गणगौर Gangaur Festival in Hindi

गणगौर पर्व पूजा विधि व्रत कथा व गीतों का महत्व

Gangaur Festival in Hindi
गणगौर Gangaur पर्व पर पार्वती के अवतार के रूप में गणगौर व भगवान शंकरजी के अवतार के रूप में ईसर जी की पूजा की जाती है. होली के अगले दिन यानी धुलण्डी के दिन से शुरु होकर 16 दिन तक चलने वाले इस त्यौहार के आखरी दिन जगह-जगह गणगौर के भव्य मेलों का आयोजन होता है. और ईसर और पार्वती जी का विसर्जन बड़े ही धूम-धाम से किया जाता है.

क्यों मनाते है गणगौर? Why do we celebrate Gangaur?

‘गौर गौर गोमती ईसर पूजे पार्वती’ जैसे सुंदर गीतों के साथ दो सप्ताह तक चलने वाले गणगौर पर्वे में महिलायें और लड़किया हर दिन सुंदर वस्त्रआभूषण से सुशोभित  हो कर ईसर-पार्वती जी के विशेष गीतों के साथ विधि-विधान से पूजा अर्चना  करती, कुंवारी लड़कियां मन चाहा  वर पाने के लिए और सुहागिन स्त्री पति की लंबी आयु के लिए ईसर और गणगौर जी की पूजा करती है. और कहानी सुनती है.

2019 में कब है गणगौर पूजा 

हिंदी पंचांग के अनुसार गणगौर का पर्व चैत्र मास की कृष्ण तृतीया से प्रारंभ होती है.और गणगौर की मुख्य पूजा चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को की जाती है और अंग्रेजी कलेण्डर के अनुसार इस वर्ष 2019 में 8 अप्रेल सोमवार के दिन शुभ महूर्त में पूजा और विसर्जन का कार्य सम्पन होगा.

चैत्र मास त्यौहार का आखिरी मास माना जाता है. इस बात को समझने के लिए एक पुरानी कहावत है की ‘तीज तींवारा बावड़ी ले डूबी गणगौर’ गणगौर के साथ ही त्योहारों पर चार महीने का विराम लग जाता है.और फिर चार महीने बाद तीज के पर्व के साथ फिर से शुरु हो जाता है. जो अगली गणगौर तक चलता है.

What is the famous festival in Rajasthan?

गणगौर का त्यौहार राजस्थान, गुजरात, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश सहित भारत के विभिन राज्यों में खास कर जहा-जहा राजस्थानी रहते हैं. वहा गणगौर का उत्सव पूरे हर्षोउल्लास  से मनाया जाता है. होली के 16 वे दिन या यु कहे की नवरात्रों के तीसरे दिन यानी की चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तीज को गणगौर माता की पूजा की जाती है. गणगौर को गोरी तृतीया के नाम से भी जाना व पूजा जाता है.

ऐसे करे  गणगौर की पूजा

प्राचीन समय में पार्वती ने शंकर भगवान को वर के रूप में पाने के लिए व्रत और कठोर तपस्या की थी.शंकर भगवान ने तपस्या से प्रसन्न हो पार्वती जी को वरदान माँगने के लिए कहा तो पार्वती ने उन्हें वर रूप में पाने की अपनी इच्छा जाहिर की.

शिव जी ने पार्वती जी  की मनोकामना पूरी की और शिव-पार्वती का विवाह सम्पन हुआ उसी दिन से गणगौर की पूजा हर साल चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि से शुरु होकर सोलह दिन तक महिलाये सुबह जल्दी उठ कर समूह में बगीचे में जाती है.

दूब व सूंदर  फूल लेकर घर आती है. बगीचे से लाये गए दूब से दूध के छींटे मिट्टी की बनी हुई गणगौर माता को चढ़ाती है. थाली में दही पानी सुपारी आदी पूजन सामग्री से गणगौर माता की पूजा की जाती है.

ऐसा मानना है, की गणगौर पूजा के आठवें दिन ईसर जी पत्नी गणगौर के साथ अपनी ससुराल पहुंचते है,इस लिए गणगौर पूजा के आठवें दिन सभी लड़कियां कुम्हार के यहाँ जाती है और वहा से मिट्टी के बरतन और गणगौर की मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी लेकर आती है. उस मिट्टी से ईसर, गणगौर की छोटी-छोटी प्रतीकात्मक मूर्तियां बनाती है. और पूजा की जाती है.

