ब्यावर की प्रसिद्ध होली बादशाह की सवारी

ब्यावर की प्रसिद्ध होली बादशाह की सवारी के बारे में कौन नहीं जानता है। यह कला और संस्कृति के लिए मशहूर राजस्थान Rajasthan के प्रसिद्ध मेलों Fairs में से एक है. “बादशाह की सवारी” राजस्थान के ब्यावर Beawar में होली Holi (धुलण्डी) के अगले दिन निकाली जाती है. हिंदुस्तान के ढाई दिन के बादशाह के ढाई घंटे की सवारी का आनन्द और बादशाह से खर्ची लेने के लिए स्थानीय और विदेशी सैलानी इस दिन का इंतजार पूरे वर्ष करते हैं. इसे बादशाह का मेला भी कहा जाता है.

क्या है बादशाह की सवारी?

ब्यावर शहर में बादशाह की सवारी निकालने का प्रचलन बादशाह अकबर Akbar के जमाने से निरंतर जारी है. हर साल होली के अगले दिन बादशाह का रूप धारण किये,बादशाह अकबर के नौरत्नों में से एक राजा टोडरमल की सवारी निकाली जाती है. ब्यावर में बादशाह मेला मनायेे जाने के पीछे प्रचलित किंवदन्ती के अनुसार एक बार बादशाह अकबर शिकार करने के लिए जंगल में गए और रास्ता भटक जाने के कारण वे काफी आगे निकल गए थे.

जंगल में डाकुओं ने बादशाह अकबर को घेर लिया और उन्हे मारने की धमकी दी, उस वक्त उनके साथ सेठ टोडरमल भी थे, उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता से बादशाह को उन डाकुओं से बचा लिया. बादशाह अकबर ने इसी चतुराई के बतौर तोहफे के रूप में सेठ टोडरमल को ढाई दिन की बादशाहत बख्शी थी. सेठ टोडरमल बादशाहत मिलने से अत्यंत खुश थे और इसी खुशी में बादशाह टोडरमल ने हाथी पे सवार होकर प्रजा के बीच घूम-घूम कर सोना, चाँदी, हीरे, जवाहरात व अशरफियाँ लुटाईं.

उस समय तो एक दिन के बादशाह ने खूब दौलत लुटाई थी. तब से ही आम जनता को धनवान व समर्थ बनाने के लिए और ढाई दिन की बादशाहत की याद को जीवित रखने के लिए ढाई घण्टे के बादशाह की सवारी ब्यावर शहर में आज भी धुलण्डी Dhulandi  के अगले दिन निकाली जाती है.

इसमें बादशाह व वजीर खजाने के रूप में गुलाल लुटाते हैं और लोग बादशाह के हाथ से मिली गुलाल की पुड़िया यानी बादशाह के द्वारा दी गई खर्ची को अपने घर ले जाने के बाद सहेज कर रखते है. ब्यावर के स्थानीय लोगों और सालों से इस उत्सव में में आने वाले लोगो का मानना है कि बादशाह द्वारा मिली खर्ची (गुलाल की पुड़िया) उनके घर में सुख शांति और बरकत देती है. इसलिए बादशाह से खर्ची पाने के लिए हजारों लोग इस मेले  में भाग लेते हैं.

बीरबल भी करते थे नृत्य

बादशाह की सवारी में अकबर के नवरत्नों में से एक और बादशाह अकबर व राजा टोडरमल के मित्र बीरबल Birbal मुगल साम्राज्य में अपने मित्र को प्रथम हिन्दू शासक देखकर पगला से गये थे और जब बादशाह टोडरमल खजाना लुटा रहे थे, उस दौरान बीरबल बादशाह के आगे-आगे नृत्य करते हुए चल रहे थे. तभी से हर वर्ष इस उत्सव में सवारी के आगे-आगे बीरबल के नाचने की परंपरा बखूबी निभाई जा रही है.

ऐसे निकलती है बादशाह की सवारी

एक ट्रक Truck की छत पर उस दिन के लिए नियुक्त बादशाह अपने सिंहासन पर बैठ जाते हैं और पूरा ट्रक गुलाल की पुडि़यों से भरा होता है. सवारी की रवानगी से अंत तक बादशाह व वजीर खजाने के रूप में ट्रक में भरी गुलाल लुटाते रहते हैं, इस दौरान माहौल गुलालमय हो जाता है.

चारों ओर लाल गुलाल हो जाता है. पूरी यात्रा के दौरान बादशाह के द्वारा फेंका गया सिर्फ गुलाल ही गुलाल दिखाई देता हैं. ‘बादशाह’ मेले के दौरान लाल गुलाल की खर्ची को पाने के लिए हजारों की संख्या में सभी वर्ग के लोग शामिल होते हैं.

कौन निकालता है बादशाह की सवारी

1851 में प्रारम्भ हुआ यह मेला सभी समुदाय के लोगों का एक ऐसा त्यौहार है, जिसमें बादशाह को सजाने संवारने का कार्य माहेश्वरी समाज के बंधु करते हैं. ठंडाई बनाने का कार्य जैन समाज के निर्देशन में होता है तथा इसका वितरण नगर के प्रमुख बाजारों में प्रसाद के रूप में किया जाता है. और बीरबल के रूप में सवारी के आगे नृत्य की परम्परा ब्राह्मण समाज के व्यक्ति निभाते हैं.

नगर का मुख्य बाजार हजारों लोगों की उपस्थिति में गुलालमय हो जाता है. सभी एक दूसरे पर गुलाल लगाकर खुशी का इजहार करते हैं. शहर के लोग व बच्चे सम्पूर्ण बाजार की छतों पर बैठकर इन सुन्दर दृश्यों का आनन्द लेते हैं. गुलालमय हो जाता है. सभी एक-दूसरे पर गुलाल लगाकर खुशी का इज़हार करते हैं. शहर के लोग व बच्चे सम्पूर्ण बाजार की छतों पर बैठकर इन सुन्दर दृश्यों का आनन्द लेते हैं.

ब्यावर के अग्रवाल समाज द्वारा प्रशासन व आमजन के सहयोग से शहर में बादशाह की सवारी निकाली जाती है, जो निर्धारित मार्ग से होकर शाम के समय उपखण्ड अधिकारी कार्यालय पर समाप्त होती है. जहां मेले के समापन के समय बादशाह का सम्मान करते हुए राजकीय कोष से बीरबल को नारियल व मुद्रा के रूप में नजराना पेश करते हैं. यह आदेश ब्यावर के संस्थापक कर्नल डिक्सन के समय से प्रभावी है.

कोड़ा मार होली Koda Mar Holi

बादशाह की सवारी से पहले जीनगर समाज की महिलाएं व पुरुष पानी से होली खेलते हैं. महिलाएं पुरुषों पर कोड़े बरसाती हैं और पुरुष महिलाओं पर रंगीन पानी फेंकते हैं. ये होली ब्यावर के पाली बाजार चौराहे पर खेली जाती है. इस होली को देवर- भाभी की होली भी कहा जाता है. ये होली सिर्फ आधा घंटा ही चलती है.

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