Chittorgarh fort in Hindi – चित्तौड़गढ़ का किला

चित्तौड़गढ़ किले के बारे में जानकारी

चित्तौड़गढ़ का किला साहस, शौर्य और बलिदान की जीती-जागती मिसाल है. इस किले के साथ हजारों क्षत्रिय योद्धाओं के पराक्रम और शौर्य के रोमांचक प्रसंगों के साथ ही रानी पद्मावती, राजमाता कर्मावती सहित अनेक वीरांगनाओं के जौहर और गोरा—बादल जैसे पराक्रमी और साहसी योद्धा के बलिदान के अनगिनत अविस्मरणीय प्रसंगों की पवित्र और पावन स्थली होने के साथ वर्ल्ड हेरिटेज साइटस में से एक है चित्तौड़ का किला. राजस्थान के मेवाड़ की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध चित्तौड़गढ़ का यह किला लगभग 700 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है. यह किला गंभीरी नदी के समीप और अरावली पर्वतमाला के एक विशाल पर्वत शिखर पर बना हुआ है जो की राजपूत शौर्य के इतिहास में गौरवपूर्ण स्थान रखता है.

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कैसे पहुंचें
चित्तौड़गढ़ किला

 राजस्थान के किसे भी हिस्से से चित्तौड़गढ़ आसानी से पंहुचा जा सकता है. चित्तौड़गढ़ बस व ट्रेन सेवाओं से भी अच्छी तरह जुड़ा हुआ है. चित्तौड़ पहुंच कर कार, जीप, टेक्सी, पैदल और अन्य उपलब्ध साधनों से किले तक आसानी से पहुंच जा सकता है. साथ ही उदयपुर के डबोक एयरपोर्ट पर उतरने के बाद लगभग 113 किमी का सफर सड़क मार्ग से तय करना पड़ता है.
जयपुर एयरपोर्ट से सड़क मार्ग से इसकी दूरी 340 किमी है.

चित्तौड़गढ़ दुर्ग में एंट्री का समय और टिकिट

चित्तौड़ किले में सुबह 9.45 बजे से शाम 6.30 बजे तक घूम सकते हैं. किले में भारतीय नागरिकों का प्रवेश शुल्क दस रुपए है और विदेशी नागरिकों का प्रवेश शुल्क 100 रुपये है आप आप अगर कैमरा साथ लाए हैं तो कैमरे का चार्ज 25 रुपए अलग से देना होगा. यहां तीन-चार घंटे के लिए गाइड का शुल्क 300-500 रुपए तक होता है.

चित्तौड़गढ़ किले का इतिहास Chittorgarh Fort History

इस किले के निर्माण कब और किसने करवाया इसका कोई भी पुख्ता साक्ष्य उपलब्ध नहीं है. माना जाता है की महाभारत काल में भी यह किला विद्यमान था. कुछ इतहासकारों के अनुसार चित्तौड़ किले में महाभारत काल में भी काफी समय यहाँ गुजरा था. इस किले का सम्बन्ध मौर्य वंश के शासका से भी रहा. मेवाड़ के इतिहास ग्रन्थ वीर विनोद के अनुसार मौर्य राजा चित्रांग ने इस किले का निर्माण करवा कर इसका नाम चित्रकोट रखा था. मेवाड़ में गुहिल राजवंश के संस्थापक बप्पा रावल ने मौर्य साम्राज्य के अंतिम शासक को युद्ध में पराजित कर लगभग आठवीं शताब्दी में चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया था. उसके बाद मालवा के परमार राजा मुंज ने इसे अपने राज्य अंतर्गत लिया था और बाद में गुजरात के प्रतापी सोलंकी नरेश सिद्धराज जयसिंह ने चित्तौड़ के इस ऐतिहासिक दुर्ग पर अपना विजय पताका फहराई. 12 वीं शताब्दी के लगभग चित्तौड़ पर एक बार फिर से गुहिल राजवंश का आधिपत्य हुआ हालांकि इस किले पर अधिकांश समय मेवाड़ के गुहिल राजवंश का आधिपत्य ही रहा पर विभिन्न कालों में यह मौर्य, प्रतिहार, परमार, सोलंकी, खिलजी, चौहान और मुगल बादशाहों के भी अधीन रहा था.