लोकाचार में ऐसा मानना है की जिस जगह गणगौर की पूजा की जाती हैं उस स्थान को गणगौर का पीहर और जहां विसर्जन किया जाता है. वो जगह गणगौर का ससुराल माना जाता है.

गणगौर व्रत व पूजा विधि

चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी को सुबह जल्दी स्नान करके गीले वस्त्रों में ही घर के ही किसी पवित्र स्थान पर लकड़ी की टोकरी में जवारे बोना चाहिए.

इस दिन से विसर्जन तक एक समय भोजन करना चाहिए.जवारों को गौरी व शिव का रूप माने .

विसर्जन तक प्रतिदिन दोनों समय गौरीजी की विधि-विधान से पूजा अर्चना कर उन्हें भोग लगाना चाहिए.

पूजन में मां गौरी के दस रुपों की पूजा की जाती है। मां गौरी के दस रुप इस प्रकार है.

गौरी, उमा, लतिका, अम्बिक, भगमालिनी, मनोकामना, भवानी, कामदा, भोग वर्दि्वनी और सुभागा मां गौरी के सभी रुपों की पूर्ण विश्वास से पूजा करे.

चंदन,अक्षत, धूप-दीप, नैवेद्यादि से विधिपूर्वक पूजन कर गौरी को अर्पण करे.

जिस जगह गौरीजी की स्थापना करे वहा सुहाग की वस्तुएं सिंदूर, कांच की चूड़ियां, मेहंदी, बिंदी, कंघी, शीशा, काजल व अन्य सामान चढ़ाये .

विधिपूर्वक पूजन के  पश्चात गौरीजी को भोग लगाये और भोग के बाद गौरीजी की कथा सुने या सुनाये.

कथा सुनने के बाद गौरीजी पर चढ़ाए हुए सिंदूर से विवाहित स्त्रियों को अपनी मांग को भरना चाहिए.

चैत्र शुक्ल द्वितीया के दिन यानी सिंजारे के दिन शाम  के समय गौरीजी को किसी करीबी नदी, तालाब या  कुण्ड पर ले जाकर उन्हें स्नान कराएं.

अगले दिन यानी चैत्र शुक्ल तृतीया को सुबह के समय भी शिव-गौरी को फिर से स्नान कराकर, उन्हें सुंदर वस्त्राभूषण पहनाकर ढ़ोल  या पालने में बिठा कर इसी दिन शाम को एक शोभायात्रा के रूप में गौरी-शिव को नदी, तालाब या सरोवर पर ले जाकर विसर्जित करें.

विसर्जन के बाद भगवन शिव और पार्वती जी का ध्यान कर उपवास खोल ले. इस व्रत को करने से उपवासक के घर में संतान, सुख और समृ्द्धि की वृ्द्धि होती है.

गणगौर पूजा के वक्त ये गीत गाया जाता है

गौर गौर
गोमती ईसर पूजे पार्वती
पार्वती का
आला-गीला,
गौर का सोना का टीका
टीका दे,
टमका दे, बाला रानी बरत करयो
करता करता
आस आयो वास आयो
खेरे खांडे
लाडू आयो,
लाडू ले बीरा ने दियो
बीरो ले
मने पाल दी, पाल को मै बरत करयो
सन मन सोला,
सात कचैला, ईशर गौरा दोन्यू जोड़ा
जोड़ ज्वारा,
गेंहू ग्यारा, राण्या पूजे राज ने, म्हे पूजा सुहाग ने
राण्या को
राज बढ़तो जाए, म्हाको सुहाग बढ़तो जाय,
कीड़ी- कीड़ी,
कीड़ी ले, कीड़ी थारी जात है, जात है गुजरात है,
गुजरात्यां
को पाणी,
दे दे थाम्बा ताणी
ताणी में
सिंघोड़ा,
बाड़ी में भिजोड़ा
म्हारो भाई
एम्ल्यो खेमल्यो, सेमल्यो सिंघाड़ा
ल्यो
लाडू ल्यो,
पेड़ा ल्यो सेव ल्यो सिघाड़ा ल्योझर झरती
जलेबी ल्यो, हरी-हरी दूब ल्यो गणगौर पूज
ल्यो
इस तरह सोलह बार बोल कर आखिरी में बोले एक-लो, दो-लो।… लो।.

