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मकर संक्रांति Makar Sankranti in Hindi
मकर संक्रांति Makar Sankranti भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। मकर संक्रांति का सम्बन्ध धर्म के साथ-साथ विज्ञान से भी है. मकर संक्रांति का त्योहार हर साल 14 जनवरी को आता है.
मकर संक्रांति के दिन सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए दक्षिणायण से उत्तरायण में प्रवेश करता है. सूर्य देव के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करने के कारण भी इस दिन को मकर संक्रांति कहा जाता है. संपूर्ण भारत में ये पर्व हर्ष- उल्लास के साथ अलग -अलग नाम से एवं अपनी -अपनी परंपराओं के अनुसार मनाया जाता है।
मकर संक्रांति के दिन सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए दक्षिणायण से उत्तरायण में प्रवेश करता है. सूर्य देव के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करने के कारण भी इस दिन को मकर संक्रांति कहा जाता है. संपूर्ण भारत में ये पर्व हर्ष- उल्लास के साथ अलग -अलग नाम से एवं अपनी -अपनी परंपराओं के अनुसार मनाया जाता है।
मकर संक्रांति के दिन होता है राशि परिवर्तन
इस दिन सूर्य धनु राशि की जगह मकर राशि में प्रवेश करता है. उत्तरायण दिशा को देवताओं की दिशा भी माना जाता है, इसलिए इस दिन मंदिर में पूजा पाठ एवं धर्म -कर्म का विशेष महत्व है.
विज्ञान में सूर्य के दिशा बदलने को धार्मिक के साथ ही खगोलीय घटना भी माना गया है. इस दिन से दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार 21 मार्च को धरती सूर्य के एक चक्कर पूरा कर लेती है. 21 मार्च से लगभग 2 महीने पहले सूर्य की गति उत्तरायण होने से उसकी किरणों को सेहत के लिए लाभदायक माना गया है.
मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व
Religious importance of Makar Sankranti
हिन्दू ग्रंथों के अनुसार मकर संक्रांति के दिन ही गंगा नदी का धरती पर अवतरण हुआ था. इसी कारण गंगा नदी जिन राज्यों से गुजरती है, वहां मकर सक्रांति के दिन बड़ी संख्या में लोग गंगा स्नान के लिए आते हैं. इतिहासकारों के अनुसार महाभारत के युद्ध में बाण शैय्या पर लेटे
भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण में आने के बाद अपना शरीर त्यागा था.
भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण में आने के बाद अपना शरीर त्यागा था.
संक्रांति पर तिल, गुड़, दही, खिचड़ी, वस्त्रादि का दान किया जाता है. कहते हैं कि इस दिन गंगा स्नान करने से एक हजार अश्वमेघ यज्ञ के समान फल मिलता है. ज्योतिषों और पंडितों के अनुसार मकर संक्रांति पर तिल दान का विशेष महत्व होता है. साथ ही इस दिन अपनी राशि के अनुसार यदि दान किया जाये तो ज्यादा फलदायक होता है.
पतंगबाजी Kite flying
राजस्थान, गुजरात सहित देश के कई राज्यों में मकर संक्रांति के दिन लोग पतंबाजी Kite flying भी करते हैं. इस दिन सभी उम्र की महिलायें और पुरुष पतंगबाजी का आनंद लेते हैं. पतंगबाजी के शौकीन लोग इस दिन पूरा परिवार सहित घर की छत पर सामूहिक रूप से पतंगबाजी करने के साथ ही, तिल के लड्डू, पकौड़े और अन्य व्यंजनों को बड़े ही चाव से खाते हैं.
अनूठी है जयपुर की मकर संक्रांति
मकर संक्रांति के दिन जयपुर में जहां एक और धर्म पुण्य के साथ दिन भर लोग पतंगबाजी का आनन्द लेते हैं, वहीं शाम होते होते पतंगबाजी का उत्सव आतिशबाजी में बदल जाता है। इस दिन शाम को होने वाली आतिशबाज़ी से सहर का नजारा सिडनी में होने वाली आतिशबाज़ी जैसा हो जाता है। इस दिन की आतिशबाज़ी को देखने के लिए बड़ी संख्या में टूरिस्ट जयपुर आता है।
पोंगल Pongal
दक्षिण भारत के तमिलनाडु और केरल में मकर संक्रांति को पोंगल Pongal के रुप में मनाया जाता है. जनवरी के महीने तक तमिलनाडु की प्रमुख फसल धान और गन्ना पककर तैयार हो जाते हैं. इस अवसर पर किसान अच्छी फसल के लिए भगवान के प्रति आभार प्रकट करता है. इसी दिन बैल की भी पूजा की जाती है, गौ और बैलों की पूजा के साथ ही इन्हें सजाया जाता है और गन्ना व चावल खिलाकर उनके प्रति सम्मान प्रकट किया जाता है. साथ ही इस दिन मंदिर में विशेष पूजा के साथ ही अनेक जगह मेले लगते हैं.
