अटल बिहारी वाजपेई का जीवन परिचय
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई से कौन परिचित नहीं है. उनकी आला शख्शयित की पूरी दुनिया में उन्हें सम्मान की नज़रों से देखा जाता है. वे भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और जनसंघ के प्रमुख संस्थापकों में से एक है. इसके अलावा उनकी पहचान एक प्रखर कवि, पत्रकार और चिंतक के रूप में भी है. उनका जीवन देश सेवा के लिए समर्पित रहा. 16 अगस्त, 2018 को शाम 5 बजकर 5 मिनट पर नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में लंबी बीमारी के बाद अटल बिहारी वाजपेई का निधन हुआ.
अटल बिहारी वाजपेई का छात्र जीवन Atal Bihari Bajpayee Personal life
अटल बिहारी वाजपेई का जन्म 25 दिसम्बर, 1924 को ग्वालियर में हुआ. हालांकि मूल रूप से उनका परिवार उत्तर प्रदेश का रहने वाला था, उनके पिता श्री पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेई आगरा के नज़दीक बटेश्वर के रहने वाले थे लेकिन ग्वालियर रियासत में वे अध्यापन का काम करते थे. उनकी पत्नी और अटल जी की माता जी का नाम कृष्णा वाजपेई था. श्री कृष्ण बिहारी जी हिन्दी और बृज भाषा के प्रकाण्ड कवि थे और अपने पिता से यह गुण अटल बिहारी वाजपेई को विरासत में मिला था.
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बहुत ही कम उम्र से उनके अंदर के कवि ने आकार लेना शुरू कर दिया था. अपने पिता के अतिरिक्त अटल बिहारी वाजपेई पर एक और कवि महात्मा रामचंद्र वीर का बहुत प्रभाव रहा. उनकी पुस्तक विजय पताका ने अटल जी को बहुत गहराई तक प्रभावित किया था. अटल जी की प्रारंभिक शिक्षा पिता के देख—रेख में ग्वालियर में ही हुई और वहां का विक्टोरिया कॉलेज उनके छात्र जीवन का साक्षी रहा, जहां से उन्होंने स्नातक की उपाधि प्राप्त की. छात्र जीवन के दौरान ही उन्हें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ने का मौका मिला और जल्दी ही वे संगठन की तरफ से होने वाले राष्ट्रीय स्तर के वाद—विवाद प्रतियोगिताओं में प्रखर वक्ता बनकर उभरे.
स्नातक से आगे की शिक्षा प्राप्त करने के लिए वे कानपुर आ गए और उन्होंने यहीं के डीएवी कॉलेज से राजनीति शास्त्र की बारीकिया समझना शुरू किया.उनके अंदर का राजनेता शिक्षित होने लगा था. राजनीति में स्नातकोत्तर कर लेने के बाद उन्होंने अपने पिता की देख—रेख में वकालत की शिक्षा लेनी शुरू की लेकिन संघ के काम की वजह से उन्हें इसे बीच में ही छोड़ना पड़ा. संघ में काम करने के दौरान उन्हें जनसंघ के संस्थापक सदस्यों और चिंतक श्यामाप्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय के साथ काम करने का भी मौका मिला और राजनीति के साथ ही उन्हें समाज को बेहतर दिशा दिखाने का मंत्र भी मिला
अटल बिहारी वाजपेई का राजनीतिक जीवन Atal Bihari Vajpayee Political Life
अटल जी के राजनीतिक जीवन की शुरूआत जनसंघ के स्थापना के साथ ही शुरू होती है. शुरूआत में अपनी साहित्यिक अभिरूचियों की वजह से संघ ने उन्हें पत्रिकाओं के संपादन का काम सौंपा और उन्हें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुखपत्र पांचजन्य के साथ ही राष्ट्रधर्म, दैनिक स्वदेश और वीर अर्जुन जैसी पत्रिकाओं केो भी संपादित करने का मौका मिला. इसी बीच भारतीय जनसंघ को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विकल्प के तौर पर तैयार किया जाने लगा और अटल जी इस राजनीतिक संगठन के संस्थापकों में से एक थे. संगठन की स्थापना करने के बाद उन्हें 1968 से 1973 तक जनसंघ की अध्यक्षता करने का मौका भी मिला और वे इस अवधि में भारतीय जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहे. पहले पहल 1955 में उन्हें एक लखनऊ उपचुनाव में प्रत्याशी के तौर पर उतारा गया लेकिन वे चुनाव नहीं जीत सके.
अटल जी ने हार नहीं मानी और जनसंघ भी उनमें अपार संभावनाएं देखता था क्योंकि अपनी सोच और बेहतरीन भाषण शैली की वजह से वे आम जनता में काफी लोकप्रिय हो चुके थे. इसके बाद उन्हें 1957 में जनसंघ के माध्यम से उत्तर प्रदेश की तीन सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ने का मौका मिला और बलरामपुर से विजयी प्रत्याशी के तौर पर वे पहली बार देश की लोकसभा में प्रतिनिधि के तौर पर पहुंचे. 1957 की इस जीत के बाद वे 1977 तक जनता पार्टी की स्थापना तक लगातार लोकसभा में अपनी पार्टी का प्रतिनिधित्व करते रहे और जनसंघ के संसदीय दल के नेता रहे.