गणगौर पे मीठे गुने की भी है परम्परा

गणगौर व्रत और पूजा के लिए आटे और मैदे के मीठे गुने बनाने की परम्परा भी है.कुछ महिलायें पूजा के लिये मीठे और खाने के लिए नमकीन गुने बनती है. जिन्हे इसर गणगोर की पूजा के बाद बड़े चावे से खाया जाता है.

गणगोर का मेला

गणगौर की सवारी (मेला) हर साल जयपुर में महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय संग्रहालय ट्रस्ट और पर्यटन विभाग के सहयोग से शाही ठाट-वाट और धूमधाम के साथ पारंपरिक गणगौर की सवारी हर साल निकाली जाती हैं. गणगौर की शाही सवारी सिटी पैलेस से प्रारम्भ होकर त्रिपोलिया बाजार, छोटी चौपड़, गणगौरी बाजार से होते हुए तालकटोरा पहुँचती है.

इस मेले को देखने के लिए भारी संख्या में देश-विदेश के पर्यटक पहुंचते है. होली की मस्ती से  गणगौर की सवारी तक के विविधताओं में एकता का रंग देखने के लिए पूरे विश्व के पर्यटक जयपुर आना पसंद
करते हैं. साथ ही राजस्थान के उदयपुर की धींगा गणगौर, बीकानेर की चांद मल डढ्डा की गणगौर की सवारी प्रसिद्ध है.

गणगौर कथा

एक बार शंकर जी पार्वती जी और नारदजी भ्रमण हेतु निकले. चलते-चलते वे चैत्र शुक्ल तृतीया को एक गाँव में पहुचे उस गांव के लोगो को जब पता चला कि भोले नाथ खुद आये है और संग पार्वती जी भी आई है तो गांव की निर्धन स्त्रियाँ उनके स्वागत सत्कार के लिए अपनी-अपनी थालियों में हल्दी अक्षत लेकर पूजन हतु तुरतं पहुँच गई.

पार्वती जी ने उनके पूजा के भाव को समझकर सारा सुहाग रस उन पर छिड़क दिया और सभी महिलायं अटल सुहाग प्राप्त कर अपने घर लौटी. धनी वर्ग कि स्त्रियाँ को शिव पार्वती की पूजा के लिए आने में थोडी देर लग गयी. धनी वर्ग कि स्त्रियाँ अनेक प्रकार के पकवान सोने चाँदी के थालो में सजाकर पूजा के लिए पहुँची.

इन स्त्रियाँ को देखकर शिव जी ने पार्वती से पूछा की. पार्वती तुमने सारा सुहाग रस तो निर्धन वर्ग की स्त्रियों को दे दिया. अब इन्हें क्या दोगी? पार्वती जी बोली प्रिय प्राणनाथ मैंने उन सभी स्त्रियों को ऊपरी पदार्थों से बना रस दिया था. इसलिए उनका रस धोती से रहेगा.परन्तु मैं धनी वर्ग की स्त्रियों को अपनी अंगुली चीरकर रक्त का सुहाग रस दूँगी. 

जो मेरे समान सौभाग्यवती हो जाएँगी. जब धनी वर्ग की स्त्रियों ने पूजन
समाप्त किया तो पार्वती ने अपनी अंगुली चीरकर उस रक्त को उन महिलाओं पे छिडक दिया. जिस महिला पर जैसे छीटें पडे उसने वैसा ही सुहाग पा लिया.

इसके बाद पार्वती जी अपने पति शंकर जी से आज्ञा लेकर नदी में स्नान करने चली गई. स्नान करने के बाद बालू की शिवजी की मूर्ति बनाकर पूजन किया, भोग लगाया तथा प्रदक्षिणा करके दो कणों का प्रसाद खाकर अपने माथे पर टीका लगाया. उसी समय उस पार्थिव लिंग से शिवजी प्रकट हुए तथा पार्वती को वरदान दिया है. पार्वती आज के दिन जो स्त्री मेरा पूजन और तुम्हारा व्रत करेगी उसका पति चिरंजीवी रहेगा
तथा स्वर्ग को प्राप्त होगा. 

