भारतीय ज्योतिष में नक्षत्र
भारतीय ज्योतिषियों ने सम्पूर्ण आकाश मण्डल को 27 भागों में विभक्त कर प्रत्येक भाग को एक-एक नक्षत्र की संज्ञा दे दी है. जिस तरह पृथ्वी पर स्थान की दूरी को किलोमीटर में नापा जाता है ठीक उसी तरह आकाश में एक स्थान से दूसरे स्थान की दूरी को नक्षत्रों के माध्यम से नापा जाता है.
जिस प्रकार हमारी पृथ्वी पर नापने के लिए दूरी में किलोमीटर, मीटर और सेंटीमीटर होते हैं, उसी प्रकार नक्षत्रों के भी 4 चरण और 60 अंश होते हैं. कहीं कही नक्षत्रों के अंश को घटी के नाम से भी संबोधित किया जाता है. नक्षत्रों के नाम नीचे दी गई सारणी में दिए गए हैंः
क्र. | नक्षत्र | क्र. | नक्षत्र |
1. | अश्विनी | 15. | स्वाति |
2. | भरणी | 16. | विशाखा |
3. | कृतिका | 17. | अनुराधा |
4. | रोहिणी | 18. | ज्येष्ठा |
5. | मृगशिरा | 19. | मूल |
6. | आर्दा | 20. | पूर्वाषाढ़ा |
7. | पुनर्वसु | 21. | उत्तराषाढ़ा |
8. | पुष्य | 22. | श्रवण |
9. | अश्लेषा | 23. | धनिष्ठा |
10. | मेघा | 24. | शतभिषा |
11. | पुर्वाफाल्गुनी | 25. | पूर्वाभाद्रपद |
12. | उत्तरा फाल्गुनी | 26. | उत्तराभाद्रपद |
13. | हस्त | 27. | रेवती |
14. | चित्रा |
उत्तराषाढ़ा की अंतिम 15 घटी तथा श्रवण नक्षत्र की पहली 4 घड़ी इस प्रकार कुल 19 घड़ी का एक नक्षत्र अभिजित भी माना जाता है. अभिजित सहित नक्षत्रों की कुल संख्या 28 हो जाती है. 28 नक्षत्रों के क्रम में अभिजित 22 वां नक्षत्र माना जाता है. उसके बाद श्रवण से रेवती पर्यन्त क्रमशः 23 से 28 तक की संख्या वाले नक्षत्र आते हैं.
ज्योतिष में नक्षत्रों को कुण्डली के आधार गणकों में से एक माना गया है. कुण्डली धारक के सम्बन्ध में की जाने वाली मीमांसा में नक्षत्र महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं. ज्योतिषिय आकलन में नक्षत्रों की गणना के अलावा, नक्षत्रों का व्यवहार, नक्षत्रों की कुण्डली में अन्य ग्रहों के साथ स्थिति और नक्षत्र के स्वामी के आधार पर बहुत सी बातों का सटीक विश्लेषण किया जाता है. नक्षत्रों के आधार पर ही जातक का व्यवहार और भाग्य निर्धारित किया जा सकता है.
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