X

How to fisheries in Hindi-मछली पालन का तरीका

How to fisheries in Hindi-मछली पालन का तरीका

मछली पालन कैसे करेें  How to fisheries

भारतीय अर्थव्यवस्था में मछली पालन Fisheries महत्वपूर्ण व्यवसाय Business है जिसमें रोजगार Employment की अपार संभावनाएं हैं. ग्रामीण विकास Rural Development एवं अर्थव्यवस्था Economy में मछली पालन की  भूमिका महत्वपूर्ण है. 

मछली पालन के द्वारा रोजगार के साथ ही आय में वृद्धि की अपार संभावनाएं हैं, भारत के सहरी के साथ ही  ग्रामीण पृष्ठभूमि से जुड़े हुए लोगों  इस व्यवसाय को कर सकता है. मत्स्योद्योग एक महत्वपूर्ण उद्योग के अंतर्गत आता है, इस उद्योग को कम पूंजी के साथ आसानी से शुरू किया जा सकता है और सालाना लाखो करोडो रुपए कमाया जा सकता है.

मत्स्योद्योग के विकास से जहां एक ओर देश की  खाद्य समस्या सुधरती है वहीं दूसरी ओर विदेशी मुद्रा अर्जित होने से अर्थव्यवस्था में भी सहयक होती है. पिछले कुछ सालो से देश में मछली पालन में भारी वृद्धि हुई है. एक  अध्यन के अनुसार भारत विश्व में मछली का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक और अंतर्देशीय मत्स्य पालन का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है. मछली पालन के  क्षेत्र देश में लाख  लोगों को सालाना लाख करोडो रुपए कमा रहा है

अनुकूल प्राकृतिक स्थिति को ध्यान में रख कर करे मछली पालन

हमारे देश में भू-क्षेत्रफल Land area का एक बड़ा हिस्सा ऐसा है जो नदियों, समुद्र व अन्य जल स्रोतों से ढका हुआ है और फसलोत्पादन के लिए उपलब्ध नहीं है, वहां मत्स्य पालन से  अच्छी आय प्राप्त की जा सकती है. इस उद्योग के माध्यम से अन्य सहायक उद्योग को विकसित करके लाभ प्राप्त किया जा सकता है. मछली पालन से विदेशी मुद्रा भी कमा सकते है .

ऐसे कर मछली पालन के लिए तालाब की तैयारी Pond Preparation

मौसमी तालाबों Seasonal ponds में मांसाहारी तथा अवाछंनीय क्षुद्र प्रजातियों की मछली होने की आशंका नहीं रहती है तथापि बारहमासी तालाबों में ये मछलियां हो सकती है. अतः ऐसे तालाबों में जून माह में तालाब में निम्नतम जलस्तर Water Level होने पर बार-बार जाल चलाकर हानिकारक मछलियों व कीड़े मकोड़ों को निकाल देना चाहिए.

यदि तालाब में मवेशी आदि पानी नहीं पीते हैं तो उसमें ऐसी मछलियों के मारने के लिए 2000 से 2500 किलोग्राम प्रति हेक्टयर प्रति मीटर की दर से महुआ खली का प्रयोग करना चाहिए. महुआ खली के प्रयोग से पानी में रहने वाले जीव मर जाते हैं. तथा मछलियां भी प्रभावित होकर मरने के बाद पहले ऊपर आती है. यदि इस समय इन्हें निकाल लिया जाये तो खाने तथा बेचने के काम में लाया जा सकता है.

       महुआ खली के प्रयागे करने पर यह ध्यान रखना आवश्यक  है कि इसके प्रयोग के बाद तालाब को 2 से 3 सप्ताह तक निस्तार हेतु उपयोग में न लाए जावें. महुआ खली डालने के 3 सप्ताह बाद तथा मौसमी तालाबों में पानी भरने के पूर्व 250 से 300 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से चूना डाला जाता है जिसमें पानी में रहने वाली कीड़े मकोड़े मर जाते हैं.

चूना पानी के पी.एच. को नियंत्रित कर क्षारीयता बढ़ाता है तथा पानी स्वच्छ रखता है. चूना डालने के एक सप्ताह बाद तालाब में 10,000 किलोग्राम प्रति हेक्टर प्रति वर्ष के मान से गोबर की खाद डालना चाहिए. तालाब के पानी आवक-जावक द्वार मे जाली लगाने के समुचित व्यवस्था भी अवद्गय ही कर लेना चाहिए.

       तालाब में मत्स्यबीज Fishery seed डालने के पहले इस बात की परख कर लेनी चाहिए कि उस तालाब में प्रचुर मात्रा में मछली का प्राकृतिक आहार (प्लैंकटान) उपलब्ध है. तालाब में प्लैंकटान की अच्छी मात्रा करने के उद्देश्य से यह आवश्यक  है कि गोबर की खाद के साथ सुपरफास्फेट 300 किलोग्राम तथा यूरिया 180 किलोग्राम प्रतिवर्ष प्रति हेक्टयेर के मान से डाली जाये.

मतलब  साल भर के लिए निर्धारित मात्रा (10000 किलो गोबर खाद, 300 किलो सुपरफास्फेट तथा 180 किलो यूरिया) की 10 मासिक किश्तों में बराबर-बराबर डालना चाहिए. इस प्रकार प्रतिमाह 1000 किला गोबर खाद, 30 किलो सुपर फास्फेट तथा 18 किलो यूरिया का प्रयोग तालाब में करने पर प्रचुर मात्रा में प्लैंकटान की उत्पत्ति होती है.