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लोहड़ी Lohri
मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व पंजाब और हरियाणा सहित देश के कई हिस्सों में लोहड़ी Lohri का त्यौहार मनाया जाता है. मकर सक्रांति की पूर्व संध्या पर पंजाब और हरियाणा में फसलों के आगमन और शरद ऋतु के समापन के दिन लोहड़ी का त्यौहार पूरे धूम-धाम से मनाया जाता है. इस दिन शाम के समय अग्नि जलाई जाती है और लोग उसके चारों ओर नाचते-गाते हैं. आग मे रेवड़ी, खील, मक्का की आहुति देते हैं. ऐसी मान्यता है कि जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चा हुआ हो उन्हें विशेष तौर पर बधाई दी जाती है. पिछले कुछ सालों से इस त्यौहार को देश भर में मनाया जाने लगा है.
तिल और गुड़ के बने लड्डू
मीठे गुड़ में मिल गए तिल, उड़ी पतंग और खिल गए दिल.
इस दिन देश भर में लोग अलग-अलग रूपों में तिल, चावल, उड़द की दाल एवं गुड़ का सेवन बड़े ही चाव से करते हैं क्योंकि भारत में जनवरी के महीने में सबसे अधिक सर्दी पड़ती है, ऐसे में शरीर को अंदर से गर्म रखने के लिए तिल, चावल, उड़द की दाल एवं गुड़ का सेवन किया जाता है. मकर सक्रांति के दिन तिल के महत्व के कारण इस पर्व को “तिल संक्रांति” के नाम से भी पुकारा जाता है.
तिल का धार्मिक महत्व
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार कि माघ मास में जो व्यक्ति विष्णु भगवान की पूजा तिल से करता है और तिल का सेवन करता है, उसके कई जन्मों के पाप कट जाते हैं. मकर संक्रांति के पर्व पर गुड़, तेल, कंबल, फल आदि दान करने से पुण्यफल की प्राप्ति होती है.
इस दिन सूर्य देवता धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते है और मकर राशि के स्वामी शनि देव हैं. शास्त्रों के अनुसार शनि देव सूर्य के पुत्र होने के बावजूद सूर्य से शत्रु भाव रखते हैं. शनि देव के घर में सूर्य की उपस्थिति के दौरान शनि उन्हें कष्ट न दें, इसलिए तिल का दान व सेवन मकर संक्रांति में किया जाता है.
मकर संक्रांति के पर्व को पंजाब और हरियाणा में लोहड़ी, असम में बिहू, दक्षिण भारत में पोंगल, उत्तर भारत में मकर संक्रांति और अन्य राज्यों जैसे पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, केरल, गुजरात, कर्नाटक और राजस्थान सहित सभी राज्यों में विभिन्न रूपों में मनाया जाता है.
पक्षियों के लिए ख़तरनाक है पतंगबाजी
मकर संक्रांति का त्यौहार वैसे तो खुशी और उत्साह के साथ मनाया जाता है, लेकिन पतंगबाजी के इस आनंद ने कई निर्दोष पक्षियों को मौत का कारण भी बना दिया है. कांच से बने मंजे से उड़ने वाली पतंगों के कारण हवा में उड़ने वाले कई पक्षी अचानक उस मंजे में फंस जाते हैं जिससे या तो पक्षियों की मौत हो जाती है या उनके पंख कट जाते हैं. इसलिए पतंगबाजी करते वक्ते पक्षियों का भी ध्यान रखना चाहिए ताकि वो मुक्त गगन में आसानी से उड़ान भर सकें.
पतंगबाजी से घायल होने वाले पक्षियों के लिए कई संस्थान उनके उपचार के लिए जगह-जगह पक्षी उपचार केंद्र खोलते हैं ताकि पतंगबाजी से घायल होने वाले पक्षियों को सही समय पर इलाज मिल सके।यह भी पढ़ेंः