इसके बाद भारत में उलटफेर का दौर शुरू हुआ और इमरजेंसी के भारत देश में पहली बार पूर्ण बहुमत से पहली गैर कांग्रेस सरकार बनी और मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बने. मोरारजी ने अटल बिहारी की वाक् चतुराई और सबको साथ लेकर चलने की योग्यता को देखते हुए मंत्रीमंडल में जगह दी और विदेश मंत्री जैसा महत्वपूर्ण कार्यभार दिया. अटल जी ने इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया और देश की छवि को पूरी दुनिया में बेहतर बनाया.
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अटल बिहारी वाजपेई और भारतीय जनता पार्टी Atal Bihari Vajpayee and BJP
जनता दल में आगे चलकर कई मतभेद सामने आने लगे और असमय ही इस सरकार का कार्यकाल खत्म हो गया. कांग्रेस एक बार फिर सत्ता में आई और इसी बीच जनसंघ के बाद एक और नई राजनीतिक पार्टी भारतीय जनता पार्टी 1980 में आई. अटल जी इसके संस्थापक सदस्य थे.
वे 1980 से 1986 तक भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे और संसदीय दल के नेता के तौर पर भी उन्होंने पार्टी की अगुआई की. इसके अलावा वे दो बार 1962 में और 1986 में राज्य सभा के सदस्य भी रहे. इसी बीच भारतीय जनता पार्टी ने विकास करते हुए कई राज्यों में अपनी सरकार बनाई लेकिन केन्द्र में वे सरकार बनाने से कोसो दूर रहे.
अटल बिहारी वाजपेई और राम जन्मभूमि आंदोलन Atal Bihari Vajpayee and Ram Mandir andolan
भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में भारतीय जनता पार्टी का उत्थान एक बहुत पुराने मामले में हुआ. अयोध्या में राम मंदिर को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा था और एक पक्ष अयोध्या की बाबरी मस्जिद को भगवान श्री राम के जन्म स्थान और मंदिर होने के लेकर लंबे समय से आवाज उठा रहा था. भारतीय जनता पार्टी ने इस मामले में राम मंदिर के पक्ष में अपना समर्थन दिया और राममंदिर आंदोलन की शुरूआत की और 1992 में विवादित ढांचा गिरा दिया गया. इस आंदोलन के बाद 1996 में हुए चुनावों में पहली बार भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर लोकसभा में पहुंची. अटल बिहारी वाजपेई सांसद से प्रधानमंत्री Atal Bihari Vajpayee as a prime minister of India
अटल जी के जीवन में देश के प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ लेने के कई मौके आए और सबसे पहला मौका 16 मई 1996 को मिला और अटल बिहारी वाजपेई देश ने देश की कमाना संभाली लेकिन उनकी पार्टी लोकसभा में अपना बहुमत साबित नहीं कर पाई और मात्र 13 दिन शासन करने के बाद उन्होंने 31 मई 1996 को अपना इस्तीफा सौंप दिया. 1998 में हुआ आम चुनावों में एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी को सफलता हाथ लगी और 19 अप्रैल 1998 को एक बार फिर अटल बिहारी वाजपेई को देश का प्रधानमंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. 13 दलों के गठबंधन की यह सरकार 13 महीने चली और एआईएडीएमके ने अपना समर्थन सरकार से वापस ले लिया और देश को एक बार फिर आम चुनावों का सामना करना पड़ा.
इन आंकड़ों को देखने से पता चलता है कि अटल जी के जीवन में 13 नम्बर का बड़ा महत्व रहा. 1999 में हुए आम चुनावों में फिर भारतीय जनता पार्टी को सफलता मिली और इस बार प्रधानमंत्री बनने के बाद अटल बिहारी वाजपेई ने अपना कार्यकाल पूरा किया. 2004 में हुये आम चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को अपेक्षित सफलता नहीं मिली और वाम दलों के समर्थन से कांग्रेस सत्ता पर काबिज हुई. इसी के साथ अटल जी ने राजनीतिक जीवन से सन्यास ले लिया और कालान्तर में स्वास्थ्य कारणों से वे पार्टी के अन्य कार्यक्रमों से भी दूर हो गये थे. 2009 के बाद वे किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में दिखाई नहीं दिए और न ही उनका कोई फोटो जारी किया गया.
अटल बिहारी वाजपेई का निधन
16 अगस्त, 2018 को शाम 5 बजकर 5 मिनट पर नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में लंबी बीमारी के बाद अटल बिहारी वाजपेई का निधन हुआ. राष्ट्रीय स्मृति स्थल पर पूर्ण राजकीय सम्मान के साथ उनकी अंत्येष्टि की गई. उनकी दत्तक पुत्री नमिता भट्टाचार्य ने उन्हें मुखाग्नि दी.
अटल बिहारी वाजपेई को मिले पुरस्कार व सम्मान Atal Bihari Vajpayee Awards and Achievements
➤ अटल बिहारी वाजपेई को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से 2014 में सम्मानित किया गया था.
➤ इससे पहले 1992 में उन्हें देश के अन्य नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है.
➤ 1994 में उन्हें सर्वश्रेष्ठ सांसद का सम्मान भी मिल चुका है.
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