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भारतीय खेल जगत के गुमनाम सितारे
भारतीय खेल जगत के ये वो 10 हीरो हैं जिनकी उपलब्धियों को दूसरे स्टार खिलाड़ियों की चमक के सामने भुला दिया गया. ये आजाद भारत के वो श्रेष्ठ खिलाड़ी हैं जिन्हें उनके हिस्से की प्रसिद्धि भी नहीं मिल पाई.
भारत देश को आजाद हुए 70 साल गए हैं. क्रिकेट में भारत के सचिन तेंदुलकर जैसे सुपरस्टार खिलाड़ी को क्रिकेट के भगवान का दर्जा भी मिला और वर्ष 2014 में सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न मिलने के बाद देश के खिलाड़ियों को देश का सर्वोच्च सम्मान मिलने का रास्ता भी खुला.
क्रिकेट के अलावा भी बात करें तो ध्यानचंद Major Dhyan Chand, मिल्खा सिंह Milkha Singh, पीटी ऊषा PT Usha, सान्या मिर्जा Sanya Mirza, जीव मिल्खा सिंह Jeev Milkha Singh, लिएंडर पेस Leander Paes, मेरीकॉम Mary Kom, विश्वनाथन आनंद Vishvnathan Anand जैसे अनेक सितारा खिलाड़ियों के चमकने के इन 70 सालों में ही कई ऐसे महान खिलाड़ी पैदा हुए, जिनकी उपलब्धियों को समय के साथ भुला दिया गया.
हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन पर देश में हर साल 29 अगस्त को नेशनल स्पोर्ट्स डे National Sports Day मनाया जाता है. आइए इस मौके पर देश के स्टार खिलाड़ियों को सम्मान देते हुए जानते हैं भारतीय खेल जगत के उन हीरोज और उनकी महान उपलब्धियों के बारे में जिन्होंने हिंदुस्तान का सिर गर्व से ऊंचा तो किया मगर हम इन्हें सितारा खिलाड़ियों की तरह अपने आंखों पर नहीं सजा सके.
मक्खन सिंह (एथलीट) Makhan Singh
फ्लाइंग सिख के नाम से मशहूर जब मिल्खा सिंह अपने प्रदर्शन के चरम पर थे, तब 1962 में कलकत्ता में हुए नेशनल गेम्स के दौरान पंजाब में जन्में स्प्रिंटर Sprinter मक्खन सिंह ने 400 मीटर दौड़ में मिल्खा सिंह को मात दी थी.
मक्खन सिंह ने नेशनल गेम्स में कुल 16 मेडल जीते. 1959 से 1964 तक उन्होंने हर नेशनल गेम्स में हिस्सा लिया और 12 गोल्ड, 3 सिल्वर तथा एक ब्रोंज मेडल जीत कर अपनी धाक जमायी. वहीं 1962 के जकार्ता एशियन गेम्स में मक्खन सिंह ने भारत का प्रतिनिधित्व किया और 4 X 400 मीटर रिले रेस में गोल्ड तथा 400 मीटर दौड़ में सिल्वर मेडल भी जीता.
मोहम्मद यूसुफ खान (फुटबॉलर) Mohammed Yousuf Khan
1960 के ओलम्पिक में हिस्सा लेने वाली भारत की फुटबाल टीम – फाइल फोटो |
आज भारतीय फुटबॉल टीम ओलम्पिक, फीफा वर्ल्ड कप या अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट के लिए क्वालिफाई तक नहीं कर पाती मगर यूसुफ खान भारत के ऐसे खिलाड़ी थे जिन्होंने 1962 में जकार्ता (इंडोनेशिया) में आयोजित एशियन गेम्स में साउथ कोरिया के विरुद्ध भारत को गोल्ड मेडल दिलाया था.
यूनुस खान ने 1960 में रोम में आयोजित समर ओलम्पिक Games of the XVII Olympiad में भी भारत की नेशनल टीम का प्रतिनिधित्व किया था. 1965 में भी एशियन ऑल स्टार्स इलेवन Asian All Stars XI टीम में चयनित होने वाले दो भारतीय खिलाड़ियों में एक यूसुफ खान थे.
1966 में यूसुफ खान को अर्जुन अवार्ड तो मिला लेकिन यूसुफ को वो पहचान नहीं मिल पायी जिसके वो हकदार थे. पांच अगस्त 1937 को आंध्र प्रदेश में जन्में मोहम्मद यूसुफ खान भारतीय फुटबॉल के इतिहास में अब तक के बेस्ट ऑल-राउंड खिलाड़ी माने जाते हैं. फुटबाल खेलने में ही सिर पर लगी तीन चोटों के कारण यूसुफ पार्किंसन Parkinson बीमारी का शिकार हो गए.
69 साल की उम्र में यूसुफ की 1 जुलाई 2006 को धुंधलाती पहचान और गहराती गरीबी के बीच चारमीनार के पास नूरखान बाजार में उनके निवास पर मृत्यु हो गई तथा समय के साथ-साथ भारतीय खेल जगत का एक और हीरो भुला दिया गया.
विल्सन जोन्स (बिलियर्ड्स) Wilson Jones
भारत सरकार से पद्मश्री अवार्ड तथा खेल जगत के सबसे बड़े पुरस्कार अर्जुन अवार्ड और द्रोणाचार्य अवार्ड मिलने के बाद भी बिलियर्ड्स के विल्सन लायनल गार्टन जोन्स जैसे हीरो को हमने भुला दिया है. दो बार के वर्ल्ड चैम्पियन और 12 बार के नेशनल चैम्पियन विल्सन की चमक पंकज आडवाणी और गीत सेठी जैसे स्टार खिलाड़ियों के सामने फीकी पड़ गई.
