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मदर टेरेसा की जीवनी: 20 वीं सदी की जन कल्याणी Biography of Mother Teresa: Blessed Teresa of Calcutta
मदर टेरेसा को आज पूरी दुनिया में कौन नहीं जानता. उनकी जीवनी आज भी हमें कुछ अच्छा करने की प्रेरित कर रही है. उन्होंने निस्वार्थ सेवा के माध्यम से अपना जीवन सार्थक बनाने का संदेश दिया.
बीसवीं शताब्दी के पहले दशक में मैसीडोनिया Macedonia में एक छोटे व्यापारी के घर जन्मी जन्मी एग्नीस गोंग्शा बोयजियू Agnes Gonxha Bojaxhiu ने अपना जीवन गरीब, निरीह, निराश्रित और असहाय लोगों की सेवा में इस कदर समर्पित कर दिया कि इस जन कल्याणी को पूरी दुनिया ने सच्चे मन और निर्विवाद रूप से संत Saint माना.
12 वर्ष की उम्र में ही समझ लिया जीवन का ध्येय – Inkling of Life’s Goal at the age of 12
26 अगस्त 1910 को मैसीडोनिया के स्कोप्जे Scopje शहर में निकोलै नाम के एक छोटे से अल्बानी Albanian कारोबारी के घर 20वीं सदी की महान संत मदर टेरेसा Mother Teresa का जन्म हुआ.
आठ साल की उम्र में सिर से पिता का साया उठने के बाद एग्नीस के लालन पालन की जिम्मेदारी उनकी माता द्रानाफाइल बोयजियू Dranafile Bojaxhiu पर आ गई, मगर उस वक्त कौन जानता था कि यही एग्नीस इस सदी की सबसे बड़ी जन कल्याणी बनकर न जाने कितने की निराश्रितों, असहायों और दरिद्रों का आसरा बनने वाली थी.
एग्नीस ने स्कोप्जे के एक पब्लिक स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही मानव सेवा के लिए अपना पहला कदम उठा लिया और स्कूल सोसायटी की सदस्य बनकर 12 वर्ष की उम्र में ही समझ लिया कि वह गरीबों की सेवा के लिए जन्मी है।
18 साल की उम्र में एग्नीस ने घर छोड़ दिया जिसके बाद वह कभी अपने परिवार से नहीं मिली। आयरलैण्ड Ireland में ननों के एक समूह ‘सिस्टर्स आफ लाॅरेटो’ Sisters of Loreto में शामिल हो गई और सिस्टर टेरेसा बनकर सिस्टर लाॅरेटो Sister Loreto के साथ कुछ समय काम करने के बाद भारत India आई.
मई 1931 में टेरेसा ने पहली धार्मिक शपथ First Profession of Religious Vows ली। 24 मई 1937 में उन्होंने संयम, सादगी और अनुशासन की अंतिम धार्मिक शपथ ग्रहण Final Prefession of Vows की और मदर टेरेसा बनीं.
मदर टेरेसा का भारत आगमन – Coming to India
सिस्टर टेरेसा 6 जनवरी 1929 को भारत पहुंची और लाॅरेटो काॅन्वेंट Loreto Convent के जरिए अध्यापन Teaching का काम शुरू किया। कई वर्ष दार्जीलिंग Darjeeling में बिताए.
इसी बीच 1931 के बाद उन्हें कोलकाता Calcutta की सेंट मैरी’ज हाई स्कूल फाॅर गर्ल्स St. Marry’s High School for Girls में अध्यापन के लिए भेजा गया.
1943 में भंयकर सूखे और अकाल Famine के कारण कोलकाता में हुई मौतों के बाद विकलांग, कुपोषित और भूख से बिलखते बच्चों को बेसहारा देख कर मदर टेरेसा का हृदय द्रवित हो उठा और वह यहां से लौटने का साहस नहीं कर पाई.
आजादी बाद हुए साम्प्रदायिक दंगों से भी टेरेसा का मन पसीज उठा। मदर टेरेसा भारत की नागरिकता ले चुकी थी। पटना के ‘होली फैमिली’ Holy Family अस्पताल से नर्स की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद सिस्टर टेरेसा 1948 में वापस कोलकाता लौट आई। काफी समय तक सिस्टर टेरेसा ने वृद्धों की सेवा करने वाली एक संस्था के साथ काम किया।
काॅल विद-इन काॅल – Call within Call
मदर टेरेसा के जीवन में यह घटना सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह वो घटना है जिसे स्वयं मदर टेरेसा ने ईश्वर का आदेश Order of Christ कहा.
एनुअल रिट्रीट के लिए 10 सितम्बर 1946 को जब वह टाॅय ट्रेन में कोलकाता से दार्जीलिंग का सफर कर रही थी, उन्हें अंर्तआत्मा ने आवाज दी। इसे मदर टेरेसा ने ‘काॅल विद-इन काॅल’ Call within Call कहा तथा अध्यापन छोड़ गरीबों और असहायों की सेवा को उनके लिए ईश्वर का आदेश बताया.
अनुशासन की शपथ के कारण बीच में काॅन्वेंट छोड़ना उनके लिए सम्भव नहीं था मगर जनवरी 1948 में उन्हें अपनी अंर्तआत्मा की आवाज के अनुसरण की अनुमति मिल गई.
इसके बाद मदर टेरेसा ने पटना से नर्स की बेसिक ट्रेनिंग ली और दरिद्र नारायण की सेवा के लिए कोलकाता की कच्ची बस्तियों Slums में पहुंच गई.
1950 में शुरू की मिशनरीज आफ चैरिटी – Missionaries of Charity
मानव सेवा की अपनी ही राह पर चल रही मदर टेरेसा ने लाॅरेटो काॅन्वेंट छोड़ दिया और पूरे तन-मन से लोगों की सेवा में जुट गई। यह वह दौर था जब मदर टेरेसा को पैसे की भी काफी कमी का सामना करना पड़ा.
कई तरह की समस्याओं से जुझते-जूझते मदर टेरेसा को वेटिकन Vatican से सहायता मिली और 7 अक्टूबर 1950 में उन्होंने स्वयं की ‘मिशनरीज आफ चैरिटी’ की नींव रख डाली.
उन्होंने सेवा का जो कार्य जारी रखा, उससे उन्हें पहचान मिलने लगी। अधिकारियों, कारोबारियों, राजनेताओं सहित देश के प्रधानमंत्री तक ने उनके कार्यों की सराहना की.
इसके बाद मदर टेरेसा ने हर प्रकार के जरूरतमंद की सेवा के लिए 1952 में ‘निर्मल हृदय’ आश्रम शुरू किया। यह आश्रम ऐसे निराश्रित लोगों का सहारा बना जो असाध्य रोगों से पीड़ित थे और जिन्हें समाज में कहीं आसरा नहीं था.
इस आश्रम में इन लोगों की सेवा की जाती और उन्हें दवाइयां दी जाती। दरअसल यह वो पवित्र जगह थी जहां असाध्य बीमारी से पीड़ित व्यक्ति सम्मान से अपनी देह छोड़ सके। उन्होंने 1955 में ‘निर्मला शिशु भवन’ के नाम से भी आश्रम शुरू किया जो बेघर, अनाथ और निराश्रित बच्चों का बड़ा सहारा बना.
Mother Teresa and Indira Gandhi the Former Prime Minister of India |
धीरे-धीरे मदर टेरेसा ने भारत के दूसरे स्थानों पर भी अनाथाश्रम और कुष्ठरोगी आश्रम खोलने शुरू कर दिए। ऐसे सेवा संस्थान बाद में भारत के बाहर भी खोले गए।
भारत के बाहर पहला आश्रम पांच सिस्टर्स के साथ 1965 में वेनेजुएला Venezuela में खोला गया। इसके बाद 1968 में रोम, तंजानिया तथा आस्ट्रिया में और फिर दुनिया के कई देशों में मानव सेवा के लिए ऐसे आश्रम खोले गए। आज 120 से भी ज्यादा देशों में मिशनरीज आफ चैरिटी के सेवा मिशन चल रहे हैं।
मदर टेरेसा 2016 में बनी संत – Awards faded, Declared Saint in 2016
मदर टेरेसा ने मानव जाति की जो सेवा की उसके बदले उन्हें कई सम्मान मिले। भारत सरकार ने उन्हें 1962 में पद्मश्री Padma Shri और 1980 में भारत रत्न Bharat Ratn से नवाजा.
अमेरिका ने 1985 में उन्हें मेडल आफ फ्रीडम Medal of Freedom से नवाजा। जन कल्याण और मानव सेवा के कार्यों के लिए उन्हें 1979 में शांति का नोबेल पुरस्कार भी मिला.
ये सभी पुरस्कार मदर टेरेसा के सेवा समर्पण के आगे हमेशा फीके ही नजर आए। अंतत: 2016 में वेटिकन सिटी के पोप ने मदर टेरेसा का संत की पदवी दी.
मदर टेरेसा जीवन यात्रा का अंत – End of Journey of Life
1983 में पोप जाॅन पाॅल Pope John Paul से मुलाकात के लिए रोम की यात्रा के दौरान मदर टेरेसा को दिल का पहला दौरा पड़ा. 1989 में दिल के दूसरे दौरे के बाद उनकी तबीयत और बिगड़ गई.
मदर टेरेसा के सेवा कार्य फिर भी नहीं रुके और वह मिशनरीज से जुड़े अपने काम करती रहीं. 1991 में जब मदर टेरेसा मैक्सिको गई हुई थीं तब वह निमोनिया का शिकार हो गई और उनकी दिल की बीमारी अधिक गम्भीर हो गई.
अप्रैल 1996 में मदर टेरेसा गिर पड़ी और उनकी काॅलर बोन टूट गई। अगस्त में फिर उन्हें मलेरिया से जूझना पड़ा. लगातार गिरते स्वास्थ्य और मिशनरीज के प्रभावित होते काम के कारण मदर ने 13 मार्च 1997 के मिशनरीज आ\फ चैरिटी के प्रमुख का पद सिस्टर निर्मला Sister Nirmla को सौंप दिया.
अंततः 5 सितम्बर 1997 को मदर टेरेसा की मानवता की सेवा से परिपूर्ण जीवन यात्रा का अंत हो गया और वो चल बसी.
बीटीफिकेशन और संत की उपाधि – Beatfication and Saint’s Title
photo courtesy : Reuters |
मदर टेरेसा को एक चमत्कारिक व्यक्तित्व माना जाता था. कहा जाता था कि उनके छूने भर से ही कई बीमारियां दूर हो जाती थी. मदर टेरेसा की मृत्यु के बाद वेटिकन चर्च ने उन्हें संत की उपाधि देने के क्रम में उनकी बीटीफिकेशन Beatification की प्रक्रिया शुरू की.
19 अक्टूबर 2003 को मदर टेरेसा का बीटीफिकेशन हुआ और वेटिकन पोप ने उन्हें ‘ब्लेस्ड टेरेसा आफ कोलकाता’ Blessed Teresa of Calcutta कहकर ‘धन्य’ Blessed घोषित किया.
वेटिकन पोप फ्रांसिस Pope Francis ने 4 सितम्बर 2016 को सेंट पीटर्स स्क्वायर St. Peter’s Squire पर हजारों श्रद्धालुओं के बीच मदर टेरेसा को संत की उपाधि Title of Saint की घोषणा की.
मदर टेरेसा के अनमोल विचार – Precious Quotes by Mother Teresa
प्रेम की भूख मिटाना रोटी की भूख मिटाने से कहीं ज्यादा कठिन है।
अकेलापन और अवांछित रहने की भावना सबसे भयानक गरीबी है।
प्रेम एक ऐसा फल है जो हर ऋतु में होता है और हर व्यक्ति की पहुंच में।
सादगी से जिएं, ताकि दूसरे भी जी सकें।
आप सौ लोगों का पेट नहीं भर सकते तो कम से कम एक का भरो।
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