चित्तौड़ के किले पर हुए आक्रमण

चित्तौड़ का किला 7वीं से 16वीं शताब्दी तक सत्ता का एक महत्वपूर्ण केंद्र हुआ करता था. इस किले पर 3 बार बड़े आक्रमण किए गए. पहला आक्रमण सन् 1303 में अलाउद्दीन खिलजी द्वारा, दूसरा सन् 1535 में गुजरात के बहादुरशाह द्वारा तथा तीसरा सन् 1567-68 में मुगल बादशाह अकबर द्वारा किया गया था. चित्तौड़ के किले का प्रमुख मार्ग पश्चिम की ओर से है जो शहर के रास्तों से होता हुआ पुरानी कचहरी के पास से जाता है.
इस मार्ग में 7 प्रवेश द्वार हैं ये प्राचीन द्वार आपस में जुड़े हैं. इस में प्रथम दरवाजा पांडव पोल कहलाता है, इसके पास में प्रतापगढ़ के रावल बाग सिंह का स्मारक बना हैं. जो चित्तौड़ के दूसरे शासक के समय बहादुर शाह की सेना से जूझते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे. किले के दूसरे प्रवेश द्वार भैरव पोल और तीसरा हनुमान पोल है.
इन दोनों ऐतिहासिक दरवाजों के मध्य अकबर की सेना को लोहे के चने चबाने वाले पराक्रमी जयमल और कल्ला राठौड़ की छतरियां बनी है जो 15वीं से 7वीं ईस्वी के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए थे. आगे गणेशपोल, लाडलपोल और लक्ष्मण पोल है. सातवां और अंतिम दरवाजा रामपाल है जिसके सामने मेवाड़ के ठिकाने के यशस्वी पूर्वज पत्ता सिसोदिया का स्मारक है, जिसने तीसरे शाके के समय आक्रांता से संघर्ष करते हुए अपने प्राणों का बलिदान दिया था. पूर्व की ओर से सूरज पोल चित्तौड़गढ़ दुर्ग का प्रवेश द्वार है, उत्तर और दक्षिण दिशा में लघु प्रवेश द्वार और खिड़कियां बनी है, जिसमें उत्तरी दिशा की खिड़की लाखोटा की बारी कहलाती है.

कीर्ति स्तंभ Kirti Stambh

महाराणा कुंभा द्वारा निर्मित विजय स्तंभ, जिसको कीर्ति स्तंभ भी कहते हैं, चित्तौड़ का एक प्रमुख आकर्षण केंद्र है. यह कीर्ति स्तंभ लगभग 120 फीट ऊंचा है, इसके नौ खंड नव देवताओं के प्रतीक है. लोकविश्वास के अनुसार महाराणा कुंभा ने मालवा के सुल्तान मोहम्मद खिलजी पर अपनी विजय के उपलक्ष्य में 1440 में इसका निर्माण करवाया. कीर्ति स्तंभ में ब्रम्हा, विष्णु, शिव, पार्वती, अर्धनारीश्वर, रामायण, महाभारत के पात्र और विष्णु के प्राय सभी अवतारों की अत्यंत सजीव और कलात्मक देव प्रतिमाएं बनी हुई हैं. इस कारण कीर्ति स्तंभ को पौराणिक हिंदू मूर्तिकला का अनोखा खजाना भी कहा जाता है. कीर्ति स्तंभ के प्रत्येक मंजिल पर जाने के लिए घुमावदार सीढ़ियां बनी हुई है.

रानी पद्मावती का  महल Fort of rani Padmavati

चित्तौड़गढ़ महल की पहचान रानी पद्मावती से भी है. उन्होंने राजपूत मर्यादा के लिए जौहर कर लिया. राणा रतन सिंह की बहादुर रानी पद्मावती के महल शांत और खूबसूरत जलाशय पर स्थित है. इस महल के दक्षिण पूर्व में गोरा बादल के महल स्थित है. महासती स्थान पर चित्तौड़ राजपरिवार की अनेक क्षत्रियों का चबूतरे बने हुए हैं.

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