लगभग एक दशक तक इंग्लिश बिलियर्ड्स पर धाक जमाए रखने वाले विल्सन ने 1958 और 1964 में दो बार अमेच्योर वर्ल्ड चैम्पियनशिप जीती. महाराष्ट्र के पूना में 2 मई 1922 को जन्मे विल्सन जोन्स को 1963 में अर्जुन अवार्ड, 1965 में पद्मश्री और 1996 में द्रोणचार्य अवार्ड से नवाजा गया.
देश की आजादी के तीसरे साल ही विल्सन ने बिलियर्ड्स में अपना पहला नेशनल टाइटल जीता. उन्होंने आने वाले 16 साल तक बिलियर्ड्स में अपना दबदबा कायम रखा और 12 बार अमेच्योर नेशनल बिलियर्ड्स चैम्पियनशिप जीती.
विल्सन ने 1958 में कलकत्ता में आयोजित वर्ल्ड अमेच्योर बिलियर्ड्स चैम्पियनशिप जीती और वर्ल्ड चैम्पियन बन गए. इसके बाद 1964 में भी विल्सन न्यूजीलैंड में आयोजित वर्ल्ड चैम्पियनशिप जीत दूसरी बार वर्ल्ड चैम्पियन बनें. दुनिया भर में बिलियर्ड्स खेल में पहली बार हिंदुस्तान की शानदार उपस्थिति दर्ज कराने वाले विल्सन दिल के दौरे के कारण 5 अक्टूबर 2003 को चल बसे.
खाशाबा दादासाहेब जाधव (रेसलर) Khashaba Dadasaheb Jadhav
ओलम्पिक में व्यक्तिगत प्रतिस्पर्धा में भारत के लिए पहला मेडल जीतने वाले खिलाड़ी का नाम पूछा जाए तो हर कोई आसानी से नहीं बता पाएगा. क्योंकि खाशाबा दादासाहेब जाधव के इस योगदान को हम लोगों ने भुला सा दिया है.
1952 के हेलसिंकी ओलम्पिक्स में जाधव ने बेन्टमवेट रेसलिंग (कुश्ती) में जर्मनी, मेक्सिको एवं कनाडा जैसे देशों के पहलवानों को पछाड़कर कांस्य पदक के रूप में पहला मेडल जीतकर देश के लिए यह गौरव हासिल किया था. इससे पहले भारत की ओर से व्यक्तिगत प्रतिस्पर्धा का कोई मेडल 52 साल पहले 1900 के ओलम्पिक में नॉर्मन प्रिटचर्ड ने जीता था.
1996 के अटलांटा ओलम्पिक में लिएंडर पेस के टेनिस में कांस्य पदक जीतने तक व्यक्तिगत प्रतिस्पर्धा में मेडल जीतने का खिताब केवल महाराष्ट्र के सतारा में जन्में खाशाबा दादासाहेब जाधव के पास ही था. आजाद भारत ने जाधव की इस सफलता से पहले केवल हॉकी में ही कोई मेडल जीता था.
जाधव का जन्म 15 जनवरी 1926 को हुआ तथा उनकी मृत्यु 14 अगस्त 1984 में हो गई. जाधव ही देश के लिए नाम कमाने वाले ऐसे ओलम्पिक खिलाड़ी थे जिन्हें कोई पद्म सम्मान नहीं मिला.
अश्विनी नाचप्पा (एथलीट) Ashwini Nachappa
साउथ एशियन फेडरेशन (सैफ) के तीन संस्करणों में 3 गोल्ड और 4 सिल्वर मेडल तथा 1990 के एशियन खेलों में सिल्वर मेडल जीतने के बाद भी अश्विनी नाचप्पा को पीटी ऊषा जैसी प्रसिद्धि नहीं मिल सकी. दो अलग-अलग मौकों पर नाचप्पा ने पीटी ऊषा को ही पीछे छोड़ा था.
नाचप्पा ने हिंदुस्तान के लिए 1984 के नेपाल सैफ गेम्स में 2 सिल्वर मेडल, 1986 के बांग्लादेश के सैफ गेम्स में 2 सिल्वर मेडल तथा 1988 के पाकिस्तान के सैफ गेम्स में 3 गोल्ड मेडल जीते. बीजिंग में 1990 के एशियन गेम्स में भी नाचप्पा ने 4 X 400 रिले रेस में देश के लिए सिल्वर जीता.
नाचप्पा को भारत की फ्लोरेंस जॉयनर कहा जाने लगा था. अमरीकी एथलीट फ्लोरेंस जॉयनर को दुनिया की अब तक की सबसे तेज धावक माना जाता है. स्पोर्ट्स में अपना करियर नहीं बनता देख कर्नाटक की अश्विनी नाचप्पा ने एक्टिंग की ओर रुख कर लिया और तभी से भुला दी गई.
हालांकि तेलुगु भाषा में बनी अपनी ही बायोपिक ‘अश्विनी’ के लिए नाचप्पा को सर्वश्रेष्ठ नवोदित अभिनेत्री Best Debut Actress का नंदी पुरस्कार State Nandi Award मिला. 21 अक्टूबर 1967 को जन्मी नाचप्पा को 1988 में अर्जुन अवार्ड भी मिला मगर प्रसिद्धि आज तक भी नहीं.
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