स्वाइन फ्लू Swine Flue बचाव ही उपाय

श्रेष्ठ मछली पालन के लिए  मत्स्य बीज संचयन का रखे ध्यान Fishery seed storage

सामान्यतः तालाब में 10000 फ्राई अथवा 5000 फिंगरलिंग प्रति हैक्टर की दर से संचय करना चाहिए. अध्यन के अनुसार  इससे कम मात्रा में संचय से पानी में उपलब्ध भोजन का पूर्ण उपयोग नहीं हो पाता तथा अधिक संचय से सभी मछलियों के लिए पर्याप्त भोजन उपलब्ध नहीं होता.

तालाब में उपलब्ध भोजन के समुचित उपयोग हेतु कतला सतह पर,रोहू मध्य में तथा म्रिगल मछली तालाब के तल में उपलब्ध भोजन ग्रहण करती है. इस प्रकार इन तीनों प्रजातियों के मछली बीज संचयन से तालाब के पानी के स्तर पर उपलब्ध भोजन का समुचित रूप से उपयोग होता है तथा इससे अधिकाधिक पैदावार प्राप्त की जा सकती है.

पालने योग्य देशी प्रमुख सफर मछलियों (कतला, रोहू, म्रिगल ) के अलावा कुछ विदेशी प्रजाति की मछलियां (ग्रास कार्प, सिल्वर कार्प कामन कार्प) भी आजकल बहुतायत में संचय की जाने लगी है.

       देशी व विदेशी प्रजातियों की मछलियों का बीज मिश्रित मछलीपालन अंतर्गत संचय किया जा सकता है. विदेशी प्रजाति की ये मछलियां देशी प्रमुख सफर मछलियों से कोई  प्रतिस्पर्धा नहीं करती है. सिल्वर कार्प मछली कतला के समान जल के ऊपरी सतह से, ग्रास कार्प रोहू की तरह स्तम्भ से तथा काँमन कार्प मृगल की तरह तालाब के तल से भाजे न ग्रहण करती है और इस समस्त छः प्रजातियोंके मत्स्य बीज संचयन होने पर कतला, सिल्वरकार्प, रोहू, ग्रासकार्प, म्रिगल तथा कामन कार्प को 20-20-15-15-15-15 के अनुपात में संचयन किया जाना चाहिए.

सामान्यतः मछलीबीज पाँलीथीन पैकट में पानी भरकर तथा आँक्सीजन हवा डालकर पैक की जाती है.तालाब मेंमत्स्यबीज छोड़ने के पूर्व उक्त पैकेट को थोड़ी देर के लिए तालाब के पानी में रखना चाहिए. उसके बाद तालाब का कुछ पानी पैकेट के अन्दर प्रवेद्गा कराकर समतापन (एक्लिमेटाइजेद्गान) हेतु वातावरण तैयार कर लेनी चाहिए और तब पैकेट के  छलीबीज को धीरे-धीरे तालाब के पानी में निकलने देना चाहिए. इससे मछली बीज की उत्तर जीविता बढ़ाने में मदद मिलती है.

अधिक उत्पादन के लिए मछलिया के लिए ऊपरी आहार का रखे ध्यान

मछली बीज संचय के उपरात यदि तालाब में मछली का भोजन कम है या मछली की बाढ़ कम है तो चांवल की भूसी (कनकी मिश्रित राईस पालिस) एवं सरसो या मूगं फली की खली लगभग 1800 से 2700 किलोग्राम प्रति हेक्टर प्रतिवर्ष के मान से देना चाहिए.

इसे प्रतिदिन एक निश्चित समय पर डालना चाहिए जिससे मछली उसे खाने का समय बांध लेती है एवं आहार व्यर्थ नहीं जाता है. उचित होगा कि खाद्य पदार्थ बारे को में भरकर डण्डों के सहारे तालाब में कई जगह बांध दें तथा बारे में में बारीक-बारीक छेद कर दें.यह भी ध्यान रखना आवश्यक  है कि बोरे का अधिकांश भाग पानी के अन्दर डुबा रहे तथा कुछ भाग पानी के ऊपर रहे.

सामान्य परिस्थिति में प्रचलित पुराने तरीकों से मछलीपालन करने में जहां 500-600 किलो प्रति हेक्टेयरप्रतिवर्ष का उत्पादन प्राप्त होता है, वहीं आधुनिक वैज्ञानिक पद्धति से मछलीपालन करने से 3000 से 5000 किलोध्हेक्टर ध्वर्ष मत्स्य उत्पादन कर सकते हैं. आंध्रप्रदेश में इसी पद्धति से मछलीपालन कर 7000 किलोध्हेक्टरध्वर्ष तक उत्पादन लिया जा रहा है.

साथ  ही मछली पालकों को प्रतिमाह जाल चलाकर संचित मछलियों की वृद्धि का निरीक्षण करते रहना चाहिए, जिससे मछलियों को दिए जाने वाले परिपूरक आहार की मात्रा निर्धारित करने में आसानी हो तथा संचित मछलियों की वृद्धि दर ज्ञात हो सकेगी. यदि कोई बीमारी दिखे तो फौरन उपचार करना चाहिए.

इस आलेख को यूनिकोड से देवलि फॉण्ट में बदलने के लिए गैजेट पर क्लिक करें- Unicode Converter

 

hindihaat: