड़े रह कर पश्चाताप की अग्नि में तप कर शुद्ध होना चाहिए।’’
शिष्यगण समझ गये कि अस्पृश्यता क्या है और अछूत कौन है?
उस व्यक्ति को भी बहुत पश्चाताप हुआ। उसने कभी भी क्रोध न करने का प्रण लिया। बुद्ध ने उसे धर्मसभा में आने की अनुमति प्रदान की।
उस व्यक्ति को भी बहुत पश्चाताप हुआ। उसने कभी भी क्रोध न करने का प्रण लिया। बुद्ध ने उसे धर्मसभा में आने की अनुमति प्रदान की।
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