भगवान शंकर जी यह वरदान देकर अन्तर्धान हो गए. इतना सब करते करते पार्वती जी को काफी समय हो गया था. और कुछ समय बाद पार्वतीजी नदी के तट से चलकर उस स्थान पर पहुंची जहाँ पर भगवान शंकर व नारदजी को छोडकर गई थी.शिवजी ने विलम्ब से आने का कारण पूछा तो इस पर पार्वती जी ने कहा मेरे भाई-भाभी नदी किनारे मिल गए थे. 

उन्होंने मुझसे दूध भात खाने तथा ठहरने का आग्रह किया. इसी कारण से देर हो गई. भगवान शंकर तो अन्तर्यामी थे उन्होंने पार्वती जी से बात की और  दूध भात खाने के लिये नदी तट की ओर चल दिए. पार्वतीजी ने मौन भाव से भगवान शिवजी का ही ध्यान करके प्रार्थना की भगवान आप अपनी इस अनन्य सेविका की लाज रखिए. प्रार्थना करती हुई पार्वती जी उनके पीछे पीछे चलने लगी.

उन्हे दूर नदी तट पर उन्हें माया का एक महल दिखाई दिया. महल के अन्दर शिवजी के साले तथा सहलज ने शिव पार्वती ने नारद जी  का स्वागत किया. वे दो दिन तक वहाँ रहे. तीसरे दिन पार्वती जी ने शिवजी से चलने के लिए कहा तो भगवान शिव चलने को तैयार नहीं हुए. 

तब पार्वती जी रूठकर अकेली ही चल पड़ी. ऐसी परिस्थिति में भगवान शिव को भी पार्वती के साथ चलना पड़ा. नारदजी भी साथ चल दिए. चलते-चलते भगवान शंकर बोले, पार्वती मैं तुम्हारे मायके में अपनी माला भूल आया. माला लाने के लिए पार्वती जी तैयार हुई तो भगवान ने पार्वती जी को न भेजकर नारद जी को भेजा. 

वहाँ पहुचने पर नारद जी को कोई महल नजर नही आया. वहाँ दूर दूर तक जंगल ही जंगल का नजारा था तभी बिजली कौंधी और नारदजी को शिवजी की माला एक पेड पर टंगी दिखाई दी. नारदजी ने माला उतारी और शिवजी के पास पहुँच कर यात्रा कर कष्ट बताया. 

शिवजी हँसकर कहने लगे- यह सब पार्वती की ही लीला हैं. इस पर पार्वती जी बोली- मैं किस योग्य हूँ. यह सब तो आपकी ही कृपा हैं प्रभु. ऐसा जानकर महर्षि नारदजी ने माता पार्वती तथा उनके पतिव्रत प्रभाव से उत्पन्न घटना की मुक्त कंठ से प्रंशसा की और कहा की आप सौभाग्यवती समाज में आदिशक्ति हैं. 

संसार की जो भी स्त्री आपके नाम का स्मरण करेगी उन्हें अटल सौभाग्य प्राप्त होगा और समस्त सिद्धियों को बना तथा मिटा सकती हैं. आपकी भावना तथा चमत्कारपूर्ण शक्ति को देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है. मैं आशीर्वाद रूप में कहता हूँ  कि जो स्त्रियां इसी तरह गुप्त रूप से पति का पूजन करके मंगलकामना करेंगी, उन्हें महादेवजी की कृपा से दीर्घायु वाले पति का संसर्ग मिलेगा.

गणगोर के प्रसिद्ध राजस्थान गाने

भंवर
म्हाने खेलन दो गणगौर
खेलन दो
गणगौर भंवर म्हाने पूजन दो गणगौर
खेलन दो
गणगौर भंवर म्हाने पूजन दो दिन चार
ओ जी
म्हारी सगी रे नण्द रा बिन्द
पिया जी
म्हाने खेलन दो गणगौर
प्यारा घना
लागो सा मंनडे में भावो सा म्हारा पिया जी जे
खेलन दो
गणगौर आलिजा म्हारा म्हाने पूजन दो गणगौर
ओ जी
म्हारी सहेल्या जोवे बाट आलिजा खेलन दो गणगौर

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